एक जुलाई से अब प्रतिदिन ऐसे सभी मंदिरों का हिसाब-किताब सरकार के पास पेश किया जाएगा, जिनकी आय बीस लाख रूपए से ऊपर है. अकेले तेलंगाना में लगभग 3000 मंदिर रजिस्टर्ड हैं, जिनमें से लगभग 70% मंदिरों की आय बीस लाख रूपए सालाना से अधिक है. अभी तक राज्य सरकार के विशेषाधिकार के तहत मंदिरों को VAT, Sales tax और संपत्ति कर से छूट दी गई थी, परन्तु केंद्र सरकार ने स्पष्ट कर दिया है सभी मंदिरों पर GST लागू होकर रहेगा. यदि आप थोड़े भी समझदार हैं, तो ज़ाहिर रूप से समझ जाएँगे कि यह टैक्स “केवल मंदिरों पर” ही लगने वाला है, चर्चों या मस्जिदों पर नहीं.
ऐसा नहीं है कि इतने सारे टैक्स छूट के कारण सरकार को मंदिरों से कोई आय नहीं हो रही थी, क्योंकि अधिकाँश बड़े मंदिर पहले से ही सरकार के कब्जे में हैं, परन्तु इन मंदिरों से जुडी हुई अर्थव्यवस्था अर्थात ट्रांसपोर्ट बिजनेस, होटल व्यवसाय तथा पूजा सामग्री विक्रय के द्वारा सरकार को पहले ही इन मंदिरों से 12% की धुआँधार आय हो ही रही है. ज़ाहिर है कि सबसे अधिक दान प्राप्त करने वाले मंदिर के रूप में तिरुपति देवस्थानम को इस GST की सबसे ज्यादा मार लगेगी. एक अनुमान के अनुसार तिरुपति मंदिर की प्रतिदिन की आय लगभग तीन करोड़ रूपए है. GST लगने के बाद मंदिर के आधिकारिक रेस्ट-हाउस, विशेष दर्शन टिकट, विशेष पूजा टिकट तथा प्रसाद पर भी GST लगेगा. इस वर्ष अप्रैल माह में तिरुपति मंदिर की आय 1038 करोड़ की हुई थी, लगभग 2.70 करोड़ लोगों ने मंदिर में दर्शन किए और दस करोड़ से अधिक लड्डू बेचे गए. प्रस्तावित GST को देखते हुए तिरुपति देवस्थानम बोर्ड ने पहले ही 2858 करोड़ रूपए का प्रावधान टैक्स चुकाने के लिए कर दिया है. बोर्ड के अधिकारियों ने कहा कि मंदिर की अधिकाँश कमाई, दान, लड्डू विक्रय, दर्शन टिकट, पूजा टिकट विक्रय से होती है. इसके अलावा मंदिर प्रशासन के अंतर्गत चलने वाले रेस्ट-हाउस, अस्पताल, स्कूल इत्यादि लगभग “नो प्राफिट, नो लॉस” के आधार पर चलाए जा रहे हैं. ऐसे में केवल मंदिरों को निशाना बनाकर उनसे GST वसूलना कतई उचित नहीं कहा जा सकता.
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उत्तरप्रदेश और आंध्रप्रदेश सरकारों के विरोध के बाद अरुण जेबलूटली ने एक चतुराई दिखाते हुए लड्डू प्रसाद को GST से मुक्त कर दिया. यानी जब भक्तगण लड्डू खरीदेंगे तो उन्हें GST नहीं देना पड़ेगा, लेकिन असली चतुराई यह है कि लड्डू निर्माण के लिए लगने वाली टनों की सामग्री जैसे रवा, मैदा, काजू, आटा तथा निर्माण इत्यादि पर GST टैक्स लगेगा, यानी कान घुमाकर पकड़ा है. TTD के मुख्य कार्यकारी अधिकारी केएस श्रीनिवास राजू ने बताया कि मंदिर के अन्नक्षेत्र में प्रतिदिन हजारों लोग मुफ्त या सस्ता भोजन करते हैं, इसके अलावा हमारे आधिकारिक रेस्ट-हाउस में ठहरने वाले भक्तों को भी हम सस्ती दरों पर भोजन उपलब्ध करवाते हैं, जो कि GST लगाने के बाद महंगा हो जाएगा. अन्नदान करने वालों पर GST थोपना भी तर्कसंगत नहीं है. आंध्रप्रदेश के वित्त मंत्री यनामाला रामकृष्णडू ने इस सम्बन्ध में अरुण जेटली से बात की, लेकिन उन्होंने इस माँग को तत्काल खारिज कर दिया और स्पष्ट शब्दों में कह दिया है कि बीस लाख रूपए से ऊपर की आय वाले मंदिरों को नहीं छोड़ा जाएगा. विहिप, RSS और अर्चक संघ ने इसका कड़ा विरोध करने का निर्णय कर लिया है. उनका कहना है कि उत्तर भारत में अधिकाँश बड़े मंदिर निजी ट्रस्टों द्वारा संचालित हैं, परन्तु दक्षिण भारत के अधिकाँश मंदिर राज्य सरकारों के धर्मस्व न्यास के अधीन हैं. इसलिए इन पर टैक्स लगाने का मतलब है राज्य सरकार के खजाने में हाथ डालना. जब इन मंदिरों पर VAT, Sales tax वगैरह हैं ही नहीं, तो इन पर GST थोपने का कोई मतलब नहीं है.
