तिरंगे में सफ़ेद रंग “क्रिश्चियनिटी” का होता है और “जन-गण-मन” की धुन पर पोप की प्रार्थना…… Mockery of National Flag, National Anthem by Missionary
Written by Super User शुक्रवार, 05 फरवरी 2010 13:13
[डिस्क्लेमर – मुझे मलयालम नहीं आती, इसलिये प्रस्तुत पोस्ट एक मलयाली मित्र द्वारा दी गई सूचनाओं पर आधारित है… जिसे मलयालम आती हो, कृपया इसकी पुष्टि करें…]
बचपन से मैंने तो यही पढ़ा था कि देश के तिरंगे में भगवा रंग त्याग और बलिदान का, सफ़ेद रंग शान्ति का तथा हरा रंग हरियाली और पर्यावरण का होता है। लेकिन हाल ही में केरल में “गोस्पेल चर्च” (जो कि धर्मांतरण के लिये कुख्यात है और जिसे “वर्तमान देशमाता” और “युवराज” का पूर्ण वरदहस्त प्राप्त है) के एक कार्यक्रम में एक जोकरनुमा व्यक्ति ने “जानबूझकर” देश के तिरंगे का पूरा देशद्रोही विवरण प्रस्तुत किया और न तो केरल सरकार, न ही किसी हिन्दू संगठन, न ही किसी मानवाधिकार/NGO संगठन ने इस पर आपत्ति उठाई… और तो और कार्यक्रम समाप्ति के बाद भी किसी ने इस जोकर के खिलाफ़ तिरंगे के अपमान को लेकर पुलिस केस रजिस्टर नहीं करवाया।
मेरे मलयाली मित्र द्वारा किये गये वर्णन के अनुसार – प्रस्तुत वीडियो में तिरुवल्ला के शैरोन फ़ेलोशिप चर्च में केए अब्राहम नामक व्यक्ति कॉमेडी शो(?) प्रस्तुत कर रहा है। इसमें यह बताता है कि भारत के राष्ट्रीय ध्वज में “भगवा” रंग आक्रामकता का प्रतीक है, जबकि हरा रंग मुस्लिमों की बढ़ती आर्थिक खुशहाली (खाड़ी के पैसे द्वारा आई हुई) का प्रतीक है, लेकिन सबसे पवित्र है “सफ़ेद रंग” जो कि ईसाईयत का प्रतीक है, क्योंकि सफ़ेद रंग शांति का प्रतीक है (ईसाईयत = शान्ति)। और आगे अपना ज्ञान बखान करते हुए वह बताता है कि शक्तिशाली अशोक चक्र का मतलब है “अ-शोक” (अर्थात कोई दुख नहीं) और इस “अ-शोक” को सफ़ेद रंग के अन्दर इसलिये रखा गया है क्योंकि ईसाईयत में आने के बाद मनुष्य को कोई शोक नहीं होता। इसलिये जो भी दुखी और असहाय हैं, सफ़ेद रंग में रंग जायें, यानी ईसाईयत स्वीकार करें। तिरंगे की ऐसी व्याख्या कभी देखी-सुनी है आपने? लेकिन “सेकुलरिज़्म” को दूध पिलाने की सजा तो भुगतनी ही पड़ेगी, क्योंकि अब इसका “फ़न” धीरे-धीरे फ़ुंफ़कारे मारने लगा है।
Direct Link : http://www.youtube.com/watch?v=ohpo2xDabqg
अब यह वीडियो देखिये (सुनिये), एक स्कूल में हमारे राष्ट्रीय गान “जन-गण-मन” की धुन पर पोप जॉन पॉल (द्वितीय) का गुणगान और जीसस की प्रार्थना की जा रही है। इन दोनों का गुणगान करना गलत बात नहीं है, लेकिन राष्ट्रीय गीत की धुन और तर्ज पर इसे गाकर क्या साबित करने की और कैसा संदेश देने की कोशिश की जा रही है, यह मुझे देशभक्तों को समझाने की आवश्यकता नहीं है, हाँ छद्म-सेकुलरों को समझाना जरूरी है, क्योंकि मेरी नज़र में “छद्म-सेकुलर” *%$%*&#*$*॰ हैं…
Direct Link : http://www.youtube.com/watch?v=zDpIn03gEi8
इस दूसरे वीडियो में भी छोटी-छोटी बच्चियाँ “जन-गण-मन” की धुन पर पोप की प्रार्थना कर रही हैं। इन बेचारी बच्चियों को क्या मालूम कि इनके दिमाग का कैसा ब्रेन-वॉश किया जा रहा है…और जाने-अनजाने वे अपनी मातृभूमि से गद्दारी का पाठ पढ़ रही हैं… और यदि वाकई ऐसे हथकण्डों से प्रभु यीशु धरती पर शान्ति ला सकते, तो फ़िलीस्तीन और यरुशलम में सबसे पहले शान्ति आ जाती, जहाँ उनका जन्म हुआ, लेकिन उधर तो उन्हें “क्रूसेड” और “जेहाद” से ही फ़ुरसत नहीं है।
