कुछ सवालों का उत्तर स्पष्टता से मिलता भी है... गौर करिये....
१) क्या कोई समाज, स्वेच्छा से अन्य समाजों के मल मूत्र को साफ करने का घृणित कार्य करेगा? (Great Valmiki Samaj) हजार वर्ष पहले इस प्रकार के किसी भी “स्वच्छक समाज” का जिक्र भारतीय इतिहास में नही मिलता. जाहिर सी बात है कि यह इस्लामी आक्रमण के बाद जिहादियों द्वारा थोपी हुई प्रक्रिया है. चूँकि पराजित समाज पर हमेशा विजेताओं का अधिकार रहा है, और विजेताओं ने विजित समाज से जो चाहा वह किया, और करवाया।
२) क्या कोई समाज, अपने जीवन में भरण पोषण हेतु आवश्यक धन कमाने के लिए गाय, बैल, घोड़ा, हाथी जैसे अपेक्षाकृत लाभदायक जानवर पालने के स्थान पर, वराह (सूअर) (Pig Farming in India) जैसा मल खाने वाला घृणित पशु आखिर क्यों पालेगा?
३) आखिर क्यों बाल्मीकि समाज ने वराह जैसे घृणित पशु के माँस को अपने दैनिक भोजन का आवश्यक अंग बनाया... क्या इसके स्थान पर कोई शाक या घास खाने वाला जानवर नहीं था?
४) आखिर अपना नित्यप्रति भोजन पकाने हेतु वाल्मीकियों ने वराह की वसा का, घी या तेल के स्थान पर क्यों उपयोग किया?
५) मध्यकाल से लेकर आज से यही कोई सत्तर अस्सी वर्ष पहले तक जब बारात आदि में आवागमन का मुख्य साधन बैलगाड़ी ही था, तो मैदानी क्षेत्रों में विवाह के पश्चात दुल्हन को मायके से एक वराह का छोटा शावक दिया जाता था, जिसे वह ससुराल पहुँचने से पहले पूरे रास्ते भर, डोली के भीतर लकड़ी से धीरे से बिना क्षति पहुँचाये पीटती रहती थी, और वह सूअर का बच्चा पूरे रास्ते भर किकियाता जाता था. यह सब इसलिए किया जाता था, ताकि वह नवविवाहित वधू स्वयं को हरण करने वाले क्रूर आक्रमणकारी जेहादी लुटेरों से अपनी रक्षा करने के साथ-साथ स्वयं की शील रक्षा भी कर सके.
उल्लेखनीय है कि इस्लाम की आसमानी किताब में “वराह” को सर्वाधिक घृणित पशु माना गया है. मुसलमान इसके आसपास भी नहीं फटकते.
इन सभी प्रश्नों के मूल में वराह ही क्यों है? इस सवाल का जवाब है कि वास्तव में शूकर स्वधर्म रक्षा का सबसे बेहतर हथियार है. इजराइल में जिहादी गुण्डों की भीड़ को तितर बितर करने के लिए वहाँ की पुलिस सूअर के खून और वसा से बने तरल बदबूदार पेस्ट की वर्षा जिहादी भीड़ पर करती है, जिससे वहाँ अब जिहादी पत्थरबाजों की भीड़ एकत्र होने का दुस्साहस नही कर पाती. अर्थात जो खोज भारत के वाल्मीकि समाज ने मध्यकाल में ही कर दी थी, आखिर हमने उस साधन का प्रयोग कश्मीर में पत्थरबाजी से निपटने में क्यों नही किया?
६) वराह जैसे मलभोजी और घृणित पशु के पालन पर इतना जोर क्यों दिया गया?
७) कहावत "जिसने खाया न सूरा - वो हिंदु न पूरा" के प्रचलन के पीछे क्या उद्देश्य था? यह कहावत कब से प्रारंभ हुई?
वास्तव में हमारे पराजित लड़ाके बन्धुओं से मल मूत्र साफ कराने और उनसे सिर मैला ढोने की परंपरा इस्लामी आक्रमण के युग में ही प्रारंभ हुई, और सूअर पालन के पीछे हमारी सुरक्षित रहने की भावना ही प्रधान रूप से थी. वाकई में विष्णु भगवान ने ही वराह अवतार (Varah Avatar) में आततायी हिरण्याक्ष को मार कर समुद्र में डुबाकर जलमग्न कर दी गयी पृथ्वी को पुनः अपने थूथन पर उठाकर समुद्र से बाहर निकाला और इस सृष्टि का पुनः उद्धार किया.
