उधर लाशें उठाई जा रही थीं, इधर “भावी प्रधानमंत्री” पार्टी मना रहे थे… … Sabrimala Stampede, Tragedy in Sabrimala, Rahul Gandhi and 26/11
Written by Super User बुधवार, 19 जनवरी 2011 12:35
जैसा कि सभी को ज्ञात हो चुका है कि केरल के सुप्रसिद्ध सबरीमाला अय्यप्पा स्वामी मन्दिर की पहाड़ियों में भगदड़ से 100 से अधिक श्रद्धालुओं की मौत हुई है जबकि कई घायल हुए एवं अब भी कुछ लोग लापता हैं। इस दुर्घटना को प्रधानमंत्री ने “राष्ट्रीय शोक” घोषित किया, एवं कर्नाटक सरकार के दो मंत्रियों द्वारा अपने दल-बल के साथ घटनास्थल पर जाकर मदद-सहायता की। समूचे केरल सहित तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश व कर्नाटक में शोक की लहर है (मरने वालों में से अधिकतर तमिलनाडु व कर्नाटक के श्रद्धालु हैं)…
लेकिन इतना सब हो चुकने के बावजूद कांग्रेस के “युवा”(??) महासचिव एवं भारत के आगामी प्रधानमंत्री (जैसा कि चाटुकार कांग्रेसी उन्हें प्रचारित करते हैं), दुर्घटनास्थल से मात्र 70 किमी दूरी पर कुमाराकोम में केरल के बैकवाटर में एक बोट में पार्टी मना रहे थे। जिस समय “सेवा भारती” एवं “अय्यप्पा सेवा संगम” के कार्यकर्ता सारी राजनैतिक सीमाएं तोड़कर घायलों एवं मृतकों की सेवा में लगे थे, सेना के जवानों की मदद कर रहे थे, जंगल के अंधेरे को दूर करने के लिये अपने-अपने उपलब्ध साधन झोंक रहे थे… उस समय भोंदू युवराज कुमारकोम में मछली-परांठे व बाँसुरी की धुन का आनन्द उठा रहे थे।
यह भीषण भगदड़ शुक्रवार यानी मकर संक्रान्ति के दिन हुई, लेकिन राहुल बाबा ने शनिवार को इदुक्की जिले में न सिर्फ़ एक विवाह समारोह में भाग लिया, बल्कि रविवार तक वे कुमारकोम के रिसोर्ट में “रिलैक्स”(?) कर रहे थे। उल्लेखनीय है कि राहुल गाँधी अलप्पुझा में अपने पारिवारिक मित्र अमिताभ दुबे के विवाह समारोह में आये थे (अमिताभ दुबे, राजीव गाँधी फ़ाउण्डेशन के ट्रस्टी बोर्ड के सदस्य व नेहरु परिवार के खासुलखास श्री सुमन दुबे के सुपुत्र हैं)। अमिताभ दुबे का विवाह अमूल्या गोपीकृष्णन के साथ 15 जनवरी (शनिवार) को हुआ, राहुल गाँधी 14 जनवरी (शुक्रवार) को ही वहाँ पहुँच गये थे।
पाठकों को याद होगा कि किस तरह 26/11 के मुम्बई हमले के ठीक अगले दिन, जबकि मेजर संदीप उन्नीकृष्णन की माँ की आँखों के आँसू सूखे भी नहीं थे… “राउल विंची”, दिल्ली के बाहरी इलाके में एक फ़ार्म हाउस में अपने दोस्तों के साथ पार्टी मनाने में मशगूल थे… उधर देश के जवान अपनी जान की बाजी लगा रहे थे और सैकड़ों जानें जा चुकी थीं। मुम्बई जाकर अस्पताल में घायलों का हालचाल जानना अथवा महाराष्ट्र की प्रिय कांग्रेस सरकार से जवाब-तलब करने की बजाय उन्होंने दिल्ली में पार्टी मनाना उचित समझा… (यहाँ देखें…)
केरल के कांग्रेसजनों ने राहुल की इस हरकत पर गहरा क्रोध जताया है, स्थानीय कांग्रेसजनों का कहना है कि जब मुख्यमंत्री अच्युतानन्दन एवं नेता प्रतिपक्ष ओम्मन चाण्डी घटनास्थल पर थे, तो मात्र 70 किमी दूर होकर भी राहुल गाँधी वहाँ क्यों नहीं आये? (परन्तु नेहरु परिवार की गुलामी के संस्कार मन में गहरे पैठे हैं इसलिये कोई भी खुलकर राहुल का विरोध नहीं कर रहा है)।
