इंदिरा गांधी, जयप्रकाश नारायण, नरसिम्हा राव और अटल बिहारी वाजपेई इस सामंजस्य को लेकर चलने के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। वर्तमान संदर्भ में अगर देखा जाए, तो समूचा विपक्ष इस मामले में बेहद खोखला नजर आता है, विपक्ष के पास एक भी ऐसा नेता नहीं है, जिसमें करिश्मा तो दूर की बात, राजनीति की मामूली समझ अथवा बदलते देश अथवा "युवा देश" की उम्मीदों को समझने लायक दिमाग है. आज की तारीख में इन दोनों विधाओं में कोई एक व्यक्ति माहिर है, तो वह है देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी।
पहले लोकसभा चुनाव और अब उत्तर प्रदेश चुनाव के परिणाम ने इस बात की तस्दीक की है। उत्तर प्रदेश के नतीजों के तुरंत बाद उमर अब्दुल्ला ने कहा था कि "विपक्ष को अब 2024 की तैयारी करनी चाहिए 2019 में उसके लिए खास उम्मीद नहीं है"। केवल उमर अब्दुल्ला ने संभवत: वर्तमान राजनीति की उस हक़ीकत को समझने का प्रयास किया, जिसे पूरा विपक्ष चर्चा के लायक भी नहीं समझ रहा और लालू सहित सभी लोग तो इसे नॉनसेंस ठहरा देंगे। यद्यपि 2019 अभी दूर है, परंतु जमीनी हकीकत और तमाम समीकरणों को देखते हुए मुझे यह कहने में कतई संकोच नहीं है कि कहीं 2019 में मोदी की सुनामी 2014 और 17 से भी वृहदाकार में उभरकर सामने ना आ जाए, अगर ऐसा होता है तो किसी को आश्चर्य नहीं करना चाहिए। नरेंद्र मोदी के मुखर आलोचक अथवा निंदक कहूं तो ज्यादा उचित होगा, भी दबी जुबान से यह स्वीकार करते हैं कि मोदी ने शासन प्रणाली में, अफसरशाही में आमूलचूल परिवर्तन किये हैं। ऊपरी स्तर का भ्रष्टाचार ढूंढने से भी नहीं मिल पा रहा। भ्रष्टाचार और भाई भतीजावाद से मोदी सरकार कोसों दूर दिख रही है, संवेदनशील है और लगातार जनता से जुड़कर शासन देने का प्रयास कर रही ह।
2014 से पहले केंद्र स्तर का भ्रष्टाचार देश के लिए बड़ा मुद्दा था, लेकिन मोदी के सत्ता संभालने के बाद तमाम कुटिल प्रयासों के बावजूद भी विपक्ष इस सरकार को घेरने के लिए एक भी ठोस मुद्दा नही खोज पाया। नोटबंदी को लेकर केजरीवाल, ममता और कांग्रेस के नेताओं ने एक बड़ा घोटाला (8 लाख करोड़ का) कहकर आवाज उठाने का प्रयास किया, परंतु न तो उनके पास ठोस तर्क थे और न ही जनता का उन्हें समर्थन मिला, उल्टे उत्तर प्रदेश समेत तमाम चुनाव नतीजों ने नोटबंदी पर अपने समर्थन की मोहर लगा दी। विडंबना यह रही कि विपक्ष यह समझने में कतई नाकाम रहा, कि जनता इस कदम को काले धन पर कठोर प्रहार मानकर चल रही है, इसीलिए पूरे देश में मुद्रा परिवर्तन के इतने बड़े महाभियान में तमाम असुविधाओं के बावजूद भी कोई भी बड़ा विरोध या आंदोलन सामने नहीं आया।
जहां मोदी जनता की नब्ज टटोलते हुए शासन कर रहे हैं, वही विपक्ष अपने अपने इस मूल और एकमात्र काम को भी ठीक से नहीं कर पा रहा है। जिस जनता का शीर्ष सरकार से विश्वास उठ चुका था, वही जनता अब मोदी के एक आव्हान पर अपनी गैस सब्सिडी खुशी-खुशी छोड़ रही है, जो लोग भारतीय लोकतंत्र के संदर्भ में इस घटना के मायने नहीं पढ़ पाए निश्चित ही अब उन्हें पछतावा हो रहा होगा। अभिप्राय यह है कि मोदी ने सबसे बड़ा काम यही किया है नेतृत्व के प्रति जनता के विश्वास की बहाली की, जो कि किसी भी लोकतंत्र के लिए एक आवश्यक आयाम है और लोकतंत्र की समृद्धि का सोपान है।
