आज से दो वर्ष पूर्व शूद्र वर्ण विमर्श नामक शोध कार्य को मैंने हाथ में लिया था। हालांकि इसका काफी हिस्सा साल वर्ष 2005 में पीएचडी के दौरान ही तैयार कर लिया था। पीएचडी में भारतीय प्रबंध चिन्तन मेरा विषय था। भारत में प्राचीन काल से अत्यंत सुन्दर प्रबंध प्रणाली रही थी जिसमें मानव संसाधन और मानव संबंध सिद्धांत से जुड़े वर्तमान पाश्चात्य चिन्तन को उत्पादन की उत्कृष्टता के सन्दर्भ में कहीं ज्यादा गहराई से रेखांकित किया गया था। इस प्राचीन भारतीय प्रबंधन में शूद्र वर्ण को लेकर अनेक प्रश्न खड़े किए जाते हैं। जिनके उत्पादन और सेवाओं के द्वारा प्राचीन काल से भारत समृद्धि के शिखर पर पहुंचा तो उन शूद्रों के बारे में यह बातें कहां से आ गईं कि उन्हें पढऩे के अधिकार से वंचित रखा जाता था, उनके साथ भेदभाव होता था, उनका उच्च जातियों ने भयानक शोषण किया। ऐसे अनेक सवाल जो हर किसी शोध अध्येता के मन में उठ सकते हैं, मेरे मन में भी तब उठे।

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