यदि शनिवार की सुबह राहुल गाँधी उस विवाह समारोह को छोड़कर राहत कार्यों का मुआयना करने चले जाते तो कौन सी आफ़त आ जाती? शादी अटेण्ड करना जरूरी था या दुर्घटना स्थल पर जाना? न सिर्फ़ शनिवार, बल्कि रविवार को भी राहुल बाबा, बोट पर पार्टी मनाते रहे, गज़लें सुनते रहे… उधर बेचारे श्रद्धालु कराह रहे थे, मर रहे थे। यह हैं हमारे भावी प्रधानमंत्री…
अन्ततः शायद खुद ही शर्म आई होगी या किसी सेकुलर कांग्रेसी ने उन्हें सुझाव दिया होगा कि केरल में चुनाव होने वाले हैं इसलिये उन्हें वहाँ जाना चाहिये, तब रविवार शाम को राहुल गाँधी, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रमेश चेन्निथला के साथ घटनास्थल के लिये उड़े… लेकिन शायद भगवान अय्यप्पा स्वामी भी, राहुल की “नापाक उपस्थिति” उस जगह नहीं चाहते होंगे इसलिये घने कोहरे की वजह से हेलीकॉप्टर वहाँ उतर न सका, और युवराज बेरंग वापस लौट गये (ये बात और है कि उनके काफ़िले में भारत के करदाताओं की गाढ़ी कमाई की मजबूत गाड़ियाँ व NSG के कमाण्डो की भीड़ थी, वे चाहते तो सड़क मार्ग से भी वहाँ पहुँच सकते थे, लेकिन ऐसा कुछ करने के लिये वैसी “नीयत” भी तो होनी चाहिये…)।
मीडिया के कुछ लोग एवं कांग्रेस के ही कुछ कार्यकर्ता दबी ज़बान में कहते हैं कि रविवार शाम को भी कोहरे, धुंध व बारिश का तो बहाना ही था, असल में राहुल बाबा इसलिये वहाँ नहीं उतरे कि घटनास्थल से लगभग सभी लाशें उठाई जा चुकी थी… ऐसे में राहुल गाँधी वहाँ जाकर क्या करते… न तो मीडिया का फ़ुटेज मिलता और न ही राष्ट्रीय स्तर पर छवि चमकाने का मौका मिलता… इसलिये कोहरे और बारिश का बहाना बनाकर हेलीकॉप्टर वापस ले जाया गया… लेकिन जैसा कि पहले कहा, यदि “नीयत” होती और “दिल से चाहते” तो, सड़क मार्ग से भी जा सकते थे। जब वे नौटंकी करने के लिये किसी दलित की झोंपड़ी में जा सकते हैं, अपना सुरक्षा घेरा तोड़कर उड़ीसा के जंगलों में रहस्यमयी तरीके से गायब हो सकते हैं (यहाँ पढ़ें…), तो क्या शादी-ब्याह-पार्टी में से एक घण्टा घायलों को अस्पताल जाने के लिये नहीं निकाल सकते थे? और कौन सा उन्हें अपने पैरों पर चलकर जाना था, हमारे टैक्स के पैसों पर ही तो मस्ती कर रहे हैं…
कांग्रेस द्वारा “भाड़े पर लिये गये मीडिया” ने तब भी राहुल का गुणगान करना नहीं छोड़ा और इन भाण्डों द्वारा “राहुल की सादगी” के कसीदे काढ़े गये (“सादगी” यानी, उन्होंने इस यात्रा को निजी रखा और केरल की पुलिस को सूचना नहीं दी, न ही हमेशा की तरह “वीआईपी ट्रीटमेंट” लेते हुए रास्ते और ट्रेफ़िक को रोका…। इस सादगी पर बलिहारी जाऊँ…), कुछ “टट्टू” किस्म के अखबारों ने राहुल और प्रियंका द्वारा मार्च 2010 में उनके निजी स्टाफ़ के एक सदस्य के. माधवन की बेटी की शादी में आने को भी “सादगी” मानकर बखान किया… लेकिन किसी भी अखबार या