हिन्दी फ़िल्मों में शैलेन्द्र और शंकर-जयकिशन की जोडी़ ने कई अदभुत गीत दिये हैं । शैलेन्द्र तो आसान शब्दों में अपनी बात कहने के लिये मशहूर रहे हैं । उन्होंने बहुत ही कम क्लिष्ट शब्दों का उपयोग किया और जब धुनों पर लिखा तो ऐसे सरल शब्दों में, कि एक आम आदमी उसे आसानी से गा सके और उससे भी बडी़ बात यह कि समझ सके । गुलजार की तरह कठिन शब्द, या साहिर / शकील की तरह कठिन उर्दू शब्दों के उपयोग से वे बचे हैं ।
इस गीत में प्रथम दृष्टया देखने पर कोई खास बात नहीं दिखती... लेकिन इस गीत पर लिखने की पहली वजह तो यह है कि यह रेडियो पर बहुत कम बजता है और जब भी बजता है पूरा नहीं बजता.. दूसरा कारण है ख्यात हास्य अभिनेता मेहमूद द्वारा यह गीत गाना, न सिर्फ़ गाना बल्कि इतने बेहतरीन तरीके से प्रस्तुत करना । यह संगीतकार राजेश रोशन की पहली फ़िल्म है, जिन्हें मेहमूद ने अपने भाईयों के कहने पर एक बार सुनना कबूल किया था, उस एक ही बैठक में राजेश रोशन ने मेहमूद को इतना प्रभावित किया कि वे आजीवन मित्र बने रहे और मेहमूद की कई फ़िल्मों में राजेश रोशन ने संगीत दिया ।
दादा कोंडके - यह नाम आते ही हमारे सामने छवि उभरती है द्विअर्थी संवादों वाली फ़िल्में बनाने वाले, एक बेहद साधारण से चेहरे मोहरे वाले, नाडा़ लटकती हुई ढीली-ढाली चड्डीनुमा पैंट पहनने वाले, अस्पष्ट सी आवाज में संवाद बोलने वाले एक शख्स की । दादा कोंडके के नाम पर अक्सर हमारे यहाँ का तथाकथित उच्च वर्ग समीक्षक नाक-भौंह सिकोड़ता है, हमेशा दादा को एक दोयम दर्जे का, सिर्फ़ द्विअर्थी और अश्लील संवादों के सहारे अपनी फ़िल्में बनाने वाले के रूप में उनकी व्याख्या की जाती है । यह सुविधाभोगी वर्ग आसानी से भूल जाता है कि मल्टीप्लेक्स के बाहर भी जनता रहती है और उसे भी मनोरंजन चाहिये होता है, उसी वर्ग के लिये फ़िल्में बनाकर दादा का नाम लगातार नौ सिल्वर जुबली फ़िल्में बनाने के लिये "गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स" में शामिल हुआ है (जबकि राजकपूर, यश चोपडा़ और सुभाष घई की भारी-भरकम बजट और अनाप-शनाप प्रचार पाने वाली फ़िल्में कई बार टिकट खिडकी पर दम तोड़ चुकी हैं)।
शिवजी की नगरी उज्जैन में श्रावण के सोमवारों को भगवान महाकालेश्वर की सवारी निकलती है और अन्तिम सोमवार को बाबा महाकाल की विशाल और भव्य सवारी निकाली जाती है । ऐसी मान्यता है कि महाकाल बाबा श्रावण में अपने भक्तों और प्रजा का हालचाल जानने के नगर-भ्रमण करते हैं । उस शाही अन्तिम सवारी में विशाल जनसमुदाय उपस्थित होता है और दर्शनों का लाभ लेता है । शाही सवारी में सरकारी तौर पर और निजी तौर पर हजारों लोग अपने-अपने तरीके से सहयोग करते हैं ।
पाठकगण शीर्षक देखकर चौंकेंगे, लेकिन यह एक हकीकत है कि धीरे-धीरे हम जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण के बाद अब प्रकाश प्रदूषण के भी शिकार हो रहे हैं । प्रकाश प्रदूषण क्या है ? आजकल बडे़ शहरों एवं महानगरों में सडकों, चौराहों एवं मुख्य सरकारी और व्यावसायिक इमारतों पर तेज रोशनी की जाती है, जिसका स्रोत या तो हेलोजन लैम्प, सोडियम वेपर लैम्प अथवा तेज नियोन लाईटें होती हैं ।
"माँ" घर का मंगल होती है तो पिता घर का "अस्तित्व" होता है, परन्तु इस अस्तित्व को क्या कभी हमनें सच में पूरी तरह समझा है ? पिता का अत्यधिक महत्व होने के बावजूद उनके बारे में अधिक बोला / लिखा नहीं जाता, क्यों ? कोई भी अध्यापक माँ के बारे में अधिक समय बोलता रहता है, संत-महात्माओं ने माँ का महत्व अधिक बखान किया है, देवी-देवताओं में भी "माँ" का गुणगान भरा पडा़ है, हमेशा अच्छी बातों को माँ की उपमा दी जाती है, पिता के बारे में कुछ खास नहीं बोला जाता ।
देश के कुछ हिस्सों में बारिश ने अपनी खुश-आमदीद दर्ज करवा दी है, और कुछ में सौंधी खुशबुओं ने समाँ बाँधना शुरु कर दिया है । बरसात के मौसम पर हिन्दी फ़िल्मों मे दर्जनों गीत हैं, बारिश तो मानो गीतकारों के लिये एक "पार्टी" की तरह होती है, एक से बढकर एक गीत लिखे गये बरसात पर, लेकिन जब भी झूम कर बारिश होती है, यह गीत सबसे पहले जुबाँ पर आता है ।
गुलजार और आर.डी.बर्मन की अदभुत जोडी़ ने हमें कई-कई मधुर गीत दिये हैं, उन्हीं में से यह एक गीत है । शब्दों में गुलजार की छाप स्पष्ट नजर आती है (उलझाव वाले शब्द जो ठहरे) और गीत की धुन पंचम दा ने बहुत ही उम्दा बनाई है । गीत की खासियत लता मंगेशकर के साथ भूपेन्द्र की आवाज है, लता के साथ भूपेन्द्र ने जितने भी गीत गाये हैं सभी के सभी कुछ खास ही हैं (जैसे "किनारा" फ़िल्म का "मेरी आवाज ही पहचान है" या "मौसम" का दिल ढूँढता है आदि), वही जादू इस गीत में भी बरकरार है, फ़िल्म है "परिचय"..
बारह ज्योतिर्लिंगों में से सबसे बडे़ आकार वाले और महत्वपूर्ण "महाकालेश्वर" (Mahakal Temple, Ujjain) मन्दिर का ऑडिट सम्पन्न हुआ । यह ऑडिट सिंहस्थ-२००४ के बाद में मन्दिर को मिले दान और उसके रखरखाव के बारे में था । इसमें ऑडिट दल को कई चौंकाने वाली जानकारियाँ मिलीं, दान के पैसों और आभूषणों में भारी भ्रष्टाचार और हेराफ़ेरी हुई है ।
आखिरकार इस महान देश को राष्ट्रपति पद का / की उम्मीदवार मिल ही गया, महीनों की खींचतान और घटिया राजनीति के बाद अन्ततः सोनिया गाँधी ने वामपंथियों को धता बताते हुए प्रतिभा पाटिल नामक एक और कठपुतली को उच्च पद पर आसीन करने का रास्ता साफ़ कर लिया है, दूसरी कठपुतली कौन है यह तो सभी जानते हैं ।