ऐसा माना जाता है कि तेलुगु भाषा का नामकरण भी इसी आधार पर हुआ| ऐसा विश्वास है कि शिव 3 स्थानों पर लिंगों के रूप में अवतरित हुए, वो स्थान हैं : तेलंगाना में कालेश्वरम, रायलसीमा में श्रीशैलम, और तटीय आंध्र में द्राक्षरामम, जिनके द्वारा त्रिलंग देश बना| दोनों तेलुगु राज्यों तेलंगाना और आंध्रा का शैवमत से करीबी रिश्ता है| यही पर पंचरामस, अर्थात शिव को समर्पित 5 मंदिर हैं, और 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक श्रीशैलम है, साथ ही श्री कलहस्ती में पंचभूत शिवलिंगों में से एक अवस्थित है|
तटीय आंध्र में शिव को समर्पित 5 मंदिर हैं इसी कारण यह क्षेत्र पंचरामम कहलाता हैं| पांचों मंदिरों में स्थित सभी शिवलिंग, एक ही शिवलिंग से उत्पन्न हुए हैं| यह मूल और विशाल शिवलिंग असुरराज तारकासुर के पास था, जिससे वो अजेय हो गया था| अंततः कुमारस्वामी ने तारकासुर पर आक्रमण करके उसे मारने के लिए अपनी शक्ति का प्रयोग किया| हालांकि कुमारस्वामी ने देखा कि तारकासुर का कटा हुआ शरीर बार बार फिर से जुड़ जाता| ऐसा होने पर श्री विष्णु ने कुमारस्वामी को सलाह दी कि वो उस शिवलिंग को 5 भागों में टुकड़े कर दे जो तारकासुर ने पहना हुआ है| उन्होंने ये भी चेतावनी दी कि शिवलिंग के टुकड़े फिर से जुड़कर एक हो जायेंगे, इसलिए उन्हें अलग-अलग स्थानों पर सम्बद्ध करके वहां जोड़ दे| फिर कुमारस्वामी ने आग्नेयास्त्र से शिवलिंग के टुकड़े कर दिए और सूर्य ने उन टुकड़ों को वहां जमाकर बांध दिया और ऊपर मंदिर बनाया| कोई भी वहां हलके निशान देख सकता है जो कि आग्नेयास्त्र के द्वारा बने हुए बताये जाते हैं| और अब पांचों अलग-अलग मंदिर एक साथ पंचरामस कहे जाते हैं (अर्थात विश्राम के 5 स्थान)|
अमररामम गुंटूर जिले के अमरावती में है, और वहां के राज देवता अमरलिंगेश्वर स्वामी हैं| चूंकि अमरेन्द्र ने यहाँ शिवलिंग स्थापित किया अतः ये नामकरण हुआ| कृष्णा नदी के दक्षिणी किनारे पर “बाला चामुंडिका” विराजमान हैं, जो कि अमरलिंगेश्वर स्वामी की भार्या हैं| इस मंदिर की विशेषता इसका विशाल शिवलिंग है, जो कि 2 मंजिल तक की ऊँचाई तक विस्तृत है| यह मंदिर वासीरेड्डी वेंकटादरी नायडू द्वारा विकसित किया गया था जो कि धरनिकोटा के शासक थे और अमरलिंगेश्वार के भक्त थे| यह उनके लिए एक प्रायश्चित की तरह था और ये प्रायश्चित था एक विद्रोह को दबाने के लिए चेंचुस की हत्या करने के लिए| उन्होंने न केवल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया बल्कि 9 आर्चाकस भी नियुक्त करवाए| द्राक्षराम ईस्ट-गोदावरी जिले में रामचंद्रपुरम कसबे के पास स्थित है, जो कि अत्यंत सुरम्य स्थल पर है और हरे-भरे धान के खेतों से घिरा रहता है|