चैनल ने “राउल विंची” द्वारा हिन्दू श्रद्धालुओं के प्रति बरती गई इस क्रूर हरकत को “हाइलाईट” नहीं होने दिया… वरना “ऊपर” से आने वाला पैसा बन्द हो जाता और कई मीडियाकर्मी भूखों मर जाते…। जिन संगठनों को “आतंकवादी” साबित करने के लिये यह गिरा हुआ मीडिया और ये मासूम राहुल बाबा, जी-जान से जुटे हुए हैं, उन्हीं के साथी संगठनों के कार्यकर्ता, रात के अंधेरे में सबरीमाला की पहाड़ियों पर घायलों की मदद कर रहे थे।
जैसी संवेदनहीनता और लापरवाही मुम्बई हमले एवं सबरीमाला दुर्घटना के दौरान “राउल विंची” ने दिखाई है… क्या इसे मात्र उनका “बचपना”(?) या “लापरवाही” कहकर खारिज किया जा सकता है? गलती एक बार हो सकती है, दो-दो बार नहीं। आखिर इसके पीछे कौन सी “मानसिकता” है…
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1) केरल सरकार को प्रतिवर्ष सबरीमाला यात्रा से 3000 करोड़ रुपए की आय होती है।
2) ट्रावणकोर देवस्वम बोर्ड द्वारा राज्य के कुल 1208 मन्दिरों पर साल भर में खर्च किये जाते हैं 80 लाख रुपये। (जी हाँ, एक करोड़ से भी कम)
3) एक माह की सबरीमाला यात्रा के दौरान सिर्फ़ गरीब-मध्यम वर्ग के लोगों द्वारा दिये गये छोटे-छोटे चढ़ावे की दानपेटी रकम ही होती है 131 करोड़…
(लेकिन हिन्दू मन्दिरों के ट्रस्टों और समितियों तथा करोड़ों रुपये पर कब्जा जमाये बैठी “सेकुलर गैंग” सबरीमाला की पहाड़ियों पर श्रद्धालुओं के लिये मूलभूत सुविधाएं – पानी, चिकित्सा, छाँव, पहाड़ियों पर पक्का रास्ता, इत्यादि भी नहीं जुटाती…)
- अरे हाँ… एक बात और, केन्द्रीय सूचना आयुक्त ने RTI के एक जवाब में बताया है कि राहुल गाँधी की सुरक्षा, परिवहन, यात्रा एवं ठहरने-भोजन इत्यादि के खर्च का कोई हिसाब लोकसभा सचिवालय द्वारा नहीं रखा जाता है… इसलिये इस बारे में किसी को नहीं बताया जा सकता…
जय हो… जय हो…
लेकिन इतना सब हो चुकने के बावजूद कांग्रेस के “युवा”(??) महासचिव एवं भारत के आगामी प्रधानमंत्री (जैसा कि चाटुकार कांग्रेसी उन्हें प्रचारित करते हैं), दुर्घटनास्थल से मात्र 70 किमी दूरी पर कुमाराकोम में केरल के बैकवाटर में एक बोट में पार्टी मना रहे थे। जिस समय “सेवा भारती” एवं “अय्यप्पा सेवा संगम” के कार्यकर्ता सारी राजनैतिक सीमाएं तोड़कर घायलों एवं मृतकों की सेवा में लगे थे, सेना के जवानों की मदद कर रहे थे, जंगल के अंधेरे को दूर करने के लिये अपने-अपने उपलब्ध साधन झोंक रहे थे… उस समय भोंदू युवराज कुमारकोम में मछली-परांठे व बाँसुरी की धुन का आनन्द उठा रहे थे।
यह भीषण भगदड़ शुक्रवार यानी मकर संक्रान्ति के दिन हुई, लेकिन राहुल बाबा ने शनिवार को इदुक्की जिले में न सिर्फ़ एक विवाह समारोह में भाग लिया, बल्कि रविवार तक वे कुमारकोम के रिसोर्ट में “रिलैक्स”(?) कर रहे थे। उल्लेखनीय है कि राहुल गाँधी अलप्पुझा में अपने पारिवारिक मित्र अमिताभ दुबे के विवाह समारोह में आये थे (अमिताभ दुबे, राजीव गाँधी फ़ाउण्डेशन के ट्रस्टी बोर्ड के सदस्य व नेहरु परिवार के खासुलखास श्री सुमन दुबे के सुपुत्र हैं)। अमिताभ दुबे का विवाह अमूल्या गोपीकृष्णन के साथ 15 जनवरी (शनिवार) को हुआ, राहुल गाँधी 14 जनवरी (शुक्रवार) को ही वहाँ पहुँच गये थे।
