दिल्ली विधानसभा चुनाव : मोदी बनाम मीडिया - गैस प्लांट का खेल
हर चैनल पर पांच मिनट के बाद आम आदमी पार्टी का विज्ञापन आ रहा है .. हर दो मिनट पर स्क्रीन के आधे भाग में आम आदमी का विज्ञापन आ रहा है ... एफएम रेडियो पर भी AAP के प्रचार की भरमार है.. इसके अलावा हर अखबार के मुखपृष्ठ पर आम आदमी पार्टी का विज्ञापन ... दिल्ली के लगभग सभी चौराहों पर बड़े बड़े होर्डिंग.... मोटा-मोटा अंदाजा भी लगाएँ तो अरविन्द केजरीवाल ने करीब सात से आठ सौ करोड़ रूपये सिर्फ विज्ञापन पर फूंके है ... कहाँ से आ रहा है इतना पैसा?? क्या सिर्फ जनता से लिए गए मामूली चन्दे से?? ये चंदा वह है जो हाथी के दाँत की तरह दिखाने के लिए होता है. पैसों का असली खेल तो परदे के पीछे चल रहा है.. मजे की बात ये की केजरीवाल एक तरफ मुकेश अंबानी को गाली देते है और दूसरी तरफ मुकेश अंबानी के चैनलों-अखबारों को ही विज्ञापन के रूप में पर केजरीवाल ने कम से कम दो सौ करोड़ रूपये दिए होंगे. क्योकि नेटवर्क-18 यानी आईबीएन, सीएनबीसी, ईटीवी के पूर्ण मालिक और भारत में नेट जियो, हिस्ट्री, आदि के प्रसारण का मालिकी अधिकार मुकेश अंबानी के पास है... आठ अखबारों में भी ३०% भागीदार भी मुकेश अंबानी है... केजरीवाल भ्रष्टाचार को मुख्य मुद्दा बनाकर राजनीति में आये थे .और आज के समय में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार मीडिया में ही है... यह बात उनका खास चमचा आशुतोष अच्छे से बता सकता है.... फिर केजरीवाल मीडिया को आठ सौ करोड़ रूपये क्यों दे रहे है?
भाई जितेन्द्र प्रताप सिंह ने अपनी फेसबुक वाल पर उदाहरण देते हुए लिखा है कि - एक बार जब कांशीराम बामसेफ नामक संगठन बनाकर यूपी के गाँवों गाँवों में साइकिल से घुमा करते थे, और दलितों को संगठित करते थे .. तब एक पत्रकार ने उनसे पूछा था की आप इतना मेहनत करते है, गाँव गाँव में साइकिल से जाते हैं, आप अखबारों में बामसेफ का प्रचार क्यों नही करते? इस पर कांशीराम ने जबाब दिया था की ऐसा नही कि मेरे पास पैसा नही है .. लेकिन सभी अखबारों और पत्रिकाओ के मालिक तो ब्राम्हण, राजपूत या बनिया लोग है फिर मै उन्हें पैसे क्यों दूँ ? जिनके खिलाफ मै आवाज उठा रहा हूँ उनको ही पैसा देकर उन्हें और ज्यादा आर्थिक रूप से मजबूत क्यों करूं ? फिर अरविन्द केजरीवाल जो परदे के सामने मुकेश अंबानी का विरोध करते हैं, उन्हें करोड़ों रूपए क्यों दे रहे हैं? कहाँ से दे रहे हैं?.... या वास्तव में दे भी रहे हैं कि नहीं?? कहीं यह खेल खुद अंबानी ही अपने पैसों से नहीं खेल रहे? आज की तारीख में मुकेश अंबानी का TV Today और TV-18 सहित कई बड़े-बड़े मीडिया हाउस में बड़ा हिस्सा है. फिर सवाल उठता है कि आखिर रिलायंस मोदी का विरोध क्यों कर रहा है??
