साईबाबा जैसा शिक्षक चाहिए, या अब्दुल कलाम जैसा??

Written by गुरुवार, 16 मार्च 2017 18:36

जे एन यू, जाधवपुर मे देश विरोधी नारो के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी मे आज़ादी के नारे लगना और आरोपी उमर खालिद वाले कार्यक्रम के रद्द होने के ड्रामे के बाद, अब दिल्ली विश्वविद्यालय के ही पूर्व प्रोफेसर जी.एन.साईबाबा को गडचिरौली सेशन कोर्ट ने उम्रकैद की सज़ा सुनाई है|

इन्ही के साथ जे.एन.यु. के एक छात्र हेम मिश्रा एवं पूर्व पत्रकार राही को भी अदालत द्वारा अपराधी ठहराया गया है| इस तरह विश्वविध्यालयों, मीडिया और छात्रों तक माओवादियो की पहुँच उजागर होती जा रही है|

सुनने मे भले ही यह साधारण मामला लगे लेकिन यह देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए बहुत ही गंभीर मुद्दा है. इसका कारण है इन सभी अपराधियों का माओवादियों के साथ काम करना, इन लोगो मे से एक दिल्ली विश्विद्यालय का पूर्व प्रोफेसर है, दूसरा बड़े विश्वविधयालय जे.एन.यू. का छात्र तथा तीसरा एक पूर्व पत्रकार| सुनने मे यह विवेक अग्निहोत्री की फिल्म ‘बुद्धा इन ए ट्राफिक जाम’ की कहानी की तरह लगता है मगर यह सच है कि माओवादी, नक्सलवादियो के तार अब चीन, पाकिस्तान और अन्य विदेशी ताकतो के साथ साथ भारत के बुद्धिजीवी वर्ग से भी जुड़ते नज़र आ रहे हैं| बड़े विश्वविध्यालयो के छात्र, प्रोफेसर तथा कुछ मीडिया के लोग भी इस तरह की देश विरोधी गतिविधियो मे लिप्त हो रहे हैं, यह देश के लिए बहुत ही चिंतनीय बात है|

इन्ही सब बातो पर जब विचार किया जाए तो लगता है कि कहीं यह देशविरोधी माओवादी लोग और जगहो पर भी तो नही फैले हुए है, क्योंकि पिछले कुछ वर्षो मे कई कॉलेजो मे इस तरह की घटनाएँ घटती जा रही हैं, जैसे आई.आई.टी. मद्रास मे प्रधानमंत्री के खिलाफ पोस्टर लगाने के मामले मे एक छात्र संगठन पर पाबंदी लगाने के बाद सभी जगह आंदोलन शुरू हो गये थे| इसी तरह अफ़ज़ल गुरु का समर्थन करने के मामले मे जे.एन.यू मे गड़बड़ हुई थी और याक़ूब मेमन के समर्थन के बाद हैदराबाद यूनिवर्सिटी मे झगड़े हुए थे, जिसके बाद रोहित वेमूला ने आत्महत्या कर ली थी| इसी तरह टाटा इन्स्टिट्यूट मे गाय का मॉस खाने की मांग करने वाले छात्रों का बाकी छात्रों के साथ बवाल हुआ था और जाधवपुर यूनिवर्सिटी मे तो कश्मीर की आज़ादी के नारे तक लग गये थे| पिछले कुछ सालों में घटी यह सभी घटनाएं, क्या यह सिर्फ संयोग हैं या फिर इनके पीछे भी एक तरह की विचारधारा काम कर रही है, यह प्रश्न आज कई लोगो के मन में घूम रहा है|