पाठकों को याद होगा कि किस तरह 26/11 के मुम्बई हमले के ठीक अगले दिन, जबकि मेजर संदीप उन्नीकृष्णन की माँ की आँखों के आँसू सूखे भी नहीं थे… “राउल विंची”, दिल्ली के बाहरी इलाके में एक फ़ार्म हाउस में अपने दोस्तों के साथ पार्टी मनाने में मशगूल थे… उधर देश के जवान अपनी जान की बाजी लगा रहे थे और सैकड़ों जानें जा चुकी थीं। मुम्बई जाकर अस्पताल में घायलों का हालचाल जानना अथवा महाराष्ट्र की प्रिय कांग्रेस सरकार से जवाब-तलब करने की बजाय उन्होंने दिल्ली में पार्टी मनाना उचित समझा… (यहाँ देखें…)
केरल के कांग्रेसजनों ने राहुल की इस हरकत पर गहरा क्रोध जताया है, स्थानीय कांग्रेसजनों का कहना है कि जब मुख्यमंत्री अच्युतानन्दन एवं नेता प्रतिपक्ष ओम्मन चाण्डी घटनास्थल पर थे, तो मात्र 70 किमी दूर होकर भी राहुल गाँधी वहाँ क्यों नहीं आये? (परन्तु नेहरु परिवार की गुलामी के संस्कार मन में गहरे पैठे हैं इसलिये कोई भी खुलकर राहुल का विरोध नहीं कर रहा है)।
यदि शनिवार की सुबह राहुल गाँधी उस विवाह समारोह को छोड़कर राहत कार्यों का मुआयना करने चले जाते तो कौन सी आफ़त आ जाती? शादी अटेण्ड करना जरूरी था या दुर्घटना स्थल पर जाना? न सिर्फ़ शनिवार, बल्कि रविवार को भी राहुल बाबा, बोट पर पार्टी मनाते रहे, गज़लें सुनते रहे… उधर बेचारे श्रद्धालु कराह रहे थे, मर रहे थे। यह हैं हमारे भावी प्रधानमंत्री…
अन्ततः शायद खुद ही शर्म आई होगी या किसी सेकुलर कांग्रेसी ने उन्हें सुझाव दिया होगा कि केरल में चुनाव होने वाले हैं इसलिये उन्हें वहाँ जाना चाहिये, तब रविवार शाम को राहुल गाँधी, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रमेश चेन्निथला के साथ घटनास्थल के लिये उड़े… लेकिन शायद भगवान अय्यप्पा स्वामी भी, राहुल की “नापाक उपस्थिति” उस जगह नहीं चाहते होंगे इसलिये घने कोहरे की वजह से हेलीकॉप्टर वहाँ उतर न सका, और युवराज बेरंग वापस लौट गये (ये बात और है कि उनके काफ़िले में भारत के करदाताओं की गाढ़ी कमाई की मजबूत गाड़ियाँ व NSG के कमाण्डो की भीड़ थी, वे चाहते तो सड़क मार्ग से भी वहाँ पहुँच सकते थे, लेकिन ऐसा कुछ करने के लिये वैसी “नीयत” भी तो होनी चाहिये…)।
मीडिया के कुछ लोग एवं कांग्रेस के ही कुछ कार्यकर्ता दबी ज़बान में कहते हैं कि रविवार शाम को भी कोहरे, धुंध व बारिश का तो बहाना ही था, असल में राहुल बाबा इसलिये वहाँ नहीं उतरे कि घटनास्थल से लगभग सभी लाशें उठाई जा चुकी थी… ऐसे में राहुल गाँधी वहाँ जाकर क्या करते… न तो मीडिया का फ़ुटेज मिलता और न ही राष्ट्रीय स्तर पर छवि चमकाने का मौका मिलता… इसलिये कोहरे और बारिश का बहाना बनाकर हेलीकॉप्टर वापस ले जाया गया… लेकिन जैसा कि पहले कहा, यदि “नीयत” होती और “दिल से चाहते” तो, सड़क मार्ग से भी जा सकते थे। जब वे नौटंकी करने के लिये किसी दलित की झोंपड़ी में जा सकते हैं, अपना सुरक्षा घेरा तोड़कर उड़ीसा के जंगलों में रहस्यमयी तरीके से गायब हो सकते हैं (यहाँ पढ़ें…), तो क्या शादी-ब्याह-पार्टी में से एक घण्टा घायलों को अस्पताल जाने के लिये नहीं निकाल सकते थे? और कौन सा उन्हें अपने पैरों पर चलकर जाना था, हमारे टैक्स के पैसों पर ही तो मस्ती कर रहे हैं…
