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रविवार, 20 जनवरी 2013 11:17
Narendra Modi from Lucknow Seat - Game Changer...
लखनऊ सीट से नरेंद्र मोदी :- भारत और उत्तरप्रदेश के राजनीतिक गणित को बदल डालेगा...
यूपीए-२
द्वारा धीरे-धीरे खाद्य सुरक्षा बिल, कैश सब्सिडी जैसी लोकलुभावन योजनाओं की तरफ
बढ़ने से अब २०१४ के लोकसभा चुनावों की आहट सुनाई देने लगी है. जैसा कि सभी को
मालूम है कि आमतौर पर दिल्ली की सत्ता की चाभी उसी के पास होती है, जो पार्टी
उत्तरप्रदेश व बिहार में उम्दा प्रदर्शन करे. हालांकि यूपीए-२ की सरकार बगैर
उत्तरप्रदेश और बिहार के भी धक्के खाती हुई चल ही रही है, फिर भी जिस तरह आए दिन
कांग्रेस को मुलायम अथवा मायावती में से एक या दोनों की चिरौरी करनी पड़ती है, उनका
समर्थन हासिल करने के लिए कभी लालच, तो
कभी सीबीआई का सहारा लेना पड़ता है, उससे इन दोनों प्रदेशों (विशेषकर उप्र) की
महत्ता समझ में आ ही जाती है. संक्षेप में तात्पर्य यह है कि २०१४ के घमासान के
लिए उप्र-बिहार की १३० से अधिक सीटें बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली हैं.
गुजरात
में नरेंद्र मोदी ने शानदार पद्धति से लगातार तीसरा चुनाव जीतकर सभी राजनैतिक
पार्टियों को सोचने पर मजबूर कर दिया है, क्योंकि अब सभी राजनैतिक पार्टियों को यह
पक्का पता है कि २०१४ के आम चुनाव में नरेंद्र मोदी “एक प्रमुख भूमिका” निभाने जा
रहे हैं. हालांकि खुद भाजपा में ही इस बात को लेकर हिचकिचाहट है कि नरेंद्र मोदी
को पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करे या ना करे? यदि करे,
तो उसका टाइमिंग क्या हो? मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मेदवार घोषित करने से NDA के ढाँचे पर क्या फर्क पड़ेगा? इत्यादि...
हालांकि इन सवालों पर निरंतर मंथन चल रहा है, लेकिन यह तो निश्चित है कि अब
नरेंद्र मोदी के “दिल्ली-कूच” को रोकना लगभग असंभव है.
२०१४
के आम चुनावों में उप्र की सीटों की महत्ता को देखते हुए मेरा सुझाव यह है कि सबसे
पहले तो भाजपा अपनी “सेकुलर-साम्प्रदायिक” मानसिक दुविधा से मुक्ति पाकर, सबसे
पहले जल्दी से जल्दी नरेंद्र मोदी को “आधिकारिक” रूप से प्रधानमंत्री पद का
उम्मीदवार घोषित करे. चूंकि प्रत्येक पार्टी अपना उम्मीदवार चुनने के लिए
स्वतन्त्र है, इसीलिए भाजपा को NDA का
मुंह ताकने की जरूरत नहीं है. एक बार भाजपा की तरफ से यह आधिकारिक घोषणा होने के
बाद NDA में जो भी और जैसा भी आतंरिक
घमासान मचना है, उसे पूरी तरह से मचने देना चाहिए. इस काम में मीडिया भी भाजपा की
मदद ही करेगा, क्योंकि मोदी की उम्मीदवारी घोषित होते ही “तथाकथित सेकुलर मीडिया”
को हिस्टीरिया का दौरा पड़ना निश्चित है. गुजरात और नरेंद्र मोदी की छवि को देखते
हुए मीडिया मोदी के खिलाफ जितना दुष्प्रचार करेगा, वह भाजपा के लिए लाभकारी ही
सिद्ध होगा.
जब
भाजपा एक बार यह “पहला महत्वपूर्ण कदम” उठा लेगी, तो उसके लिए आगे का रास्ता और
रणनीति बनाना आसान सिद्ध होगा. मोदी को “प्रमं” पद का उम्मीदवार घोषित करते ही
स्वाभाविक रूप से बिहार में नीतीश कुमार अपना झोला-झंडा लेकर अलग घर बसाने निकल
पड़ेंगे, तो बिहार के मुसलमान वोटों के लिए नीतीश कुमार, लालूप्रसाद यादव और
कांग्रेस के बीच आपसी खींचतान मचेगी और भाजपा को अपने परम्परागत वोटरों पर ध्यान
देने का मौका मिलेगा. फिलहाल सुशील कुमार मोदी की वजह से बिहार में भाजपा, नीतीश की “चपरासी” लगती है, वह नीतीश के
अलग होने पर “अपनी दूकान-स्वयं मालिक” की स्थिति में आ जाएगी. मोदी की खुलेआम
उम्मीदवारी का यह तो हुआ सबसे पहला फायदा... अब आगे बढ़ते हैं और उत्तरप्रदेश चलते
हैं, जहाँ नरेंद्र मोदी की उम्मीदवारी से भाजपा को २०१४ के चुनावों में कैसे और
कितना फायदा होगा, यह समझते हैं.
१) नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद
का उम्मीदवार घोषित करके भाजपा उन्हें दो सीटों से चुनाव लडवाए... पहली गांधीनगर
और दूसरी लखनऊ. गांधीनगर में तो मोदी का जीतना तय है ही, परन्तु लखनऊ में नरेंद्र
मोदी के लोकसभा चुनाव में उतारते ही, उत्तरप्रदेश की राजनीति का माहौल ही बदल
जाएगा. लखनऊ और इसके आसपास रायबरेली, फैजाबाद, अमेठी, कानपुर सहित लगभग २० सीटों पर मोदी सीधा प्रभाव डालेंगे. चूंकि
नरेंद्र मोदी को प्रचार के लिए गांधीनगर में अधिक समय नहीं देना पड़ेगा, इसलिए
स्वाभाविक रूप से मोदी लखनऊ और बाकी उत्तरप्रदेश में चुनाव प्रचार में अधिक समय दे
सकेंगे. भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने में बाकी का काम खुद “सेकुलर मीडिया” कर
देगा. क्योंकि मोदी की उम्मीदवारी घोषित होते ही उत्तरप्रदेश में
सपा-बसपा-कांग्रेस के बीच मुस्लिम वोटों को रिझाने की ऐसी घमासान मचेगी, कि भाजपा
की कोशिश के बिना भी अपने-आप वोटों का ध्रुवीकरण शुरू हो जाएगा. चूंकि कल्याण सिंह
भाजपा में वापस आ ही चुके हैं, योगी आदित्यनाथ भी खुलकर नरेंद्र मोदी का साथ देने
की घोषणा पहले ही कर चुके हैं, तो इस स्थिति में यदि भाजपा “हिन्दुत्व” शब्द का
उच्चारण भी न करे, तब भी मीडिया और “सेकुलर”(?) पार्टियां जैसा “छातीकूट अभियान” चलाएंगी, वह भाजपा के पक्ष में
ही जाएगा.
२) मोदी को लखनऊ सीट से उतारने तथा
उत्तरप्रदेश में गहन प्रचार करवाने का दूसरा फायदा यह होगा कि इस कदम से उत्तप्रदेश
के जातिवादी नेताओं तथा जातिगत वोटों की राजनीति पर भी इसका असर पड़ेगा. जैसा कि
सभी जानते हैं नरेंद्र मोदी “घांची” समुदाय से आते हैं, जो कि “अति-पिछड़ी जाति”
वर्ग में आता है, तो स्वाभाविक है कि मोदी की उम्मीदवारी से एक तरफ भाजपा के खिलाफ
जारी “ब्राह्मणवाद” का नारा भी भोथरा हो जाएगा, दूसरी तरफ मुलायम से नाराज़ पिछड़े
वोटरों में सेंध लगाने में भी मदद मिलेगी.
३) मोदी की उत्तरप्रदेश से
उम्मीदवारी का तीसरा लाभ यह होगा कि “झगडालू बीबी” टाइप के उत्तरप्रदेश के जितने
भी भाजपा नेता हैं, उन पर एक अदृश्य नकेल कस जाएगी. इन नेताओं में से अधिकाँश
नेता(?) ऐसे हैं जो खुद को मुख्यमंत्री से कम समझते ही नहीं हैं, ये बात और है कि
इनमें से किसी ने भी उत्तरप्रदेश में भाजपा को उंचाई पर ले जाने के लिए कोई विशेष
योगदान नहीं दिया है. नरेंद्र मोदी जैसे कद्दावर नेता के उप्र के परिदृश्य पर आने
तथा मोदी को मिलने वाले अपार जनसमर्थन को देखते हुए, इन स्थानीय नेताओं को ज्यादा
कुछ बताने-समझाने की जरूरत नहीं रहेगी. इस सारी कवायद में सबसे अहम् रोल डॉक्टर
मुरलीमनोहर जोशी का होना चाहिए, जिन्हें अपना कुशल निर्देशन देना
होगा.
इस प्रकार हमने देखा
कि, नरेंद्र मोदी को उत्तरप्रदेश से चुनाव लड़वाने के तीन सीधे फायदे, और एक
अप्रत्यक्ष फायदा (नीतीश की अफसरी से छुटकारा) मिलेंगे. जयललिता, और बादल पहले ही मोदी के नेतृत्व
को स्वीकार कर चुके हैं, बालासाहेब ठाकरे अब रहे नहीं, इसलिए उद्धव ठाकरे को भी नरेंद्र मोदी सहज स्वीकार्य हो जाएंगे,
उत्तरप्रदेश में कल्याण सिंह की भाजपा में वापसी हो ही चुकी है, उमा भारती को भी उप्र में ही
सक्रिय रहते हुए मप्र से दूर रहने की
हिदायत दी जा चुकी है, नीतीश कुमार की परवाह करने की कोई जरूरत
नहीं है, यह बात भी अंदरखाने तो मान ही ली गयी है. यानी अब रह जाते
हैं ममता, पटनायक, और शरद पवार, तो ये लोग उसी पार्टी की तरफ हो लेंगे जिसके पास
२०० सीटों का जादुई आँकड़ा हो जाएगा. ऐसे में यदि नरेंद्र मोदी भाजपा को
उत्तरप्रदेश में लगभग ४० सीटें और बिहार में २५ सीटें भी दिलवाने में कामयाब हो
जाते हैं, और मध्यप्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, झारखंड, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ को
मिलाकर भाजपा २०० सीटों के आसपास भी पहुँच जाती है तो “थाली के बैंगनों”” को भाजपा की तरफ
लुढकते देर नहीं लगेगी, तय जानिये कि इन “बैंगनों” और “बिना पेंदी के लोटों”
द्वारा इस स्थिति में “सेकुलरिज्म” की परिभाषा भी रातोंरात बदल दी जाएगी. वैसे भी जब मायावती खुल्लमखुल्ला दलित-कार्ड खेल सकती हैं, मुलायम भी खुल्लमखुल्ला "यादव-मुल्ला" कार्ड खेल सकते हैं, जब कांग्रेस मनरेगा-कैश सब्सिडी जैसी "मुफ्तखोरी" वाली वोट बैंक राजनीति खेल सकती है, तो भाजपा को "हिंदुत्व" का कार्ड खेलने मे कैसी शर्म?
