“असली दलितों-पिछड़ों” के लिये खतरनाक संकेत मिलने शुरु हो गये हैं… SC-ST Reservation and Minorities Education in India
Written by Super User गुरुवार, 03 मार्च 2011 12:19
कुछ ही दिन पूर्व अल्पसंख्यक शिक्षण संस्था आयोग (NCMEI) के अध्यक्ष एमएसए सिद्दिकी ने एक विवादास्पद निर्णय के तहत दिल्ली के जामिया मिलिया विवि को “अल्पसंख्यक संस्थान” का दर्जा दे डाला। श्री सिद्दीकी साहब ने अपने इस निर्णय के पीछे जो तर्क दिया है वह भी अपनेआप में आपत्तिजनक है, कहते हैं “इस बात में कोई शंका नहीं है कि जामिया विवि (Jamia Milia) की स्थापना मुसलमानों द्वारा, मुसलमानों के फ़ायदे के लिये की गई थी और इस विवि ने कभी भी अपनी “अल्पसंख्यक पहचान” को खोने नहीं दिया है…” इसलिये इसे “अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान का दर्जा” दिया जाना उचित है। किसी भी केन्द्रीय विवि को इस प्रकार का “धार्मिक” आधार दिये जाने का यह सम्भवतः पहला मामला है। इस निर्णय से इस विवि में 50 प्रतिशत सीटें “सिर्फ़ मुसलमानों” के लिये आरक्षित हो जाएंगी। (Jamia Milia University Become Minority Institute)
जामिया मिलिया विवि को सन 1988 में केन्द्रीय विवि का दर्जा दिया गया था, लेकिन अब इस निर्णय के बाद इसका केंद्रीय दर्जा (Central Universities of India) तो बरकरार रहेगा ही, साथ ही “विशेष अल्पसंख्यक दर्जा” भी रहेगा, बड़ी अजीब सी बात है, लेकिन ऐसा हो रहा है। अपने निर्णय में अल्पसंख्यक आयोग एक और खतरनाक बात फ़रमाता है, “चूंकि इस विश्वविद्यालय की स्थापना “भारत के संविधान” से पहले ही हो गई थी इसलिये इसे अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा दिये जाने में कोई हर्ज नहीं है…” (यानी 1947 या 1950 से पहले वाली स्थिति मानी जायेगी, क्या इसके पीछे की “मानसिकता” अलग से समझाने की जरुरत है? या इसे यूं कहें कि, चूंकि यह सड़क आज़ादी और संविधान लागू होने के पहले मेरे दादाजी ने बनवाई थी, इसलिये इस सड़क पर अब सिर्फ़ हमारे परिवार के लोग ही चलेंगे…)।
असली मुश्किल SC/ST छात्रों के लिये है, क्योंकि आयोग के इस निर्णय के चलते अब यह विश्वविद्यालय केन्द्र सरकार के आरक्षण नियमों (Reservation Rules in India) को मानने के लिये बाध्य नहीं है। संक्षेप में कहा जाये तो पहले 50% सीटें सिर्फ़ मुसलमानों के लिये होंगी, बची हुई 50% सीटों में से “यदि विवि प्रशासन देना चाहे तो…” SC/ST छात्रों को आरक्षण देगा। तात्पर्य यह कि केन्द्र सरकार से मदद लेंगे, पैसा लेंगे, ज़मीन लेंगे… लेकिन आरक्षण नहीं देंगे। सिद्दिकी साहब आगे फ़रमाते हैं कि जामिया विवि की स्थापना मुस्लिमों में शिक्षा का प्रसार करने के लिए मुसलमानों द्वारा ही की गई है इसलिये इस पर किसी “बाहरी नियंत्रण”(?) को स्वीकार नहीं किया जा सकता…।
