इस्लाम की छवि पूरी दुनिया में बुरी क्यों है… शायद ज़ाकिर नाईक जैसों के कारण?…… Zakir Naik, Islamic Propagandist, Indian Muslims & Secularism

Written by बुधवार, 24 फरवरी 2010 14:25
एक इस्लामिक विद्वान(?) माने जाते हैं ज़ाकिर नाईक, पूरे भारत भर में घूम-घूम कर विभिन्न मंचों से इस्लाम का प्रचार करते हैं। इनके लाखों फ़ॉलोअर हैं जो इनकी हर बात को मानते हैं, ऐसा कहा जाता है कि ज़ाकिर नाईक जो भी कहते हैं या जो उदाहरण देते हैं वह “कुर-आन” की रोशनी में ही देते हैं। अर्थात इस्लाम के बारे में या इस्लामी धारणाओं-परम्पराओं के बारे में ज़ाकिर नाईक से कोई भी सवाल किया जाये तो वह “कुर-आन” के सन्दर्भ में ही जवाब देंगे। कुछ मूर्ख लोग इन्हें “उदार इस्लामिक” व्यक्ति भी मानते हैं, इन्हें पूरे भारत में खुलेआम कुछ भी कहने का अधिकार प्राप्त है क्योंकि यह सेकुलर देश है, लेकिन नीचे दिये गये दो वीडियो देखिये जिसमें यह आदमी “धर्म परिवर्तन” और “अल्पसंख्यकों के धार्मिक अधिकार” के सवाल पर इस्लाम की व्याख्या किस तरह कर रहा है…

पहले वीडियो में उदारवादी(?) ज़ाकिर नाईक साहब फ़रमाते हैं कि यदि कोई व्यक्ति मुस्लिम से गैर-मुस्लिम बन जाता है तो उसकी सज़ा मौत है, यहाँ तक कि इस्लाम में आने के बाद वापस जाने की सजा भी मौत है…नाईक साहब फ़रमाते हैं कि चूंकि यह एक प्रकार की “गद्दारी” है इसलिये जैसे किसी देश के किसी व्यक्ति को अपने राज़ दूसरे देश को देने की सजा मौत होती है वही सजा इस्लाम से गैर-इस्लाम अपनाने पर होती है… है न कुतर्क की इन्तेहा… (अब ज़ाहिर है कि ज़ाकिर नाईक वेदों और कुर-आन के तथाकथित ज्ञाता हैं इसका मतलब कुर-आन में भी ऐसा ही लिखा होगा)। इसका एक मतलब यह भी है कि इस्लाम में “आना” वन-वे ट्रैफ़िक है, कोई इस्लाम में आ तो सकता है, लेकिन जा नहीं सकता (इसी से मिलता-जुलता कथन फ़िल्मों में मुम्बई का अण्डरवर्ल्ड माफ़िया भी दोहराता है), तो इससे क्या समझा जाये? सोचिये कि इस कथन और व्याख्या से कोई गैर-इस्लामी व्यक्ति क्या समझे? और जब कुर-आन की ऐसी व्याख्या मदरसे में पढ़ा(?) कोई मंदबुद्धि व्यक्ति सुनेगा तो वह कैसे “रिएक्ट” करेगा?




अब इसे कश्मीर के रजनीश मामले और कोलकाता के रिज़वान मामले से जोड़कर देखिये… दिमाग हिल जायेगा, क्योंकि ऐसा संदेह भी व्यक्त किया जा रहा है कि लक्स कोज़ी वाले अशोक तोड़ी ने रिज़वान को इस्लाम छोड़ने के लिये लगभग राजी कर लिया था, फ़िर संदेहास्पद तरीके से उसकी लाश पटरियों पर पाई गई और अब मामला न्यायालय में है, इसी तरह कश्मीर में रजनीश की थाने में हत्या कर दी गई, उसके द्वारा शादी करके लाई गई मुस्लिम लड़की अमीना को उसके घरवाले जम्मू से अपहरण करके श्रीनगर ले जा चुके… और उमर अब्दुल्ला जाँच का आश्वासन दे रहे हैं। यानी कि शरीयत के मुताबिक नाबालिग हिन्दू लड़की भी भगाई जा सकती है, लेकिन पढ़ी-लिखी वयस्क मुस्लिम लड़की किसी हिन्दू से शादी नहीं कर सकती। तात्पर्य यह है कि जब इस्लाम के तथाकथित विद्वान ज़ाकिर नाईक जब कुतर्कों के सहारे कुर-आन की मनमानी व्याख्या करते फ़िरते हैं तब “सेकुलर” सरकारें सोती क्यों रहती हैं? वामपंथी बगलें क्यों झाँकते रहते हैं? अब एक दूसरा वीडियो भी देखिये…





