इस्लाम के "सच्चे" फ़ॉलोअर्स से आपका परिचय बहुत जरूरी है… Fanatic Followers of Islam
Written by Super User शनिवार, 07 नवम्बर 2009 12:11
एक खबर अपने "महान सेकुलर" भारत देश से, तथा एक खबर धुर इस्लामिक देश सोमालिया से, जबकि कुछ अन्य खबरें यत्र-तत्र बिखरी पड़ी हुई… इन्हें एक ही पोस्ट में समेटकर लाया हूं, ताकि आप इस्लाम के सच्चे फ़ॉलोअर्स से परिचित हो लें (वे सेकुलर्स और वामपंथी भी परिचित हो लें जो जानते-बूझते-समझते हुए भी नाटक करते हैं)…
(पाठकों हेतु एक सूचना - ब्रैकेट में लिखे हुए वाक्यों को मेरी "खट्टी डकार" समझा जाये)
उत्तराखण्ड के एक संवेदनशील सीमावर्ती इलाके जसपुर के एक मुस्लिम संगठन छीपी बिरादरी के अध्यक्ष मोहम्मद उस्मान ने बाकायदा बड़े-बड़े बोर्ड लगवाकर मुस्लिम महिलाओं के नाम "फ़रमान" जारी किया है कि वे बुरके के बगैर बाहर ना निकलें, पति के साथ ही बाज़ार जायें और मोबाइल का इस्तेमाल ना करें (शायद ज़ाकिर नाईक भी इस "गैर-इस्लामी चीज़" यानी मोबाइल का उपयोग नहीं करते होंगे)। उत्तराखण्ड और उत्तरप्रदेश की सिद्दीकी बिरादरी के प्रान्तीय अध्यक्ष मोहम्मद उस्मान साहब ने मुस्लिम महिलाओं को मज़ार भी में नहीं घुसने दिया और कहा कि यह कदम उन्होंने शरीयत और इस्लाम के कानूनों के तहत ही उठाया है (यानी कि वे भारत के कानूनों को नहीं मानते) (क्या देवबन्द वाले इन्हें समझा सकते हैं?) (चिदम्बरम जी, ये भारत की ही घटना है…
इसके पहले भी एक पोस्ट में महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में एक पोस्टर के बारे में बताया जा चुका है, यहाँ देखें… http://desicnn.com/wp/2009/10/12/blog-pos-16/
सोमालिया में 112 वर्ष के एक बूढ़े ने 17 साल की एक लड़की से निकाह किया है (अब यदि कोई उन्हें बूढ़ा कहे तो मुझे भी आपत्ति होगी)… प्राप्त खबर के अनुसार सोमालिया के अहमद मोहम्मद दोर जिसकी पहले से 5 बीवियाँ और 13 लड़के हैं (सबसे बड़े लड़के की आयु 80 वर्ष है) ने हाल ही में सफ़िया अब्दुल्ला नामक एक 17 वर्षीय लड़की से एक और निकाह किया है। इनके निकाह में हजारों लोगों ने शिरकत की (सभी फ़ॉलोअर्स)। मोहम्मद दोर ने शादी के बाद कहा कि अल्लाह ने मेरी एक बड़ी इच्छा पूरी की है (शायद अन्तिम होगी), वहीं लड़की के माता-पिता ने कहा कि "लड़की भी अपने नये पति के साथ बहुत खुश है" (ज़ाहिर है खुश तो होगी ही, "परदादा" की गोद देखी नहीं होगी कभी उसने)।
मोहम्मद दोर ने आगे कहा कि उन्होंने लड़की के बड़ा होने का काफ़ी इन्तज़ार किया फ़िर उसके परिवार वालों के सामने शादी का प्रस्ताव रखा (यानी जब वह बच्ची थी, तभी से निगाह थी चचा की)। मैंने किसी से कोई ज़ोर-जबरदस्ती नहीं की है, यह राजी-खुशी से हुई एक शादी है। (चित्र में - नवविवाहित युगल)
