पीर-पंजाल रेंज में 10.5 मीटर चौड़ी, 5.52 मीटर ऊंची, 10,075 फीट (3,000 मीटर) की ऊंचाई पर लगभग 3,200 करोड़ रुपये की लागत और अत्याधुनिक तकनीक से निर्मित यह सुरंग विश्व का एक इंजीनियरिंग कीर्तिमान है। यह घोड़े की नाल के आकार की, सिंगल-ट्यूब, डबल लेन सुरंग है, जिसमें आठ मीटर चौड़ी सड़क है। सुरंग से सैनिकों की तेज आवाजाही सुनिश्चित होगी। हिमाचल प्रदेश की वैभवशाली पर्वत शृंखला से गुजरती यह सुरंग देश के बाकी हिस्सों के साथ प्रदेश को संपर्क प्रदान करेगी।
सामरिक रूप से महत्वपूर्ण और बेहद चुनौतीपूर्ण यह परियोजना सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के इंजीनियरों की एक उच्च विशेषज्ञ टीम द्वारा हिमालय की कठिन परिस्थितियों में बनाई गई है। 3,000 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर बनाई गई दुनिया की यह सबसे लंबी राजमार्ग सुरंग मनाली के पास सोलंग घाटी से लाहौल में सिसु के बीच की दूरी घटाकर लगभग 46 किलोमीटर कर देगी, जिससे यात्रा का समय लगभग दो से तीन घंटे घटकर केवल 15 मिनट रह जाएगा। साथ ही, माल की आवाजाही में मदद मिलेगी। यह सुरंग सुनिश्चित करेगी कि लाहौल घाटी के लोगों को प्रकृति और बर्फबारी के कारण बंधक नहीं रहना पड़े, क्योंकि कम तापमान सामान्य जन-जीवन को अस्त-व्यस्त करने के अलावा बिजली और दूरसंचार लाइनों को भी प्रभावित करता है।
लाहौल-स्पीति के इलाके ठंडे मौसम में कट से जाते हैं और उत्तर भारत के बाजारों में इस क्षेत्र के कृषि उत्पादों की आपूर्ति में दिक्कत आती है। देश में सबसे अच्छे आलू, स्वादिष्ट गोभी, मटर, कुथ, हॉप्स और शीतोष्ण सब्जियां, सेब तथा आयुर्वेदिक दवाओं में उपयोग की जाने वाली महत्वपूर्ण जड़ी-बूटियों का उत्पादन इसी जनजातीय क्षेत्र में सर्वाधिक होता है। यह परियोजना हिमाचल प्रदेश की लाहौल घाटी के दूर-दराज के सीमावर्ती क्षेत्रों को सभी मौसम में जोड़ने का काम करेगी, जो आमतौर पर सर्दियों के दौरान लगभग छह महीने तक देश के बाकी हिस्सों से कटे रहते हैं।
इससे होटल, होम-स्टे और पर्यटन-संचालित व्यवसाय को, जो अब तक केवल छह महीने ही काम करते थे, काफी लाभ होगा। वर्ष 2019 के राज्य सरकार के आंकड़ों के अनुसार, 1.33 लाख पर्यटकों ने लाहौल का दौरा किया, जब कि कुल 1.72 करोड़ पर्यटकों ने हिमाचल प्रदेश में अपनी यात्रा की। इसका मतलब है कि अधिकांश पर्यटक आमतौर पर कुल्लू, मनाली, शिमला, डलहौजी, धर्मशाला और राज्य के अन्य प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों का दौरा करते हैं, जहां पहुंच और बुनियादी ढांचा सुचारू हैं। लाहौल-स्पीति में पर्यटक यात्रा को इतना आसान नहीं मानते हैं।
अटल सुरंग के खुलने के बाद अधिक संख्या में पर्यटक हिमाचल के अन्य क्षेत्रों की तरह इस सुंदर घाटी को जानेंगे और यह स्थानीय अर्थव्यवस्था खासकर पर्यटन, शिल्प, और देश के अन्य भागों में स्थानीय वस्तुओं के निर्यात को मजबूत करेगा। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह परियोजना हिमाचलवासियों हेतु व्यावसायिक अवसरों में समृद्धि लाएगी। पर इसके साथ ही हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि विकास की अबाध दौड़ में हम यहां की जैव विविधता, प्राकृतिक सौंदर्य और संस्कृति को अक्षुण्ण रखते हुए आगे बढ़ें। विगत कुछ वर्षों में देवभूमि में पर्यटन की गतिविधियां तेजी से बढ़ी हैं, किंतु यह भी सच है कि यहां की जैव विविधता के समक्ष संकट भी गहराता जा रहा है। आज यहां की नदियों और पहाड़ों में मानवीय गतिविधियां बढ़ने से उसका परिणाम अनियमित मानसून और बढ़ते प्रदूषण के रूप में सामने आ रहा है। यही नहीं, जो देवभूमि सामाजिक समरसता, शांति तथा सौहार्द के लिए जानी जाती थी, वहां संगठित अपराध भी बढ़ रहे हैं। ऐसे में, अब समय आ गया है कि पर्यटन से जुड़ी वाणिज्यिक गतिविधियों को नए सिरे से विनियमित किया जाए, जिससे पर्यावरण समृद्ध हो, न कि उसका क्षरण हो।
(नरेश कुमार)