इंदौर वैष्णव पॉलिटेक्निक : अनदेखी, आशंकाएँ और अव्यवस्था

Written by सोमवार, 27 फरवरी 2017 11:09

भारत शासन की ओपन डोर पॉलिसी के अंतर्गत सन् 1962 में श्री वैष्णव पोलिटेक्निक महाविद्यालय, इन्दौर की स्थापना की गई थी. इस संस्था को 17.02 एकड भूमि शहर के पश्चिमी भाग में प्राइम लोकेशन पर (एम.ओ.जी.लाईन्स, महू नाका, इन्दौर) में शासन द्वारा लीज पर “केवल शैक्षणिक उपयोग हेतु” (और केवल पोलिटेक्निक हेतु) दी गई है।

संस्था की स्थापना के कुछ वर्षो तक केन्द्र एवं राज्य शासन ने अपने निर्धारित अंशों में संस्था को शत-प्रतिशत वित्तीय सहयोग दिया लेकिन इसके बाद आज तक राज्य शासन द्वारा ही इस संस्था को समस्त अनुदान दिया जा रहा है। संस्था की जमीन, भवन निर्माण, भवन रखरखाव, प्रयोगशालाओं में स्थापित करोडों रुपये के उपकरण, पुस्तकें, फर्नीचर, स्टेशनरी आदि सम्पूर्ण वस्तुओं का क्रय भी राज्य शासन द्वारा स्वीकृत अनुदान की राशि से शासकीय नियमों के अनुसार ही किया जाता है. जैसा कि पहले बताया गया इस तकनीकी शिक्षण संस्था की सम्पूर्ण जमीन एवं सम्पत्ति शासकीय ही है.

असल में इस संस्था में संचालित विभिन्न नियमित डिप्लोमा/ अंशकालीन डिप्लोमा पाठ्यक्रमों का निर्धारण, उनकी अवधि, प्रवेश क्षमता आदि का निर्धारण ए.आई.सी.टी.ई की स्वीकृति के अनुसार राज्य शासन द्वारा किया जाता है और इसके लिए समस्त अनुदान भी राज्य शासन द्वारा ही दिया जाता है. SC/ST और OBC छात्र-छात्राओं के लिए प्रवेश में आरक्षण आदि का निर्धारण राज्य शासन द्वारा शासन की नीति के अनुसार ही किया जाता है. कहने का मतलब ये है कि तकनीकी और सैद्धांतिक रूप से देखा जाए वैष्णव पॉलीटेक्निक वास्तव में एक शासकीय पॉलिटेक्निक कॉलेज ही है, लेकिन इस पर “वैष्णव ट्रस्ट” नामक ट्रस्ट का कब्ज़ा है. 

अब वर्तमान हालात ये हैं कि मध्यप्रदेश के अन्य जिलों में स्थापित विभिन्न शासकीय पॉलिटेक्निक कॉलेजों में तो फीस लगभग आठ हजार रूपए है, लेकिन इंदौर के इस वैष्णव पॉलिटेक्निक में फीस 22,500 रूपए है, इस कारण मध्यप्रदेश के दूरदराज इलाकों से आने वाले गरीब छात्रों की पहुँच से यह कॉलेज बाहर हो जाता है. PPT के जरिये प्रवेश लेने वाले अधिकाँश छात्र मेधावी इंदौर में रहकर पढ़ाई करने को इच्छुक होते हैं, ताकि उन्हें आगे अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश की सुविधा रहे. यदि इस कॉलेज को “आधिकारिक रूप से शासकीय” कर दिया जाए तो इसकी फीस भी घटेगी और पीथमपुर-देवास जैसे औद्योगिक इलाकों के जॉब मार्केट में इसकी साख भी बढ़ेगी. आज भी इस कॉलेज से 80% प्लेसमेंट हो रहा है. ओपनडोर पॉलिसी के अन्तर्गत स्थापित आठ अनुदान प्राप्त अशासकीय पोलिटेक्निक महाविद्यालयों जैसे दमोह, बालाघाट, सिवनी, अशोक नगर, हरदा, सनावद, धमतरी, खुरई को पूर्णत: शासकीय किया जा चुका है. उक्त अशासकीय अनुदान प्राप्त पोलिटेक्निक संस्थाए भी श्री वैष्णव पोलिटेक्निक महाविद्यालय के समान ही शासन की ''ओपन-डोर-पॉलिसी के अन्तर्गत स्थापित की गई थी, जिन्हें बाद में नीतिगत निर्णय के अन्तर्गत शासनाधीन किया गया है. इस प्रकार प्रदेश के कुल 63 पोलिटेक्निक महाविद्यालयों में से मात्र श्री वैष्णव पोलिटेक्निक महाविद्यालय ही शासनाधीन होने से वंचित रह गया है... इसका क्या रहस्य है, यह आज तक किसी को समझ नहीं आया.