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तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव ने कहा कि दंडकारण्य में भगवान् राम के रुकने वाले स्थान पर यदाद्री मंदिर एक बड़ा आकर्षण है, जिसकी देखरेख राज्य सरकार के अधीन है. धूप-दीप-प्रसाद एवं सस्ता भोजन सभी कुछ भक्तों द्वारा दिए गए दान और राज्य सरकार की मदद से चलता है, ऐसे में इस पर भी GST लगाना एक तरह का अन्याय ही है. चंद्रबाबू नायडू ने स्पष्ट आरोप लगाया है कि यह निर्णय लेने से पहले अरुण जेटली ने मंदिर बोर्ड प्रबंधकों, दानदाताओं, संतों एवं हिन्दू भक्तों से उनकी राय तक नहीं ली. उन्होंने कहा कि इस निर्णय का सभी दूर विरोध किया जाएगा. उल्लेखनीय है कि तिरुमाला तिरुपति देवस्थान इससे पहले भी सर्विस टैक्स, सेल्स टैक्स और VAT के मामले में सुप्रीम कोर्ट में कई लड़ाईयां जीत चुका है. भक्तों के ठहरने हेतु मंदिर के अधीन लगभग 7000 कमरे आते हैं, इन पर लगने वाले सर्विस टैक्स का केस भी प्रबंधन सुप्रीम कोर्ट में जीत चूका है. इसी प्रकार लड्डू प्रसाद बिक्री पर लगने वाले VAT का भी विरोध किया गया था और उसमें भी जीत मिली. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया था कि दर्शनों के पश्चात प्रसाद प्राप्त करना भक्त का अधिकार है, इसलिए यदि यह सेवा “नो प्राफिट नो लॉस” पर चलाई जा रही है, तो इस पर कोई टैक्स नहीं लिया जा सकता. जबकि वास्तविकता यह है कि पिछले वर्ष तिरुपति में लड्डू प्रसाद बनाने के लिए 350 करोड़ रूपए की खरीदी हुई थी जबकि लड्डू बेचने की आय 185 करोड़ ही हुई, क्योंकि बाज़ार में जिंसों के दाम तो बढ़ रहे हैं, परन्तु मंदिर में लड्डू प्रसाद आज भी पांच वर्ष पूर्व की दरों पर दिया जा रहा है. इसके अलावा मंदिर की जो करोड़ों रूपए की FD बैंक में हैं, उस पर भी रिजर्व बैंक ने ब्याज दर 5.5% से घटाकर 4.5% कर दी, इसलिए वह आय भी कम हुई है. साथ ही केंद्र सरकार ने अपनी नई “गोल्ड पालिसी” के तहत तिरुपति मंदिर बोर्ड पर दबाव बनाकर स्वर्ण आभूषण अपनी मनमानी दरों पर बैंक में रखवा लिए हैं. चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि आंध्रप्रदेश के कुल “पर्यटन राजस्व” का 80% हिस्सा अकेले तिरुपति मंदिर से आता है, बाकी का पर्यटन राजस्व भद्राचलम, श्रीसैलम इत्यादि मंदिरों से आता है. ऐसे में स्वाभाविक है कि जहां एक तरफ तिरुपति में आने वाले भक्तों की जेब पर लगभग 20-25% का अतिरिक्त भार पड़ेगा, वहीं दूसरी तरफ राज्य सरकार की आय का बड़ा हिस्सा केंद्र के खाते में चला जाएगा.
वस्तुस्थिति यह है कि देश के 99% मंदिर बेहद गरीबी की स्थिति से गुज़र रहे हैं. कई मंदिरों में सरकार पुजारी तक नियुक्त नहीं कर पा रही, क्योंकि उनका वेतन बहुत कम है. ऐसे में दो प्रमुख सवाल उठना स्वाभाविक है कि सरकार की निगाह केवल बड़े मंदिरों पर ही क्यों है, क्या केवल इसलिए कि वहाँ से कर चूसा जा सकता है?? और दूसरा महत्त्वपूर्ण सवाल यह है कि अरुण जेबलूटली की यह तिरछी नज़र “केवल मंदिरों” पर ही क्यों है, चर्च और मस्जिदों पर क्यों नहीं? क्या चर्च और मस्जिदों में बड़ी मात्रा में देशी-विदेशी दान (ज़कात) नहीं आता? तो उन पर GST क्यों नहीं लागू किया जा रहा? क्या सरकार पैसा एकत्रित करने के चक्कर में केवल हिन्दुओं की जेब काटेगी??