एक अच्छे सुगम संगीत श्रोता की तरह बात करूं तो एसपी बालासुब्रमण्यम के रूप में बाॅलीवुड में गूंजने वाली दक्षिण भारत की वो पहली आवाज थी, जो न सिर्फ रेडियो बल्कि टीवी के माध्यम से भी हमारे दिलों तक धंस गई थी। ऐसा स्वर, जिसमें बालू रेत की गंध और अनगढ़ घरौंदे सा आत्मीय तत्व था।

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स्मरण करने का प्रयास कीजिए, कि आपने पिछले दस वर्षों में हिन्दी फिल्मों में कितने भजन गीत देखे या सुने हैं? मस्तिष्क पर ज़ोर लगाना पड़ेगा ना!!! अच्छा उसे छोड़िये, यह याद करने का प्रयास कीजिये कि पिछले दस वर्षों में हिन्दी फिल्मों में आपने जन्माष्टमी, रामनवमी, महाशिवरात्रि से सम्बंधित कितने गीत सुने हैं??

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गुरुवार, 27 सितम्बर 2007 16:54

"लिफ़्ट" में फ़िल्माये दो मधुर गीत

Hindi film songs in LIFT

हिन्दी फ़िल्मों ने हमें लाखों मधुर गीत दिये हैं, महान गीतकारों और संगीतकारों ने एक से बढ़कर एक गाने लिखे और निर्माता-निर्देशकों ने उन्हें अपने अनोखे अंदाज में फ़िल्माया भी है। हिन्दी फ़िल्मों में लगभग प्रत्येक अवसर, हरेक जगह और हरेक चरित्र पर गीत फ़िल्माये जा चुके हैं। जंगल, बगीचा, घर, घर की छत, डिस्को, क्लब, मन्दिर, मयखाना, तुलसी का पौधा, टेलीफ़ोन, आटो, बस, रिक्शा, तांगा.... गरज कि ऐसी कोई जगह नहीं है जहाँ फ़िल्म निर्माताओं ने गीत को फ़िल्माने का मौका हाथ से जाने दिया हो। सहज ही मुझे दो मधुर गीत याद आते हैं जो बहुमंजिला इमारत की “लिफ़्ट” में फ़िल्माये गये हैं (“लिफ़्ट” के लिये सरलतम हिन्दी शब्द की खोज में भी हूँ)।

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हिन्दी फ़िल्मों ने हमें कई-कई अविस्मरणीय गीत दिये हैं। फ़िल्म संगीतप्रेमी सोते-जागते, उठते-बैठते इन गीतों को गुनगुनाते रहते हैं। हमारे महान गीतकारों और फ़िल्मकारों ने जीवन के हरेक मौके, अवसर और उत्सव के लिये गीत लिखे हैं और खूब लिखे हैं। जन्म, किशोरावस्था, युवावस्था, प्रेम, विवाह, बिदाई, बच्चे, बुढापा, मौत... सभी-सभी के लिये गीत हमें मिल जायेंगे।

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हिन्दी फ़िल्मों में अक्सर गीतों को लिखते समय या उनके चित्रीकरण के समय कोई जरूरी नहीं है कि उनका आपस में कोई तालमेल हो ही...हिन्दी फ़िल्मी गीतों के इतिहास को देखें तो हिन्दी के शब्दों का अधिकतम प्रयोग करने वाले गीतकार कम ही हुए हैं, जैसे भरत व्यास, प्रदीप आदि । यह लगभग परम्परा का ही रूप ले चुका है कि उर्दू शब्दों का उपयोग तो गीतों में होगा ही (आजकल तो अंग्रेजी के शब्दों के बिना हिन्दी गीत नहीं बन पा रहे गीतकारों से) इसलिये यह गीत कुछ "अलग हट के" बनता है, क्योंकि इस गीत में शुद्ध हिन्दी शब्दों का खूबसूरती का प्रयोग किया गया है, और कई लोगों को जानकर आश्चर्य होगा कि गीत लिखा है वर्मा मलिक साहब ने.