"ब्रेकिंग इंडिया" नमक पुस्तक मे राजीव मल्होत्रा जी लिखते हैं कि किस तरह सॉफ्ट पावर और प्रॉक्सी वॉर का उपयोग करके देशो को तोड़ा जाता है| किस तरह अधिकारो के आंदोलनो के नाम पर छात्रो को भड़काकर उन्ही के देश के खिलाफ लडाया जाता है, कभी जाति के नाम पर आन्दोलन. तो कभी धर्म के नाम पर आन्दोलन में विदेशी फंडिंग से लेकर एनजीओ, सिविल सोसाइटी इत्यादि सभी शामिल रहते हैं| इसी तरह का कार्य भारत में किया जा रहा है| सीरिया, लीबिया, मिस्त्र, इराक इत्यादि में इसी तरह छात्रों के द्वारा तथा इन्टरनेट के माध्यम से पहले क्रांति भड़काई गयी, उसके बाद सरकारों का या तो तख्तापलट कर दिया गया, या उन्हें समाप्त कर दिया गया| आज इन सभी देशो की हालत दुनिया के सामने है| भारत में भी कुछ विदेशी ताकते इसी तरह का माहौल बनाने का प्रयास कर रही हैं, जिसमे उनका हथियार कोई और नहीं बल्कि हमारे ही देश के भोले भाले छात्र हैं, जिन्हें साईंबाबा जैसे प्रोफेसर भड़का रहे हैं तथा बहला फुसलाकर गलत राह की ओर धकेल रहे हैं|

आज देश के युवाओं को जरुरत है इन सभी षड्यंत्रों को समझने की, जिससे इनका प्रयोग गलत कामो में ना हो सके तथा इनकी पढाई और भविष्य बर्बाद ना हो| हाल ही में एक साल पहले रोहित वेमुला को इन सभी कारणों से आत्महत्या करनी पड़ी और अभी एक २० वर्षीय बच्ची गुरमेहर कौर का उपयोग कुछ लोगो ने अपनी राजनीति चमकाने के लिए किया, जिसके कारण उसे बहुत परेशान होना पडा| आज समाज को तथा बुद्धिजीवियों को यह सोचना चाहिए तथा टैक्स देने वाले नागरिको को यह सवाल पूछना चाहिए कि इन कालेजो में ऐसा क्या पढाया जा रहा है जिसके कारण :

-- जे.एन.यू. में भारत तेरे टुकड़े होंगे के नारे लग रहे हैं..

-- जाधवपुर में कश्मीर और बंगाल की आज़ादी के नारे लग रहे हैं..

-- क्यों एक पढ़े लिखे छात्र रोहित वेमुला को एक आतंकवादी याकूब मेंनन के समर्थन में रैली निकालनी पढ़ रही है ? 

-- क्यों आतंकवादी अफज़ल गुरु की बरसी जे.एन.यू. इत्यादि कालेजो में प्रतिवर्ष मनाई जा रही है ? 

-- क्यों आई.आई.टी. मद्रास में प्रधानमंत्री के विरोध के पोस्टर लगते हैं ? 

-- क्यों कई कालेजो में रावणलीला तथा महिषासुर दिवस मनाये जाते हैं, तथा मनुस्मृति जलाई जाती है और देवी देवताओं को अपमानित किया जाता है...

-- क्यों छत्तीसगढ़ में जंगल में नक्सलवादी हत्या करते हैं तो उसका जश्न दिल्ली के जे.एन.यू. में मनाया जाता है? 

-- क्यों मुंबई के टाटा इंस्टिट्यूट में कुछ छात्र जानबूझ कर गाय का मॉस खाने की जिद करते हैं? 

-- क्यों दिल्ली की २० वर्षीय शहीद की बेटी को पाकिस्तान के समर्थन वाला पोस्टर लगाना पढ़ रहा है?

-- क्यों दिल्ली के हिन्दू कॉलेज में वैलेंटाइन डे पर पेड़ को देवी बनाकर उस पर कंडोम लटकाकर उसकी पूजा का स्वांग रचाया जाता है?

-- भारत के विषय में गलत इतिहास कौन लोग पढ़ा रहे हैं?

इन सभी प्रश्नों के जवाब समाज को, शिक्षको को, अभिभावको को, छात्रों को तथा सरकार को आज खोजने होंगे, क्योंकि भारत दुनिया का सबसे युवा देश बनने जा रहा है और यदि यह युवा ही गलत दिशा में भटक गए, तो यह देश खंड-खंड में बंट जाएगा | चाणक्य नाम के धारावाहिक का एक संवाद मुझे याद आ रहा है जिसमे चाणक्य बोलते हैं कि– “शिक्षक कभी साधारण नहीं होता, निर्माण और प्रलय उसकी गोद में खेला करते हैं”

अब फैसला समाज को करना है कि वो देश के भविष्य को चाणक्य और अब्दुल कलाम जैसे शिक्षको के हाथ में सौंपेंगे, या फिर जी.एन. साईबाबा जैसे शिक्षको के |

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साभार : इण्डिया फैक्ट्स 

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