जब बीबीसी के संवाददाता मोहम्मद ओलाद हसन ने मोगादिशु में जनता से इस सम्बन्ध में रायशुमारी की तो चौंकाने वाले परिणाम सामने आये, कुछ लोगों ने कहा कि यह इस्लामिक कानूनों (?) के तहत एक सामान्य और मान्य प्रक्रिया है इसलिये उन्हें कोई आपत्ति नहीं है, जबकि कुछ लोगों ने इस उम्र के अन्तर पर चिंता जताई (लेकिन कड़ी या नरम कैसी भी आलोचना नहीं की…… फ़िर वही फ़ॉलोअर्स वाली थ्योरी)। मोहम्मद दार का जन्म 1897 में हुआ बताया जाता है और उसका जन्म प्रमाण पत्र खुद उसके पिता द्वारा बकरे के चमड़े पर लिखा हुआ है। वैसे फ़िलहाल कुल मिलाकर मोहम्मद दार के 114 पोते-पोतियाँ-परपोते आदि हैं, और इसके पहले की पाँच में से तीन पत्नियों की मौत हो चुकी है (न होती तो आश्चर्य ही होता)… दोर को उम्मीद है कि जल्दी ही उसकी नई पत्नी एक बच्चे को जन्म देगी…
इस खबर को बीबीसी की साइट पर पढ़ा जा सकता है… http://news.bbc.co.uk/2/hi/africa/8331136.stm
अब कुछ और फ़ॉलोअर्स से ही सम्बन्धित खबरें इधर-उधर की…
सूडान में एक महिला पत्रकार को 40 कोड़े मारने की सजा दी गई है, क्योंकि उसने पतलून पहन रखी थी और इस्लाम में महिलाओं के पतलून पहनने पर पाबन्दी है। संयुक्त राष्ट्र की सूचना अधिकारी लुबना अहमद हुसैन को यह सजा दी गई (शायद वे यह भूल गई होंगी कि सूडान कोई संयुक्त राष्ट्र का दफ़्तर नहीं है, यह फ़ॉलोअर्स की धरती है)। लुबना के साथ पकड़ी गई (?) अन्य महिलाओं को 10-10 कोड़े मारे गये, लेकिन लुबना ने अपने लिये वकील की मांग कर डाली इसलिये उन्हें 40 कोड़े मारे गये… है ना वितृष्णाजनक…
(इस खबर को यहाँ पढ़ें… http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/4834045.cms)
एक और खबर इधर भी पढ़ें…
""सऊदी महिला पत्रकार को 60 कोड़े मारने की सजा"" (शायद सऊदी अरब भी अशिक्षित और पिछड़ा देश होगा)
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/5160424.cms
और भी चाहिये हों तो ये भी पढ़ें…
""फांसी से पहले रेप- एक कानून ऐसा भी""
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/4810015.cms
वेदों और पुराणों को आधार बनाकर आलतू-फ़ालतू लेख लिखने वाले नकलबाज ब्लागर इस खबर को भी पढ़ सकते हैं…
""मिस्यार शादी यानी सेक्स संबंध बनाने का लाइसेंस…" (बीच में किसी नियोग-फ़ियोग के बारे में कोई बकवास कहीं पढ़ी थी, शायद इस लिंक को पढ़कर अकल आ जाये)
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/4939231.cms
और लीजिये साहब, महिलाओं की "ब्रा" भी गैर-इस्लामी हो गई…
""सोमालियाई विद्रोहियों ने कहा, ब्रा गैर-इस्लामी…"
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/5138430.cms
कहने का तात्पर्य सिर्फ़ इतना है कि मजमा लगाकर दूसरों को उपदेश देने, दूसरों के धर्मग्रन्थों में खोट निकालने, खुद को श्रेष्ठ बताने और एक किताब को अन्तिम सत्य मानने वाले फ़ॉलोअर्स यह समझ लें कि वेदों के ज़माने में कुछ भी हुआ रहा हो वह उस वक्त के अनुसार सही-गलत रहा होगा, लेकिन हिन्दुओं ने वक्त के साथ अपने को बहुत बदल लिया है, जबकि कुछ लोग अब भी बदलने को तैयार नहीं हैं…। स्पष्ट है कि "रुका हुआ पानी सड़ांध मारने लगता है, बहता हुआ पानी ही निर्मल कहलाता है…"।