सूत्र बताते हैं कि, चूँकि यह कॉलेज इंदौर जैसे व्यावसायिक शहर के बीचोंबीच बेशकीमती जमीन पर स्थित है, इसलिए संभवतः ट्रस्ट से सम्बन्धित राजनेताओं, भूमाफिया और इंजीनियरिंग कॉलेज माफिया की निगाहें भी इस पर टिकी हैं. हालाँकि इस वैष्णव पोलिटेक्निक इन्दौर को भी उपरोक्त नीति के अन्तर्गत शासनाधीन किया जा सकता है। इस हेतु शासन को पृथक से कोई नई नीति बनाने की आवश्यकता नहीं होगी। केवल अनुमति प्रदान करना है एवं शासनाधीन करने पर शासन पर कोई अतिरिक्त वित्तीय भार नहीं आएगा. जब यह कार्य आसानी से किया जा सकता है तो फिर कहाँ देर हो रही है, यह विचारणीय है. एक तरफ तो प्रधानमंत्री मोदीजी “स्किल इण्डिया” की बातें कर रहे हैं और दूसरी तरफ मध्यप्रदेश के एकमात्र महानगर इंदौर में गरीब और मेधावी छात्रों के लिए स्थित वैष्णव पॉलिटेक्निक की न सिर्फ इमारत जर्जर हुई जा रही है, बल्कि बच्चों से अधिक फीस लेकर उनका शोषण किया जा रहा है. इस अधिक फीस (लगभग तीन गुना) को लेकर छात्रों में भी भारी रोष है. यदि मध्यप्रदेश में “स्किल इण्डिया” को वास्तव में फलीभूत होना है, तो वैष्णव पॉलिटेक्निक कॉलेज को राज्य शासन के अधीन करके इसमें फीस घटानी होगी, क्योंकि इंदौर शिक्षा, व्यवसाय, उद्योग का एक प्रमुख केन्द्र है. ऐसे में इस सर्वश्रेष्ठ तकनीकी कॉलेज की यह अनदेखी समझ से परे है. विभिन्न प्रस्तावों में कई बार IAS अधिकारी इस कॉलेज को शासन के अधीन लेने की अनुशंसा कर चुके हैं, लेकिन संभवतः कुछ “राजनैतिक स्वार्थ” इसके आड़े आ रहे हैं. जब खुद शासन अपनी जेब से खर्च करके नए-नए पोलिटेक्निक खोलने की कवायद कर रहा है तो केवल इस संस्था के साथ यह सौतेला व्यवहार क्यों हो रहा है, जबकि यहाँ तो पहले से ही सारा इन्फ्रास्ट्रक्चर मौजूद है, शासकीय अधिग्रहण की अनुशंसा मौजूद है, पूर्णतः शासन द्वारा नियुक्त शैक्षणिक स्टाफ भी है. जानकार बताते हैं कि इस संस्था के यह अनदेखी जानबूझकर की जा रही है, ताकि इसे येन-केन-प्रकारेण शासन के हाथों से छीन कर ट्रस्ट को पूरा कब्ज़ा देना है. यह इसलिए भी खतरनाक है, क्योंकि ट्रस्टियों के अपने व्यावसायिक हित इस मामले से जुड़े हुए हैं, और उनके भी अपने निजी इंजीनियरिंग कॉलेज हैं. ज़ाहिर है कि प्रदेश के इस एकमात्र पॉलिटेक्निक का सीधा-सीधा मामला केवल इसीलिए उलझा हुआ है, क्योंकि इसमें कई पक्षों के राजनैतिक, व्यावसायिक स्वार्थ जुड़े हैं, अन्यथा यह कॉलेज काफी पहले ही शासकीय अधिग्रहण में आ चुका होता.

संक्षेप में बात यह है कि शासन की करोडों रुपयों की सम्पत्ति और जमीन की रक्षा हेतु तथा देश के अग्रणी तथा प्रदेश के इस सर्वश्रेष्ठ पोलिटेक्निक संस्था के अस्तित्व, दलित, आदिवासी तथा गरीब तबके के छात्रों के हितों, शिक्षकों तथा कर्मचारियों के हितों को दृष्टिगत रखते हुए इस संस्था को शासन द्वारा अधिग्रहित कर शासकीय घोषित कर शासन द्वारा संचालित करना सर्वथा न्यायोचित एवं विधि सम्मत होगा। यह उम्मीद की जाती है कि माननीय प्रधानमंत्री, मानव संसाधन मंत्री और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह गरीब छात्रों की बात मानेंगे, और इस महत्त्वपूर्ण संस्थान को भूमाफिया व शिक्षा माफिया के कब्जे में जाने से रोकेंगे.

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