अपनी पिछली पोस्ट में मैंने यह सवाल उठाया था कि आम जनता द्वारा दिए जाने वाले 500-1000 या दस-बीस हजार के चन्दे से आज के दौर की महंगी राजनीति करना संभव नहीं है. वास्तव में AAP द्वारा जितने जबरदस्त खर्चे किए जा रहे हैं, स्वाभाविक है कि उसके पीछे कोई बड़ी ताकत है. यहाँ केजरीवाल के पीछे अपने-अपने हित एवं स्वार्थ लिए हुए ओवैसी जैसी कई ताकतें हैं, जो किसी भी कीमत पर दिल्ली विधानसभा जीतकर नरेंद्र मोदी के अश्वमेध को रोकना और मोदी की विजेता छवि पर एक गहरा दाग लगाना चाहती हैं. मुकेश अंबानी का केजरीवाल प्रेम, एक वेबसाईट पर हुए खुलासे से स्पष्ट होता हैं. इसमें बताया गया है कि दिल्ली के चारों गैस प्लांट्स (इन्द्रप्रस्थ, प्रगति, बवाना और रिठाला) पर मुकेश अंबानी "अपना कब्ज़ा" चाहते हैं... जो मोदी सरकार आसानी से होने नहीं दे रही.
पाठकों को याद होगा कि केजरीवाल की 49 दिनों की सरकार ने उस संक्षिप्त कार्यकाल में ही बिना विधानसभा की मंजूरी लिए, रिलायंस को 343 करोड़ की सब्सिडी और छूट प्रदान कर दी थी. जबकि इधर मोदी सरकार ने गैस क्षेत्र में समुचित उत्पादन नहीं कर पाने और किए गए करार पूरे नहीं कर पाने के कारण लगातार दो-दो बार अंबानी की कंपनी पर जुर्माना ठोंका. फिर अंबानी और केजरीवाल द्वारा बड़े ही शातिर तरीके से यह प्रचार किया गया कि नरेंद्र मोदी अंबानी के करीबी हैं...(यह लोकसभा चुनावों तक सही भी था, लेकिन सत्ता में आते ही मोदी ने रिलायंस पर जुर्माने ठोंकने शुरू कर दिए). केजरीवाल चिल्लाता ही रहा कि मोदी सरकार आएगी तो अंबानी को मुफ्त में गैस दे देगी, गैस के भाव कम कर देगी... लेकिन वास्तव में हुआ उल्टा ही. रंगराजन समिति की सिफारिशों के अनुसार मोदी ने निकाली जाने वाली गैस की कीमत 8.4 डालर कर दी तथा रिलायंस पर करोड़ों रूपए के जुर्माने अलग से ठोंक दिए. वास्तव में आज की तारीख में केजरीवाल ही अंदरखाने मुकेश अंबानी और नवीन जिंदल से मिले हुए हैं. हर बिजनेसमैन सिर्फ अपना फायदा देखता है, जब तक काँग्रेस सत्ता में थी, तब तक अंबानी उन्हें मोटी रकमें दिया करता था. अब अंबानी को किसी भी कीमत पर दिल्ली के चारों गैस प्लांट चाहिए. आज गैस की कमी के कारण बवाना का प्लांट सिर्फ दस प्रतिशत क्षमता से काम कर रहा है, जबकि रिठाला का प्लांट बन्द करना पड़ा है. इधर मुकेश अंबानी जानबूझकर गैस का उत्पादन कम कर रहे हैं ताकि एक बार इन प्लांट्स को सस्ते में हथियाने के बाद उत्पादन बढ़ाकर यहाँ से बिजली का तगड़ा मुनाफा कमा सकें.
अब स्थिति ये है कि नरेंद्र मोदी "जनता" और अपनी "बची-खुची लहर" के सहारे दिल्ली में जीत की जुगाड़ लगा रहे हैं, जबकि मुकेश अंबानी ने कमर कस ली है कि मीडिया पर अपने कब्जे के सहारे वह मोदी को "कम से कम एक सबक" तो सिखाकर ही दम लेंगे. यह देखना दिलचस्प होगा कि दिल्ली में किसे जीत हासिल होती है और अगले एक वर्ष में दिल्ली के गैस आधारित पावर प्लांट्स के बारे में क्या-क्या निर्णय होते हैं... अगले एक वर्ष में भारत के तेल-गैस-रिफाइनरी क्षेत्र से सम्बन्धित ख़बरों पर निगाह बनाए रखिएगा...