अब लगे हाथों “बुरी
से बुरी स्थिति” पर भी विचार कर लिया जाए. यदि भाजपा की २०० सीटें आ भी जाएं तब भी
भाजपा को १९९८ वाली गलती नहीं दोहरानी चाहिए, जब वाजपेयी जी ने “२५ बैंगनों और
लोटों”” को मिलाकर
सरकार बनाने की जल्दबाजी कर ली, फिर उनकी नाजायज़ शर्तों और बेहिसाब मांगों के बोझ
तले दबकर उनके घुटने तक खराब हो गए थे. अबकी बार भाजपा को “अपनी शर्तों” व “अपने
घोषणापत्र” पर बिना शर्त समर्थन देने वाले दलों को ही साथ लेना चाहिए. यदि नरेंद्र
मोदी को उप्र में आगे करते हुए भाजपा किसी तरह २०० (या १८०) सीटें लाने में कामयाब
हो जाती है, और फिर भी पिछले २० साल से “सेकुलरिज्म” के नाम पर चलने वाला “गन्दा
खेल” इन क्षेत्रीय दलों को कांग्रेस के पाले में धकेल देता है, तो सबसे बेहतर उपाय
यही होगा कि भाजपा नरेंद्र मोदी को नेता प्रतिपक्ष बनाकर २०१४ में विपक्ष में
बैठे, क्योंकि जो भी सरकार बनेगी, वह अधिक चलेगी नहीं. इसी बहाने नरेंद्र मोदी का नेता
प्रतिपक्ष के रूप में “एसिड टेस्ट” भी हो जाएगा, जो उससे अगले लोकसभा चुनाव में
काम आएगा, तथा जब एक बार भाजपा “अपनी शर्तों” पर अड़कर बात करेगी तो अन्य दल और आम
जनता भी पहले से अपनी “मानसिक तैयारी” बनाकर चलेंगे. गाँधी नगर में चुनाव जीतने में मोदी को विशेष दिक्कत नहीं होगी, लेकिन यदि नरेंद्र मोदी लखनऊ सीट से भी जीत जाते हैं, तो यह संकेत भी जाएगा कि अब "नरेंद्र मोदी का पाँव आडवाणी-वाजपेयी जी के जूते में बराबर फिट बैठने लगा है" जो कि बहुत गूढ़ और महत्वपूर्ण सन्देश और संकेत होगा.
संक्षेप
में कहें तो आम जनता अब कांग्रेस के घोटालों, नाकामियों और लूट से बुरी तरह परेशान
हो चुकी है, वह किसी “दबंग” किस्म के प्रधानमंत्री की राह तक रही है. गुजरात के
विकास को मॉडल बनाकर, नरेंद्र मोदी को उत्तरप्रदेश के लखनऊ से चुनाव में उतारने की
चाल तुरुप का इक्का साबित होगी. इस मुहिम में हमारा तथाकथित “राष्ट्रीय और सेकुलर
मीडिया”(?) ही भाजपा को सबसे अधिक लाभ पहुंचाएगा, क्योंकि जैसा कि मैंने पहले कहा,
मोदी की प्रधानमंत्री पद पर उम्मीदवारी की घोषणा मात्र से कई चैनलों व स्वयंभू
सेकुलरों को “हिस्टीरिया”, “मिर्गी”, “पेटदर्द” और “दस्त” की शिकायत हो
जाएगी, यह बात तय जानिये कि नरेंद्र मोदी
का “जितना और जैसा” विरोध किया जाएगा, वह भाजपा को फायदा ही पहुंचाएगा. अब यह
संघ-भाजपा नेतृत्व पर है कि वह कितनी जल्दी नरेंद्र मोदी को अपना “घोषित”
उम्मीदवार बनाते हैं, क्योंकि अब अधिक समय नहीं बचा है.
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अंत
में एक मास्टर स्ट्रोक – स्वयं नरेंद्र मोदी को उचित समय देखकर एक घोषणा करनी
चाहिए, कि वे “निजी यात्रा” (जी हाँ, निजी यात्रा... जिसमे न कोई इन्टरव्यू होगा,
न कोई प्रेस विज्ञप्ति होगी), हेतु अयोध्या में राम मंदिर के दर्शनों के लिए जा रहे
हैं, बस!!! बाकी का काम तो मीडिया कर ही देगा... जैसा कि मैंने ऊपर कहा है, राजनीति में "संकेत द्वारा दिया गया सन्देश" बहुत महत्वपूर्ण होता है, इसलिए मोदी की अयोध्या के राम मंदिर की "निजी धर्म यात्रा" के संकेत जहाँ पहुँचने चाहिए, वहाँ पहुँच ही जाएंगे, और नरेंद्र मोदी के "अंध-विरोध" से ग्रसित मीडिया की रुदालियों का फायदा भी भाजपा को ही मिलेगा...
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सुरेश चिपलूनकर
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ब्लॉग
मंगलवार, 15 जनवरी 2013 13:15
Conspiracy Against Mumbai Police - Sujata Patil Poem Case
मुंबई पुलिस का मनोबल चूर-चूर करने की योजना...
११ अगस्त को आज़ाद मैदान में हुई "सुनियोजित हिंसा" के विरोध में मुंबई पुलिस की महिला उपनिरीक्षक सुजाता पाटिल द्वारा, पुलिस विभाग की एक पत्रिका में प्रकाशित एक कविता के खिलाफ "समाजसेवियों"(?) के एक समूह और "महेश भट्ट जैसे" सेकुलरों(?) ने हाईकोर्ट में जाने का फैसला किया है.
इन "समाजसेवियों"(?) का कहना है कि एक पुलिस अधिकारी को इस तरह की भाषा का उपयोग नहीं करना चाहिए. एक एडवोकेट एजाज़ नकवी ने इस कविता की तुलना ओवैसी के भाषण से की है और पुलिस कमिश्नर से सुजाता पाटिल को बर्खास्त करने की मांग की है.
इस कविता को पढ़कर आप स्वयं समझ गए होंगे कि आज़ाद मैदान की घटना के बाद पुलिस फ़ोर्स के मनोबल में कितनी गिरावट हुई है और पुलिसकर्मी अपने हाथ बंधे होने की वजह से कितने गुस्से और निराशा में हैं.
उल्लेखनीय है कि ११ अगस्त को आज़ाद मैदान में मुल्लों के हिंसक प्रदर्शन के दौरान कई पुलिसकर्मी घायल किये गए, कुछ महिला कांस्टेबलों के साथ छेड़छाड़ और बदसलूकी की गई, शहीद स्मारक को तोडा-मरोड़ा गया. पुलिस के पास पर्याप्त बल था, हथियार थे, डंडे थे... सब कुछ था लेकिन मुल्लों की उस पागल भीड़ पर काबू पाने के आदेश नहीं थे. पुलिस वाले पिटते रहे, अधिकारी चुप्पी साधे रहे और कांग्रेस की सरकार मुस्लिम वोटों की फसल पर नज़र रखे हुए थी.
जैसा कि सभी जानते हैं इसी घटना के एक आरोपी को पकड़ने के लिए जब मुम्बई पुलिस बिहार से एक मुल्ले को उठा लाई थी, तो नीतीश ने हंगामा खड़ा कर दिया था, क्योंकि बात वहां भी वही थी... यानी "मुस्लिम वोट". पुलिस बल कितना हताश और आक्रोश से भरा हुआ है इसका सबूत इस बात से भी मिल जाता है कि जब राज ठाकरे ने आज़ाद मैदान की इस सुनियोजित हिंसा के खिलाफ जोरदार रैली निकाली थी, तब शिवाजी पार्क मैदान में एक कांस्टेबल ने खुलेआम मंच पर आकर राज ठाकरे को इसके लिए धन्यवाद ज्ञापन करते हुए, गुलाब का फूल भेंट किया था...
इन "तथाकथित समाजसेवियों" का असली मकसद पुलिस का मनोबल एकदम चूर-चूर करना ही है. महेश भट्ट जैसे "ठरकी और पोर्न" बूढ़े, जिसका एकमात्र एजेंडा सिर्फ हिन्दुओं का विरोध करना ही है, वह अक्सर ऐसी मुहिम में सक्रीय रूप से पाया जाता है. यानी अब इनके अनुसार कोई महिला पुलिस अपनी "अन्तर्विभागीय पत्रिका" में अपनी मनमर्जी से कोई कविता भी नहीं लिख सकती, जबकि यही कथित समाजसेवी और मानवाधिकारवादी आए दिन "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता" का झंडा लिए घूमते रहते हैं.
कविता में आपने नोट किया होगा कि इसकी मूल पंक्ति है "हम न समझे थे बात इतनी सी..." यह पंक्तियाँ जैकी श्रोफ और अमरीश पुरी अभिनीत फिल्म "गर्दिश" के गीत की पंक्तियाँ हैं. उस फिल्म में एक ईमानदार पुलिस कांस्टेबल के मन की व्यथा, उसके साथ हुए अन्याय के बारे में बताया गया है. स्वाभाविक है कि सुजाता पाटिल के मन में भी आज़ाद मैदान की "सुनियोजित हिंसा" और बदसलूकी के खिलाफ गुस्सा, घृणा, हताशा के मिले-जुले भाव बने हुए हैं. इसलिए उनकी कलम से ऐसी मार्मिक कविता निकली है, जिसे पढ़कर तथाकथित सेकुलर, नकली समाजसेवी और फर्जी मानवाधिकारवादी जले-भुने बैठे हैं. जबकि यही मानवाधिकारवादी और समाजसेवी, उस समय मुंह में दही जमाकर बैठ जाते हैं, जब माओवादीएक पुलिसवाले के शव के पेट में उच्च शक्ति वाला बम लगा देते हैं... लानत है ऐसे समाजसेवियों पर. साथ ही हजार लानत है महाराष्ट्र की कांग्रेस सरकार पर जो "सेकुलरिज्म" के नाम पर मुस्लिम वोटरों को खुश करने के लिये आज़ाद मैदान हिंसा के तमाम आरोपियों में से इक्का-दुक्का को ही पकड़ने का दिखावा कर रही है., जबकि उस हिंसा के ढेर सारे वीडियो फुटेज उपलब्ध हैं, जिनसे उन तमाम उत्पाती मुल्लों को धर-दबोचा जा सकता है.