अब तमाम दलित संगठन चाहे लाख चिल्लाचोट कर लें, लेकिन केन्द्र सरकार ही हिम्मत नहीं है कि वह अपने “वोट बैंक” पर कोई “बाहरी नियंत्रण” (यानी भारत सरकार) स्थापित करे। जबकि कानूनी हकीकत यह है कि चूंकि केन्द्र सरकार संविधान के तहत काम करती है और संविधान “धर्मनिरपेक्ष” है इसलिये कोई केन्द्रीय विवि “धार्मिक आधार” पर अपने छात्रों के साथ भेदभाव नहीं कर सकता। अल्पसंख्यक शिक्षा आयोग के इस निर्णय के बाद विवि में प्रवेश हेतु “प्राथमिकता” मुसलमानों को मिलेगी, उसके बाद “यदि मर्जी हुई तो” बाकी सीटों पर SC/ST छात्रों को प्रवेश मिलेगा (शर्मनिरपेक्षता की जय हो… एवं “सभी छात्रों को बराबरी के आधार पर, जाति-धर्म के भेदभाव रहित” शिक्षा का अधिकार गया तेल लेने…। (Constitution of India)
अल्पसंख्यक शिक्षा आयोग के इस निर्णय से कई मुश्किलें खड़ी होने का अनुमान है, पहला… संसद द्वारा कानून पारित करके बनाया गया केन्द्रीय विवि धर्मनिरपेक्ष संविधान में “अल्पसंख्यक” कैसे बनाया जा सकता है? दूसरा… इनकी देखादेखी अन्य “अल्पसंख्यक संस्थान”(?) भी इस “विशेष दर्जे” की माँग करेंगे, तब तो SC/ST छात्रों की सीटें और भी कम हो जाएंगी?
“असली दलितों-पिछड़ों” के लिये जिस संकेत की तरफ़ ऊपर के घटनाक्रम में इशारा किया गया है उसी की एक और झलक तमिलनाडु में भी देखने को मिली है। स्वयं को “दलितों का मसीहा और ब्राह्मणवाद के विरोधी कहे जाने” की हसरत पाले (तथा इस फ़ानी दुनिया को किसी भी समय अलविदा कहने की स्थिति में व्हील चेयर पर स्थापित) हुए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम करुणानिधि ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर माँग की है कि “राज्य में धर्मान्तरित ईसाईयों को भी दलितों के समान आरक्षण दिया जाये, धर्म परिवर्तन कर चुके ईसाईयों को संविधान की दलित सूची में रखा जाये… एवं प्रधानमंत्री इस मामले को स्वयं की देखरेख में निपटाएं…” (SC Status to Converted Christians)। करुणानिधि ने आगे कहा है कि जिस प्रकार संविधान में बदलाव करके सिखों एवं बौद्ध धर्म के दलितों को SC का दर्जा दिया गया, उसी प्रकार संविधान में बदलाव करके “दलित ईसाईयों”(?) (Converted Christians in India) को भी SC की सीटों पर आरक्षण दिया जाये”। करुणानिधि चाहते हैं कि संसद में कानून पास करके दलितों-पिछड़ों को मिलने वाली सारी सुविधाएं “दलित ईसाईयों” को भी दिलवाई जाएं… (कम से कम अब तो दलित-पिछड़े संगठन इन “तथाकथित धर्मनिरपेक्ष” नेताओं के मंसूबे समझ जाएं…)। (आंध्रप्रदेश में भी मुसलमानों को मिलने वाला 5% आरक्षण OBC के हिस्से में से ही दिया गया है)
पहले आप यह वीडियो देखिये, जिसे किसी ब्राह्मण ने नहीं बनाया है, बल्कि प्रसिद्ध फ़्रेंच लेखक फ़्रेंकोइस गोतिए ने बनाया है… और सारे पात्र “असली” हैं…
Direct Link :- http://www.youtube.com/watch?v=P7Xgc4ljHKM&feature=player_embedded
