बुधवार, 07 नवम्बर 2012 17:35

Paid Media, BJP, Secularism and Nitin Gadkari

बिकाऊ मीडिया, नितिन गडकरी, भाजपा और छद्म-सेकुलरिज़्म… 


भाजपाईयों… जब आपको पता है कि मीडिया बिका हुआ है, तो "उनके द्वारा तय किए गए मुद्दों" और "उनकी पिच" पर खेलते ही क्यों हो???

अपने मुद्दे बनाओ, अपनी पिच पर अपनी गेंद से खेलो…। ऐसी स्थिति में मीडिया का निगेटिव प्रचार भी आपके फ़ायदे का सिद्ध होगा… नहीं समझे??? एक-दो उदाहरण देकर समझाता हूँ…

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1) जरा सोचिए कि यदि गडकरी या सुषमा स्वराज, सिर्फ़ 1000-2000 कार्यकर्ताओं के साथ हैदराबाद के भाग्यलक्ष्मी मन्दिर के सामने धरना देकर, ओवैसीयों और मुस्लिम इत्तेहादुल मुसलमीन की दबंगई का विरोध करते और उनकी गिरफ़्तारी की माँग करते… तो ???

(मीडिया का "सनातन भाजपा विरोधी रिएक्शन", फ़िर उस मुद्दे को राष्ट्रीय रंग मिलता, उस पर भाजपा के नेताओं के बयान होते… कैसा शानदार माहौल बनता? गडकरी-वडकरी सब भूल जाते लोग…)

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2) या फ़िर भाजपा की दूसरी पंक्ति का ही कोई नेता मुम्बई में BCCI के दफ़्तर के सामने, पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलने का विरोध करते हुए, एकाध-दो छोटे उग्र प्रदर्शन ठोंक देता…। अगले चरण में माहौल देखकर शिवसेना के साथ मिलकर एक जंगी प्रदर्शन कर लिया जाता… तो कैसा रहता???

ज़ाहिर है कि "सेकुलरिज़्म" के बवासीर से पीड़ित और कांग्रेसी चमचाई के बुखार में तपा हुआ मीडिया "अमन की आशा" की रागिनियाँ गाता…, आम जनता तो पहले ही कसाब और 26/11 के गुस्से में है ही… तो किसका फ़ायदा होता????
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संक्षेप में तात्पर्य यह है कि मौके तो बहुत हैं… सिर्फ़ "अपनी पिच" पर गेम खिलाओ और मैच जीतो…
मीडिया के मूर्खों का ध्यान भटकाने के लिए कुछ खास प्रयत्न नहीं करना है, बस भाजपा के बड़े नेताओं को "सेकुलरिज़्म" नाम की बीमारी से उबरना है… फ़िर तो पिच भी अपनी होगी, गेंद भी अपनी होगी… और मीडिया के तमाम "पारिवारिक चमचे" हमारे द्वारा तय किए गए मुद्दों पर खेलते नज़र आएंगे… 
मीडिया और कांग्रेस मिलकर भाजपा को वापस अपने पुराने स्वरूप में आने की ओर धकेल रहे हैं…। पिछले 10 साल (बल्कि 15 साल) में भाजपा ने "अच्छा बच्चा" बनने की असफ़ल कोशिश कर ली है… लेकिन अभी भी "सेकुलरिज़्म" और मुस्लिम वोटों का लोभ नहीं छूट रहा है इनका… (जो इन्हें कभी नहीं मिलने वाले)…। 3000 सिखों की हत्या करके भी कांग्रेस सेकुलर है, 3 लाख पण्डितों को भगाकर भी PDP तक सेकुलर है, लेकिन भाजपा "साम्प्रदायिक" है…। फ़िर भी इन्हें अक्ल नहीं आ रही…
आडवाणी ने हवाला डायरी में नाम आते ही इस्तीफ़ा दिया था… क्या इस ईमानदारी प्रदर्शन से उन्हें वोट मिले??? नहीं मिले। सेकुलर बुद्धिजीवियों ने झूठी तारीफ़ें करके, मुस्लिम वोटों का लालच दिखाकर, "अच्छा बच्चा" बनकर दिखाने का भ्रम देकर, भाजपा नेतृत्व को "भटका" दिया है, धोबी का कुत्ता बना दिया है… और यही इनकी गिरावट का कारण है…। न तो ये बुद्धिजीवी और न ही मुसलमान, कोई भी भाजपा को वोट देने वाला नहीं है, सिर्फ़ सलाह देते हैं ये लोग…। 

लाख टके का सवाल है कि क्या ऐसा करने की हिम्मत भाजपा के ड्राइंगरूमी केन्द्रीय नेताओं में है???
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