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रविवार, 12 जनवरी 2014 14:05
NSG Commando PV Manesh and Insensitive Bureaucracy
NSG कमांडो की बहादुरी और असंवेदनशील नौकरशाही...
हाल ही में देश ने
मुम्बई हमले (२६/११) की पाँचवीं बरसी मनाई, लेकिन देशवासियों के लिए शर्म की बात
यह है कि उस हमले में कई जाने बचाने वाला एक जाँबाज कमांडो आज भी हमारे देश की
भ्रष्ट नौकरशाही और घटियातम राजनीति का शिकार होकर पैरेलिसिस और अन्याय से जूझ रहा
है...
हजार लानत भेजने लायक किस्सा यूं है कि 26/11 के मुम्बई हमले के समय कमांडो पीवी मनेश, ओबेरॉय होटल में आतंकवादियों
से भिड़े थे। उन्हें अहसास हुआ कि एक
कमरे में कोई
आतंकवादी छिपा हुआ है, जान की परवाह न करते हुए
मनेश गोलियाँ बरसाते हुए उस कमरे में घुसे, परन्तु अंधेरा होने की वजह से वे तुरन्त भाँप नहीं सके कि आतंकवादी किधर छिपा है। इस बीच आतंकवादी ने एक
ग्रेनेड मनेश की ओर उछाला, जो कि मनेश के हेलमेट के पास आकर फ़टा, हालांकि मनेश ने त्वरित कार्रवाई करते हुए उस आतंकवादी को मार गिराया, लेकिन हेलमेट पर अत्यधिक दबाव और धमाके की वजह से पीवी मनेश को अंदरूनी दिमागी चोट लगी
और उनके शरीर की दाहिनी बाजू पक्षाघात से
पीड़ित हो गई। ग्रेनेड की चोट
कितनी गम्भीर थी इसका अंदाज़ा इसी बात से लग सकता है कि हेलमेट के तीन टुकड़े
हो गये और मनेश चार माह तक कोमा में रहे…। उनके
शरीर का दांया हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया. होटल ओबेरॉय में NSG
ऑपरेशन के दौरान मनेश ने अकेले ही सूझबूझ से चालीस लोगों की जान बचाई और दो
आतंकवादियों को मार गिराया था. कोमा से बाहर आने के बाद व्हीलचेयर पर ही उन्हें
शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया. इसके पश्चात मनेश की पोस्टिंग उनके गृहनगर कन्नूर
की प्रान्तीय सेना यूनिट में किया गया, ताकि उनकी देखभाल और इलाज जारी रहे. मनेश
की मूल नियुक्ति सेना की सत्ताईसवीं मद्रास रेजिमेंट की है, और उसे NSG
में उसकी फिटनेस की वजह से भेजा गया था.
दिल्ली
एवं मुम्बई के विभिन्न सेना अस्पतालों में इस वीर का इलाज चलता रहा, परन्तु एलोपैथिक दवाईयों से जितना फ़ायदा हो सकता था
उतना ही हुआ। अन्त में लगभग सभी डॉक्टरों
ने मनेश को आयुर्वेदिक इलाज करवाने की सलाह दी। मनेश बताते हैं कि उन्हें उनके गृहनगर कन्नूर से प्रति
पंद्रह दिन में 300 किमी दूर पलक्कड जिले के एक
विशेष आयुर्वेदिक केन्द्र में इलाज एवं दवाओं हेतु जाना पड़ता है, जिसमें उनके 2000 रुपये खर्च हो जाते
हैं इस प्रकार उन्हें प्रतिमाह 4000 रुपये आयुर्वेदिक दवाओं पर खर्च करने पड़ते हैं। रक्षा
मंत्रालय के नियमों के अनुसार आयुर्वेदिक इलाज के बिल एवं दवाओं
का खर्च देने का कोई प्रावधान नहीं है... सैनिक
या तो सेना के अस्पताल में इलाज करवाए या फ़िर एलोपैथिक इलाज करवाये। इस बेतुके नियम की वजह से
कोई भी अफ़सर इस वीर सैनिक को लगने वाले 4000 रुपये प्रतिमाह के खर्च को स्वीकृत करने को तैयार नहीं है। २००९ के अंत तक मनेश ने आयुर्वेदिक दवाओं
के शानदार नतीजों के कारण धीरे-धीरे बगैर सहारे के चलना और बोलना शुरू कर दिया था.