Direct Link : Janaganama praising Pope http://www.youtube.com/watch?v=5bO21MQ1LtI
इस चालबाजी का मिलाजुला रूप झारखण्ड, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ के दूरस्थ आदिवासी इलाकों में देखा जा सकता है, जहाँ झोंपड़ियों में स्थित चर्च को “भगवा” रंग से रंगा गया है, मदर मेरी और यीशु की मूर्तियों और छवियों को भी हिन्दू देवी-देवताओं से मिलता-जुलता रूप दिया गया है, ताकि भोले-भाले आदिवासियों को आसानी से मूर्ख बनाया जा सके, और मौका मिलते ही “धर्मान्तरण” करवा लिया जाता है। तिरंगे झण्डे, राष्ट्रीय गान का मजाक उड़ाना, वन्देमातरम का विरोध करना, नाबालिग लड़की को भगा ले जाने को धार्मिक बताना और देश के नक्शे से छेड़छाड़ आदि कामों को सिर्फ़ “बकवास” अथवा “गलती” कहकर खारिज़ नहीं किया जा सकता, यह एक दीर्घकालीन रणनीति के तहत हो रहा है।
इस प्रकार दीमक की तरह “एवेंजेलिस्ट” ज़मीन खोखली करते जा रहे हैं, और इधर “सेकुलरिज़्म” नाम का साँप मोटा होते-होते अजगर बन गया है और मूर्ख हिन्दू सोये हुए हैं और ऐसे ही नींद में गाफ़िल रहते ही मारे भी जायेंगे। इस स्थिति के लिये मिशनरी और कट्टर मुल्लाओं का दोष तो है लेकिन “छद्म-सेकुलरवादियों” और “बेसुध हिन्दुओं” के मुकाबले में कम है…। जब तक “हिन्दू” एक इकाई बनकर राजनैतिक रूप से संगठित नहीं होते, तब तक यह देश टुकड़े-टुकड़े होने को अभिशप्त ही रहेगा… रही-सही कसर राज ठाकरे-बाल ठाकरे टाइप के लोग पूरी कर रहे हैं जो “हिन्दुत्व” को कमजोर कर रहे हैं, और उनकी इस हरकत से “बाहरी” लोग खुश हो रहे हैं कि उनका काम अपने-आप आसान हो रहा है। वर्तमान दौर सेकुलरिज़्म का नंगा रूप देखने और सहनशील हिन्दुओं की परीक्षा का कठिन दौर है…
जैसा कि केरल में बढ़ते मिशनरीकरण और इस्लामीकरण के बारे में पहले भी कुछ पोस्ट में लिख चुका हूं, केरल में हिन्दुओं, हिन्दुत्व और भारतीय संस्कृति को गरियाने का दौर धीरे-धीरे मुखर होता जा रहा है, और इस बार तो सीधे देश के झण्डे तिरंगे की ही मनमानी व्याख्या सुनाई जा रही है। इस्लामी जेहादी तो सीधे-सीधे बम फ़ोड़ते हैं या “घेट्टो” (Ghetto) बनाकर हमले करते हैं जैसा कश्मीर से पंडितों को भगाने के मामले में किया, लेकिन मिशनरी और एवेंजेलिस्ट चालाक हैं, चुपके से काम करते हैं और मौका मिलते ही पीठ में छुरा घोंपते हैं (यह हम मिजोरम और उत्तर-पूर्व के अन्य राज्यों तथा कश्मीर में देख रहे हैं, देख चुके हैं)। अब आप कहेंगे कि ऐसी खबरें हमारे “सबसे तेज़” न्यूज़ चैनलों पर क्यों नहीं आतीं? जवाब एक ही है – कि इन चैनलों में “बिना रीढ़ के लोग” काम करते हैं जो अपने पाँच-M (मार्क्स-मुल्ला-मिशनरी-मैकाले-माइनो) पोषित आकाओं के इशारे पर रेंगते हैं… और “सेकुलर” पार्टियों द्वारा इन्हें “पाला” जाता है… ऐसी खबरें आपको सिर्फ़ ब्लॉग्स पर ही मिलेंगी…
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1) http://blog.sureshchiplunkar.com/2010/01/ysr-family-evangelism-church-in-andhra.html