सुना है कि पूरे विश्व के इस्लामिक जगत में देवबन्द के फ़तवे और राय का काफ़ी महत्वपूर्ण स्थान होता है, वन्देमातरम पर फ़तवा जारी करने से पहले ऊपर बताई गई घटनाओं पर कुछ फ़तवे-जिरह-बहस कर लेते और सम्बन्धित पक्षों को नसीहत देते। अब दिक्कत ये है कि उत्तरप्रदेश में ही देशभक्त मुस्लिम बहनें सार्वजनिक रूप से वन्देमातरम गा रही हैं, गाती भी रहेंगी, एआर रहमान ने वन्देमातरम को विश्वप्रसिद्ध बनाया… ऐसे में प्रगतिशील मुस्लिमों को आगे आना होगा, इन कठमुल्लाओं के खिलाफ़ आवाज़ उठानी होगी, उन्हें यह समझना होगा कि ये लोग उन्हें भी अपनी "भेड़ों की रेवड़" का हिस्सा बना लेना चाहते हैं… जब तक प्रगतिशील मुस्लिम आगे बढ़कर इनका विरोध नहीं करेंगे तब तक साम्प्रदायिकता का मुद्दा हल होने वाला नहीं है।
इनके "असली मंसूबे" क्या हैं यह इस खबर में पढ़ सकते हैं, जिसमें इन्होंने ब्रिटेन में भी शरीयत कानून की मांग, महारानी एलिज़ाबेथ को बुर्का पहनाने और बकिंघम पैलेस का नाम बदलकर "बकिंघम मस्जिद" करने का मंसूबा बनाया है…
(खबर इधर पढ़ें… http://hindi.webdunia.com/news/news/international/0911/01/1091101104_1.htm)
ऐसा नहीं कि सब कुछ बुरा ही बुरा है, कुछ अच्छा भी हो रहा है… दो खबरें और हैं जैसे कि खामखा की फ़िजूलखर्ची रोकने की सलाह देता हुआ शिया पर्सनल लॉ बोर्ड……
""मैरिज हॉल की जगह मस्जिदों में करें निकाह""
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/5154148.cms
ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने ऐलान किया है कि निकाह मस्जिदों में कराए जाने चाहिए। ऐसा बेतहाशा खर्च को रोकने के मकसद से कहा गया है। बोर्ड के प्रेजिडेंट मौलाना मिर्जा मोहम्मद अतहर ने कहा, शादी जैसे फंक्शन आम पारिवारिक फंक्शन होते हैं। लेकिन हमारा समुदाय मैरिज हॉल कल्चर के चलते बहुत अधिक खर्चा करने लगा है। मैं लोगों से अनुरोध करता हूं कि इससे बचें।
मिस्त्र में लड़कियों/महिलाओं की कक्षा में बुरके पर बैन…
ओनली वुमन क्लास में बुर्के पर अब बैन
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/5107540.cms
काहिरा ।। मिस्त्र के मशहूर अल-अजहर यूनिवर्सिटी ने ऐसी क्लासों में छात्राओं और टीचरों के बुर्का पहनने पर बैन लगा दिया है, जिसमें सिर्फ लड़कियां ही हों। वुमन डॉरमिटरी और यूनिवर्सिटी से संबद्ध स्कूलों में भी यह बैन प्रभावी होगा। हालांकि वे घरों और सड़कों पर नकाब पहन सकेंगी। इस ऐतिहासिक फैसले में इंस्टिट्यूट ने कहा है कि यूनिवर्सिटी की सुप्रीम काउंसिल ने सिर्फ महिलाओं की कक्षाओं में छात्राओं और टीचर्स के नकाब पहनने पर बैन लगाने का फैसला किया है। इसका उद्देश्य आत्मविश्वास, आराम और टीचरों तथा स्टूडेंट्स के बीच परस्पर सुनने-समझने की क्षमता बढ़ाना है। परीक्षा के समय भी उनके नकाब पहनने पर प्रतिबंध लगाने का फैसला लिया गया है।
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चाहता तो इन खबरों पर 10-20 माइक्रो पोस्ट बना सकता था, लेकिन मैंने सोचा कि सुनारों की तरह टुच-टुच क्या करना, लोहार की तरह एक हथौड़ा ही क्यों न चलाया जाये, इसलिये सारी खबरों को एक जगह संकलित कर दिया… संदेश सिर्फ़ एक ही है कि हिन्दुओं को उनके वेदों-पुराणों और धर्मग्रन्थों के बारे में किसी "बाहरी" व्यक्ति से नसीहत सुनने की कतई ज़रूरत नहीं है, "दूसरों के घरों में ताँक-झाँक करना छोड़ो, पहले अपने गंदे कपड़े तो धो लो…" हिन्दुओं में तो परमहंस, राजा राममोहन राय, ज्योतिबा फ़ुले और महात्मा गाँधी जैसे कई समाज सुधारक आये… और बदलाव हुआ भी है… लेकिन आपका क्या?