इन कथित समाजसेवियों को सुजाता पाटिल द्वारा आज़ाद मैदान के दंगाइयों
के लिए “देशद्रोही” और “सांप” शब्दों पर आपत्ति है, साथ ही महेश भट्ट को यह भी
आपत्ति है कि पाटिल ने अपनी कविता में “गोलियों की होली” शब्द का उपयोग करके
हिंसात्मक मनोवृत्ति का परिचय दिया है.
शायद ये समाजसेवी चाहते होंगे कि गृहमंत्री शिंदे की तरह इन
“जुमेबाज” दंगाइयों को “श्री हाफ़िज़ सईद” कहा जाए? या फिर परम ज्ञानी भविष्यवक्ता
दिग्विजय सिंह की तरह “ओसामा जी” कहा जाए, या फिर शायद ये लोग तीस्ता सीतलवाड़ जैसे
पैसा खाऊ NGOवादियों की तरह पुलिस के
सिपाहियों के मुंह से, “माननीय सोहराबुद्दीन” कहलवाना चाहते हों... कांग्रेस और मानवाधिकारवादियों की ऐसी ही छिछोरी राजनीति, हम बाटला हाउस के शहीद श्री मोहनचंद्र के बारे में भी देख चुके हैं.
यह बात तो सर्वमान्य है कि माफिया हो या पुलिस, दोनों का काम उसी
स्थिति में आसानी से चलता है, जब उनका “जलवा” (दबदबा) बरकरार रहे, और वर्तमान
परिस्थिति में दुर्भाग्य से माफिया-गुंडों-दंगाइयों-असामाजिक तत्वों और दो कौड़ी के
नेताओं का ही “दबदबा” समाज में कायम है, पुलिस के डंडे की धौंस तो लगभग समाप्त
होती जा रही है. इसके पीछे का कारण यही “श्री हाफ़िज़ सईद” और “ओसामा जी” कहने की
घटिया मानसिकता तथा मानवाधिकार के नाम पर रोटी सेंकने और बोटी खाने वाले संदिग्ध
संगठन हैं... जबकि देश की इस विकट परिस्थिति में हमें सेना-अर्धसैनिक बल तथा पुलिस
के निचले स्तर के सिपाही और इन्स्पेक्टर इत्यादि का मनोबल और धैर्य बढाने की जरूरत
है, वर्ना ये बल सुजाता पाटिल और राज ठाकरे को फूल भेंट करने वाले कांस्टेबल की
तरह अन्दर ही अन्दर घुटते रहेंगे और हताश होंगे, जो कि देश और समाज के लिए बहुत
घातक होगा.
=================
सन्दर्भ :- http://timesofindia.indiatimes.com/city/mumbai/Activists-to-move-high-court-over-cops-riot-poem/articleshow/18012301.cms
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ब्लॉग
सोमवार, 14 जनवरी 2013 11:32
Social Service by RSS - Vanvasi Kalyan Ashram Summit at Ujjain (MP)
संघ के वनवासी कल्याण आश्रम का उज्जैन में अनूठा आयोजन...
संघ प्रमुख ने लगातार प्रयास करने की हिदायत देते हुए अमेरिका के
खोजकर्ता कोलंबस और अंडे का प्रसिद्ध किस्सा सुनाया, जिसमें स्पेन का राजा अन्य
विद्वानों से कहता है कि “आप लोगों और कोलंबस में यही फर्क है कि आप कहते हैं कि
“यह नहीं हो सकता और कुछ भी नहीं किया, जबकि कोलंबस ने प्रयास किया और वह अंडे को
सीधा खड़े रखने में कामयाब हुआ...” इसलिए इस सम्मेलन में कार्यकर्ताओं ने जो
देखा-सुना-समझा-सीखा उसे भूलना नहीं है, काम करके दिखाना है. वनवासी बड़े भोले,
निश्छल और ईमानदार होते हैं, क्या कभी किसी ने सुना है कि किसी वनवासी ने गरीबी या
मानसिक तनाव की वजह से आत्महत्या की हो?
शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि मध्यप्रदेश में वनवासियों को जमीन के
पौने दो लाख पट्टे बांटे गए हैं, वनोपज की खरीद भी सरकार समर्थन मूल्य पर कर रही
है, ताकि जनजातीय लोगों को सही दाम मिल सकें. चौहान ने आगे कहा कि प्रदेश की सरकार
ने “धर्मान्तरण विरोधी क़ानून बनाकर केंद्र को भेज दिया है, लेकिन वह केंद्र में
अटका पड़ा है, जिस कारण सुदूर इलाकों में प्रलोभन द्वारा धर्म परिवर्तन की
गतिविधियाँ चल रही हैं. प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तावित क़ानून में धर्म परिवर्तन
से पहले जिले के एसपी को आवेदन देना होगा, जिसकी जांच होगी कि कहीं धर्म परिवर्तन
जोर-जबरदस्ती से तो नहीं हो रहा, तस्दीक होने पर ही कोई व्यक्ति अपना धर्म बदल
सकेगा.
इस समागम में प्रमुख रूप से दो प्रस्ताव पारित किये गए –
१) भूमि
अधिग्रहण क़ानून १८९४ को बदलने के लिए लाये गए भूमि अधिग्रहण व पुनर्वास क़ानून २०११
में संशोधन होना चाहिए, इसमें शहरी क्षेत्र में ५० एकड़ तथा ग्रामीण क्षेत्र में
१०० एकड़ जमीन के अधिग्रहण को ही दायरे में लाने का प्रस्ताव वापस लिया जाए, तथा
पूरे देश में एक सामान भूमि सुधार को लागू किया जाए.
२) खान व खनिज विधेयक २०११
में देश की सभी इकाइयों पर देय कर चुकाने के बाद बचे हुए लाभ का २६% हिस्सा
विस्थापितों को चुकाने का प्रावधान होना चाहिए.
वनवासी कल्याण आश्रम के समाज कार्यों में अपना सम्पूर्ण जीवन देने
वाले मैकेनिकल इंजीनियर श्री अतुल जोग ने बताया कि २० वर्ष पूर्व संघ ने उन्हें
पूर्वोत्तर के राज्यों में वनवासी कल्याण परिषद का काम सौंपा था, उस समय इन सात
राज्यों में हिंदुत्व का कोई नामलेवा तक नहीं था. परन्तु आज वहां लगभग साढे चार
हजार बच्चे वनवासी कल्याण आश्रम में अपनी पढ़ाई कर रहे हैं, आज पूर्वोत्तर के
कोने-कोने में हमारा कार्यकर्ता मौजूद है. पिछले माह चीन से लगी सीमा के गाँवों
में अतुल जोग ने १२०० किमी की सीमान्त दर्शन यात्रा का आयोजन किया था और हजारों
वनवासियों को भारत की संस्कृति के बारे में बताया, इस यात्रा की गूँज दिल्ली और पेइचिंग
तक सुनी गई.
इस विशाल जनजाति सम्मेलन की कई प्रमुख विशेषताएं रहीं, जैसे –
-- देश भर की विभिन्न जनजातियों के प्रतिनिधि शामिल हुए...
-- उज्जैन के १२०० परिवारों ने अपने घर से स्वादिष्ट भोजन साथ लाकर इन
वनवासियों के साथ भोजन किया...
-- अरुणाचल और अंदमान के सुदूर इलाकों से आने वाले प्रतिनिधियों को
उज्जैन पहुँचने में पांच दिन लगे, लेकिन उनके चेहरे पर संतोष की मुस्कान थी...
=========
आप में से कई लोगों ने, कई बार आपसी चर्चा में पढ़े-लिखे “अनपढ़ों”
द्वारा दिया जाने वाला यह वाक्य जरूर सुना होगा कि “आखिर RSS करता ही क्या है?” वास्तव
में उन “अनपढ़ों” की असली समस्या यही है कि वे मैकाले की शिक्षा से प्रेरित,
“सेकुलरिज्म” के रोग से ग्रस्त हैं, जिनके दिमागों को पश्चिमोन्मुखी मीडिया और हमारी विकृत शिक्षा
पद्धति ने बर्बाद कर दिया है...
वास्तव में जो लोग संघ को या तो दूर से देखते हैं या फिर “हरे” अथवा “लाल” चश्मे से देखते हैं, वे कभी भी समझ नहीं सकते कि संघ के समर्पित कार्यकर्ता क्या-क्या काम करते हैं. जब-जब देश पर कोई संकट या प्राकृतिक आपदा आई है, बाकी लोग तो घरों में घुसे रहते हैं, जबकि सबसे पहले संघ के कार्यकर्ता हर जगह मदद हेतु तत्पर रहते हैं. उज्जैन में संपन्न हुए वनवासी कल्याण आश्रम के इस कार्यक्रम में शामिल हुए प्रतिनिधियों की ज़बानी जब हम पूर्वोत्तर के राज्यों की भीषण सामाजिक स्थिति और वहां चल रही मिशनरी गतिविधियों के बारे में सुनते-जानते हैं तो हैरत होती है कि आखिर भारत सरकार कर क्या रही है? इस समागम कार्यक्रम के अंत में वनवासी आश्रम के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगदेवराम उरांव द्वारा भी मार्गदर्शन दिया गया.
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ब्लॉग
बुधवार, 09 जनवरी 2013 12:52
Delhi Police Commissioner Neeraj Kumar's Corruption and Misdeeds
दिल्ली पुलिस कमिश्नर नीरज कुमार के खिलाफ गंभीर आरोप : गणमान्य नागरिकों और रिटायर्ड सेनाधिकारियों द्वारा उच्च स्तरीय जांच की मांग...
दिल्ली के पुलिस कमिश्नर नीरज कुमार को पूरी तरह बेनकाब करते हुए यह दो पत्र (वास्तव में यह खुली याचिकाएं ही हैं, जिनमे से एक राष्ट्रपति के नाम और दूसरी प्रधानमंत्री के नाम हैं) उन्हें यहाँ पेश कर रहा हूँ, जो मुझे ई-मेल पर प्राप्त हुए हैं. इन याचिकाओं पर हस्ताक्षर करने वाले सभी दिग्गज और गणमान्य व्यक्ति उच्च पदों पर रहे हैं तथा सेना से अवकाशप्राप्त अधिकारी हैं. इनमें से पहली याचिका राष्ट्रपति के नाम है जिसे “अखिल भारतीय प्रशासनिक एवं सैन्य अधिकारी संघ” की ओर से दिया गया है तथा दूसरी याचिका, जो कि इसी पत्र का “अनुलग्नक” है वह Citizens of India Against Corruption की ओर से पेश आरोपों की सूची है.