2) http://blog.sureshchiplunkar.com/2010/01/shariat-islamic-personal-law-e-ahmed.html
3) http://blog.sureshchiplunkar.com/2009/10/kcbc-newsletter-kerala-love-jihad.html
4) http://blog.sureshchiplunkar.com/2009/08/why-indian-media-is-anti-hindutva.html
5) http://blog.sureshchiplunkar.com/2009/04/talibanization-kerala-congress-and_13.html
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बचपन से मैंने तो यही पढ़ा था कि देश के तिरंगे में भगवा रंग त्याग और बलिदान का, सफ़ेद रंग शान्ति का तथा हरा रंग हरियाली और पर्यावरण का होता है। लेकिन हाल ही में केरल में “गोस्पेल चर्च” (जो कि धर्मांतरण के लिये कुख्यात है और जिसे “वर्तमान देशमाता” और “युवराज” का पूर्ण वरदहस्त प्राप्त है) के एक कार्यक्रम में एक जोकरनुमा व्यक्ति ने “जानबूझकर” देश के तिरंगे का पूरा देशद्रोही विवरण प्रस्तुत किया और न तो केरल सरकार, न ही किसी हिन्दू संगठन, न ही किसी मानवाधिकार/NGO संगठन ने इस पर आपत्ति उठाई… और तो और कार्यक्रम समाप्ति के बाद भी किसी ने इस जोकर के खिलाफ़ तिरंगे के अपमान को लेकर पुलिस केस रजिस्टर नहीं करवाया।
मेरे मलयाली मित्र द्वारा किये गये वर्णन के अनुसार – प्रस्तुत वीडियो में तिरुवल्ला के शैरोन फ़ेलोशिप चर्च में केए अब्राहम नामक व्यक्ति कॉमेडी शो(?) प्रस्तुत कर रहा है। इसमें यह बताता है कि भारत के राष्ट्रीय ध्वज में “भगवा” रंग आक्रामकता का प्रतीक है, जबकि हरा रंग मुस्लिमों की बढ़ती आर्थिक खुशहाली (खाड़ी के पैसे द्वारा आई हुई) का प्रतीक है, लेकिन सबसे पवित्र है “सफ़ेद रंग” जो कि ईसाईयत का प्रतीक है, क्योंकि सफ़ेद रंग शांति का प्रतीक है (ईसाईयत = शान्ति)। और आगे अपना ज्ञान बखान करते हुए वह बताता है कि शक्तिशाली अशोक चक्र का मतलब है “अ-शोक” (अर्थात कोई दुख नहीं) और इस “अ-शोक” को सफ़ेद रंग के अन्दर इसलिये रखा गया है क्योंकि ईसाईयत में आने के बाद मनुष्य को कोई शोक नहीं होता। इसलिये जो भी दुखी और असहाय हैं, सफ़ेद रंग में रंग जायें, यानी ईसाईयत स्वीकार करें। तिरंगे की ऐसी व्याख्या कभी देखी-सुनी है आपने? लेकिन “सेकुलरिज़्म” को दूध पिलाने की सजा तो भुगतनी ही पड़ेगी, क्योंकि अब इसका “फ़न” धीरे-धीरे फ़ुंफ़कारे मारने लगा है।
Direct Link : http://www.youtube.com/watch?v=ohpo2xDabqg
अब यह वीडियो देखिये (सुनिये), एक स्कूल में हमारे राष्ट्रीय गान “जन-गण-मन” की धुन पर पोप जॉन पॉल (द्वितीय) का गुणगान और जीसस की प्रार्थना की जा रही है। इन दोनों का गुणगान करना गलत बात नहीं है, लेकिन राष्ट्रीय गीत की धुन और तर्ज पर इसे गाकर क्या साबित करने की और कैसा संदेश देने की कोशिश की जा रही है, यह मुझे देशभक्तों को समझाने की आवश्यकता नहीं है, हाँ छद्म-सेकुलरों को समझाना जरूरी है, क्योंकि मेरी नज़र में “छद्म-सेकुलर” *%$%*&#*$*॰ हैं…
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इस दूसरे वीडियो में भी छोटी-छोटी बच्चियाँ “जन-गण-मन” की धुन पर पोप की प्रार्थना कर रही हैं। इन बेचारी बच्चियों को क्या मालूम कि इनके दिमाग का कैसा ब्रेन-वॉश किया जा रहा है…और जाने-अनजाने वे अपनी मातृभूमि से गद्दारी का पाठ पढ़ रही हैं… और यदि वाकई ऐसे हथकण्डों से प्रभु यीशु धरती पर शान्ति ला सकते, तो फ़िलीस्तीन और यरुशलम में सबसे पहले शान्ति आ जाती, जहाँ उनका जन्म हुआ, लेकिन उधर तो उन्हें “क्रूसेड” और “जेहाद” से ही फ़ुरसत नहीं है।