चालबाजी और षडयन्त्र स्पष्ट दिखाई दे रहा है, ऐन पश्चिम बंगाल, असम, केरल और तमिलनाडु चुनाव के पहले प्रणब मुखर्जी ने बजट में अलीगढ़ मुस्लिम विवि (Aligarh Muslim University) की दो नई शाखाओं के लिये 100 करोड़ रुपये आबंटित किये हैं (हालांकि “परम्परागत कांग्रेसी चालबाजी” इसमें भी खेल ली गई है कि मलप्पुरम-केरल और मुर्शिदाबाद-बंगाल के AMU को 50-50 करोड़ दिये हैं, क्योंकि वहाँ चुनाव हैं और “सजा के तौर पर” किशनगंज-बिहार को धेला भी नहीं दिया क्योंकि वहाँ के मुसलमानों ने नीतीश कुमार को वोट दिया था)। आगे चलकर अलीगढ़ मुस्लिम विवि सहित तमाम अल्पसंख्यक संस्थान अपने यहाँ “कानून के अनुसार आरक्षण नहीं देने” की माँग करेंगे। चेन्नई से कोयम्बटूर और वेल्लूर जाने वाली सड़कों के किनारे क्राइस्ट की बड़ी-बड़ी मूर्तियों और भव्य चर्चों की संख्या को देखते हुए तमिलनाडु में “धर्मान्तरण” किस पैमाने पर चल रहा है कोई मूर्ख भी समझ सकता है…। एक पक्का वोट बैंक बनने के बाद अब वहीं के एक “फ़र्जी हिन्दू” मुख्यमंत्री करुणानिधि, “दलित ईसाईयों” के लिये SC कोटे में से आरक्षण माँग रहे हैं… यानी “असली दलितों” पर खतरा दो-तरफ़ा मंडरा रहा है।
ब्राह्मणों को तो पहले ही “बदनाम” करके समाज में हाशिये पर डाला जा चुका है, “जेहादियों और एवेंजेलिस्टों” का पहला लक्ष्य था ब्राह्मणों को सबसे पहले नेस्तनाबूद करना, क्योंकि उनके अनुसार ब्राह्मण ही सबसे ज्यादा “राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व” के बारे में गुर्राते रहते हैं…। पहला चरण काफ़ी कुछ पूरा होने के बाद अब तेजी से धर्मान्तरण करना और ईसाई बन जाने के बावजूद “असली दलित हिन्दुओं के हक” के आरक्षण को हथियाना अगला चरण है…। सवाल यही है कि क्या दलित अब भी जागेंगे, या अभी भी ब्राह्मणों के अंध-विरोध की आग में ही जलते रहेंगे? ब्राह्मणों का तो जो नुकसान होना था, वह आरक्षण से हो चुका है… लेकिन अब “आरक्षण” को ही हथियार बनाकर “असली दलितों” का नुकसान “अ-हिन्दू धार्मिक नेता” न करने पाएं, यह देखना SC/ST संगठनों का काम है…
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नोट :- उम्मीद है कि टिप्पणियों में “जातिवाद-ब्राह्मण-दलित” इत्यादि पर अन्तहीन और बेमतलब की बहस न हो, “मुख्य मुद्दे” पर ध्यान केन्द्रित रहे…
जामिया मिलिया विवि को सन 1988 में केन्द्रीय विवि का दर्जा दिया गया था, लेकिन अब इस निर्णय के बाद इसका केंद्रीय दर्जा (Central Universities of India) तो बरकरार रहेगा ही, साथ ही “विशेष अल्पसंख्यक दर्जा” भी रहेगा, बड़ी अजीब सी बात है, लेकिन ऐसा हो रहा है। अपने निर्णय में अल्पसंख्यक आयोग एक और खतरनाक बात फ़रमाता है, “चूंकि इस विश्वविद्यालय की स्थापना “भारत के संविधान” से पहले ही हो गई थी इसलिये इसे अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा दिये जाने में कोई हर्ज नहीं है…” (यानी 1947 या 1950 से पहले वाली स्थिति मानी जायेगी, क्या इसके पीछे की “मानसिकता” अलग से समझाने की जरुरत है? या इसे यूं कहें कि, चूंकि यह सड़क आज़ादी और संविधान लागू होने के पहले मेरे दादाजी ने बनवाई थी, इसलिये इस सड़क पर अब सिर्फ़ हमारे परिवार के लोग ही चलेंगे…)।
