इस पुरे विश्व में लगभग 200 देश हैं, जिनमे अपना अपना संविधान और अपने नियम कानून लागू है, और अलग शासन प्रणाली है और कुछ इस्लामी देश हैं, लेकिन कुछ ऐसे गैर मुस्लिम देश भी हैं जहाँ मुसलमानों की अच्छी खासी जनसंख्या मौजूद है।
हिन्दुओं को खदेड़ते तृणमूल कांग्रेस के “नव-रज़ाकार”
Written by सुरेश चिपलूनकर गुरुवार, 16 फरवरी 2017 08:04पश्चिम बंगाल एक बेहद गंभीर मोड़ पर पहुँच चुका है, और यदि जल्दी ही कुछ न किया गया तो इसे “इस्लामिक बांग्लादेश” में बदलते देर नहीं लगेगी.
इस्लामी दबाव में बंगाल का सरस्वती पूजा पर प्रतिबन्ध
Written by Suresh Chiplunkar बुधवार, 01 फरवरी 2017 20:18पिछले दस वर्ष के लेख गवाह हैं कि पश्चिम बंगाल के बारे में कई राष्ट्रवादी ब्लॉगर्स चेतावनियाँ जारी करते रहे, बंगाल के वामपंथी शासन में बढ़ते इस्लामी मुल्लावाद के खिलाफ जनजागरण करते रहे, सरकारों से अपीलें करते रहे, लेकिन किसी पर कोई असर नहीं हुआ.
1 फरवरी 1948 को हुआ ब्राह्मणों का सबसे बड़ा कत्लेआम…
Written by Suresh Chiplunkar मंगलवार, 31 जनवरी 2017 20:24वह 1 फरवरी 1948 का दिन था. गांधी का वध हुए दो ही दिन हुए थे. हवाओं में कुछ बेचैनी और माहौल में कुछ उदासी थी. सुबह स्कूल जाते समय कुछ ब्राह्मण बच्चों ने गलियों के कोने में खड़े कुछ लोगों कानाफूसियाँ सुनी थीं
डोनाल्ड ट्रंप का उदय और वैश्विक राष्ट्रवादी लहर
Written by Suresh Chiplunkar बुधवार, 30 नवम्बर 2016 17:41ट्रंप की जीत : राष्ट्रवाद की “वैश्विक धमक”
दुनिया भर में खुद को स्वघोषित बुद्धिजीवी, तथाकथित रूप से प्रगतिशील और उदारवादी समझने वाले और वैसा कहलाने का शौक रखने वाले तमाम इंटेलेक्चुअल्स तथा मीडिया में बैठे धुरंधरों को लगातार एक के बाद एक झटके लगते जा रहे हैं, परन्तु उनकी बेशर्मी कहें या नादानी कहें वे लोग अभी भी अपनी स्वरचित आभासी मधुर दुनिया में न सिर्फ खोए हुए हैं, बल्कि उसी को पूरी दुनिया का प्रतिबिंब मानकर दूसरों को लगातार खारिज किए जा रहे हैं. वास्तव में हुआ यह है कि जिस प्रकार अफीम के नशे में व्यक्ति सारी दुनिया को पागल लेकिन स्वयं को खुदा समझता है, उसी प्रकार भारत सहित दुनिया भर में पसरा हुआ यह “बुद्धिजीवी और मीडियाई वर्ग” भी खुद को जमीन से चार इंच ऊपर समझता रहा है. इन कथित बुद्धिमानों को पता ही नहीं चल रहा है की दुनिया किस तरफ मुड़ चुकी है और ये लोग बिना स्टीयरिंग की गाडी लिए गर्त की दिशा में चले जा रहे हैं.
मोदी की आर्थिक क्रान्ति : प्रभाव और दुष्प्रभाव...
Written by Suresh Chiplunkar शुक्रवार, 25 नवम्बर 2016 19:23भारत के इतिहास में केवल दो ही प्रधानमंत्री ऐसे हुए हैं, जिन्होंने बड़े नोटों को बंद करने की हिम्मत दिखाई है. पहले थे एक गुजराती मोरारजी देसाई और अब एक दुसरे गुजराती हैं नरेंद्र मोदी. आठ नवम्बर की रात को आठ बजे जब देश के टीवी चैनलों पर यह फ्लैश चमका कि देश के प्रधानमंत्री देश के नाम विशेष सन्देश देंगे, उस समय 99% लोगों के मन में सबसे पहले पाकिस्तान से युद्ध की घोषणा का संशय आया.
हैदराबाद का विलय नहीं हुआ था, उसे मुक्त किया गया था
Written by Suresh Chiplunkar शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2016 11:34इतिहास की पुस्तकों में अक्सर हमें पढ़ाया गया है कि हैदराबाद के निजाम ने सरदार पटेल की धमकी के बाद खुशी-खुशी अपनी रियासत को भारत में “विलय” कर लिया था. जबकि वास्तविकता यह है कि हैदराबाद के निजाम ने अंतिम समय तक पूरा जोर लगाया था कि हैदराबाद “स्वतन्त्र” ही रहे, या फिर तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) की तरह पाकिस्तान का हिस्सा बना रहे.
कहावत है की “आधी छोड़, पूरी को धाए, न आधी मिले न पूरी पाए”. अर्थात हाथ में मौजूद आधी रोटी को छोड़कर पूरी रोटी लपकने के चक्कर में हमेशा ऐसा होता है की हाथ में जो आधी रोटी रखी है, वह भी छिन जाती है. जिस समय भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को गोवा में संघ के कार्यकर्ता काले झण्डे दिखा रहे थे, उस समय भाजपा और संघ के कई विचारकों के दिमाग में यही उक्ति कौंधी होगी.
आजकल तकनीक का ज़माना है. हर व्यक्ति के हाथ में मोबाईल है, स्मार्टफोन है, लैपटॉप है, इंटरनेट है. इन आधुनिक उपकरणों के कारण संवाद और सम्प्रेषण की गति बहुत तेज हो गई है. पलक झपकते कोई भी सन्देश दुनिया के दुसरे छोर पर पहुँच जाता है. लेकिन यह स्पष्ट रूप से देखने में आ रहा है कि मोबाईल अथवा स्मार्टफोन के जरिये भेजे जाने वाले संदेशों में भाषा और व्याकरण की गंभीर त्रुटियाँ हो रही हैं. इस कारण न सिर्फ हिन्दी, बल्कि अंगरेजी भाषा भी भ्रष्ट और विकृत हो रही है. इस बीमारी का प्रमुख कारण है “जल्दबाजी और अधूरा ज्ञान”.