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(पाठकों हेतु एक सूचना - ब्रैकेट में लिखे हुए वाक्यों को मेरी "खट्टी डकार" समझा जाये)
1) सबसे पहली खबर अपने देश से (आखिर मेरा भारत महान है)…
उत्तराखण्ड के एक संवेदनशील सीमावर्ती इलाके जसपुर के एक मुस्लिम संगठन छीपी बिरादरी के अध्यक्ष मोहम्मद उस्मान ने बाकायदा बड़े-बड़े बोर्ड लगवाकर मुस्लिम महिलाओं के नाम "फ़रमान" जारी किया है कि वे बुरके के बगैर बाहर ना निकलें, पति के साथ ही बाज़ार जायें और मोबाइल का इस्तेमाल ना करें (शायद ज़ाकिर नाईक भी इस "गैर-इस्लामी चीज़" यानी मोबाइल का उपयोग नहीं करते होंगे)। उत्तराखण्ड और उत्तरप्रदेश की सिद्दीकी बिरादरी के प्रान्तीय अध्यक्ष मोहम्मद उस्मान साहब ने मुस्लिम महिलाओं को मज़ार भी में नहीं घुसने दिया और कहा कि यह कदम उन्होंने शरीयत और इस्लाम के कानूनों के तहत ही उठाया है (यानी कि वे भारत के कानूनों को नहीं मानते) (क्या देवबन्द वाले इन्हें समझा सकते हैं?) (चिदम्बरम जी, ये भारत की ही घटना है…
इसके पहले भी एक पोस्ट में महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में एक पोस्टर के बारे में बताया जा चुका है, यहाँ देखें… http://desicnn.com/wp/2009/10/12/blog-pos-16/
2) धुर इस्लामिक देश सोमालिया से एक खबर -
सोमालिया में 112 वर्ष के एक बूढ़े ने 17 साल की एक लड़की से निकाह किया है (अब यदि कोई उन्हें बूढ़ा कहे तो मुझे भी आपत्ति होगी)… प्राप्त खबर के अनुसार सोमालिया के अहमद मोहम्मद दोर जिसकी पहले से 5 बीवियाँ और 13 लड़के हैं (सबसे बड़े लड़के की आयु 80 वर्ष है) ने हाल ही में सफ़िया अब्दुल्ला नामक एक 17 वर्षीय लड़की से एक और निकाह किया है। इनके निकाह में हजारों लोगों ने शिरकत की (सभी फ़ॉलोअर्स)। मोहम्मद दोर ने शादी के बाद कहा कि अल्लाह ने मेरी एक बड़ी इच्छा पूरी की है (शायद अन्तिम होगी), वहीं लड़की के माता-पिता ने कहा कि "लड़की भी अपने नये पति के साथ बहुत खुश है" (ज़ाहिर है खुश तो होगी ही, "परदादा" की गोद देखी नहीं होगी कभी उसने)।
मोहम्मद दोर ने आगे कहा कि उन्होंने लड़की के बड़ा होने का काफ़ी इन्तज़ार किया फ़िर उसके परिवार वालों के सामने शादी का प्रस्ताव रखा (यानी जब वह बच्ची थी, तभी से निगाह थी चचा की)। मैंने किसी से कोई ज़ोर-जबरदस्ती नहीं की है, यह राजी-खुशी से हुई एक शादी है। (चित्र में - नवविवाहित युगल)
जब बीबीसी के संवाददाता मोहम्मद ओलाद हसन ने मोगादिशु में जनता से इस सम्बन्ध में रायशुमारी की तो चौंकाने वाले परिणाम सामने आये, कुछ लोगों ने कहा कि यह इस्लामिक कानूनों (?) के तहत एक सामान्य और मान्य प्रक्रिया है इसलिये उन्हें कोई आपत्ति नहीं है, जबकि कुछ लोगों ने इस उम्र के अन्तर पर चिंता जताई (लेकिन कड़ी या नरम कैसी भी आलोचना नहीं की…… फ़िर वही फ़ॉलोअर्स वाली थ्योरी)। मोहम्मद दार का जन्म 1897 में हुआ बताया जाता है और उसका जन्म प्रमाण पत्र खुद उसके पिता द्वारा बकरे के चमड़े पर लिखा हुआ है। वैसे फ़िलहाल कुल मिलाकर मोहम्मद दार के 114 पोते-पोतियाँ-परपोते आदि हैं, और इसके पहले की पाँच में से तीन पत्नियों की मौत हो चुकी है (न होती तो आश्चर्य ही होता)… दोर को उम्मीद है कि जल्दी ही उसकी नई पत्नी एक बच्चे को जन्म देगी…