कांग्रेस द्वारा “भाड़े पर लिये गये मीडिया” ने तब भी राहुल का गुणगान करना नहीं छोड़ा और इन भाण्डों द्वारा “राहुल की सादगी” के कसीदे काढ़े गये (“सादगी” यानी, उन्होंने इस यात्रा को निजी रखा और केरल की पुलिस को सूचना नहीं दी, न ही हमेशा की तरह “वीआईपी ट्रीटमेंट” लेते हुए रास्ते और ट्रेफ़िक को रोका…। इस सादगी पर बलिहारी जाऊँ…), कुछ “टट्टू” किस्म के अखबारों ने राहुल और प्रियंका द्वारा मार्च 2010 में उनके निजी स्टाफ़ के एक सदस्य के. माधवन की बेटी की शादी में आने को भी “सादगी” मानकर बखान किया… लेकिन किसी भी अखबार या चैनल ने “राउल विंची” द्वारा हिन्दू श्रद्धालुओं के प्रति बरती गई इस क्रूर हरकत को “हाइलाईट” नहीं होने दिया… वरना “ऊपर” से आने वाला पैसा बन्द हो जाता और कई मीडियाकर्मी भूखों मर जाते…। जिन संगठनों को “आतंकवादी” साबित करने के लिये यह गिरा हुआ मीडिया और ये मासूम राहुल बाबा, जी-जान से जुटे हुए हैं, उन्हीं के साथी संगठनों के कार्यकर्ता, रात के अंधेरे में सबरीमाला की पहाड़ियों पर घायलों की मदद कर रहे थे।
जैसी संवेदनहीनता और लापरवाही मुम्बई हमले एवं सबरीमाला दुर्घटना के दौरान “राउल विंची” ने दिखाई है… क्या इसे मात्र उनका “बचपना”(?) या “लापरवाही” कहकर खारिज किया जा सकता है? गलती एक बार हो सकती है, दो-दो बार नहीं। आखिर इसके पीछे कौन सी “मानसिकता” है…
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चलते-चलते : अब कुछ तथ्यों पर नज़र डाल लीजिये…
1) केरल सरकार को प्रतिवर्ष सबरीमाला यात्रा से 3000 करोड़ रुपए की आय होती है।
2) ट्रावणकोर देवस्वम बोर्ड द्वारा राज्य के कुल 1208 मन्दिरों पर साल भर में खर्च किये जाते हैं 80 लाख रुपये। (जी हाँ, एक करोड़ से भी कम)
3) एक माह की सबरीमाला यात्रा के दौरान सिर्फ़ गरीब-मध्यम वर्ग के लोगों द्वारा दिये गये छोटे-छोटे चढ़ावे की दानपेटी रकम ही होती है 131 करोड़…
(लेकिन हिन्दू मन्दिरों के ट्रस्टों और समितियों तथा करोड़ों रुपये पर कब्जा जमाये बैठी “सेकुलर गैंग” सबरीमाला की पहाड़ियों पर श्रद्धालुओं के लिये मूलभूत सुविधाएं – पानी, चिकित्सा, छाँव, पहाड़ियों पर पक्का रास्ता, इत्यादि भी नहीं जुटाती…)
- अरे हाँ… एक बात और, केन्द्रीय सूचना आयुक्त ने RTI के एक जवाब में बताया है कि राहुल गाँधी की सुरक्षा, परिवहन, यात्रा एवं ठहरने-भोजन इत्यादि के खर्च का कोई हिसाब लोकसभा सचिवालय द्वारा नहीं रखा जाता है… इसलिये इस बारे में किसी को नहीं बताया जा सकता…
जय हो… जय हो…
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