पराजित हिंदू समाज से मल साफ कराने का उद्देश्य इस योद्धा समाज को मानसिक व मनोवैज्ञानिक स्तर पर इस पद्धति द्वारा पूरी तरह से नीचा दिखाना और भविष्य में उनके द्वारा किए जाने वाले संगठित हिन्दू प्रतिरोध को हतोत्साहित करना था. इसके अतिरिक्त भारतीय समाज की मजबूत एकता को तोड़कर एक अलग और निष्कासित अस्पृश्य समाज का निर्माण करना भी इसका एक अन्य उद्देश्य था. यह इस्लामिक आक्रमणकारी वर्ग दीर्घकालिक तौर पर इस भारतवर्ष में अपना शासन स्थायी करना चाहता था. इस हेतु इन आक्रमणकारियों ने समाज में अस्पृश्यता को बढ़ावा देकर हिन्दू समाज के अभेद्य सामाजिक किले की दीवारों पर बड़े बड़े सुराख कर दिए. इन आक्रमणकारियों ने एकरस, एकात्म हिंदु समाज की अविच्छिन्न शक्ति को छिन्न-भिन्न कर दिया. भारत को चार वर्णों को जातीय भेद के आधार पर तोड़ने का कार्य सबसे पहले मुसलमानों ने प्रारंभ किया, फिर अंग्रेजों ने इसे जारी रखा. सात साढे सात सौ वर्षों तक मुसलमानों द्वारा भारतीय समाज के राष्ट्रीय शरीर पर यह धीमा किंतु लकवाग्रस्त कर देने वाला जहर, इंजैक्ट करने के बाद ब्रिटिशर्स ने भारत के समरस एकात्मजीवन को जातिवाद की नयी नयी परिभाषाओं के रूप में गढ़कर उन के काल्पनिक साँचों में फिट कर दिया और मुसलमानों के बाद उनसे भी ज्यादा कूटनीतिपूर्ण तरीके से जातिवाद फैलाया. शेड्यूल्ड वाली जातिवादी प्रणाली का जन्म ब्रिटिश साम्राज्य वादी शक्तियों ने अपने हित के लिए किया और भारत की सामाजिक एकता को क्षति पहुँचाई. ब्रिटिश शासन के पश्चात उनके भारतीय मानसपुत्रों (यानी काले अंग्रेजों) ने मुसलमानों और अंग्रेजों की इसी देशतोड़क दीर्घकालिक नीति का आश्रय लिया, और दुष्ट बुद्धिपिशाच वामपंथियों ने ब्राह्मणों जैसे दयालु, निस्पृह और सदैव राष्ट्रोद्धार को आत्मोद्धार मानने वाले सीधे सज्जन ब्राह्मणों को ही सामाजिक अन्याय का अकारण दोषी ठहरा दिया. वास्तव में इतिहास में इन दुष्ट नक्सली आतंकी कम्युनिस्टों ने इतनी गंदी मिलावट कर दी है, कि झूठ सच और सच झूठ नजर आने लगा है.
वास्तव में वर्णाश्रम के स्थान पर जन्मना जातीय स्वाभिमान ने इसी विकट धर्मान्धता और मतांतरण के दौर में अपना स्थान बनाया, और सनातन धर्म का रक्षण किया। ऋग्वैदिक कालीन व्यक्तिशः गुण कर्म आधारित वर्ण परिवर्तन की सुन्दर व्यवस्था को नष्ट करने का कार्य पहले मुसलमानों ने किया, तत्पश्चात ब्रिटिशर्स ने और आज विदेशी धन पर पलने वाले और महान भारतीय परंपराओं को नष्ट भ्रष्ट करने की मंशा पाले बैठे तथाकथित जातिवादी कम्युनिस्टों ने प्रज्ञाहीन लोगों का मानसिक बधियाकरण कर इस जातिवाद को बढावा ही दिया है। श्रीमद्भगवद्गीता के चौथे अध्याय के तेरहवें श्लोक में स्पष्ट वर्णित है कि चारों वर्ण जन्मना नहीं हैं अपितु गुण और कर्मों के आधार पर कोई भी व्यक्ति किसी भी वर्ण को प्राप्त कर सकता है,वर्ण जन्मना नही है
"चातुर्वण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः
तस्य कर्तारमपि मां विद्धि अकर्तारम अव्ययम् ।"
