विमुद्रीकरण एवं मोबाईल बैंकिंग

Written by शनिवार, 17 दिसम्बर 2016 12:04
स्मार्टफोन के बिना भी मोबाईल बैंकिंग संभव...
 
प्रधानमंत्री मोदीजी ने अपनी मन की बात में युवाओं से आग्रह किया है कि हमें कैशलेस सोसायटी की तरफ बढ़ना है और अधिकाँश भुगतान डिजिटल स्वरूप में करना चाहिए, ताकि भारत में नकदी का प्रवाह “सफ़ेद और ईमानदार धन” के रूप में हो सके. स्वाभाविक रूप से मोदी विरोधियों के पेट में दर्द शुरू हुआ और लगभग सभी का मूल सवाल था कि अभी भारत में कितने लोग सरलता से मोबाईल उपयोग कर पाते हैं? भारत में कितने मोबाईल हैं? उसमें से कितने स्मार्टफोन हैं? क्या स्मार्टफोन के बिना भी मोबाईल बैंकिंग संभव है? इन सभी प्रश्नों का एक ही उत्तर है, “जहाँ चाह, वहाँ राह...”.
भारत सरकार के उपक्रम NPCI अर्थात National Payment Corporation of India यानी “भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम” के तत्त्वावधान में ऐसी तकनीक ईजाद कर ली गई है, जिसके सहारे ग्रामीण क्षेत्रों में लोग “बेसिक फोन” (अर्थात पुराने जमाने के नोकिया अथवा सस्ते डायलिंग फोन) के जरिये भी बैंकिंग आसान बना दी गई है. इसलिए अब यह बहाना नहीं चलेगा कि “मेरे पास स्मार्टफोन नहीं है, इसलिए मैं डिजिटल बैंकिंग नहीं करूँगा”.
 
 
आईये पहले कुछ साधारण से तथ्य देखें... भारत में इस समय लगभग 103 करोड़ लोगों के पास मोबाईल हैं (जो कि कुल जनसँख्या का लगभग 80% है). इस जनसंख्या में स्मार्टफोन की संख्या भी तीस करोड़ के आसपास पहुँच चुकी है. मोबाईल उपभोक्ताओं की संख्या लगभग दस लाख कनेक्शन प्रतिमाह की तेज गति से बढ़ रही है. ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि सन 2020 तक भारत के 95% जनसँख्या के पास कम से कम एक बेसिक मोबाईल जरूर होगा. इसीलिए सरकार ने “कैशलेस समाज” की जो परिकल्पना की है, उसमें NPCI की इस तकनीक का बहुत महत्त्व रहेगा, क्योंकि इसमें स्मार्टफोन की जरूरत नहीं है, सीखने में बहुत सरल है तथा सुरक्षित भी है. कहने का मतलब ये है कि समस्या तकनीक नहीं है, बल्कि बैंक खातों की संख्या है. देश में लोगों के पास मोबाईल तो भरपूर हैं, पैसा भी है... लेकिन बैंक में खाता खुलवाने के प्रति जागरूकता नहीं है. बहरहाल, आईये हम देखते हैं कि NCPI कैसे काम करता है और ग्रामीणों-अशिक्षितों-किसानों-सुदूरवर्ती लोगों के लिए यह कैसे सरल एवं उपयोगी सिद्ध हो सकती है.
 