मैं यहाँ इन याचिकाओं का पूरा हिन्दी अनुवाद नहीं दे रहा हूँ, परन्तु कुछ प्रमुख
बिन्दुओं खासकर भ्रष्टाचार, अवैध वसूली और हफ्ता के सम्बन्ध में जो आरोप लगाए गए
हैं उन्हें “हाईलाईट” कर दिया गया है, ताकि मुद्दे की गंभीरता जल्दी से समझ में आ
जाए. इसलिए जिन पंक्तियों को हाईलाईट किया गया है उन्हें अवश्य पढ़ें...
मित्रों...
अब यदि दिल्ली के पत्रकारों और "सबसे तेज़"(?) चैनलों में वाकई दम-गुर्दे हों तो वे नीचे दिए गए इन विभिन्न बिन्दुओं पर खोजबीन करके "सच्चे पत्रकार" बनने का साहस दिखाएं...
a. Rs.5 lakhs per day from Mr.
A.Raja, former Telecom Minister for 16 months i.e. 5X1GX30= Rs. 24 crores.
मित्रों...
यह दोनों पत्र बेहद जिम्मेदार नागरिकों द्वारा लिखे और भेजे गए हैं, इसलिए
दिल्ली के पुलिस कमिश्नर के खिलाफ लगे इन गंभीर आरोपों की एक उच्च स्तरीय जांच
होना आवश्यक है, जिसे सर्वोच्च न्यायालय के किसी वर्तमान जज के अधीन किया जाना
चाहिए.
दिल्ली के पुलिस कमिश्नर नीरज कुमार को पूरी तरह बेनकाब करते हुए यह दो पत्र (वास्तव में यह खुली याचिकाएं ही हैं, जिनमे से एक राष्ट्रपति के नाम और दूसरी प्रधानमंत्री के नाम हैं) उन्हें यहाँ पेश कर रहा हूँ, जो मुझे ई-मेल पर प्राप्त हुए हैं. इन याचिकाओं पर हस्ताक्षर करने वाले सभी दिग्गज और गणमान्य व्यक्ति उच्च पदों पर रहे हैं तथा सेना से अवकाशप्राप्त अधिकारी हैं. इनमें से पहली याचिका राष्ट्रपति के नाम है जिसे “अखिल भारतीय प्रशासनिक एवं सैन्य अधिकारी संघ” की ओर से दिया गया है तथा दूसरी याचिका, जो कि इसी पत्र का “अनुलग्नक” है वह Citizens of India Against Corruption की ओर से पेश आरोपों की सूची है.
मित्रों...
इस ई-मेल में लिखे
आरोपों को पढ़कर आप हैरान हो जाएंगे कि –
किस तरह से दिल्ली
पुलिस कमिश्नर के दागी हथियार दलाल अभिषेक वर्मा के साथ मधुर सम्बन्ध हैं... नीरज
कुमार की संदिग्ध गतिविधियाँ, उनके स्विस बैंक अकाउंट्स के नंबर, तिहाड़ जेल में
बंद “विशिष्ट” कैदियों को “सभी सुविधाएं” मुहैया करवाने के बदले में उनसे
हफ्ता-वसूली, दिल्ली में चलने वाली अवैध बसों और थाना प्रभारियों से मासिक
वसूली... इत्यादि कई गंभीर आरोप इस याचिका में लगाए गए हैं... कोई आश्चर्य नहीं कि
गैंगरेप की इस वीभत्स घटना के बाद से लगातार दिल्ली पुलिस का रवैया, पोस्टमार्टम
रिपोर्ट की ढीलमपोल, पीडिता के बयान के समय ADJ के काम में अड़ंगे और दामिनी के साथी द्वारा जीटीवी पर दी गए बयानों के बाद
आई उटपटांग सफाइयां, पुलिस कमिश्नर नीरज कुमार के रवैये पर शक के सवाल खड़े करते
हैं...
जैसा कि मैंने पहले
ही कहा यह (आरोप) पत्र बहुत उच्च अधिकारियों और गणमान्य नागरिकों द्वारा लिखा गया
है, इसलिए इसकी गंभीरता और भी बढ़ जाती है. तो मित्रों... आम जनता तक यह सभी बातें
निर्बाध रूप में पहुंचें और प्रशासनिक-राजनीतिक मशीनरी पर उचित दबाव बने, इसलिए
इसे यहाँ पेश किया जाना बहुत जरूरी था, वर्ना यह पत्र भी मनीष अग्रवाल के पिछले
पत्र की तरह लालफीताशाही के मकडजाल और अंत में रद्दी की टोकरी में जा सकता था...
(पहले एक मामले में ऐसा हुआ था, जब कुछ गणमान्य नागरिकों ने एक हस्ती पर आरोप लगाए और फिर बाद में किसी अज्ञात कारण से, अपनी वेबसाईट या प्रोफाइल से हटा लिए... इसीलिए मैं यहाँ इस बार वह लिंक्स तथा स्क्रीन शॉट भी दे रहा हूँ...)
रिटायर्ड IAS अधिकारी श्री एमजी देवासहायम ने राष्ट्रपति को संबोधित करते हुए यह पत्रनुमा याचिका लगाई है (देवासहायम के फेसबुक पेज का स्क्रीन शॉट संलग्न है https://www.facebook.com/MGDevasahayam?ref=stream&filter=3). इसके अलावा "Group of 15" नामक समूह (जो कि अवकाशप्राप्त वरिष्ठ प्रशासनिक एवं सैन्य अधिकारियों का एक समूह है) ने भी इस पत्र पर हस्ताक्षर किये हैं (http://sanjhamorcha2009.blogspot.in/2013/01/iaf-to-induct-armed-mi-17-squadron-in.html) तथा वेबसाइट The Weekend Leader नामक वेबसाईट पर भी यह खबर प्रकाशित की जा चुकी है...(http://www.theweekendleader.com/Headlines/383/group-of-15-questions-neeraj-kumar%E2%80%99s-appt.-as-delhi-cop-.html) (स्क्रीन शॉट संलग्न है)
(सभी स्क्रीनशाट लेख के अंत में दिए गए हैं...)(पहले एक मामले में ऐसा हुआ था, जब कुछ गणमान्य नागरिकों ने एक हस्ती पर आरोप लगाए और फिर बाद में किसी अज्ञात कारण से, अपनी वेबसाईट या प्रोफाइल से हटा लिए... इसीलिए मैं यहाँ इस बार वह लिंक्स तथा स्क्रीन शॉट भी दे रहा हूँ...)
रिटायर्ड IAS अधिकारी श्री एमजी देवासहायम ने राष्ट्रपति को संबोधित करते हुए यह पत्रनुमा याचिका लगाई है (देवासहायम के फेसबुक पेज का स्क्रीन शॉट संलग्न है https://www.facebook.com/MGDevasahayam?ref=stream&filter=3). इसके अलावा "Group of 15" नामक समूह (जो कि अवकाशप्राप्त वरिष्ठ प्रशासनिक एवं सैन्य अधिकारियों का एक समूह है) ने भी इस पत्र पर हस्ताक्षर किये हैं (http://sanjhamorcha2009.blogspot.in/2013/01/iaf-to-induct-armed-mi-17-squadron-in.html) तथा वेबसाइट The Weekend Leader नामक वेबसाईट पर भी यह खबर प्रकाशित की जा चुकी है...(http://www.theweekendleader.com/Headlines/383/group-of-15-questions-neeraj-kumar%E2%80%99s-appt.-as-delhi-cop-.html) (स्क्रीन शॉट संलग्न है)
अब यदि दिल्ली के पत्रकारों और "सबसे तेज़"(?) चैनलों में वाकई दम-गुर्दे हों तो वे नीचे दिए गए इन विभिन्न बिन्दुओं पर खोजबीन करके "सच्चे पत्रकार" बनने का साहस दिखाएं...
Subject: The Delhi rot:
Memorandum from former All India Service and Armed Forces Officers
Kind
Attention: HE Shri Pranab Mukherji, President of India
Your
Excellency,
In the
dismal and surcharged atmosphere prevailing in the country in general and Delhi
in particular, we concerned senior citizens who have served the country and the
governments in various capacities thought it appropriate to address the
attached Memorandum describing the rotten state of affairs and calling for your
urgent and proactive intervention.
The
Memorandum is self-explanatory and we are sanguine it will receive your most
urgent attention and effective and immediate intervention. Hard copy is being
delivered separately.
Yours
Truly,
M.G.Devasahayam
(Representing
the Senior Cirizens Group)
Senior
Citizens Group
WZ 80, Mohan Nagar
Pankha Road
New Delhi -
110046
To,
His Excellency The President of
India
Rashtrapati Bhawan
Raisina Hill, New Delhi.
Your Excellency,
December
27, 2012
Subject: The rot that is
Delhi and national shame
We, former senior members of the
All India Services and Armed Forces make this submission to you as the Head of
the Republic and custodian of the Constitution.
2.
Sir, as you yourself have seen, virtually the whole country has arisen in anger
and anguish against the gang-rape incident that rocked the national capital
recently. Nationwide shock and outrages have been expressed over the brutal
incident in which a 23 year-old girl was terribly beaten and gang-raped
allegedly by six members in a moving bus in south Delhi. The young girl is
desperately struggling for her life.
3.
Outpouring of anger by thousands of youngsters
cutting across sections of society at Raisina Hill, where you live, and India
Gate and different parts of the country has jolted the government to announce
some measures to mitigate the public sentiments and outrage. This includes formation
of a three-member Commission of Inquiry headed by former Chief Justice J.S.
Verma that “will suggest ways to make stricter rape laws.” according to Home
Minister Sushil kumar
Shinde. Just that and nothing more!
4.
Two days prior to these government announcements, nation saw the strange
spectacle of Mr. R.K. Singh, Union Home Secretary sitting with Mr. Neeraj
Kumar, Commissioner of Police of Delhi complimenting Delhi Police for
outstanding work in cracking the case in no time. For lapses, no accountability
was fixed by the government. We wonder why Home Secretary was openly exhibiting
a mother-hen like protective approach towards the incumbent Delhi Commissioner
of Police.
6.
Primary concern of governance and governments is Rule of Law, safety and
protection of people, especially women and children, and upholding of their
civil, political, social, economic and cultural rights and dignity. For
this purpose, it is the constitutional obligation of the State to provide professional,
impartial and efficient Police Service for safeguarding the life, livelihood
and dignity of the citizens.
7.
Commissioner of Police, Delhi heads one of the largest police forces in the
country. Being head of the police force in the national capital, he or she
should not only be an officer of unimpeachable integrity and unblemished career
but also an impartial and efficient police officer having respect for human
rights and dignity of the people.
8.