दरअसल नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभालने के बाद जब चीजों को नजदीक से समझना शुरु किया, तो उन्हें एहसास हुआ कि सत्तासीन लोगों की उदासीनता और अफसरशाही की जड़ता तमाम चीजों में अवरोधक बन कर खड़ी है। इसके लिए मोदी ने लक्ष्यबद्ध योजनाएं आरंभ की, जिनकी अपने स्तर पर नियमित समीक्षा और समाधान निकाला, अफसरों को सोचने और क्रियान्वित करने पर मजबूर किया, प्रोत्साहित किया, राज्यो के साथ मिलकर मासिक "प्रगति "समीक्षा बैठक शुरू की, जिसका असर अब जमीन पर भी दिखने लगा है। रेलवे कायाकल्प होने की ओर अग्रसर है, अंत्योदय जैसी ट्रेनों का विस्तार, विद्युतीकरण, दोहरीकरण आदि जिस गति से चल रहा है निश्चित रूप से 2019 तक जनता को प्रभावित करेगा। हाईवे के क्षेत्र में जो पहले 2 किलोमीटर प्रतिदिन सड़क बन रही थी, अब 20 किलोमीटर से भी ज्यादा सड़क बनायी जा रही है, जिसे बढाकर इस वित्तवर्ष में 40 किमी का लक्ष्य तय किया गया है।
कांग्रेस के समय प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना बिल्कुल बंद पड़ चुकी थी। अब 144 किलोमीटर प्रतिदिन दिन बन रही है, जिससे गावों में रोजगार सृजन भी हो रहा है, और सहूलियत भी। इस मामले में भी मोदी सरकार ने 2022 के बजाए 2019 से पहले सभी बस्तियों तक पक्की सड़क पहुंचने का लक्ष्य कर रखा है। प्रधानमंत्री ने गरीब जनता के आर्थिक समायोजन के लिए जन-धन योजना के तहत शून्य राशि पर बैंक में खाते खुलवाने का लक्ष्य रखा, इसके तहत 25 करोड़ से ज्यादा खाते खुले और उनमें हजारो करोड रुपए जमा भी हो गए। उन्हें तथा आधार को आधार बनाकर सरकार ने डीबीटी योजना को बखूबी अंजाम दिया है, आज मनरेगा जैसी लगभग 74 योजनाओं में हजारो करोड़ की राशि डायरेक्ट ट्रांसफर की जा रही है। इस डायरेक्ट ट्रांसफर को अप्रैल 2017 से पहले 144 योजनाओं तक बढाने का लक्ष्य है। प्रधानमंत्री की प्राथमिकता में किसान, गरीब, मजदूर ,बेरोजगार युवा और महिला सबसे ऊपर है। यह मोदी की योजनाओं में स्पष्ट रुप से उभर कर भी सामने आ रहा है।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना आपदा पीड़ित किसानों के लिए बड़ी राहत लेकर आई है। इतने कम प्रीमियम पर कभी भी फसल बीमा लागू नहीं हुआ, सरकार का लक्ष्य कम से कम 50% किसानों को इस योजना के तहत लाने का है । 2019 तक यह संख्या काफी हद तक बढ़ेगी। सरकार सभी घरों में विद्युतीकरण एवं 24 घंटे बिजली देने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रही है। जिन 18000 से अधिक गांवों में आजादी के बाद से आज तक बिजली नहीं पहुंची थी उनमें भी 1000 दिन के अंदर बिजली पहुंचाने का लक्ष्य पूरा होता दिख रहा है। "उदय योजना" को ज्यादातर प्रदेशों ने स्वीकार किया है, जिसका लाभ भी आगामी दिनों में दिखेगा। 22 करोड़ से ज्यादा एलईडी बल्ब वितरण से बिजली की बचत सालाना 11532 करोड रूपये पहुंच चुकी है। नीम कोटेड यूरिया नीति का सीधा लाभ किसानों को मिला है। हाल ही में सरकार ने 101 फूड प्रोसेसिंग पाक की अनुमति दी है, खाद्य प्रसंस्करण मंत्री हरसिमरत कौर बादल का कहना है कि अगले साल के अंत तक इन में काम आरंभ हो जाएगा, अभी तक देश में इतने ही मेगा मेगा फूड पार्क थे, जितने की अनुमति दी गई है। इससे किसानों को अपने सामान को उचित दाम मे बेचने में काफी सुविधा मिलेगी। स्वरोजगार के लिए सरकार द्वारा चलाई गई "मुद्रा योजना" भी काफी प्रभावशाली रही है, अभी तक आनुमानित है कि इससे एक करोड़ रोजगारों का सृजन हुआ है।
हाल ही में सरकार ने एक और महत्वपूर्ण कदम उठाया है, जिसे विशेषज्ञ सही क्रियान्वन होने पर गेम चेंजर के रूप में देख रहे हैं, वह है नयी स्वास्थ्य नीति। जिसके अंतर्गत सभी को निशुल्क/सस्ती चिकित्सा और टेस्ट कराने का प्रावधान है। यद्यपि मीडिया ने इसे ज्यादा महत्व नहीं दिया, परंतु यह सत्य है कि अगर इस योजना का क्रियान्वयन सही तरह से जमीन पर हुआ तो फिर आम लोगों की आमदनी, स्वास्थ्य दोनों पर बेहद सकारात्मक गुणात्मक परिवर्तन आएगा जिसका सीधा लाभ 2019 चुनाव में सरकार को मिलेगा। इस तरह की तमाम योजनाएं सरकार लक्ष्यबद्ध तरीके से आगे बढ़ा रही है, जिनमें अगर 50% से अधिक लक्ष्य भी प्राप्त कर लिया गया, तो निश्चित ही सरकार जनता के भरोसे को जीतने में कामयाब रहेगी।
