YSR की पुत्री शर्मिला के पति अनिल कुमार उर्फ़ एवेंजेलिस्ट “बेंजामिन” और ईसाई धर्मान्तरण… YSR Family, Evangelism, Church in Andhra
Written by Super User सोमवार, 11 जनवरी 2010 13:10
जैसा कि अब लोग धीरे-धीरे जान चुके हैं कि आंध्र के दिवंगत मुख्यमंत्री “सेमुअल” राजशेखर रेड्डी एक “नकली रेड्डी” और असली पक्के एवेंजेलिस्ट ईसाई थे, फ़िलहाल उनका बेटा जगनमोहन तो फ़िलहाल केन्द्र में सोनिया की नाक में दम किये हुए है, उनके दामाद “बेंजामिन” अनिल कुमार भी एक एवेंजेलिस्ट ईसाई (कट्टर धर्म प्रचारक) हैं। दुःख की बात यह है कि शादी से पहले अनिल कुमार एक ब्राह्मण थे।
इस पोस्ट में प्रस्तुत वीडियो में अनिल कुमार बड़ी बेशर्मी से उनके ब्राह्मण से ईसाई बनने के बारे में बता रहे हैं, इस वीडियो की शूटिंग दक्षिण के किसी मन्दिर में की गई है और इसमें दिखाया गया है कि वे बचपन में मन्दिर में सोते थे और वहाँ की सेवा किया करते थे। अनिल कुमार बताते हैं कि उन्होंने बचपन में अपने माता-पिता से भगवान, पुनर्जन्म और संस्कृति के बारे में पूछा था, लेकिन उन्हें कोई संतोषजनक(?) जवाब नहीं मिला, जबकि जब वे जवान होकर चर्च में जाने और बाइबल पढ़ने लगे तभी उनके “ज्ञानचक्षु” अचानक खुल गये। हालांकि इस वीडियो की शूटिंग में मन्दिर दिखाने की कतई आवश्यकता नहीं थी, लेकिन फ़िर YSR परिवार की हिन्दू धर्म के प्रति घृणा कैसे प्रदर्शित होती? हिन्दुओं को नीचा दिखाना, उनके धर्म-परम्पराओं-संस्कृति की आलोचना करना और मजाक उड़ाना, यही तो “सेकुलरिज़्म” की पहली शर्त है।
YSR की बेटी शर्मिला, रिश्ते में अपने “मामा” अनिल कुमार नामक ब्राह्मण युवक पर तभी से फ़िदा थी जब वह उसे अमेरिका में मिली थी, भारत आकर उनकी दोस्ती प्यार में बदल गई और YSR के प्रकोप से बचने के लिये दोनों ने भागकर शादी कर ली और वारंगल जिले में जाकर छिप गये। YSR इतने बड़े “सेकुलर” थे कि उन्हें ब्राह्मण जमाई चलने वाला नहीं था, इसलिये हैरान-परेशान शर्मिला ने भोले-भाले अनिल कुमार पर ऐसा जादू चलाया कि वे ईसाई बन बैठे।
जब कोई व्यक्ति धर्म परिवर्तन करता है तो उस नये धर्म के प्रति प्रतिबद्धता ज़ाहिर करने के लिये अत्यधिक धार्मिक बनने का प्रयास करता है, यही कुछ अनिल कुमार के साथ हुआ। “बेंजामिन” अनिल कुमार बनने के बाद जल्दी ही वे पक्के धर्म प्रचारक बन गये। वे जमकर “चंगाई सभाएं”(?) आयोजित करते हैं और सरकारी मदद पर आंध्र-तेलंगाना के गरीबों को फ़ुसलाकर ईसाई बनाने के काम में लगे हुए हैं। वीडियो के अन्त में आप देखेंगे किस तरह अनिल कुमार सिर पर हाथ रखकर जादूगरनुमा मंत्र आदि फ़ेरते हैं, किस तरह सभाओं में “बाहरी हवा से बाधित”(?) गरीबों पर “पवित्र जल” छिड़ककर उन्हें ठीक(?) किया जाता है आदि-आदि, लेकिन यही “कर्मकाण्ड” हिन्दू धर्मगुरु करें तो वह पिछड़ेपन और दकियानूस की श्रेणी में आ जाता है अर्थात यदि हिन्दू करे तो वह अंधविश्वास और जड़ता, लेकिन अनिल कुमार और YSR करे तो चंगाई और गरीबों का भला, “वारी जाऊं बलिहारी जाऊं ऐसे सेकुलरिज़्म पर…”।