But, from the records and documents made available to us, we are of the
considered opinion that the present Commissioner of Police, Neeraj Kumar does
not fit the bill. There are many serious charges of corruption and
criminalisation pending against him. Briefly mentioned these are:-
(a) 2 FIRs : Hon’ble High Court of Delhi vide two
separate orders dated on 26.6.2006 had directed registration of FIRs against
Mr. Neeraj Kumar for fabrication of documents during course of investigation of
a case and for humiliating, torturing and harassing an innocent citizen while
working in CBI as Joint Director. He managed an illegal stay from the Division
Bench through Letter Patent Appeals which are not maintainable in criminal
cases. This is blatant sabotage of law since against orders on Criminal
OPs in HC only remedy is SLP in Supreme Court.
(b) Very close links with Abhishek Verma, master
scamster and notorious Arms and Hawala Dealer who has already been charged by
CBI for compromising country’s security and integrity in Naval War Room Leak
case and presently in judicial custody again on account of his arrest by CBI in
another case booked under Official Secrets Act for illegally obtaining highly
sensitive and secret defence documents and selling the same to foreign
countries. As Joint Director, CBI, Neeraj Kumar had used all his power and
authority to protect and shield Abhishek Verma from various stringent legal
actions.
(c)
As Director General of Prisons,
Neeraj Kumar was negotiating deals for purchase of arms including assault
rifles with Abhishek Verma who was representing a foreign arm manufacturer and
was confined in Tihar Jail. In various communications including emails sent
from Tihar Jail Abhishek Verma claims that Neeraj Kumar is his personal and
family friend and a lot can be achieved through him in short span of time. In
the very same capacity Neeraj Kumar has reportedly extorted huge amount of
money in cash from 2G scam accused lodged in Tihar Jail for providing them
luxuries and facilities like AC, computers, mobiles and rich food.
(d) There are allegations that Neeraj
Kumar is reportedly holding 3 accounts in Switzerland and other tax heavens and
parking huge funds in them. Account Numbers are mentioned in the complaint that
gives this information. But no verification has been done.
9.
Recently Neeraj Kumar was
found to be unfit for being included in the panel of officers for appointment
to the post of Director of CBI by the Selection Committee headed by Chief
Vigilance Commissioner on account of the above charges which he is
facing. Yet, shockingly, with same criminal and corrupt antecedents, Neeraj
Kumar was earlier appointed to the sensitive post of Commissioner of Police,
Delhi.
10.
Obviously, Under Neeraj Kumar’s watch, the efficiency
and efficacy of police force in Delhi has come to the lowest ebb since there is
an atmosphere of complete lawlessness prevailing in the capital city of Delhi
and commission of heinous crimes like rapes, murders and thefts have become the
order of the day. Such crimes are being committed by criminals with the active
collusion and complicity of the police officers. Most of these criminals
are serial offenders and their criminal records are already with police and yet
they continue committing such heinous crimes and go scot free after bribing
local police or paying ‘hafta’ to them which is shared up to the top. Strangely
enough, as per media reports Delhi Police identified and picked up the rape-bus
from the list of hafta (bribe) givers circulating among all the Delhi
traffic policemen who are in collusion with the drivers'/owners' who
indulge in illegal activities.
11. It is the horrendous rot in the
system that has led to the appointment of such an abominable person to head the
Delhi Police. The spontaneous outburst of public sentiment and the voices that
are being raised are against such rot which has set in virtually every form of
governance today. Through the voices of the protestors, the people are today
demanding to be governed by a system that is just and above all, whose
integrity cannot be questioned. It is this aspect that needs to be addressed seriously
and sincerely. Police Commissioner’s response to all these is to intimidate
the lady Magistrate recording the statement of the rape victim and slap murder
charges against young protestors after letting loose worst form of violence and
repression on them. There are serious doubts that the post-mortem report has
been fudged! This cannot be ruled out considering the fact that Neeraj Kumar,
as Joint Commissioner of Police, Delhi was involved in the controversy of
‘Ansal Plaza’ fake encounter on 4.11.2002 wherein two innocent persons were
killed!
12. We are
of the considered view that the stink in Delhi Police is part of the larger
‘kleptocratic-mafia’ that seem to be running the country. In the
event we, senior citizens, request you to direct the Government of India that
is in power ‘under your pleasure’ to respond to the valid posers we raise
below:
(i) How, with such horrendous
ill-repute and adverse career record, Neeraj Kumar was selected and appointed
to the sensitive and crucial post of Commissioner of Police, Delhi? What is the
role of Union Home Secretary and Lt. Governor, Delhi in this?
(ii) How was he selected and appointed
as Joint Director of CBI and allowed to remain in that post for a record period
of 9 years which is prohibited under service Rules?
(iii) Why, despite several complaints from various
responsible quarters to the Prime Minister, Home Minister, PMO, CVC and
Director CBI supported by authentic records establishing Neeraj Kumar’s close
proximity and relationship with notorious serial offender Abhishek Verma, no
action has been initiated?
(iv) On 25-09-2012, one Manish Aggarwal of ‘Citizens of
India against Corruption’ sent a complaint to the Prime Minister giving details
and specific information on the huge corruption and extortion racket indulged
in by Neeraj Kumar (Annexure). Was this complaint enquired into and
truth ascertained? If not why not?
(v) What has been the role of
successive PMO’s, Home Ministers, Finance Ministers and Home Secretaries and
Finance Secretaries in defending and protecting this congenitally corrupt
official and in appointing him to coveted posts?
(vi) Who are the prominent politicians and bureaucrats
who are patronizing Neeraj Kumar and sharing in the loot and money-laundering
that he seem to be effortlessly indulging in cohort with underworld dons?
(vii) In the midst of so much rot,
corruption and laxity what purpose will the Commission constituted to “suggest
ways to make stricter rape laws” serve?
Your
Excellency, these are specific and pointed posers. But considering the mood of
the nation it would be eminently appropriate if you as Head of the Republic
advise the political parties to seek the immediate resignation of all MPs and
MLAs who are presently facing proceedings in Court on criminal charges,
particularly heinous ones like rape and murder. You should also direct the
Government to immediately enact law/rules to implement the long-pending
recommendations of the Election Commission to ban charge-sheeted politicians to
contest election to any public body in future. These steps will have an
electrifying effect on the psyche of the nation in general and youth in
particular.
The whole nation wants an immediate
answer to these posers and instant action to remedy the stink. We look forward
for early action and appropriate response
Yours Truly,
CV
Narashimhan IPS (former Director, CBI)
BS
Raghavan
IAS
Admiral L Ramdas
SP
Ambrose
IAS
General VK Singh
MR
Sivaraman
IAS Lt.
Gen. Prakash Katoch
M.G.Devasahayam
IAS
Maj. Gen. Ashok Kalyan Verma
Arun
Kumar
IAS
Brig V. Mahalingam
M. Raman
IAS
Col. Karan Kharb
Rajivan
Krishnaswamy
IAS
Col. K. Maliappan
(Note: Signatories have been
District Magistrates, Secretaries to State and Central Governments, Navy and
Army Chiefs, Corps, Division and Brigade Commanders)
CITIZENS
OF INDIA AGAINST CORRUPTION
ANNEXURE
A-17,
Niti Bagh, New Delhi-110049
Tel:
9811032800 ; 26098582
September 25, 2012
Dr.
Manmohan Singh
Prime
Minister of India
7, Race
Course Road,
New Delhi
110001
NEERAJ KUMAR'S WEALTH OF MORE THAN RS.2300 CRORES
AMASSED OUT OF CORRUPT PRACTICES AND KEPT ABROAD IN SWISS BANK ACCOUNTS IN
HIS AND HIS FAMILY MEMBERS NAMES
Respected Prime Minister,
Neeraj Kumar, IPS (1976-AGM UT)
former Joint Director, CBI, former Director General of Tihar Jail and present
Commissioner of Police, New Delhi made thousands of crores of rupees by
misusing his lucrative positions and extorting huge money from innocent
citizens and parking the said money in offshore havens of Switzerland and
Liechtenstein.
The details of his three bank
accounts in foreign banks are given below, the detailed investigation of which
would reveal that he is the most corrupt police officer in the country who is
already a man of more than Rs.2300 crore, out of which approximately Rs.912
crores is lying parked in the following bank accounts:
· One SWISS
Account in st. GallenKantonalbank, S1. Leonhardstrasse 25, 9001 St. Gallen,
Switzerland with 32.5 Million USD and 17.45 Million CHF (SWISS Francs)
Pseudo Name: CENTPENA
Account Number: 06938761-25-62
IBAN. CH22 0078 10693876 12562
SWift Code: KBSGCH22
· One Swiss
Bank Account in Pnvat-und Handelsbank Zurich AG, Lowenstrasse 56, Zurich witn
57 Million USD and 15 Million CHF(Swiss Francs)
Pseudo Name:
SANDR076
Account Number:
04403892-67 -76
IBAN:
CH26 0883 4044 0389 2677 6
SWIFT
Code:
PHZZCHZ1892
· One
Liechtenstein Bank Account in Neue Bank AG, Marktgass 20, Postfach 1533, Vaduz
with 42.75 Million USD and 19.20 Million Euros
Pseudo
Name:
MKNKAK76
Account Number:
OA2365672543
IBAN:
Ll22 0880 20A2 3656 7254 3
SWIFT
Code:
NBANLl22152
These details are already with
CBI and Enforcement Directorate but because of his clout in bureaucratic and
political circles, he has successfully scuttled the detailed investigation into
his deeds of his gross misconduct. There are already complaints made against
Neeraj Kumar which are lying with Prime Minister office, Central Vigilance
Commission, Central Bureau of Investigation, Enforcement Directorate and Income
Tax Department but the same are languishing in the dustbins of these offices.
It is indeed a pity.
The modus operandi of corrupt
Neeraj Kumar to make dirty money is as follows:
While in CBI, he handled various sensitive
cases. In famous Bombay Bomb Blast case, he favoured a number of accused and
did not arrest them or make them accused but allowed them to go free in lieu of
very big money which he collected and parked in above stated foreign bank
accounts. During his tenure of 9 years in CBI (very unusual for an officer to
manage posting beyond 5 years in CBI), Neeraj Kumar became a man of more than
1000 crores. He has purchased number of immovable properties including two
lavish farm houses in Westend Green worth more than Rs.200 crores, one house of
460 sq.yardsin posh colony of Anand Niketan worth Rs. 40 crores, two apartments
in benami names in Magnolias of DLF at Gurgaon, worth Rs. 50 crores, 10 acres
of land in Ghitorni worth Rs. 150 crores and 92 acres of land on Noida
Expressway worth Rs. 580 crores. All these properties are being held in benami
names including one Mr. Dharamveer, Police Officer of the rank of Head
Constable who has been with him for last 25 years. How can Neeraj Kumar allow
such a trustworthy police officer to go out of his control in whose name he has
invested dirty money of more than Rs. 1000 crores
While in Tihar Jail, during his tenure of 2 year, as
his good luck would have been, big scams in the country took place and a number
of politicians including ministers and businessman were arrested and sent to
Tihar Jail. For allowing 5 star living in Tihar Jail, Neeraj Kumar charged the
following
b. Rs. 3 lakhs from Kanimozi for
about 10 months I.e. 3X10X30=Rs. 9 crores.
c. Rs. 5 lakhs per day Mr. Sanjay
Chandra for 10 months i.e.5X10X30=Rs. 15 crores.
d. Rs. 7 lakhs per day from Mr.