इस खबर को बीबीसी की साइट पर पढ़ा जा सकता है… http://news.bbc.co.uk/2/hi/africa/8331136.stm
अब कुछ और फ़ॉलोअर्स से ही सम्बन्धित खबरें इधर-उधर की…
सूडान में एक महिला पत्रकार को 40 कोड़े मारने की सजा दी गई है, क्योंकि उसने पतलून पहन रखी थी और इस्लाम में महिलाओं के पतलून पहनने पर पाबन्दी है। संयुक्त राष्ट्र की सूचना अधिकारी लुबना अहमद हुसैन को यह सजा दी गई (शायद वे यह भूल गई होंगी कि सूडान कोई संयुक्त राष्ट्र का दफ़्तर नहीं है, यह फ़ॉलोअर्स की धरती है)। लुबना के साथ पकड़ी गई (?) अन्य महिलाओं को 10-10 कोड़े मारे गये, लेकिन लुबना ने अपने लिये वकील की मांग कर डाली इसलिये उन्हें 40 कोड़े मारे गये… है ना वितृष्णाजनक…
(इस खबर को यहाँ पढ़ें… http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/4834045.cms)
एक और खबर इधर भी पढ़ें…
""सऊदी महिला पत्रकार को 60 कोड़े मारने की सजा"" (शायद सऊदी अरब भी अशिक्षित और पिछड़ा देश होगा)
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/5160424.cms
और भी चाहिये हों तो ये भी पढ़ें…
""फांसी से पहले रेप- एक कानून ऐसा भी""
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/4810015.cms
वेदों और पुराणों को आधार बनाकर आलतू-फ़ालतू लेख लिखने वाले नकलबाज ब्लागर इस खबर को भी पढ़ सकते हैं…
""मिस्यार शादी यानी सेक्स संबंध बनाने का लाइसेंस…" (बीच में किसी नियोग-फ़ियोग के बारे में कोई बकवास कहीं पढ़ी थी, शायद इस लिंक को पढ़कर अकल आ जाये)
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/4939231.cms
और लीजिये साहब, महिलाओं की "ब्रा" भी गैर-इस्लामी हो गई…
""सोमालियाई विद्रोहियों ने कहा, ब्रा गैर-इस्लामी…"
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/5138430.cms
कहने का तात्पर्य सिर्फ़ इतना है कि मजमा लगाकर दूसरों को उपदेश देने, दूसरों के धर्मग्रन्थों में खोट निकालने, खुद को श्रेष्ठ बताने और एक किताब को अन्तिम सत्य मानने वाले फ़ॉलोअर्स यह समझ लें कि वेदों के ज़माने में कुछ भी हुआ रहा हो वह उस वक्त के अनुसार सही-गलत रहा होगा, लेकिन हिन्दुओं ने वक्त के साथ अपने को बहुत बदल लिया है, जबकि कुछ लोग अब भी बदलने को तैयार नहीं हैं…। स्पष्ट है कि "रुका हुआ पानी सड़ांध मारने लगता है, बहता हुआ पानी ही निर्मल कहलाता है…"।
सुना है कि पूरे विश्व के इस्लामिक जगत में देवबन्द के फ़तवे और राय का काफ़ी महत्वपूर्ण स्थान होता है, वन्देमातरम पर फ़तवा जारी करने से पहले ऊपर बताई गई घटनाओं पर कुछ फ़तवे-जिरह-बहस कर लेते और सम्बन्धित पक्षों को नसीहत देते। अब दिक्कत ये है कि उत्तरप्रदेश में ही देशभक्त मुस्लिम बहनें सार्वजनिक रूप से वन्देमातरम गा रही हैं, गाती भी रहेंगी, एआर रहमान ने वन्देमातरम को विश्वप्रसिद्ध बनाया… ऐसे में प्रगतिशील मुस्लिमों को आगे आना होगा, इन कठमुल्लाओं के खिलाफ़ आवाज़ उठानी होगी, उन्हें यह समझना होगा कि ये लोग उन्हें भी अपनी "भेड़ों की रेवड़" का हिस्सा बना लेना चाहते हैं… जब तक प्रगतिशील मुस्लिम आगे बढ़कर इनका विरोध नहीं करेंगे तब तक साम्प्रदायिकता का मुद्दा हल होने वाला नहीं है।