वीडियो की सीधी लिंक यह है, http://www.youtube.com/watch?v=oF_Gz2WHorw
विश्व प्रसिद्ध तिरुपति-तिरुमाला मन्दिर जो कि विश्व का सबसे अधिक धनी मन्दिर है, वहाँ भक्तों-दर्शनार्थियों की लम्बी-लम्बी कतारें लगती हैं। अमूमन उन कतारों के बीच एक-दो महिलाएं "टाइम-पास" के नाम पर ईसाई साहित्य मुफ़्त बाँटते हुए दिखाई देती हैं, उत्सुकतावश उनके बारे में जानकारी लेने पर पता चलता है कि वे इसी तिरुपति मन्दिर की कर्मचारी हैं। अर्थात जो महिला तिरुमाला देवस्थानम की कर्मचारी है, जिसकी दाल-रोटी इस संस्थान के रुपये से चलती है, वह औरत उसी मन्दिर में भक्तों के बीच ईसाई धर्म के पेम्फ़लेट बाँट रही है… इससे बढ़िया बात मिशनरियों के लिये क्या हो सकती है। यही तो सेमुअल राजशेखर रेड्डी (जो कि "सेवन्थ डे एडवेन्टिस्ट क्रिस्चियन थे) की कलाकारी है। सेमुअल रेड्डी जैसे कई "सेकुलर" हैं जो हिन्दू मन्दिरों की सम्पत्ति पर अप्रत्यक्ष कब्जा जमाये बैठे हैं, आप सोचते हैं कि आपने मन्दिर में दान दिया है, जबकि असल में वह दान आंध्रप्रदेश सरकार के खाते में जाता है, और उस पैसे से मस्जिदों को अनुदान और ईसाईयों को यरुशलम जाने के लिये सब्सिडी दी जाती है…। एक बात बताईये, आप में से कितने लोग जानते हैं कि तिरुपति-तिरुमाला देवस्थानम में काम करने वाले 60 प्रतिशत कर्मचारी ईसाई हैं? मेरा दावा है कि अधिकांश लोग नहीं जानते होंगे… यही तो "सेकुलरिज़्म" है…
आंध्र-तेलंगाना में दशकों के निज़ाम के शासनकाल में भी जितने हिन्दू धर्म परिवर्तित करके मुस्लिम नहीं बने थे, उससे अधिक तो 10 साल में इस एक YSR परिवार ने हिन्दू से ईसाई बना दिये हैं, अब आपको समझ में आया होगा कि उनके शव को ढूंढने के लिये हेलीकॉप्टर, विमान, रॉकेट, उपग्रह, सोनिया-अमेरिका यूं ही नहीं बेचैन हो रहे थे। यही तो दिल्ली की “मैडम” का जलवा है, जिनके गीत गाने में हमारा "भाण्ड-गवैया मीडिया" दिन-रात लगा रहता है, कोरस में साथ देने के लिये सेकुलर पत्रकार और सेकुलर ब्लॉगर तो हैं ही…