Shahid Balwa and Mr. Vinod Goenka for 12 months 7X 12X30=Rs. 25.2 crores.
e. Rs.9 lakhs per day from Reliance
group for their three employees for 11 months I.e. 9X11X33=Rs. 32.67 crores.
In addition to these Neeraj Kumar
also extorted properties of hundreds of crores from Sanjay Chandra of Unitech
Group and Shahid Balwa which he is holding in the benami names of relatives.
As seen from above only in case
of accused of 2G scam,Neeraj Kumar made money of Rs. 105 crores. Not only this,
he is so clever and smart to make dirty money that he made more than 200 crores
from other accused like Suresh Kalmadi, Abu Salem, Aftab Ansari and many
others.
Because of his money power and
clout in political circles he managed to become Commisioner Delhi Police,
despite the fact that he is facing more than half a dozen criminal cases and
FIRs against him including infamous fake Ansal Plaza Shootout case in November
2002 where he was behind the killing two innocent persons on the spot when he
was heading post of Joint Commisioner of Police Special Cell, Delhi. He widely
claims that for becoming Commissioner of Police of Delhi, he had to pay RS.100
crores to Mr. P Chidambaram, former Home Minister of India through his son Mr.
Kartik Chidambaram and the meeting with him was arranged by Rajiv Shukla, now
Minister in Govt. who is always pleading his case before all the authorities.
Neeraj Kumar also boasts that through one Mr. Raj Ajmera a well known Wheeler
Dealer in political circles and his friend Rajiv Shukla, he took Ahmed Patel,
Political Advisor to Sonia Gandhi into confidence and paid Rs.100 crores to Congress
Party Fund. Since then he has become a frequent visitor to his residence at
late nights, and his photographs entering Patel's house no. 23, Mother Terasa
Road are enclosed. In big parties, he can be seen often claiming his proximity
to both Mr. Chidambaram and Mr. Ahmed Patel. He also tells that he is close to
Robert Vadra, son in law of Mrs. Sonia Gandhi whom he helped out financially by
clicking deals with DLF Group.
Since becoming Commissioner of
Police, a new extortion racket has been headed by Neeraj Kumar whereby he
identifies and buys out highly lucrative rented out properties in Delhi and
bullies innocent tenants and citizens into vacating such properties. Once
vacated, these properties fetches hundreds of crores of rupees which he claims
to have sold out to many friends including Madhavan, Private Secretaries to
Sonia Gandhi, Robert Vadra, son in law of Sonia Gandhi, Rajiv Shukla his friend
of last two decades, Subodh Kant Sahai, minister in the government, one Mr.
P.K. Mishra, lAS and Secretary in Ministry of Personnel. Since becoming
Commisioner Police, Delhi, Neeraj Kumar has already helped his friends and
family in purchasing more than 15 such properties worth more than Rs. 675
crores in Delhi. Recently, Neeraj Kumar bought a rented house of 500 sq yard in
posh Vasant Vihar which after getting vacated, he sold out to Mr. Arun Jaitley
for Rs. 37.5 crores. He also sold out such a property of 1000 sq yard in
Greater Kailash-I to his uncle Mr. Shatrugan Sinha. Neeraj Kumar also claims
before his friends that at one point of time, he had managed a 5 acre farm
house in Dera Mandl, Delhi which was sold out to Mr. Kapil Sibal, the present
Telecom Minister at a throw away price of Rs. 10 crores, the market value of
which was more than Rs. 25 crores. He also claims that he has given a big
property measuring 800 sq. yards at Shanti Niketan to Mr. Sandeep Dixit, son of
Chief Minister of Delhi Sheila Dixit who had helped out in becoming Delhi
Police Commissioner. He very frequently claims that he has also obliged many
judges of both High Court of Delhi and Supreme Court and he can get any work
done from them using his influence especially from Mr. Altamas Kabir, Chief
Justice of India.
Neeraj Kumar with his close
confidante head constable Dharamveer has been running another extortion racket
under which every officer of the rank of SHO in Delhi has to pay Dharamveer a
monthly sum ranging between Rs.5 lakhs to Rs. 10 lakhs. The rates are fixed and
are in the common knowledge among police circles.
Neeraj Kumar with his friend
Rajiv Shukla, has also been running a blackmailing racket in Delhi, whereby
they not only bring top class models from Bombay and supply them to some of the
top industrialists, bureaucrats and politicians but also tape them in the act.
He openly boasts in parties that he has blue films of Deepak Chopra, PS to LK
Advani and Mr. Madhavan, private secretary to Sonia Gandhi. Neeraj Kumar and
Rajiv Shukla are also famously known to be big match fixers and made more than
Rs 1200 crores together in only in the last edition of IPL. He has 12.5% equity
in ITC Group held in benami names. Every day, he visits Health Club of Maurya
Hotel with his family members and behaves like owner. Membership of the health
club is not opened to outsiders but he being owner of the hotel, is given all
comforts. Two suites/delux rooms are always kept at his disposal. This fact can
be verified from the staff of the hotel and the attendants in the health club.
He is also boasting that he has taken new Home Minister Mr. Sushil Shinde on
his right side by paying 5 crores as the first instalment.
Neeraj Kumar is leaving no stone
unturned in his ambitions to become the next CBI Director and to achieve them
he claims to have already paid RS.10 crores to V Narayan Swami, MOS of
Personnel Ministry and committed another Rs. 40 after his appointment' apart
from committing huge fund for Congress Party He claims that he has already
taken into confidence Mr. Pradeep Kumar. Chairman, CVC whom he has obliged many
times during his foreign visits including the recent one in which he has
arranged dollars abroad for his shopping and leisure. He has already met twice
Ms. Sushma Swaraj, Leader of Opposition in last one month and assured her all
CBI help to Reddy Brothers once he becomes Director CBI.
He was so confident that he will
be the next CBI Director that he threw a grand party at Rajiv Shukla's
farmhouse in Chattarpur in New Delhi in the first week of September, as soon as
his name figured in the panel for Director CBI, and gave assurances to A.Raja,
Kanimozi, Sanjay Chandra and the coal lobby that they will be set free within 6
months of him taking over as Director CBI.
This notoriously corrupt Police
officer who has woven his web of illicit acts deep into the beauracratic and
political centre of this nation and boasts himself to be the most powerful
officer in the country, grows in power with each passinq day is a danger not
only to society but also to the entire nation. It is not external threats that
our nation needs protection from but such corrupt police officers who are
eating away the wealth of this nation and pose a threat to the safety and
welfare of its citizens.
To remain at the helm of such
sensitive postings one needs the blessings of the highest of mightiest in India
and Neeraj Kumar has no shortage of well wishers. The country needs some
answers from the politicians and officers at the helm of affairs and we must
still believe in CBI, CVC and some honest politicians to act and arrest this
corrupt officer i.e. Neeraj Kumar and his corrupt friends and family members
and get the money back that has been stashed away in foreign accounts by him
and his family.
Thanking you,
Sd/-
Manish Aggarwal
Secretary General
CC:
President of India, New Delhi
Chief Justice of India, Supreme
Court of India, New Delhi
Chief Justice of Delhi High
Court, New Delhi & several others
Published in
ब्लॉग
बुधवार, 02 जनवरी 2013 19:45
Narendra Modi Phenomenon : Hindutva Leader Increasing Impact (Part-5)
नरेन्द्र मोदी "प्रवृत्ति" का उद्भव एवं विकास... भाग-५ (अंतिम भाग)
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२००१ में नरेंद्र मोदी को गुजरात भेजा गया. २००२ में गोधरा में ट्रेन की बोगी जलाई गई और ५६ हिन्दू जिन्दा जल गए. इस घटना के खिलाफ गुजरात में जो आक्रोश पैदा हुआ, उसने गुजरात के दंगों को जन्म दिया. हालांकि गुजरात के लिए दंगे कोई नई घटना नहीं थी. २००२ से पहले गुजरात में प्रतिवर्ष ८-१० दंगे होना मामूली बात थी. लेकिन २००२ के इन दंगों में जिस तरह नरेंद्र मोदी ने “दंगाई मुसलमानों” के खिलाफ कठोर रुख अपनाया, उसने १९८४ से हिंदुओं के लगातार धधकते और खौलते मन को थोड़ी राहत पहुंचाई और वह नरेंद्र मोदी की कार्यशैली का दीवाना होने लगा. रही-सही कसर “तथाकथित सेकुलर मीडिया” ने पूरी कर दी, जिसने लगातार नरेंद्र मोदी के खिलाफ दुष्प्रचार का अभियान चलाया. भारतीय “सेकुलर”(???) मीडिया का व्यवहार, कवरेज और रिपोर्टिंग ऐसी थी मानो २००२ के गुजरात के दंगों से पहले और बाद में समूचे भारत में कोई दंगा हुआ ही नहीं. नरेंद्र मोदी के विरोध (इसे मुसलमान वोटों को खुश करने पढ़ा जाए) में “पेड” मीडिया, कांग्रेस, कथित सेकुलर बुद्धिजीवी, NGO चलाने वाले कई “गैंग्स” इतने नीचे गिरते चले गए कि उन्होंने गुजरात की छवि को पूरी तरह से नकारात्मक पेश करने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी. हिन्दू वोटर जो पहले से ही शाहबानो, रूबिया सईद, मस्त गुल, कंधार विमान अपहरण तथा वाजपेयी की सरकार गिराने के लिए की गई “सेकुलर गिरोहबाजी” से त्रस्त और आहत था, वह नरेंद्र मोदी को अकेले मुकाबला करते देख और भी मजबूती से उनके पीछे खड़ा हो गया. नरेंद्र मोदी ने भी इस “विशाल हिन्दू मानस” को निराश नहीं किया, और उन्होंने अपनी ही शैली में इस बिकाऊ मीडिया को मुंहतोड जवाब दिया, साथ ही नरेंद्र मोदी गुजरात में विकास की लहर उत्पन्न करने में भी सफल रहे. २००२ के चुनावों पर दंगों की छाया थी, जबकि २००७ में भी कांग्रेस ने वही “गंदा धार्मिक खेल” खेलने की कोशिश की, नरेंद्र मोदी को “मौत का सौदागर” तक कहा गया, लेकिन २००२ में भी “तथाकथित धर्मनिरपेक्ष” भांडों ने मुँह की खाई, २००७ में भी नरेंद्र मोदी ने अकेले ही उन्हें पछाड़ा. इस बीच हिन्दू युवा ने अटलबिहारी वाजपेयी द्वारा संसद पर हमले के बाद पाकिस्तान को दी गई गीदड-भभकी भी देखी जब वाजपेयी ने सेना का एक गंभीर मूवमेंट पाकिस्तान की सीमा तक कर दिया. सेना के इस विशाल मूवमेंट पर भारी खर्च हुआ, लेकिन वाजपेयी उस समय भी पाकिस्तान को "अच्छा-खासा" सबक सिखाने की हिम्मत न जुटा सके, और सेना को बेरंग वापस अपनी-अपनी बैरकों में लौटा दिया गया. जले पर नमक छिड़कने के तौर पर वाजपेयी ने कारगिल के खलनायक मुशर्रफ को भी आगरा में शिखरवार्ता के लिए ससम्मान बुला लिया... वे वाजपेयी ही थे, जिन्होंने नरेंद्र मोदी को "राजधर्म" निभाने की सलाह भी दी थी. यह सब देखकर "मन ही मन खदबदाता" हिन्दू युवा NDA की सरकार से निराश और हताश हो चला था. परन्तु ऐसे विपरीत समय में भी नरेंद्र मोदी अपनी अक्खड़ शैली, मीडिया के सांड को सींग से पकड़कर पटकने और सेकुलरों को मुंहतोड जवाब देते हुए लगातार गुजरात में डटे रहे, सभी हिन्दू-विरोधी ताकतों की नाक पर मुक्का जमाते हुए उन्होंने एक के बाद दूसरा चुनाव भी जीता, और वे हिन्दू युवाओं के दिलों पर छा गए.