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इस चालबाजी का मिलाजुला रूप झारखण्ड, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ के दूरस्थ आदिवासी इलाकों में देखा जा सकता है, जहाँ झोंपड़ियों में स्थित चर्च को “भगवा” रंग से रंगा गया है, मदर मेरी और यीशु की मूर्तियों और छवियों को भी हिन्दू देवी-देवताओं से मिलता-जुलता रूप दिया गया है, ताकि भोले-भाले आदिवासियों को आसानी से मूर्ख बनाया जा सके, और मौका मिलते ही “धर्मान्तरण” करवा लिया जाता है। तिरंगे झण्डे, राष्ट्रीय गान का मजाक उड़ाना, वन्देमातरम का विरोध करना, नाबालिग लड़की को भगा ले जाने को धार्मिक बताना और देश के नक्शे से छेड़छाड़ आदि कामों को सिर्फ़ “बकवास” अथवा “गलती” कहकर खारिज़ नहीं किया जा सकता, यह एक दीर्घकालीन रणनीति के तहत हो रहा है।
इस प्रकार दीमक की तरह “एवेंजेलिस्ट” ज़मीन खोखली करते जा रहे हैं, और इधर “सेकुलरिज़्म” नाम का साँप मोटा होते-होते अजगर बन गया है और मूर्ख हिन्दू सोये हुए हैं और ऐसे ही नींद में गाफ़िल रहते ही मारे भी जायेंगे। इस स्थिति के लिये मिशनरी और कट्टर मुल्लाओं का दोष तो है लेकिन “छद्म-सेकुलरवादियों” और “बेसुध हिन्दुओं” के मुकाबले में कम है…। जब तक “हिन्दू” एक इकाई बनकर राजनैतिक रूप से संगठित नहीं होते, तब तक यह देश टुकड़े-टुकड़े होने को अभिशप्त ही रहेगा… रही-सही कसर राज ठाकरे-बाल ठाकरे टाइप के लोग पूरी कर रहे हैं जो “हिन्दुत्व” को कमजोर कर रहे हैं, और उनकी इस हरकत से “बाहरी” लोग खुश हो रहे हैं कि उनका काम अपने-आप आसान हो रहा है। वर्तमान दौर सेकुलरिज़्म का नंगा रूप देखने और सहनशील हिन्दुओं की परीक्षा का कठिन दौर है…
जैसा कि केरल में बढ़ते मिशनरीकरण और इस्लामीकरण के बारे में पहले भी कुछ पोस्ट में लिख चुका हूं, केरल में हिन्दुओं, हिन्दुत्व और भारतीय संस्कृति को गरियाने का दौर धीरे-धीरे मुखर होता जा रहा है, और इस बार तो सीधे देश के झण्डे तिरंगे की ही मनमानी व्याख्या सुनाई जा रही है। इस्लामी जेहादी तो सीधे-सीधे बम फ़ोड़ते हैं या “घेट्टो” (Ghetto) बनाकर हमले करते हैं जैसा कश्मीर से पंडितों को भगाने के मामले में किया, लेकिन मिशनरी और एवेंजेलिस्ट चालाक हैं, चुपके से काम करते हैं और मौका मिलते ही पीठ में छुरा घोंपते हैं (यह हम मिजोरम और उत्तर-पूर्व के अन्य राज्यों तथा कश्मीर में देख रहे हैं, देख चुके हैं)। अब आप कहेंगे कि ऐसी खबरें हमारे “सबसे तेज़” न्यूज़ चैनलों पर क्यों नहीं आतीं? जवाब एक ही है – कि इन चैनलों में “बिना रीढ़ के लोग” काम करते हैं जो अपने पाँच-M (मार्क्स-मुल्ला-मिशनरी-मैकाले-माइनो) पोषित आकाओं के इशारे पर रेंगते हैं… और “सेकुलर” पार्टियों द्वारा इन्हें “पाला” जाता है… ऐसी खबरें आपको सिर्फ़ ब्लॉग्स पर ही मिलेंगी…
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5) http://blog.sureshchiplunkar.com/2009/04/talibanization-kerala-congress-and_13.html
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