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हिन्दी फ़िल्मों में शैलेन्द्र और शंकर-जयकिशन की जोडी़ ने कई अदभुत गीत दिये हैं । शैलेन्द्र तो आसान शब्दों में अपनी बात कहने के लिये मशहूर रहे हैं । उन्होंने बहुत ही कम क्लिष्ट शब्दों का उपयोग किया और जब धुनों पर लिखा तो ऐसे सरल शब्दों में, कि एक आम आदमी उसे आसानी से गा सके और उससे भी बडी़ बात यह कि समझ सके । गुलजार की तरह कठिन शब्द, या साहिर / शकील की तरह कठिन उर्दू शब्दों के उपयोग से वे बचे हैं ।

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शुक्रवार, 22 जून 2007 10:59

बरसात पर एक कालजयी गाना

देश के कुछ हिस्सों में बारिश ने अपनी खुश-आमदीद दर्ज करवा दी है, और कुछ में सौंधी खुशबुओं ने समाँ बाँधना शुरु कर दिया है । बरसात के मौसम पर हिन्दी फ़िल्मों मे दर्जनों गीत हैं, बारिश तो मानो गीतकारों के लिये एक "पार्टी" की तरह होती है, एक से बढकर एक गीत लिखे गये बरसात पर, लेकिन जब भी झूम कर बारिश होती है, यह गीत सबसे पहले जुबाँ पर आता है ।

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मंगलवार, 12 जून 2007 11:06

एक फ़ुसफ़ुसाता सा मधुर गीत...

यह गीत कुछ अलग हट कर है, क्योंकि इस गीत में संवादों की अधिकता तो है ही, लेकिन संगीत भी बहुत ही मद्धिम है और संवादों के अलावा जो गीत के बोल हैं वे भी लगभग बोलचाल के अन्दाज में ही हैं । यह गीत इतने धीमे स्वरों में गाया गया है कि आश्चर्य होता है कि इतने नीचे सुरों में भी रफ़ी साहब इतने सुरीले और मधुर कैसे हो सकते हैं (यही तो रफ़ी-लता की महानता है)। यह गीत एक तो कम बजता है और जब भी बजता है तो बहुत ध्यान से सुनना पडता है...।

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गुरुवार, 07 जून 2007 10:36

येसुदास के दो मधुर गीत

दक्षिण भारत के एक और महान गायक डॉ. के.जे.येसुदास (KJ Yesudas) के दो अनमोल गीत यहाँ पेश कर रहा हूँ । पहला गीत है फ़िल्म "आलाप" का - बोल हैं "कोई गाता मैं सो जाता...", गीत लिखा है हरिवंशराय बच्चन ने, संगीत है जयदेव का । यह एक बेहतरीन गीत है और जयदेव जो कि कम से कम वाद्यों का प्रयोग करते हैं, इस गीत में भी उन्होंने कमाल किया है । प्रस्तुत दोनों गीत यदि रात के अँधेरे में अकेले में सुने जायें तो मेरा दावा है कि अनिद्रा के रोगी को भी नींद आ जायेगी ।

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सोमवार, 28 मई 2007 11:02

Indivar : Nadiya Chale Chale re Dhara Chanda Chale

इन्दीवर : नदिया चले, चले रे धारा


यह गीत उन लोगों के लिये है जो हमेशा हिन्दी फ़िल्मी गीतों की यह कर आलोचना करते हैं कि "ये तो चलताऊ गीत होते हैं, इनमें रस-कविता कहाँ", कविता की बात ही कुछ और है, हिन्दी फ़िल्मी गाने तो भांडों - ठलुओं के लिये हैं", लेकिन इन्दीवर एक ऐसे गीतकार हुए हैं जो कविता और शब्दों को हमेशा प्रधानता देते रहे हैं, उनके गीतों में अधिकतर हिन्दी के शब्दों का प्रयोग हुआ है और साहिर, शकील और हसरत के वजनदार उर्दू लफ़्जों की शायरी के बीच भी इन्दीवर हमेशा खम ठोंक कर खडे रहे । इन्दीवर का जन्म झाँसी(उप्र) में हुआ उनका असली नाम था - श्यामलाल राय । इनका शुरुआती गीत "बडे अरमानों से रखा है बलम तेरी कसम" बहुत हिट रहा और कल्याणजी-आनन्दजी के साथ इनकी जोडी खूब जमी ।

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