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नोट – मैंने एक बार www.Scribd.com पर धर्म परिवर्तन विषय पर अमेरिका में प्रदान की गई एक Ph.D. देखी थी, लेकिन उसका लिंक मुझे कहीं मिल नहीं रहा। उस Ph.D. थेसिस के Content (विषय सूची) में “धर्म परिवर्तन कैसे करवाया जाता है…”, “धर्म परिवर्तन हेतु आसान लक्ष्य कैसे ढूंढे जायें…”, “भारत तथा अन्य विकासशील देशों में धर्म परिवर्तन का क्या स्कोप है…” आदि बिन्दु दिये हुए हैं। इस थीसिस को मैं “सेव” करना भूल गया, यदि किसी सज्जन को वह Ph.D. दिखे या मिले तो उसकी लिंक भी अपनी टिप्पणी में चेप दें, ताकि सभी को पता चले कि उधर धर्म परिवर्तन पर डॉक्टरेट भी मिलती है जबकि “मूर्ख हिन्दू” अभी भी सोये हुए हैं… क्योंकि उनके घर में “सेकुलर” गद्दार भरे पड़े हैं। कभी भी कोई कहे कि मैं "सेकुलर" हूं, तब तड़ से जान जाईये कि वह असल में कहना चाहता है कि "मैं हिन्दू विरोधी हूं…"।
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YSR की बेटी शर्मिला, रिश्ते में अपने “मामा” अनिल कुमार नामक ब्राह्मण युवक पर तभी से फ़िदा थी जब वह उसे अमेरिका में मिली थी, भारत आकर उनकी दोस्ती प्यार में बदल गई और YSR के प्रकोप से बचने के लिये दोनों ने भागकर शादी कर ली और वारंगल जिले में जाकर छिप गये। YSR इतने बड़े “सेकुलर” थे कि उन्हें ब्राह्मण जमाई चलने वाला नहीं था, इसलिये हैरान-परेशान शर्मिला ने भोले-भाले अनिल कुमार पर ऐसा जादू चलाया कि वे ईसाई बन बैठे।
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वीडियो की सीधी लिंक यह है, http://www.youtube.com/watch?v=oF_Gz2WHorw
विश्व प्रसिद्ध तिरुपति-तिरुमाला मन्दिर जो कि विश्व का सबसे अधिक धनी मन्दिर है, वहाँ भक्तों-दर्शनार्थियों की लम्बी-लम्बी कतारें लगती हैं। अमूमन उन कतारों के बीच एक-दो महिलाएं "टाइम-पास" के नाम पर ईसाई साहित्य मुफ़्त बाँटते हुए दिखाई देती हैं, उत्सुकतावश उनके बारे में जानकारी लेने पर पता चलता है कि वे इसी तिरुपति मन्दिर की कर्मचारी हैं। अर्थात जो महिला तिरुमाला देवस्थानम की कर्मचारी है, जिसकी दाल-रोटी इस संस्थान के रुपये से चलती है, वह औरत उसी मन्दिर में भक्तों के बीच ईसाई धर्म के पेम्फ़लेट बाँट रही है… इससे बढ़िया बात मिशनरियों के लिये क्या हो सकती है। यही तो सेमुअल राजशेखर रेड्डी (जो कि "सेवन्थ डे एडवेन्टिस्ट क्रिस्चियन थे) की कलाकारी है। सेमुअल रेड्डी जैसे कई "सेकुलर" हैं जो हिन्दू मन्दिरों की सम्पत्ति पर अप्रत्यक्ष कब्जा जमाये बैठे हैं, आप सोचते हैं कि आपने मन्दिर में दान दिया है, जबकि असल में वह दान आंध्रप्रदेश सरकार के खाते में जाता है, और उस पैसे से मस्जिदों को अनुदान और ईसाईयों को यरुशलम जाने के लिये सब्सिडी दी जाती है…। एक बात बताईये, आप में से कितने लोग जानते हैं कि तिरुपति-तिरुमाला देवस्थानम में काम करने वाले 60 प्रतिशत कर्मचारी ईसाई हैं? मेरा दावा है कि अधिकांश लोग नहीं जानते होंगे… यही तो "सेकुलरिज़्म" है…
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