खबर स्रोत साभार : https://www.saddahaq.com/politics/bjpvsambani/delhi-elections-its-bjp-vs-ambani-game-of-gas
हर चैनल पर पांच मिनट के बाद आम आदमी पार्टी का विज्ञापन आ रहा है .. हर दो मिनट पर स्क्रीन के आधे भाग में आम आदमी का विज्ञापन आ रहा है ... एफएम रेडियो पर भी AAP के प्रचार की भरमार है.. इसके अलावा हर अखबार के मुखपृष्ठ पर आम आदमी पार्टी का विज्ञापन ... दिल्ली के लगभग सभी चौराहों पर बड़े बड़े होर्डिंग.... मोटा-मोटा अंदाजा भी लगाएँ तो अरविन्द केजरीवाल ने करीब सात से आठ सौ करोड़ रूपये सिर्फ विज्ञापन पर फूंके है ... कहाँ से आ रहा है इतना पैसा?? क्या सिर्फ जनता से लिए गए मामूली चन्दे से?? ये चंदा वह है जो हाथी के दाँत की तरह दिखाने के लिए होता है. पैसों का असली खेल तो परदे के पीछे चल रहा है.. मजे की बात ये की केजरीवाल एक तरफ मुकेश अंबानी को गाली देते है और दूसरी तरफ मुकेश अंबानी के चैनलों-अखबारों को ही विज्ञापन के रूप में पर केजरीवाल ने कम से कम दो सौ करोड़ रूपये दिए होंगे. क्योकि नेटवर्क-18 यानी आईबीएन, सीएनबीसी, ईटीवी के पूर्ण मालिक और भारत में नेट जियो, हिस्ट्री, आदि के प्रसारण का मालिकी अधिकार मुकेश अंबानी के पास है... आठ अखबारों में भी ३०% भागीदार भी मुकेश अंबानी है... केजरीवाल भ्रष्टाचार को मुख्य मुद्दा बनाकर राजनीति में आये थे .और आज के समय में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार मीडिया में ही है... यह बात उनका खास चमचा आशुतोष अच्छे से बता सकता है.... फिर केजरीवाल मीडिया को आठ सौ करोड़ रूपये क्यों दे रहे है?
भाई जितेन्द्र प्रताप सिंह ने अपनी फेसबुक वाल पर उदाहरण देते हुए लिखा है कि - एक बार जब कांशीराम बामसेफ नामक संगठन बनाकर यूपी के गाँवों गाँवों में साइकिल से घुमा करते थे, और दलितों को संगठित करते थे .. तब एक पत्रकार ने उनसे पूछा था की आप इतना मेहनत करते है, गाँव गाँव में साइकिल से जाते हैं, आप अखबारों में बामसेफ का प्रचार क्यों नही करते? इस पर कांशीराम ने जबाब दिया था की ऐसा नही कि मेरे पास पैसा नही है .. लेकिन सभी अखबारों और पत्रिकाओ के मालिक तो ब्राम्हण, राजपूत या बनिया लोग है फिर मै उन्हें पैसे क्यों दूँ ? जिनके खिलाफ मै आवाज उठा रहा हूँ उनको ही पैसा देकर उन्हें और ज्यादा आर्थिक रूप से मजबूत क्यों करूं ? फिर अरविन्द केजरीवाल जो परदे के सामने मुकेश अंबानी का विरोध करते हैं, उन्हें करोड़ों रूपए क्यों दे रहे हैं? कहाँ से दे रहे हैं?.... या वास्तव में दे भी रहे हैं कि नहीं?? कहीं यह खेल खुद अंबानी ही अपने पैसों से नहीं खेल रहे? आज की तारीख में मुकेश अंबानी का TV Today और TV-18 सहित कई बड़े-बड़े मीडिया हाउस में बड़ा हिस्सा है. फिर सवाल उठता है कि आखिर रिलायंस मोदी का विरोध क्यों कर रहा है??