NCPI शब्द का अर्थ आप समझ चुके हैं, अब इस सरकारी उपक्रम द्वारा बनाए गए मोबाईल प्लेटफार्म अर्थात NUUP का अर्थ जान लीजिए... NUUP = National Unified USSD Platform. यही मोबाईल प्लेटफार्म बेसिक मोबाईलधारकों को अपने समस्त बैंकिंग व्यवहार करने के लिए सक्षम बनाता है. इस मोबाईल प्लेटफार्म के जरिये केवल पैसा ट्रांसफर, भुगतान ही नहीं होता, बल्कि ATM की तरह खाते का बैलेंस चेक करना, मिनी स्टेटमेंट निकालना भी संभव है. USSD का अर्थ होता है Unstructured Supplementary Service Data यह कार्यप्रणाली सभी बेसिक मोबाईल में शुरू से कार्यरत होती है. प्रधानमंत्री बनते ही सबसे पहले मोदीजी ने 28 अगस्त 2014 को इस सेवा का शुभारंभ कर दिया था. इसके बाद ही उन्होंने जन-धन खातों की योजना शुरू की थी. NCPI की इस तकनीक में सबसे पहले मोबाईल उपभोक्ता (शर्त केवल इतनी है कि उसका बैंक खाता हो, तथा वह मोबाईल नंबर उस बैंक खाते की मोबाईल बैंकिंग सेवा से जुड़ा हुआ हो) अपने मोबाईल से *99# डायल करेगा. यह करते ही उसके सामने उसके बैंक खाते का IFSC कोड डालने का विकल्प आएगा. चार अंकों का यह कोड डालते ही उसका मोबाईल उसके बैंक खाते से जुड़ जाएगा. फिर पासवर्ड डालकर वह उपभोक्ता तत्काल सभी प्रकार के मूलभूत बैंकिंग व्यवहार कर सकता है. केवल पहली बार मोबाईल उपभोक्ता को अपने बैंक का IFSC कोड तथा पासवर्ड याद करना होगा. यह सेवा चौबीस घंटे शुरू रहेगी, और इसका सबसे शानदार पहलू यह है कि यह सेवा बारह भारतीय भाषाओं में उपलब्ध है. उपभोक्ता को अपनी मनपसंद भाषा चुनने के लिए सम्बन्धित नंबर भी डायल करना होगा. उसी मोबाईल पर OTP भी प्राप्त होगा, ताकि M-PIN (अर्थात पासवर्ड) के अलावा दोहरी सुरक्षा व्यवस्था बनी रहे. फिलहाल रिजर्व बैंक ने ग्रामीणों एवं अशिक्षितों की सुरक्षा के लिए इस सेवा को केवल पाँच हजार रूपए (प्रतिदिन) की सीमा में बाँध दिया है, ताकि यदि कोई भी गडबड़ी हो तो ग्राहक का अधिकतम नुक्सान केवल पाँच हजार रूपए तक ही हो सकता है.
 
 
यदि ग्राहक का मोबाईल चोरी हो जाए अथवा गिर जाए, तब भी उस चोर को ना तो यह पता होगा कि आपका खाता किस बैंक में है, यह मोबाईल किस बैंक से जुड़ा हुआ है और उसका M-PIN भी उसे नहीं पता होगा. मान लीजिए कि यह सारी बातें कोई जान भी गया तब भी वह मोबाईल के बैंकिंग ग्राहक को पाँच हजार रूपए (एक दिन में) से अधिक का चूना नहीं लगा सकता. इस प्लेटफार्म का फायदा यह है कि यह उपभोक्ता के मोबाईल नंबर के आधार पर काम करता है. यदि किसी का मोबाईल चोरी हो जाए तो वह तुरंत बैंक की शाखा में जाकर अपना नया नंबर रजिस्टर करवा सकता है, जिससे पुराने नंबर पर कोई भी बैंकिंग कोड आना बन्द हो जाएगा. अर्थात अगली बार (यानी अगले दिन) के पाँच हजार रूपए के लिए जो M-PIN पासवर्ड डाला जाएगा, वह नए मोबाईल नंबर पर आएगा. पैसा ट्रांसफर करने के लिए आपको सामने वाले के बैंक का IFSC कोड तथा उसका मोबाईल नंबर पता होना चाहिए, बस हो गया काम आसान. जब ग्रामीण क्षेत्रों में यह तकनीक धीरे-धीरे सीखने लगेंगे और अपनाने लगेंगे, तो ज़ाहिर है कि रिजर्व बैंक इस मोबाईल बैंकिंग की सीमा पाँच से बढ़ाकर दस या बीस हजार रूपए भी कर देगा.
 
ग्रामीणों-अशिक्षितों और किसानों इत्यादि के लिए यह तकनीक एक वरदान के समान है. और वैसे भी जब ये सभी लोग एक सामान्य बेसिक फोन द्वारा उसके तमाम तकनीकी पहलू समझ लेते हैं, हिन्दी में मेनू देखकर मोबाईल ठीक से चला लेते हैं अथवा जिन ग्रामीणों-अशिक्षितों के पास स्मार्टफोन है, वे आराम से व्हाट्स एप्प अथवा फेसबुक चला लेते हैं तो फिर मोबाईल से बैंकिंग करने अथवा सीखने में क्या समस्या है?? एक-दो बार चलाकर देखते ही शुरुआती झिझक खत्म होने के बाद वे इसे सीख ही जाएँगे. तभी तो मोदीजी का “डिजिटल इण्डिया” और “कैशलेस इकोनॉमी” का सपना साकार होगा.
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