असली मुश्किल SC/ST छात्रों के लिये है, क्योंकि आयोग के इस निर्णय के चलते अब यह विश्वविद्यालय केन्द्र सरकार के आरक्षण नियमों (Reservation Rules in India) को मानने के लिये बाध्य नहीं है। संक्षेप में कहा जाये तो पहले 50% सीटें सिर्फ़ मुसलमानों के लिये होंगी, बची हुई 50% सीटों में से “यदि विवि प्रशासन देना चाहे तो…” SC/ST छात्रों को आरक्षण देगा। तात्पर्य यह कि केन्द्र सरकार से मदद लेंगे, पैसा लेंगे, ज़मीन लेंगे… लेकिन आरक्षण नहीं देंगे। सिद्दिकी साहब आगे फ़रमाते हैं कि जामिया विवि की स्थापना मुस्लिमों में शिक्षा का प्रसार करने के लिए मुसलमानों द्वारा ही की गई है इसलिये इस पर किसी “बाहरी नियंत्रण”(?) को स्वीकार नहीं किया जा सकता…।
अब तमाम दलित संगठन चाहे लाख चिल्लाचोट कर लें, लेकिन केन्द्र सरकार ही हिम्मत नहीं है कि वह अपने “वोट बैंक” पर कोई “बाहरी नियंत्रण” (यानी भारत सरकार) स्थापित करे। जबकि कानूनी हकीकत यह है कि चूंकि केन्द्र सरकार संविधान के तहत काम करती है और संविधान “धर्मनिरपेक्ष” है इसलिये कोई केन्द्रीय विवि “धार्मिक आधार” पर अपने छात्रों के साथ भेदभाव नहीं कर सकता। अल्पसंख्यक शिक्षा आयोग के इस निर्णय के बाद विवि में प्रवेश हेतु “प्राथमिकता” मुसलमानों को मिलेगी, उसके बाद “यदि मर्जी हुई तो” बाकी सीटों पर SC/ST छात्रों को प्रवेश मिलेगा (शर्मनिरपेक्षता की जय हो… एवं “सभी छात्रों को बराबरी के आधार पर, जाति-धर्म के भेदभाव रहित” शिक्षा का अधिकार गया तेल लेने…। (Constitution of India)
अल्पसंख्यक शिक्षा आयोग के इस निर्णय से कई मुश्किलें खड़ी होने का अनुमान है, पहला… संसद द्वारा कानून पारित करके बनाया गया केन्द्रीय विवि धर्मनिरपेक्ष संविधान में “अल्पसंख्यक” कैसे बनाया जा सकता है? दूसरा… इनकी देखादेखी अन्य “अल्पसंख्यक संस्थान”(?) भी इस “विशेष दर्जे” की माँग करेंगे, तब तो SC/ST छात्रों की सीटें और भी कम हो जाएंगी?
“असली दलितों-पिछड़ों” के लिये जिस संकेत की तरफ़ ऊपर के घटनाक्रम में इशारा किया गया है उसी की एक और झलक तमिलनाडु में भी देखने को मिली है। स्वयं को “दलितों का मसीहा और ब्राह्मणवाद के विरोधी कहे जाने” की हसरत पाले (तथा इस फ़ानी दुनिया को किसी भी समय अलविदा कहने की स्थिति में व्हील चेयर पर स्थापित) हुए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम करुणानिधि ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर माँग की है कि “राज्य में धर्मान्तरित ईसाईयों को भी दलितों के समान आरक्षण दिया जाये, धर्म परिवर्तन कर चुके ईसाईयों को संविधान की दलित सूची में रखा जाये… एवं प्रधानमंत्री इस मामले को स्वयं की देखरेख में निपटाएं…” (SC Status to Converted Christians)। करुणानिधि ने आगे कहा है कि जिस प्रकार संविधान में बदलाव करके सिखों एवं बौद्ध धर्म के दलितों को SC का दर्जा दिया गया, उसी प्रकार संविधान में बदलाव करके “दलित ईसाईयों”(?) (Converted Christians in India) को भी SC की सीटों पर आरक्षण दिया जाये”। करुणानिधि चाहते हैं कि संसद में कानून पास करके दलितों-पिछड़ों को मिलने वाली सारी सुविधाएं “दलित ईसाईयों” को भी दिलवाई जाएं… (कम से कम अब तो दलित-पिछड़े संगठन इन “तथाकथित धर्मनिरपेक्ष” नेताओं के मंसूबे समझ जाएं…)। (आंध्रप्रदेश में भी मुसलमानों को मिलने वाला 5% आरक्षण OBC के हिस्से में से ही दिया गया है)
