दलित-मुस्लिम प्रेम का झूठ और भीड़ हत्या का नकली विमर्श

Written by शनिवार, 01 जुलाई 2017 21:29

भीड़ द्वारा हत्या जैसे “नकली विमर्श” गढ़कर विश्व पटल पर भारत को बदनाम करने वाले तथाकथित बुद्धिजीवियों के लिए कर्नाटक से एक खबर है.

कर्नाटक के विजयपुरा जिले में स्थित हल्गुन्दाकनल गाँव में मीराप्पा नामक वृद्ध के बेटे अर्थात हिन्दू दलित युवक निंगाप्पा को नीरालगी गाँव में रहने वाली मुस्लिम लडकी से प्रेम हो गया और बीस दिन पहले वह उसे लेकर बंगलौर भाग गया. दलित परिवार को भी यह रिश्ता मंजूर नहीं था, इसलिए उन्होंने लड़की के गाँव जाकर उसके परिजनों से आग्रह किया कि चलो हम मिलकर दोनों को खोजते हैं और उन्हें अलग करते हैं. ज़ाहिर है कि “दलित-मुस्लिम प्रेम का झूठ रचने वाले फर्जी दलित चिंतकों ने कभी भी ऐसी स्थिति के बारे में विचार तक नहीं किया होगा, परन्तु मुस्लिम लडकी के परिजनों को अपने पंथ और अपनी किताब पर पूरा भरोसा था, इसलिए वे लोग 25 जून को “पूरी तैयारी” के साथ मीराप्पा के गाँव आए और उन्होंने पूरे परिवार को पीटना शुरू किया.

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सबसे पहले उन्होंने निंगाप्पा के वृद्ध पिता को पेड़ से बाँधकर जमकर पिटाई की, जब उसके दूसरे बेटे रमेश ने इसका विरोध करने का प्रयास किया तो उसे भी उसी पेड़ के साथ बाँधकर पिटाई शुरू कर दी. इस बीच जैसे-जैसे गाँव वाले दलित बन्धु घटनास्थल पर एकत्रित होने तो पिटाई करने वाले मुस्लिम परिवार में भय का माहौल बन गया और वे वहां से भाग निकले. यदि गाँव के दलित समय पर एकत्रित नहीं हुए होते तो पिता-पुत्र की हत्या निश्चित थी. फिर मुस्लिम भीड़ द्वारा दो दलितों की पिटाई जैसी खबर आने पर, जुनैद खान और अख़लाक़ के नाम पर “Lynchistan” “Lynchistan” चीख कर दुनिया भर में ढोल पीटने वालों को मुँह छिपाने का मौका भी नहीं मिलता. अक्सर ऐसे मौकों पर दलित चिन्तक और कथित बुद्धिजीवी गायब हो जाते हैं. (लेख का शीर्षक चित्र यानी एक खबर भी कर्नाटक की ही है, जिसमें एक गर्भवती मुस्लिम महिला को सिर्फ इसलिए जला दिया, क्योंकि उसने दलित युवक से शादी कर ली थी.)

 

dalit thrashing in india

बहरहाल, यह गरीब दलित परिवार उन मुस्लिमों से इतना भयभीत था कि पहले तो पुलिस में रिपोर्ट करने से ही डरता रहा, लेकिन जब गाँव के अन्य दलितों ने हिम्मत बँधाई तब पुलिस में रिपोर्ट हुई और पिता-पुत्र को अस्पताल ले जाकर उनका इलाज शुरू किया गया. विजयपुरा के पुलिस अधीक्षक कुलदीप जैन के अनुसार फिलहाल एक गिरफ्तारी हुई है, लेकिन मियाँ मुजावर, अमीन मुजावर, शरीफ मुजावर, बाबू मुजावर, रफीक मुजावर, अल्लाबख्श मुजावर फरार चल रहे हैं. इस घटना के विरोध में “दलित संघर्ष समिति” ने कर्नाटक विधानसभा के सामने धरना-प्रदर्शन आयोजित किया, परन्तु कांग्रेस-भाजपा अथवा किसी भी तथाकथित दलित चिन्तक या खुद को “प्रगतिशील” कहने वालों ने इस धरने की तरफ झाँककर भी नहीं देखा. कर्नाटक हो या उत्तरप्रदेश, अथवा बिहार... दलितों और मुस्लिमों के बीच ऐसा टकराव सामान्य सी बात है. कभी सूअर पालन को लेकर, तो कभी मुस्लिमों द्वारा दलितों की लड़कियां छेड़ने को लेकर, या फिर मामूली सी कहासुनी के बाद गरीब हिन्दू दलितों को मुसलमानों द्वारा पीटे जाने अथवा हत्या किए जाने की दर्जनों घटनाएँ घटित होती रहती हैं. इस मामले में एकमात्र अच्छी बात यह है कि फिलहाल वह हिन्दू दलित युवक और वह मुस्लिम लड़की अपनी गाँव वापस नहीं आए हैं और गायब ही हैं.

लेकिन सेकुलर बौद्धिक पाखण्ड इतना गहरा है कि ऐसी घटनाओं पर बड़ी सफाई से चुप्पी साध ली जाती है. ज़ाहिर है कि दलित-मुस्लिम एकता न केवल एक सफ़ेद झूठ है, बल्कि दलितों को मूर्ख बनाकर उनका राजनैतिक उपयोग करने का साधन मात्र है. समस्या यह है कि भाजपा का कैडर और उनके तथाकथित आईटी सेल ऐसे मामलों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समुचित ढंग से उठा नहीं पाते. इसी कारण अख़लाक़ और जुनैद जैसे झूठे विमर्श रचकर “वामी-कामी-कांगी गिरोह” अपनी ख़बरें “बेचने” और विदेशों से चंदा हासिल करने में कामयाब हो जाता है.

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