यहाँ पर शिव भीमेश्वर स्वामी कहलाते हैं और ऐसा माना जाता है की यहाँ का शिवलिंग स्वयं सूर्य के द्वारा स्थापित किया गया था| ऐसा माना जाता है कि द्रक्षराम वही स्थान है जहाँ कु-प्रसिद्द दक्ष यज्ञ हुआ था और यही कारण है कि इस मंदिर में कोई यज्ञ नहीं होता| इसे दक्षिणाकशी भी कहा जाता है और यहाँ शक्ति हैं मनिक्याम्बा अम्मावारू| माना जाता है कि यहाँ स्थित तालाब में सप्त गोदावरी का पानी है|
द्राक्षराम का शिवलिंग बहुत ऊंचा है, इसका एक भाग बेसमेंट में स्थित है, और केवल ऊपर का भाग ही दिखाई देता है| एक और दंतकथा द्राक्षराम के बारे में ये प्रचलित है कि बाहरी दीवार समय पर नहीं बन पायी थी और अब भी यह वैसे ही बिना पूर्ण हुए स्थित है| वेंगी के पूर्वी चालुक्य राजा भीम ने 10वीं शताब्दी में आंध्र के इस सबसे प्राचीन मंदिर का निर्माण करवाया था|
पंचरामस का तीसरा भाग सोमराम, भीमावरम में है और यहाँ स्थित शिवलिंग चंद्रमा के द्वारा स्थापित हुआ माना जाता है| मंदिर के सम्मुख भाग में स्थित तालाब का नाम है चंद्र्कुंदम, और यह फूलों से ढँका है| माना जाता है कि चन्द्रमा ने यहीं पर शिव की आराधना करने अपने पापों से मुक्ति पाई थी और इसीलिए इसका ऐसा नामकरण हुआ| यहाँ के शिवलिंग की खासियत ये है कि चंद्रमा की कलाओं के साथ-साथ यह अपना रंग बदलता है| पूर्णिमा में यह पूर्ण श्वेत और अमावस्या में काला हो जाता है| इस मंदिर की एक खासियत है कि शिव मंदिर के शिखर पर अन्नपूर्णा का मंदिर बना हुआ है जो कि और कहीं नहीं मिलता| यहाँ की शक्ति हैं राजराजेश्वरी अम्मावारू|
वेस्ट गोदावरी के पलाकोल्लू में स्थित क्षीरराम मंदिर में शिव को क्षीर रामलिंगेश्वर स्वामी के रूप में पूजा जाता है| ऐसा माना जाता है कि कौशिक पुत्र उपमन्यु ने शिव से कुछ परंपरा-क्रियापद्धति को करने के लिए दुग्ध माँगा तो यहाँ पुष्करणी में दूध की बाढ़ आ गयी, इसी के कारण यह नाम “पलाकोल्लू” पड़ा है (दूध के लिए तेलुगु शब्द है ‘पालु’)| ऐसा माना जाता है कि स्वयं भगवान विष्णु ने यहाँ शिवलिंग स्थापित किया था जिसकी पूजा पार्वती ने भी की. इस मंदिर को ऊंचे-ऊंचे गोपुरम के लिए जाना जाता है. इस मंदिर में शिवलिंग भी दूध की तरह सफ़ेद है, जबकि इस मंदिर में काले पत्थर के 72 स्तम्भ हैं.
पूर्वी गोदावरी के समर्लाकोटा में कुमारराम का मंदिर है, जो इस पंचरामस शिवलिंग का अंतिम मंदिर है, इस मंदिर की स्थापना कार्तिकेय ने की है. भगवान शिव यहाँ भीमेश्वर स्वामी के रूप में स्थापित हैं. चालुक्य राजवंश के समय इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया था. इस मंदिर का शिवलिंग 16 फुट ऊंचा है और यह मंदिर अपने 100 स्तंभों के लिए प्रसिद्ध है, जबकि इस मंदिर के प्रवेशद्वार पर एक ही शिला से बने हुए नंदी हैं.