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२००१ में नरेंद्र मोदी को गुजरात भेजा गया. २००२ में गोधरा में ट्रेन की बोगी जलाई गई और ५६ हिन्दू जिन्दा जल गए. इस घटना के खिलाफ गुजरात में जो आक्रोश पैदा हुआ, उसने गुजरात के दंगों को जन्म दिया. हालांकि गुजरात के लिए दंगे कोई नई घटना नहीं थी. २००२ से पहले गुजरात में प्रतिवर्ष ८-१० दंगे होना मामूली बात थी. लेकिन २००२ के इन दंगों में जिस तरह नरेंद्र मोदी ने “दंगाई मुसलमानों” के खिलाफ कठोर रुख अपनाया, उसने १९८४ से हिंदुओं के लगातार धधकते और खौलते मन को थोड़ी राहत पहुंचाई और वह नरेंद्र मोदी की कार्यशैली का दीवाना होने लगा. रही-सही कसर “तथाकथित सेकुलर मीडिया” ने पूरी कर दी, जिसने लगातार नरेंद्र मोदी के खिलाफ दुष्प्रचार का अभियान चलाया. भारतीय “सेकुलर”(???) मीडिया का व्यवहार, कवरेज और रिपोर्टिंग ऐसी थी मानो २००२ के गुजरात के दंगों से पहले और बाद में समूचे भारत में कोई दंगा हुआ ही नहीं. नरेंद्र मोदी के विरोध (इसे मुसलमान वोटों को खुश करने पढ़ा जाए) में “पेड” मीडिया, कांग्रेस, कथित सेकुलर बुद्धिजीवी, NGO चलाने वाले कई “गैंग्स” इतने नीचे गिरते चले गए कि उन्होंने गुजरात की छवि को पूरी तरह से नकारात्मक पेश करने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी. हिन्दू वोटर जो पहले से ही शाहबानो, रूबिया सईद, मस्त गुल, कंधार विमान अपहरण तथा वाजपेयी की सरकार गिराने के लिए की गई “सेकुलर गिरोहबाजी” से त्रस्त और आहत था, वह नरेंद्र मोदी को अकेले मुकाबला करते देख और भी मजबूती से उनके पीछे खड़ा हो गया. नरेंद्र मोदी ने भी इस “विशाल हिन्दू मानस” को निराश नहीं किया, और उन्होंने अपनी ही शैली में इस बिकाऊ मीडिया को मुंहतोड जवाब दिया, साथ ही नरेंद्र मोदी गुजरात में विकास की लहर उत्पन्न करने में भी सफल रहे. २००२ के चुनावों पर दंगों की छाया थी, जबकि २००७ में भी कांग्रेस ने वही “गंदा धार्मिक खेल” खेलने की कोशिश की, नरेंद्र मोदी को “मौत का सौदागर” तक कहा गया, लेकिन २००२ में भी “तथाकथित धर्मनिरपेक्ष” भांडों ने मुँह की खाई, २००७ में भी नरेंद्र मोदी ने अकेले ही उन्हें पछाड़ा. इस बीच हिन्दू युवा ने अटलबिहारी वाजपेयी द्वारा संसद पर हमले के बाद पाकिस्तान को दी गई गीदड-भभकी भी देखी जब वाजपेयी ने सेना का एक गंभीर मूवमेंट पाकिस्तान की सीमा तक कर दिया. सेना के इस विशाल मूवमेंट पर भारी खर्च हुआ, लेकिन वाजपेयी उस समय भी पाकिस्तान को "अच्छा-खासा" सबक सिखाने की हिम्मत न जुटा सके, और सेना को बेरंग वापस अपनी-अपनी बैरकों में लौटा दिया गया. जले पर नमक छिड़कने के तौर पर वाजपेयी ने कारगिल के खलनायक मुशर्रफ को भी आगरा में शिखरवार्ता के लिए ससम्मान बुला लिया... वे वाजपेयी ही थे, जिन्होंने नरेंद्र मोदी को "राजधर्म" निभाने की सलाह भी दी थी. यह सब देखकर "मन ही मन खदबदाता" हिन्दू युवा NDA की सरकार से निराश और हताश हो चला था. परन्तु ऐसे विपरीत समय में भी नरेंद्र मोदी अपनी अक्खड़ शैली, मीडिया के सांड को सींग से पकड़कर पटकने और सेकुलरों को मुंहतोड जवाब देते हुए लगातार गुजरात में डटे रहे, सभी हिन्दू-विरोधी ताकतों की नाक पर मुक्का जमाते हुए उन्होंने एक के बाद दूसरा चुनाव भी जीता, और वे हिन्दू युवाओं के दिलों पर छा गए.
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जैसी कि उम्मीद थी, २०१२
के गुजरात के चुनाव परिणामों ने ठीक वही रुख दिखाया है. एक अकेले व्यक्ति नरेंद्र
मोदी ने अपनी लोकप्रियता, रणनीति और वाकचातुर्य के जरिए उनके खिलाफ चुनाव लड़ रहे
मुख्यधारा(?) के मीडिया, NGOवादी गैंग के गुर्गों, अपनी ही पार्टी के कुछ विघ्नसंतोषियों, और
कांग्रेस को जिस तरह चूल चटाई वह निश्चित रूप से काबिले-तारीफ़ है. इस सूची में
मैंने कांग्रेस को सबसे अंत में इसलिए रखा क्योंकि इस चुनाव में गुजरात में
कांग्रेस चुनाव लड़ ही नहीं रही थी, वह तो कहीं मुकाबले में थी ही नहीं. गुजरात में
कांग्रेस की दुर्गति के दो-तीन उदाहरण दिए जा सकते हैं – पहला तो यह कि पिछले दस
साल में नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस एक ठीक-ठाक सा
कांग्रेसी तक तैयार नहीं कर सकी और उसे संदिग्ध आचरण वाले पुलिस अफसर संजीव भट्ट
की पत्नी को मोदी के खिलाफ उतारना पड़ा, दूसरा यह कि मोदी के खिलाफ चुनाव जीतने के
लिए जिन दो प्रमुख व्यक्तियों पर कांग्रेस निर्भर थी, अर्थात केशुभाई पटेल और
शंकरसिंह वाघेला, दोनों ही RSS के पूर्व स्वयंसेवक हैं, और चुनाव से पहले ही हार मान लेने का गिरता
कांग्रेसी मनोबल तीसरे कारण में दिखाई देता है कि देश के इतिहास में यह ऐसा पहला
चुनाव था जिसमें समूचे गुजरात में जो पोस्टर लगाए गए थे उनमें से किसी में भी
गांधी परिवार के किसी सदस्य की फोटो तक नहीं लगाईं गई. इन्हीं तीनों कारणों से पता
चलता है कि वास्तव में कांग्रेस चुनाव से पहले ही हार मान चुकी थी, इसीलिए उनके
स्टार(?) प्रचारक राहुल गांधी ने १८२ सीटों में से सिर्फ ७ पर प्रचार किया.
बहरहाल, काँग्रेस की
दुर्दशा से नरेंद्र मोदी की उपलब्धि कम नहीं हो जाती, बल्कि और भी बढ़ जाती है कि
पिछले १० साल में नरेंद्र मोदी ने अपनी “विकासवादी कार्यशैली” के कारण गुजरात से
विपक्ष को लगभग समाप्त कर दिया (भाजपा के अन्य मुख्यमंत्री इस से सबक लें).
हिंदुत्व के साथ विकास के मिश्रण का जो “कॉकटेल” नरेंद्र मोदी ने पेश किया है, यदि
भाजपा के मुख्यमंत्री अपने-अपने राज्यों में तथा भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व समूचे
देश में लागू करने के बारे में जल्दी विचार करें, तभी २०१४ के आम चुनावों में
पार्टी की संभावनाएं काफी उज्जवल बन सकेंगी. वास्तव में नरेंद मोदी ने आधा चुनाव
तो उसी दिन जीत लिया था, जब सदभावना मिशन के तहत एक मंच पर उन्होंने एक मौलाना
द्वारा “सफ़ेद जालीदार टोपी” पहनने से इंकार कर दिया था. उसी दिन उन्होंने यह
सन्देश दे दिया था कि वे गुजरात में, इस “सेकुलर पाखण्ड” से भरी नौटंकी को नहीं
अपनाएंगे, बल्कि बिना किसी भेदभाव के “विकासवादी मुसलमानों” को साथ लेकर चलेंगे.
