प्रवक्ता पोर्टल की ओर से सम्मान...
प्रवक्ता ने मुझ जैसे "आम आदमी" (बिना टोपी वाले) को लेखक के रूप में सम्मानित किया है यह खुशी की बात है. न तो मैंने कभी पत्रकारिता का कोई कोर्स किया, न किसी अखबार या चैनल में काम किया, न ही मैं पत्रकारिता की परम्परागत भाषा को लिखने में सिद्धहस्त हूँ और न ही मैं दिमाग से लिखता हूँ...
इसके बावजूद सिर्फ "मन" की बात को बेतरतीब और औघड़ पद्धति से लिखने वाले मेरे जैसे व्यक्ति को यदि श्री नरेश भारतीय, श्री राहुल देव, श्री उपासनी जैसे व्यक्तियों के साथ खड़े होने का मौका मिला तो निश्चित ही मैं इसके लिए "न्यू मीडिया" को धन्यवाद का पात्र मानता हूँ... यदि सोशल मीडिया न होता, या मैं इसमें न आया होता, तो संभवतः "संपादकों" की हिटलरशाही तथा राष्ट्रवादी विचारधारा के प्रति "वैचारिक छुआछूत" एवं "गैंगबाजी" का शिकार हो गया होता...
"प्रवक्ता" पोर्टल की ओर से सम्मान मिला... सभी का आभार व्यक्त करता हूँ.
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एक बार पुनः भाई संजीव सिन्हा, भारत भूषण जी का आभार, तथा मेरा लिखा हुआ पसंद करने वालों का दिल से धन्यवाद... दिल्ली के इस "अति-संक्षिप्त प्रवास" के दौरान भेंट हुए सभी आत्मीय मित्रों का भी धन्यवाद.
प्रवक्ता सम्मान ग्रहण करने इंदौर-चंडीगढ़ Holiday स्पेशल ट्रेन से दिल्ली गया था. जाते समय तीन घंटे लेट (सिर्फ दिल्ली तक) और आते समय चार घंटे लेट.. इस प्रकार प्लेटफार्म पर बिताए हुए समय और ट्रेन के सफ़र दोनों को मिलाकर कुल ३२ घंटे भारतीय रेलवे के साथ, और सिर्फ आठ घंटे दिल्ली में बिताए...
भारतीय रेलवे की मेहरबानी से इस लम्बी दूरी की ट्रेन में न तो पेंट्री कार थी और न ही साफ़-सफाई की व्यवस्था. साथ ही यह अलिखित नियम "बोनस" में था कि जो ट्रेन लेट चल रही हो उसे और लेट करते हुए पीछे से आने वाली ट्रेनों को पासिंग व क्रासिंग दिया जाए... इसके अतिरिक्त "दीपावली बोनस" के तौर पर सुविधा यह थी कि आते-जाते दोनों समय B-4 नंबर का एसी कोच रिजर्वेशन होने तथा चार्ट में प्रदर्शित किए जाने के बावजूद शुरू से लगाया ही नहीं गया, ताकि इस कोच के यात्री टीसी के सामने गिडगिडाते रहें.
अगली बार किसी भी हालीडे स्पेशल ट्रेन में यात्रा करने से पहले तीन बार सोच लेना...
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चित्र में :- दिल्ली से वापसी के समय रात डेढ़-दो बजे तक भाई Saurabh Chatterjee साथ बने रहे, उम्दा डिनर भी करवाया. मैंने भी भारतीय रेल की इस "कृपा"(?) का सदुपयोग पराग टोपे लिखित पुस्तक "The Operation Red Lotus" के तीन-चार अध्याय पढने में कर लिया...
प्रवक्ता ने मुझ जैसे "आम आदमी" (बिना टोपी वाले) को लेखक के रूप में सम्मानित किया है यह खुशी की बात है. न तो मैंने कभी पत्रकारिता का कोई कोर्स किया, न किसी अखबार या चैनल में काम किया, न ही मैं पत्रकारिता की परम्परागत भाषा को लिखने में सिद्धहस्त हूँ और न ही मैं दिमाग से लिखता हूँ...
इसके बावजूद सिर्फ "मन" की बात को बेतरतीब और औघड़ पद्धति से लिखने वाले मेरे जैसे व्यक्ति को यदि श्री नरेश भारतीय, श्री राहुल देव, श्री उपासनी जैसे व्यक्तियों के साथ खड़े होने का मौका मिला तो निश्चित ही मैं इसके लिए "न्यू मीडिया" को धन्यवाद का पात्र मानता हूँ... यदि सोशल मीडिया न होता, या मैं इसमें न आया होता, तो संभवतः "संपादकों" की हिटलरशाही तथा राष्ट्रवादी विचारधारा के प्रति "वैचारिक छुआछूत" एवं "गैंगबाजी" का शिकार हो गया होता...
"प्रवक्ता" पोर्टल की ओर से सम्मान मिला... सभी का आभार व्यक्त करता हूँ.
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एक बार पुनः भाई संजीव सिन्हा, भारत भूषण जी का आभार, तथा मेरा लिखा हुआ पसंद करने वालों का दिल से धन्यवाद... दिल्ली के इस "अति-संक्षिप्त प्रवास" के दौरान भेंट हुए सभी आत्मीय मित्रों का भी धन्यवाद.
प्रवक्ता सम्मान ग्रहण करने इंदौर-चंडीगढ़ Holiday स्पेशल ट्रेन से दिल्ली गया था. जाते समय तीन घंटे लेट (सिर्फ दिल्ली तक) और आते समय चार घंटे लेट.. इस प्रकार प्लेटफार्म पर बिताए हुए समय और ट्रेन के सफ़र दोनों को मिलाकर कुल ३२ घंटे भारतीय रेलवे के साथ, और सिर्फ आठ घंटे दिल्ली में बिताए...
भारतीय रेलवे की मेहरबानी से इस लम्बी दूरी की ट्रेन में न तो पेंट्री कार थी और न ही साफ़-सफाई की व्यवस्था. साथ ही यह अलिखित नियम "बोनस" में था कि जो ट्रेन लेट चल रही हो उसे और लेट करते हुए पीछे से आने वाली ट्रेनों को पासिंग व क्रासिंग दिया जाए... इसके अतिरिक्त "दीपावली बोनस" के तौर पर सुविधा यह थी कि आते-जाते दोनों समय B-4 नंबर का एसी कोच रिजर्वेशन होने तथा चार्ट में प्रदर्शित किए जाने के बावजूद शुरू से लगाया ही नहीं गया, ताकि इस कोच के यात्री टीसी के सामने गिडगिडाते रहें.
अगली बार किसी भी हालीडे स्पेशल ट्रेन में यात्रा करने से पहले तीन बार सोच लेना...
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चित्र में :- दिल्ली से वापसी के समय रात डेढ़-दो बजे तक भाई Saurabh Chatterjee साथ बने रहे, उम्दा डिनर भी करवाया. मैंने भी भारतीय रेल की इस "कृपा"(?) का सदुपयोग पराग टोपे लिखित पुस्तक "The Operation Red Lotus" के तीन-चार अध्याय पढने में कर लिया...
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