अपनी पिछली पोस्ट में मैंने यह सवाल उठाया था कि आम जनता द्वारा दिए जाने वाले 500-1000 या दस-बीस हजार के चन्दे से आज के दौर की महंगी राजनीति करना संभव नहीं है. वास्तव में AAP द्वारा जितने जबरदस्त खर्चे किए जा रहे हैं, स्वाभाविक है कि उसके पीछे कोई बड़ी ताकत है. यहाँ केजरीवाल के पीछे अपने-अपने हित एवं स्वार्थ लिए हुए ओवैसी जैसी कई ताकतें हैं, जो किसी भी कीमत पर दिल्ली विधानसभा जीतकर नरेंद्र मोदी के अश्वमेध को रोकना और मोदी की विजेता छवि पर एक गहरा दाग लगाना चाहती हैं. मुकेश अंबानी का केजरीवाल प्रेम, एक वेबसाईट पर हुए खुलासे से स्पष्ट होता हैं. इसमें बताया गया है कि दिल्ली के चारों गैस प्लांट्स (इन्द्रप्रस्थ, प्रगति, बवाना और रिठाला) पर मुकेश अंबानी "अपना कब्ज़ा" चाहते हैं... जो मोदी सरकार आसानी से होने नहीं दे रही.
पाठकों को याद होगा कि केजरीवाल की 49 दिनों की सरकार ने उस संक्षिप्त कार्यकाल में ही बिना विधानसभा की मंजूरी लिए, रिलायंस को 343 करोड़ की सब्सिडी और छूट प्रदान कर दी थी. जबकि इधर मोदी सरकार ने गैस क्षेत्र में समुचित उत्पादन नहीं कर पाने और किए गए करार पूरे नहीं कर पाने के कारण लगातार दो-दो बार अंबानी की कंपनी पर जुर्माना ठोंका. फिर अंबानी और केजरीवाल द्वारा बड़े ही शातिर तरीके से यह प्रचार किया गया कि नरेंद्र मोदी अंबानी के करीबी हैं...(यह लोकसभा चुनावों तक सही भी था, लेकिन सत्ता में आते ही मोदी ने रिलायंस पर जुर्माने ठोंकने शुरू कर दिए). केजरीवाल चिल्लाता ही रहा कि मोदी सरकार आएगी तो अंबानी को मुफ्त में गैस दे देगी, गैस के भाव कम कर देगी... लेकिन वास्तव में हुआ उल्टा ही. रंगराजन समिति की सिफारिशों के अनुसार मोदी ने निकाली जाने वाली गैस की कीमत 8.4 डालर कर दी तथा रिलायंस पर करोड़ों रूपए के जुर्माने अलग से ठोंक दिए. वास्तव में आज की तारीख में केजरीवाल ही अंदरखाने मुकेश अंबानी और नवीन जिंदल से मिले हुए हैं. हर बिजनेसमैन सिर्फ अपना फायदा देखता है, जब तक काँग्रेस सत्ता में थी, तब तक अंबानी उन्हें मोटी रकमें दिया करता था. अब अंबानी को किसी भी कीमत पर दिल्ली के चारों गैस प्लांट चाहिए. आज गैस की कमी के कारण बवाना का प्लांट सिर्फ दस प्रतिशत क्षमता से काम कर रहा है, जबकि रिठाला का प्लांट बन्द करना पड़ा है. इधर मुकेश अंबानी जानबूझकर गैस का उत्पादन कम कर रहे हैं ताकि एक बार इन प्लांट्स को सस्ते में हथियाने के बाद उत्पादन बढ़ाकर यहाँ से बिजली का तगड़ा मुनाफा कमा सकें.
अब स्थिति ये है कि नरेंद्र मोदी "जनता" और अपनी "बची-खुची लहर" के सहारे दिल्ली में जीत की जुगाड़ लगा रहे हैं, जबकि मुकेश अंबानी ने कमर कस ली है कि मीडिया पर अपने कब्जे के सहारे वह मोदी को "कम से कम एक सबक" तो सिखाकर ही दम लेंगे. यह देखना दिलचस्प होगा कि दिल्ली में किसे जीत हासिल होती है और अगले एक वर्ष में दिल्ली के गैस आधारित पावर प्लांट्स के बारे में क्या-क्या निर्णय होते हैं... अगले एक वर्ष में भारत के तेल-गैस-रिफाइनरी क्षेत्र से सम्बन्धित ख़बरों पर निगाह बनाए रखिएगा...
खबर स्रोत साभार : https://www.saddahaq.com/politics/bjpvsambani/delhi-elections-its-bjp-vs-ambani-game-of-gas
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