पहले आप यह वीडियो देखिये, जिसे किसी ब्राह्मण ने नहीं बनाया है, बल्कि प्रसिद्ध फ़्रेंच लेखक फ़्रेंकोइस गोतिए ने बनाया है… और सारे पात्र “असली” हैं…
Direct Link :- http://www.youtube.com/watch?v=P7Xgc4ljHKM&feature=player_embedded
चालबाजी और षडयन्त्र स्पष्ट दिखाई दे रहा है, ऐन पश्चिम बंगाल, असम, केरल और तमिलनाडु चुनाव के पहले प्रणब मुखर्जी ने बजट में अलीगढ़ मुस्लिम विवि (Aligarh Muslim University) की दो नई शाखाओं के लिये 100 करोड़ रुपये आबंटित किये हैं (हालांकि “परम्परागत कांग्रेसी चालबाजी” इसमें भी खेल ली गई है कि मलप्पुरम-केरल और मुर्शिदाबाद-बंगाल के AMU को 50-50 करोड़ दिये हैं, क्योंकि वहाँ चुनाव हैं और “सजा के तौर पर” किशनगंज-बिहार को धेला भी नहीं दिया क्योंकि वहाँ के मुसलमानों ने नीतीश कुमार को वोट दिया था)। आगे चलकर अलीगढ़ मुस्लिम विवि सहित तमाम अल्पसंख्यक संस्थान अपने यहाँ “कानून के अनुसार आरक्षण नहीं देने” की माँग करेंगे। चेन्नई से कोयम्बटूर और वेल्लूर जाने वाली सड़कों के किनारे क्राइस्ट की बड़ी-बड़ी मूर्तियों और भव्य चर्चों की संख्या को देखते हुए तमिलनाडु में “धर्मान्तरण” किस पैमाने पर चल रहा है कोई मूर्ख भी समझ सकता है…। एक पक्का वोट बैंक बनने के बाद अब वहीं के एक “फ़र्जी हिन्दू” मुख्यमंत्री करुणानिधि, “दलित ईसाईयों” के लिये SC कोटे में से आरक्षण माँग रहे हैं… यानी “असली दलितों” पर खतरा दो-तरफ़ा मंडरा रहा है।
ब्राह्मणों को तो पहले ही “बदनाम” करके समाज में हाशिये पर डाला जा चुका है, “जेहादियों और एवेंजेलिस्टों” का पहला लक्ष्य था ब्राह्मणों को सबसे पहले नेस्तनाबूद करना, क्योंकि उनके अनुसार ब्राह्मण ही सबसे ज्यादा “राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व” के बारे में गुर्राते रहते हैं…। पहला चरण काफ़ी कुछ पूरा होने के बाद अब तेजी से धर्मान्तरण करना और ईसाई बन जाने के बावजूद “असली दलित हिन्दुओं के हक” के आरक्षण को हथियाना अगला चरण है…। सवाल यही है कि क्या दलित अब भी जागेंगे, या अभी भी ब्राह्मणों के अंध-विरोध की आग में ही जलते रहेंगे? ब्राह्मणों का तो जो नुकसान होना था, वह आरक्षण से हो चुका है… लेकिन अब “आरक्षण” को ही हथियार बनाकर “असली दलितों” का नुकसान “अ-हिन्दू धार्मिक नेता” न करने पाएं, यह देखना SC/ST संगठनों का काम है…
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नोट :- उम्मीद है कि टिप्पणियों में “जातिवाद-ब्राह्मण-दलित” इत्यादि पर अन्तहीन और बेमतलब की बहस न हो, “मुख्य मुद्दे” पर ध्यान केन्द्रित रहे…
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