इनके "असली मंसूबे" क्या हैं यह इस खबर में पढ़ सकते हैं, जिसमें इन्होंने ब्रिटेन में भी शरीयत कानून की मांग, महारानी एलिज़ाबेथ को बुर्का पहनाने और बकिंघम पैलेस का नाम बदलकर "बकिंघम मस्जिद" करने का मंसूबा बनाया है…
(खबर इधर पढ़ें… http://hindi.webdunia.com/news/news/international/0911/01/1091101104_1.htm)
ऐसा नहीं कि सब कुछ बुरा ही बुरा है, कुछ अच्छा भी हो रहा है… दो खबरें और हैं जैसे कि खामखा की फ़िजूलखर्ची रोकने की सलाह देता हुआ शिया पर्सनल लॉ बोर्ड……
""मैरिज हॉल की जगह मस्जिदों में करें निकाह""
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/5154148.cms
ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने ऐलान किया है कि निकाह मस्जिदों में कराए जाने चाहिए। ऐसा बेतहाशा खर्च को रोकने के मकसद से कहा गया है। बोर्ड के प्रेजिडेंट मौलाना मिर्जा मोहम्मद अतहर ने कहा, शादी जैसे फंक्शन आम पारिवारिक फंक्शन होते हैं। लेकिन हमारा समुदाय मैरिज हॉल कल्चर के चलते बहुत अधिक खर्चा करने लगा है। मैं लोगों से अनुरोध करता हूं कि इससे बचें।
मिस्त्र में लड़कियों/महिलाओं की कक्षा में बुरके पर बैन…
ओनली वुमन क्लास में बुर्के पर अब बैन
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/5107540.cms
काहिरा ।। मिस्त्र के मशहूर अल-अजहर यूनिवर्सिटी ने ऐसी क्लासों में छात्राओं और टीचरों के बुर्का पहनने पर बैन लगा दिया है, जिसमें सिर्फ लड़कियां ही हों। वुमन डॉरमिटरी और यूनिवर्सिटी से संबद्ध स्कूलों में भी यह बैन प्रभावी होगा। हालांकि वे घरों और सड़कों पर नकाब पहन सकेंगी। इस ऐतिहासिक फैसले में इंस्टिट्यूट ने कहा है कि यूनिवर्सिटी की सुप्रीम काउंसिल ने सिर्फ महिलाओं की कक्षाओं में छात्राओं और टीचर्स के नकाब पहनने पर बैन लगाने का फैसला किया है। इसका उद्देश्य आत्मविश्वास, आराम और टीचरों तथा स्टूडेंट्स के बीच परस्पर सुनने-समझने की क्षमता बढ़ाना है। परीक्षा के समय भी उनके नकाब पहनने पर प्रतिबंध लगाने का फैसला लिया गया है।
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चाहता तो इन खबरों पर 10-20 माइक्रो पोस्ट बना सकता था, लेकिन मैंने सोचा कि सुनारों की तरह टुच-टुच क्या करना, लोहार की तरह एक हथौड़ा ही क्यों न चलाया जाये, इसलिये सारी खबरों को एक जगह संकलित कर दिया… संदेश सिर्फ़ एक ही है कि हिन्दुओं को उनके वेदों-पुराणों और धर्मग्रन्थों के बारे में किसी "बाहरी" व्यक्ति से नसीहत सुनने की कतई ज़रूरत नहीं है, "दूसरों के घरों में ताँक-झाँक करना छोड़ो, पहले अपने गंदे कपड़े तो धो लो…" हिन्दुओं में तो परमहंस, राजा राममोहन राय, ज्योतिबा फ़ुले और महात्मा गाँधी जैसे कई समाज सुधारक आये… और बदलाव हुआ भी है… लेकिन आपका क्या?
Fanatic Muslims, Fanatic Followers of Islam, Cruelty in Islamic, Tradition Shariyat Law and Nationalism, Islam and Women, Zakir Naik, Somalia Sudan, Devband Jamiyat, इस्लाम और महिलाओं के अधिकार, महिलाओं के साथ क्रूरता, इस्लाम के अनुयायी, शरीयत कानून और देशहित, वन्देमातरम, ज़ाकिर नाईक, देवबन्द, दारुल-उलूम, जमीयत उलेमा, Blogging, Hindi Blogging, Hindi Blog and Hindi Typing, Hindi Blog History, Help for Hindi Blogging, Hindi Typing on Computers, Hindi Blog and Unicode
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