Hinduism Or Nationalistic is not a Right Winger...

Written by रविवार, 26 अक्टूबर 2014 13:48
हिन्दू धर्म का समर्थक, “दक्षिणपंथी” नहीं कहा जा सकता...

(आदरणीय विद्वान डॉक्टर राजीव मल्होत्रा जी के लेख से साभार, एवं अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवादित)
अनुवादकर्ता : सुरेश चिपलूनकर, उज्जैन (मप्र)

मित्रों...

अक्सर आपने “कथित” बुद्धिजीवियों (“कथित” इसलिए लिखा, क्योंकि वास्तव में ये बुद्धिजीवी नहीं, बल्कि बुद्धि बेचकर जीविका खाने वाले व्यक्ति हैं) को “राईट विंग” अथवा “दक्षिणपंथी” शब्द का इस्तेमाल करते सुना होगा. इस शब्द का उपयोग वे खुद को वामपंथी अथवा बुद्धिजीवी साबित करने के लिए करते हैं, अर्थात 2+2=4 सिद्ध करने के लिए “वामपंथी का उल्टा दक्षिणपंथी”. ये लोग अक्सर इस शब्द का उपयोग, “हिन्दूवादियों” एवं “राष्ट्रवादियों” को संबोधित करने के लिए करते हैं.

अब सवाल उठता है कि ये दोनों शब्द (अर्थात वामपंथ एवं दक्षिणपंथ) आए कहाँ से?? क्या ये शब्द भारतीय बुद्धिजीवियों की देन हैं? क्या इन शब्दों का इतिहास तमाम विश्वविद्यालयों में वर्षों से जमे बैठे “लाल कूड़े” ने कभी आपको बताया?? नहीं बताया!. असल में पश्चिम और पूर्व से आने वाले ऐसे ढेर सारे शब्दों को, जिनमें पश्चिमी वर्चस्व अथवा पूर्वी तानाशाही झलकती हो, उसे भारतीय सन्दर्भों से जबरदस्ती जोड़कर एक “स्थानीय पायजामा” पहनाने की बौद्धिक कोशिश सतत जारी रहती है. इन बुद्धिजीवियों के अकादमिक बहकावे में आकर कुछ हिंदूवादी नेता भी खुद को “राईट विंग या दक्षिणपंथी” कहने लग जाते हैं. जबकि असल में ऐसा है नहीं. आईये देखें कि क्यों ये दोनों ही शब्द वास्तव में भारत के लिए हैं ही नहीं...

फ्रांस की क्रान्ति के पश्चात, जब नई संसद का गठन हुआ तब किसानों और गरीबों को भी संसद का सदस्य होने का मौका मिला, वर्ना उसके पहले सिर्फ सामंती और जमींदार टाईप के लोग ही सांसद बनते थे. हालाँकि चुनाव में जीतकर आने के बावजूद, रईस जमींदार लोग संसद में गरीबों के साथ बैठना पसंद नहीं करते थे. ऐसा इसलिए कि उन दिनों फ्रांस में रोज़ाना नहाने की परंपरा नहीं थी. जिसके कारण गरीब और किसान सांसद बेहद बदबूदार होते थे. जबकि धनी और जमींदार किस्म के सांसद कई दिनों तक नहीं नहाने के बावजूद परफ्यूम लगा लेते थे और उनके शरीर से बदबू नहीं आती थी. परफ्यूम बेहद महँगा शौक था और सिर्फ रईस लोग ही इसे लगा पाते थे और परफ्यूम लगा होना सामंती की विशेष पहचान था. तब यह तय किया गया कि संसद में परफ्यूम लगाए हुए अमीर सांसद अध्यक्ष की कुर्सी के एक तरफ बैठें और जिन्होंने परफ्यूम नहीं लगाया हुआ है, ऐसे बदबूदार गरीब और किसान सांसद दूसरी तरफ बैठें.



चूँकि ये दोनों ही वर्ग एक-दूसरे को नाम से नहीं जानते थे और ना ही पसंद करते थे, इसलिए संसद में आने वाले लोगों तथा रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों ने “अध्यक्ष के दाँयी तरफ बैठे लोग” और अध्यक्ष के बाँई तरफ बैठे लोग” कहकर संबोधित करना और रिपोर्ट करना शुरू कर दिया. आगे चलकर स्वाभाविक रूप से “अनजाने में ही” यह मान लिया गया, कि बाँई तरफ बैठे बदबूदार सांसद गरीबों और किसानों की आवाज़ उठाते हैं अतः उन्हें “लेफ्ट विंग” (अध्यक्ष के बाँई तरफ) कहा जाने लगा. इसी विचार के व्युत्क्रम में दाँयी तरफ बैठे सांसदों को “राईट विंग” (अध्यक्ष के सीधे हाथ की तरफ बैठे हुए) कहा जाने लगा. यह मान लिया गया कि “खुशबूदार लोग” सिर्फ अमीरों और जमींदारों के हितों की बात करते हैं.