इसी का नतीजा रहा कि गुजरात की १२ मुस्लिम बहुल सीटों में से ९ सीटों पर भाजपा
विजयी हुई, इसमें से एक विधानसभा क्षेत्र जमालपुर खड़िया तो ८०% मुस्लिम आबादी वाला
है जहाँ से आज तक कोई हिन्दू उम्मीदवार नहीं जीता था, परन्तु वहाँ से भी मोदी की
पसंद के हिन्दू उम्मीदवार ने जीत दर्ज की. अर्थात नरेंद्र मोदी ने इस तथाकथित
“सेकुलर मिथक” को बुरी तरह तोड़-मरोड़ दिया है कि मुस्लिमों के साथ बहलाने-फुसलाने
की राजनीति ही चलेगी. उन्होंने दिखा दिया कि गुजरात के मुस्लिम भी “आम इन्सान” ही
हैं और उन्हें भी बिना किसी तुष्टिकरण के विकास की मुख्यधारा में लाया जा सकता
है.
अब सवाल उठता है कि आखिर गुजरात की जनता ने नरेंद्र मोदी में ऐसा
क्या देखा? जवाब है, त्वरित निर्णय लेने की क्षमता, उन निर्णयों को अमल में लाने
के लिए पूरी ताकत झोंक देना और भाषणों में, बैठकों में, सभाओं में, चालढाल में
उनकी विशिष्ट “दबंग स्टाइल”, जिसने युवा मतदाताओं को भारी आकर्षित किया. जिस समय
नरेंद्र मोदी मणिनगर में अपना मतदान करने जा रहे थे, तब उनके वाहन के चारों तरफ
जिस तरह से हजारों युवाओं की भारी भीड़ जमा थी, नारे लग रहे थे, खुशी में मुठ्ठियाँ
लहराई जा रही थीं उसे देखकर किसी “रॉक-स्टार” का आभास होता था. अर्थात जो
“नरेन्द्र मोदी प्रवृत्ति” १९८४ से अंकुरित होना शुरू हुई थी, १९९६ और २००२ में
पल्लवित हुई और २०१२ आते-आते वटवृक्ष बन चुकी थी.
चाहे नर्मदा के पानी को किसी भी कीमत पर सौराष्ट्र तक पहुंचाने की
बात हो, उद्योगों को बंजर भूमि दान करते हुए किसी क्षेत्र का विकास करना हो, या
फिर “विशाल सौर ऊर्जा पार्क” तथा नर्मदा नहरों के ऊपर सोलर-पैनल लगाकर बिजली
उत्पादन के नए-नए आइडिया लाने हों, नरेंद्र मोदी ने अपनी कार्यशैली से इसे पूरा कर
दिखाया. रही-सही कसर ३-डी प्रचार ने पूरी कर दी, ३-डी के जरिए प्रचार के आइडिये ने
कांग्रेस को पूरी तरह धराशायी कर दिया, उन्हें समझ ही नहीं आया कि इस अजूबे का
मुकाबला कैसे करें? जहाँ कांग्रेस के नेता एक दिन में ३-४ सभाएं ही कर पाते थे,
उतने ही खर्च में नरेंद्र मोदी अपने घर बैठे ३६ सभाओं को संबोधित कर देते थे. सोशल
नेट्वर्किंग पर फैले अपने हजारों फैन्स और कार्यकर्ताओं के जरिए उनकी बात पलक
झपकते लाखों लोगों तक पहुँच जाती थी. मुख्यधारा के मीडिया द्वारा किये गए
नकारात्मक प्रचार के बावजूद मोदी के सकारात्मक और विकास कार्यों को सोशल मीडिया ने
जनता तक पहुंचा ही दिया. आगे की राह आसान थी...
गुजरात के इन परिणामों ने जहाँ एक ओर विपक्षियों की नींद उडाई है,
वहीं दूसरी तरफ भाजपा के अंदर भी मंथन शुरू हो चुका है. निम्न-मध्यम और उच्च-मध्यम
वर्ग तथा युवाओं के बीच नरेंद्र मोदी ने जैसी छवि कायम की है, उसे देखते हुए शीर्ष
नेतृत्व मोदी की अगली भूमिका के बारे में गहराई से सोचने पर मजबूर हो गया है.
वास्तव में २०१४ के आम चुनावों में संघ-भाजपा को उत्तरप्रदेश और बिहार में प्रचार
के लिए नरेंद्र मोदी जैसा व्यक्ति ही चाहिए, जो मायावती और मुलायम को उन्हीं की
भाषा में, उन्हीं की शैली में ठोस जवाब दे सके, साथ ही जातिवाद और मुस्लिम
तुष्टिकरण के दलदल में फंसे इन राज्यों के भाजपा कैडर में संजीवनी फूंक सके. इस
भूमिका में नरेंद्र मोदी एकदम फिट बैठते हैं. उत्तरप्रदेश के हालिया निगम चुनावों
में कुछ उम्मीदवार मोदी के पोस्टर और स्टीकर लिए दिखाई दिए, सन्देश स्पष्ट है कि
चूंकि उत्तरप्रदेश के भाजपा नेता “झगड़ालू औरतों” की तरह सतत आपस में लड़ रहे हैं
तथा उनमे से कोई भी मुलायम-मायावती का विकल्प देने की स्थिति में नहीं दिखता इसलिए
मतदाता भाजपा को वोट नहीं देता, जिस दिन नरेंद्र मोदी वहाँ जाकर बिगुल फूँकेंगे,
उसी दिन से स्थिति बदलना शुरू हो जाएगी.
१९९१ से १९९९ तक उत्तरप्रदेश में भाजपा की
लगभग ५० सीटें आती थीं, लेकिन जब से भाजपा को सत्ता-प्रेम ने डस लिया और उसने
“हिंदुत्व” के मुद्दे को ताक पर रख दिया, उसी दिन से वह पतन की राह पर निकल पडी.
नरेंद्र मोदी की जो लोकप्रियता आज दिखाई दे रही है, वह उसी हिन्दू मन की दबी हुई
आहट है जो सेकुलरिज्म की विकृति और नापाक गठबंधन की राजनीति के चलते बलपूर्वक दबा
दी गयी थी. हिन्दू युवा पूछ रहा था कि जब मायावती दलित कार्ड खेल सकती हैं, मुलायम
यादव-मुस्लिम कार्ड खेल सकते हैं, ममता और नीतिश भी मुस्लिम कार्ड खेल सकते हैं,
यहाँ तक कि कांग्रेस भी “पैसा बाँटो और वोट खरीदो” की देश-डूबाऊ राजनीति कर सकती
है, तो आखिर भाजपा को हिंदुत्व की राजनीति करने में क्या परहेज़ है? इसका जवाब
नरेंद्र मोदी ने गुजरात में “हिंदुत्व को विकास” के साथ जोड़कर दिया है. लगातार
सेकुलरिज्म-सेकुलरिज्म का भजन करने वाले दलों तथा २००१ के दंगों को लेकर सदा
मीडिया ट्रायल चलाने वाले पत्रकारों को भी “मजबूरी में” २०१२ के चुनावों में इन
मुद्दों को दूर रखना पड़ा. यही “नरेंद्र मोदी प्रवृत्ति” की सफलता है, जिसे भाजपा
के केन्द्रीय नेतृत्व ने उत्तरप्रदेश में भुला दिया था. अब उत्तरप्रदेश और बिहार
के मुसलमानों को यह सोचना है कि क्या उन्हें “तथाकथित सेकुलर” पार्टियों का मोहरा
बनकर ही जीना है (जैसा कि पिछले ६० साल से होता आ रहा है), या फिर वे भी गुजरात के
मुसलमानों की तरह नरेंद्र मोदी का साथ देते हुए विकास के मार्ग पर चलेंगे, जहाँ
कोई तुष्टिकरण न हो, बल्कि सभी के लिए समान अवसर हों. नरेंद्र मोदी की
अन्तर्राष्ट्रीय छवि को देखते हुए उनमें यह क्षमता है कि वे यूपी-बिहार की किस्मत
सँवार सकते हैं, २०१४ में यह मौका होगा जब तय होगा कि क्या यूपी-बिहार जातिवाद के
दलदल से बाहर निकलेंगे?
गुजरात चुनावों में मोदी की जीत के बाद एक SMS बहुत वितरित हुआ था कि,
“दबंग-२ से पहले गुजरात में सिंघम-३ रिलीज़ हो गई”... यह SMS आधुनिक भारत के युवा मन की
भावना को व्यक्त करता है, कि अब युवाओं को “दब्बू” और “अल्पभाषी” किस्म के तथा ऊपर
से थोपे गए “राजकुमार” टाइप के नेता स्वीकार्य नहीं हैं. भारत का युवा चाहता है कि
देश का नेतृत्व किसी निर्णायक किस्म के दबंग व्यक्ति के हाथों में होना चाहिए, जो पाकिस्तान
से उसी की भाषा में बात कर सके, जो त्वरित निर्णय ले, जो देशहित में नवीनतम तकनीक
का उपयोग करे, जिसके प्रति अफसरशाही के दिल में “भयमिश्रित सम्मान” हो... इन सभी
शर्तों पर नरेंद्र मोदी खरे उतरते हैं. २००१ से पहले नरेंद्र मोदी ने ३० साल तक एक
संघ प्रचारक-स्वयंसेवक के रूप में भाजपा की सेवा की, कभी कोई पद नहीं माँगा, कभी
कोई शिकायत नहीं की. सच्चा कार्यकर्ता ऐसा ही होता है. इसीलिए नरेंद्र मोदी ने
गुजरात प्रशासन को जनोन्मुख बनाया और विकास की सभी योजनाओं में जन-सुविधा का ख़याल
रखा. नतीजा सामने है कि नरेंद्र मोदी ने लगातार तीसरी बार दो तिहाई बहुमत से
गांधीनगर पर भगवा लहरा दिया है. इसे हम “नरेन्द्र मोदी प्रवृत्ति” का एक और सोपान
कह सकते हैं.
संक्षेप में तात्पर्य यह है कि नरेंद्र मोदी ने पहला चरण पार कर लिया
है, उनके लिए दिल्ली में मंच सज चुका है, संभवतः नरेंद्र मोदी अगले ६ माह या एक
वर्ष के भीतर ही भाजपा में किसी केन्द्रीय भूमिका में नज़र आ सकते हैं. हालांकि
विश्लेषक यह मान रहे हैं कि भाजपा के भीतर ही मोदी के लिए दिल्ली की राह इतनी आसान
नहीं है, परन्तु गुजरात और देश की जनता के मन में जैसा “मॉस हिस्टीरिया” नरेंद्र मोदी
ने पैदा किया है, उसका फिलहाल भाजपा में कोई मुकाबला नहीं है. संभावना तो यही बनती
है कि २०१४ के लोकसभा चुनावों में
“व्यक्तित्वों” का टकराव अवश्यम्भावी है. भाजपा में नरेंद्र मोदी जैसे “भीड़ खींचू”
नेता अब बिरले ही बचे हैं. सो, नरेंद्र मोदी का पहले भाजपा में, फिर NDA में और फिर प्रधानमंत्री
कार्यालय में अवतरित होना अब सिर्फ समय की बात है...
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