इसी परंपरा के आधार पर दुर्दांत डाकू रत्नाकर भी आत्मावलोकन के द्वारा महान वाल्मीकि बन गये और आज हमारे पूज्यनीय हैं। वेदव्यास एक कैवर्त मछुवारे कुल की माता के गर्भ से जन्मने के बाद भी आज हमारे लिए भगवान जैसे पूजनीय हैं... सन्त रैदास एक चर्मकार होने के बाद भी आज हमारे लिए पूज्यनीय हैं और आज भी अपने कालजयी भजन "प्रभुजी तुम चंदन हम पानी" के रूप में हमारे हृदय पटल पर जिंदा हैं। मध्यकाल में जब सनातन धर्म का चंद कुछ हजार आततायी कबीलाई आतंकवादियों द्वारा बड़ी वीभत्सता से सामूहिक बलात्कार किया जा रहा था,तो उस समय धर्म रक्षणार्थ जात्याभिमान नामक युगधर्म की अवधारणा ने सनातन धर्म का रक्षण किया। जिस प्रकार कछुवा अपनी रक्षा हेतु अपने समस्त अंगो को समेटकर अपनी पीठ के भीतर छुपा लेता है ठीक इसी प्रकार जात्याभिमान ने उस धर्मान्धता और मतांतरण के कठिन समय में सनातन धर्म की रक्षा की। उस समय यह युगधर्म था अतः आवश्यक था, किंतु आज इसकी कोई आवश्यकता नही है।
उस समय प्रत्येक व्यक्ति जाति बहिष्कृत होने से डरता था और इसी कवच के कारण भारतवर्ष पूर्णरूपेण मुसलमान नही बना, जबकि पूरी दुनिया में ईरान जैसे बहुत सारे देश कुछ ही वर्षों के इस्लामी शासन में पूरी तरह से मतांतरित होकर मुस्लिम बन बैठे।
1) एक बार इस जलमग्न सृष्टि को भगवान वराह ने अपने थूथनों पर उठाकर बचाया था। आज भारतवर्ष को यदि कोई बचायेगा तो वह भगवान वराह ही हैं। कैराना और इस जैसे अगणित स्थानों पर इस देश को प्रेम करने वाला मूल हिंदू समाज वहाँ से अपनी संपत्ति और मकान दुकान औने-पौने दाम में बेचकर भाग रहा है, लेकिन हिंदू समाज उन स्थानों से बचकर आखिर कहाँ कहाँ जाएगा? हिंदुओं को अपने ही देश में अपने पलायन को यदि रोकना है तो उसे भगवान विष्णु के वराह अवतार की अहर्निश साधना करनी होगी।
2) भगवान विष्णु के वराह अवतार के पालन पर जोर देना होगा। हिंदू समाज को एक स्पष्ट वराह नीति बनाकर वराह पालन पर जोर देना चाहिए. वर्ष में एक दो वराह खरीदकर अपने वाल्मीकि बन्धुओं को दान दें। भगवान वराह ही अब भारतवर्ष का उद्धार करेंगे। भारतवर्ष यदि पुनः विश्वगुरू बनेगा, तो केवल वराहदेवता की ही कृपा से यह सब संभव है। वराह “मल-भोजी पशु” है, इसने मध्यकालीन बर्बर और पीड़ादायक युग में हमारे वाल्मीकि बन्धुओं के कार्य में सहयोग दिया है, इसी कारण से इसके पालन का प्रचलन बढा और इसने परम्परा का रूप धारण कर लिया। वाल्मीकि बंधुओं का प्रत्येक शुभाशुभ कार्य चाहे वह नामकरण हो, या मृतभोज.... वराह के बिना अधूरा है।
कहने का तात्पर्य यह है कि मध्यकालीन युग में हिंदू लड़ाका कौमों से युद्ध के दौरान आतंकवादी जेहादी शक्तियाँ गौ माता को अपनी सेना के आगे रखकर हिंदू शक्तियों को बार-बार पराजित कर देती थीं। इसके अचूक समाधान हेतु, वराह देव ने भी सैन्य टुकड़ी के आगे आगे अपना भीषण दल बनाकर हिंदुओं को विजयी बनाने में अपना अमूल्य योगदान दिया। अतः स्पष्ट रूप से यह कहा जा सकता है कि वराह देवता ने संकट के क्षणों में हिंदू समाज के ऊपर अनंत उपकार किए हैं, और निकट भविष्य में भी यह समाज रक्षणार्थ अपना योगदान देगें।
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इस्लामिक जेहादियों के अत्याचारों से सम्बन्धित कुछ और लेखों की लिंक इस प्रकार है...
१) टीटू मियाँ हों, या टीपू मियाँ... सभी शुद्ध जेहादी हैं... :- http://www.desicnn.com/news/miyan-titu-meer-alias-nisar-ali-was-a-wahabi-jehadi-not-a-freedom-fighter
२) टीपू सुलतान की क्रूरता : तथ्यों सहित विश्लेषण... :- http://www.desicnn.com/news/tipu-sultan-is-a-tyrant-cruel-and-jehadi-mentality-ruler-who-oppressed-hindus-of-karnataka
३) ना तो जिन्ना सेकुलर थे, ना ही पाकिस्तान का निर्माण आकस्मिक था... :- http://www.desicnn.com/news/jinnah-was-not-secular-and-creation-of-pakistan-is-not-spontaneous