इस वीडियो में ज़ाकिर नाईक साहब फ़रमाते हैं कि मुस्लिम देशों में किसी अन्य धर्मांवलम्बी को किसी प्रकार के मानवाधिकार प्राप्त नहीं होने चाहिये, यहाँ तक कि किसी अन्य धर्म के पूजा स्थल भी नहीं बनाये जा सकते, सऊदी अरब और “etc.” का उदाहरण देते हुए वे कुतर्क देते रहते हैं, अपने सपनों में रमे हुए ज़ाकिर नाईक लगातार दोहराते हैं कि इस्लाम ही एकमात्र धर्म है, बाकी सब बेकार हैं, और मजे की बात यह कि फ़िर भी “कुर-आन” की टेक नहीं छोड़ते। ज़ाकिर नाईक के अनुसार मुस्लिम लोग तो किसी भी देश में मस्जिदें बना सकते हैं लेकिन इस्लामिक देश में चर्च या मन्दिर नहीं चलेगा। यदि कुर-आन में यही सब लिखा है तो समझ नहीं आता कि फ़िर काहे “शान्ति का धर्म” वाला राग अलापते रहते हैं? और जो भी मुठ्ठी भर शान्तिप्रिय समझदार मुसलमान हैं वह ऐसे “विद्वान”(?) का विरोध क्यों नहीं करते? वीडियो को पूरा सुनिये और सोचिये कि ज़ाकिर नाईक और तालिबान में कोई फ़र्क नज़र आता है आपको?

पाकिस्तान और अन्य इस्लामिक देशों से लगातार खबरें आती हैं कि वहाँ अल्पसंख्यकों पर अत्याचार होते हैं, मलेशिया में हिन्दुओं पर ज़ुल्म होते हैं, पाकिस्तान में हिन्दू जनसंख्या घटते-घटते 2 प्रतिशत रह गई है, हिन्दू परिवारों की लड़कियों को जबरन उठा लिया जाता है और इन परिवारों से जज़िया वसूल किया जाता है और हाल ही में पाकिस्तान में तालिबान द्वारा दो सिखों के सर कलम कर दिये गये, क्योंकि उन्होंने इस्लाम कबूल करने से मना कर दिया था, ऐसा लगता है कि यह सब ज़ाकिर नाईक की शिक्षा और व्याख्यानों का असर है। ऐसे में भारतीय मुसलमानों द्वारा ऐसी घटनाओं की कड़ी निंदा तो दूर, इसके विरोध में दबी सी आवाज़ भी नहीं उठाई जाती, ऐसा क्यों होता है? लेकिन ज़ाकिर नाईक जैसे “समाज-सुधारक” और “व्याख्याता” मौजूद हों तब तो हो चुका उद्धार किसी समाज का…। बढ़ते प्रभाव (या दुष्प्रभाव) की वजह से आम लोगों को लगने लगा है कि सचमुच कहीं इस्लाम वैसा ही तो नहीं, जैसा अमेरिका, ब्रिटेन अथवा इज़राइल सारी दुनिया को समझाने की कोशिश कर रहे हैं… और पाकिस्तान, लीबिया, सोमालिया, जैसे देश उसे अमलीजामा पहनाकर दिखा भी रहे हैं…


Zakir Naik, Islam and Zakir Naik, Propaganda of Islam and Terrorism, Quran and its Preaches, ज़ाकिर नाईक, इस्लाम की मनमानी व्याख्या, इस्लामी प्रचार और ज़ाकिर नाईक, कुरान और आतंकवाद, Blogging, Hindi Blogging, Hindi Blog and Hindi Typing, Hindi Blog History, Help for Hindi Blogging, Hindi Typing on Computers, Hindi Blog and Unicode
Read 2391 times Last modified on शुक्रवार, 30 दिसम्बर 2016 14:16
Super User

 

I am a Blogger, Freelancer and Content writer since 2006. I have been working as journalist from 1992 to 2004 with various Hindi Newspapers. After 2006, I became blogger and freelancer. I have published over 700 articles on this blog and about 300 articles in various magazines, published at Delhi and Mumbai. 


I am a Cyber Cafe owner by occupation and residing at Ujjain (MP) INDIA. I am a English to Hindi and Marathi to Hindi translator also. I have translated Dr. Rajiv Malhotra (US) book named "Being Different" as "विभिन्नता" in Hindi with many websites of Hindi and Marathi and Few articles. 

www.google.com