एक व्याख्यान के पश्चात JNU के एक छात्र ने गर्व भरी मुस्कान के साथ मुझसे पूछा कि, “मैं तो वामपंथी हूँ, लेकिन आपका लेखन देखकर समझ नहीं आता कि आप राईट विंग के हैं या लेफ्ट विंग के”? तब मैंने जवाब दिया कि, चूँकि भारतीय संस्कृति में रोज़ाना प्रातःकाल नहाने की परंपरा है, इसलिए मुझे परफ्यूम लगाकर खुद की बदबू छिपाने की कोई जरूरत नहीं है. इसलिए ना तो आप मुझे “खुशबूदार” की श्रेणी में रख सकते हैं और ना ही “बदबूदार” की श्रेणी में. भारत के लोग सर्वथा भिन्न हैं, उन्हें पश्चिम अथवा पूर्व की किसी भी शब्दावली में नहीं बाँधा जा सकता.

पश्चिमी बुद्धिजीवियों और लेखकों द्वारा “बना दी गई अथवा थोप दी गई सामान्य समझ” के अनुसार दक्षिणपंथी अर्थात धार्मिक व्यक्ति जो पूँजीवादी व्यवस्था और कुलीन सामाजिक कार्यक्रमों का समर्थक है. जबकि उन्हीं बुद्धिजीवियों द्वारा यह छवि बनाई गई है कि “वामपंथी” का अर्थ ऐसा व्यक्ति है जो अमीरों के खिलाफ, धर्म के खिलाफ है.

ऐसे में सवाल उठता है कि पश्चिम द्वारा बनाए गए इस “खाँचे और ढाँचे” के अनुसार मोहनदास करमचंद गाँधी को ये बुद्धिजीवी किस श्रेणी में रखेंगे? लेफ्ट या राईट? क्योंकि गाँधी तो गरीबों और दलितों के लिए भी काम करते थे साथ ही हिन्दू धर्म में भी उनकी गहरी आस्था थी. एक तरफ वे गरीबों से भी संवाद करते थे, वहीं दूसरी तरफ जमनादास बजाज जैसे उद्योगपतियों को भी अपने साथ रखते थे, उनसे चंदा लेते थे. इसी प्रकार सैकड़ों-हजारों की संख्या में “हिन्दू संगठन” हैं, जो गरीबों के लिए उल्लेखनीय काम करते हैं साथ ही धर्म का प्रचार भी करते हैं. दूसरी तरफ भारत में हमने कई तथाकथित सेकुलर एवं लेफ्ट विंग के ऐसे लोग भी देख रखे हैं, जो अरबपति हैं, कुलीन वर्ग से आते हैं. अतः “वाम” और “दक्षिण” दोनों ही पंथों को किसी एक निश्चित भारतीय खाँचे में फिट नहीं किया जा सकता, लेकिन अंधानुकरण तथा बौद्धिक कंगाली के इस दौर में, पश्चिम से आए हुए शब्दों को भारतीय बुद्धिजीवियों द्वारा न सिर्फ हाथोंहाथ लपक लिया जाता है, बल्कि इन शब्दों को बिना सोचे-समझे अधिकाधिक प्रचार भी दिया जाता है... स्वाभाविकतः हिंदुत्व समर्थकों अथवा राष्ट्रवादी नेताओं-लेखकों को “राईट विंग” (या दक्षिणपंथी) कहे जाने की परंपरा शुरू हुई.

हिन्दू ग्रंथों में इतिहास, धर्म, अर्थशास्त्र, वास्तु इत्यादि सभी हैं, जिन्हें सिर्फ संभ्रांतवादी नहीं कहा जा सकता. यह सभी शास्त्र इस पश्चिमी वर्गीकरण में कतई फिट नहीं बैठते. प्राचीन समय में जिस तरह से एक ब्राह्मण की जीवनशैली को वर्णित किया गया है, वह इस “अमेरिकी दक्षिणपंथी” श्रेणी से कतई मेल नहीं खाता. अतः हिंदुओं को स्वयं के लिए उपयोग किए जाने वाले “दक्षिणपंथी” शब्द को सीधे अस्वीकार करना चाहिए. एक हिन्दू होने के नाते मुझमें तथाकथित “अमेरिकी दक्षिणपंथ” के भी गुण मौजूद हैं और “अमेरिकी वामपंथ” के भी. मैं स्वयं को किसी सीमा में नहीं बाँधता, मैं दोनों ही तरफ की कई विसंगतियों से असहमत हूँ और रहूँगा. हाँ!!! अलबत्ता यदि कोई वामपंथी मित्र स्वयं को गर्व से वामपंथी कहता है तो उसे खुशी से वैसा करने दीजिए, क्योंकि वह वास्तव में वैसा ही है अर्थात पूँजी विरोधी, धर्म विरोधी और “बदबूदार”.

पुनश्च :- (आदरणीय विद्वान डॉक्टर राजीव मल्होत्रा जी के लेख से साभार एवं अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवादित)

अनुवादकर्ता : सुरेश चिपलूनकर, उज्जैन (मप्र) 
Read 2102 times Last modified on शुक्रवार, 30 दिसम्बर 2016 14:16
Super User

 

I am a Blogger, Freelancer and Content writer since 2006. I have been working as journalist from 1992 to 2004 with various Hindi Newspapers. After 2006, I became blogger and freelancer. I have published over 700 articles on this blog and about 300 articles in various magazines, published at Delhi and Mumbai. 


I am a Cyber Cafe owner by occupation and residing at Ujjain (MP) INDIA. I am a English to Hindi and Marathi to Hindi translator also. I have translated Dr. Rajiv Malhotra (US) book named "Being Different" as "विभिन्नता" in Hindi with many websites of Hindi and Marathi and Few articles. 

www.google.com