मोदी सरकार सामाजिक सुरक्षा के साथ साथ राजनीतिक निर्णय लेने में भी किसी तरह की हिचकिचाहट नहीं दिखा रही है। फिलहाल एक निर्णय जिसने भारत नहीं पूरे विश्व का ध्यान विभिन्न कारणों से अपनी ओर खींचा है, जिसे मोदी द्वारा लिए गए साहसिक निर्णय में से एक माना जा रहा है, वह है योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश बनाना। यद्यपि तमाम राजनीतिक पंडित इस बात से आशान्वित थे, कि कोई भी मुख्यमंत्री होगा परंतु योगी के नाम पर तो विचार भी नहीं किया जाएगा। लेकिन मोदी और भाजपा के इस फैसले ने सभी को हैरान कर दिया। निश्चित रूप से मोदी ने यह निर्णय बहुत सोच समझकर और दूरदर्शिता के साथ लिया है। जैसा कि पहले मैंने लिखा था, अब भाजपा के पास विकास और हिंदुत्व को एक साथ लेकर चलने का स्वर्णिम अवसर है, यह निर्णय उसी का प्रतिमान है। जिस तेजी से योगी ने इन दिनों में फैसले दिए हैं उससे यह बात सिद्ध भी हो रही है कि वह इस निर्णय पर बिल्कुल खरे उतरेंगे, जिसका असर देशव्यापी होगा और 2019 में सहायक भी।
विपक्ष अभी भी वही गलती कर रहा है, जो उसने मोदी को लेकर की थी वह इस बात से अनभिज्ञ है कि अवैध बूचड़खाने की बंदी से लेकर एंटी रोमियो स्क्वाड जैसे निर्णयों से उत्तर प्रदेश की जनता के बीच योगी की लोकप्रियता काफी हद तक बढ़ी है। जनता इसे सराह रही है और विपक्ष की तमाम दलीलों को दरकिनार भी कर रही है। वस्तुस्थिति यह है कि 2019 की तैयारी के लिए जहां भाजपा मोदी शाह की अगुवाई में काफी मुस्तैद दिख रही है वही विपक्ष काफी पस्त नजर आ रहा है। विपक्षी पार्टी कांग्रेस एक परिवार के खूंटे से बंधी ऐसे अंधेरे में खोती जा रही है, कि उसे कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा। राहुल गांधी का प्रभावहीन व्यक्तित्व कांग्रेस को नेतृत्व देने में सक्षम साबित हो रहा है, लेकिन फिर भी कांग्रेस की रणनीतिकर किसी तरह के निर्णय की स्थिति में नहीं है। मीडिया ने काफी पहले इस स्थिति को भांप लिया था, इसलिए उसने केजरीवाल को मोदी के खिलाफ महानायक बनाने की नाकाम कोशिश की, परंतु केजरीवाल अपनी ही गलतियों से लगातार अपनी विश्वसनीयता खो रहे हैं और पंजाब के परिणामों ने मीडिया और केजरीवाल की जुगलबंदी की कमर तोड़ दी है। तीसरा विकल्प लालू यादव पूरे विपक्ष के गठबंधन का दे रहे हैं, लेकिन क्षुद्र स्वार्थों पर आधारित इस गठबंधन को जनता कितना महत्त्व देगी, उसका स्वरूप क्या होगा, इसका नेतृत्व कौन करेगा, यह सब अभी काफी धुंधला है। साथ ही नीतीश के एनडीए में जाने की खबरें इस कल्पना में मौजूद गठबंधन की बेचैनी को लगातार बढ़ा रही हैं।
भले ही राजनीतिक पंडित, राजनेता, विश्लेषक और संपादक इस हकीकत को स्वीकार करें या ना करें परंतु जिस तरह से मोदी सरकार अपनी नीतियों को समयबद्ध तरीके से अमलीजामा पहनाने की कोशिश कर रही है, अगर 60 प्रतिशत भी सफलता हासिल करती है, साथ ही राष्ट्रवाद के एजेंडे पर बिना विचलित हुए आगे बढ़ती है, विकास और हिंदुत्व की राह पर चलती है तो कमजोर विपक्ष के लिए उसे रोक पाना बेहद कठिन साबित होगा। इसके परिणामस्वरूप हमें 2019 में और भी बड़ी मोदी-सुनामी देखने को मिल सकती है तब लोग उमर अब्दुल्ला के उस वाक्य को जरूर याद करेंगे जिसका मैंने आरंभ में जिक्र किया था।