परन्तु सेना ने उनके आयुर्वेदिक इलाज पर हुए खर्चों के बिलों को चुकाने से मना कर
दिया (वे कहते रहे कि नियम नहीं हैं). हालांकि बाद में दिल्ली हाईकोर्ट की लताड़ के
बाद सेना के अधिकारियों ने “स्पेशल केस” मानते हुए मनेश की दवाओं का खर्च उन्हें
दे दिया. लेकिन इसके लिए भी मनेश को तकलीफें, अधिकारियों की मनमानी सहनी पड़ीं और
अंततः न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा.
इस बहादुर कमांडो के
साथ यह अन्याय करने के बावजूद नौकरशाही का मन नहीं भरा तो अब उन्हें उनके गृहनगर
से दिल्ली तबादला कर दिया गया है, साथ ही एक सरकारी सहायक जो उन्हें मिला था, वह
सुविधा भी छीन ली गई है. मजबूरी में मनेश ने दिल्ली हाईकोर्ट की शरण ली, जिसने
मानवीयता दिखाते हुए उसके तबादले पर २४ जनवरी तक की रोक लगा दी है, और सरकार से
इसका कारण बताने को कहा है. हो सकता है कि सरकार और सेना के अधिकारियों के पास कोई
“तकनीकी” और “कानूनी” दांवपेंच हो, जिसके सहारे वे
अपने इस निर्णय का बचाव कर ले जाएँ, परन्तु हकीकत यही है कि आज भी पीवी मनेश के
शरीर का एक हिस्सा ठीक से काम नहीं कर रहा और उसे चौबीसों घंटे देखभाल की आवश्यकता
है. हालांकि दिल्ली हाईकोर्ट ने मनेश को तात्कालिक राहत दे दी हो, परन्तु सेना के
अधिकारियों ने उसे लगातार परेशान करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी. मनेश ने
रक्षामंत्री एंटोनी के सामने भी अर्जी लगाई हुई है, परन्तु उधर से भी कोई जवाब
नहीं है.
१७ सितम्बर २०१३ को
दिए गए इस आदेश के मुताबिक़ पीवी मनेश को आने घर कन्नूर से सैकड़ों किमी दूर दिल्ली
में ज्वाइन करना है. आश्चर्यजनक बात तो यह है कि १० सितम्बर को ही मनेश की पत्नी
सीमा ने एके एंटोनी से मुलाक़ात करके उन्हें उसकी शारीरिक तकलीफों के बारे में
बताकर उनसे गृहनगर में ही रखने की अपील की थी. एंटोनी ने भी रक्षा मंत्रालय में
सम्बन्धित अधिकारियों को बुलाकर स्पेशल केस मानते हुए मनेश को उसके गृहनगर में ही
रखने के आदेश दिए थे, परन्तु वे सब आदेश नौकरशाही की मर्जी के सामने हवा हुए.
अधिकारियों ने मनेश को फरमान सुना दिया कि उन्हें किसी भी हालत में ३० अक्टूबर को
दिल्ली के सेना मुख्यालय में रिपोर्ट करना है. सारे दरवाजे बंद होने के बाद मनेश
ने न्यायालय की शरण ली. जहाँ जस्टिस गीता मित्तल और जस्टिस वीपी वैश्य ने मनेश के
ट्रांसफर आदेश पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी, और अगली सुनवाई २४ जनवरी २०१४ को
रखी गई है. शारीरिक तकलीफों के बावजूद ट्रांसफर करने की शिकायत के अलावा अपनी
याचिका में मनेश ने आरोप लगाया है कि मद्रास यूनिट के कमान्डिंग ऑफिसर ने उनके साथ
बहुत बुरा व्यवहार और मानसिक प्रताड़ना का आरोप भी लगाया है. पत्नी सीमा ने भी
एंटोनी को लिखे अपने पत्र में कहा है कि ऑफिसर के ऐसे व्यवहार के कारण उनके पति को
अत्यधिक सिरदर्द व चक्कर की शिकायत भी बढ़ गई है. फिलहाल मनेश अपने पाँच साल के
बेटे और वृद्ध माता-पिता के साथ कन्नूर में रहते हैं, जहाँ से उन्हें महीने में दो
बार २०० किमी दूर आयुर्वेदिक इलाज के लिए जाना पड़ता है.
हालांकि पीवी मनेश के पास शौर्य चक्र विजेता होने की
वजह से रेल में मुफ़्त यात्रा का आजीवन पास है, परन्तु फ़िर भी एक-दो बार टीसी ने उन्हें आरक्षित स्लीपर कोच से बेइज्जत करके उतार दिया था। रूँधे गले से पीवी
मनेश कहते हैं कि भले ही यह देश मुझे भुला
दे, परन्तु फ़िर भी देश के लिए मेरा जज़्बा
और जीवन के प्रति मेरा हौसला बरकरार है…। मेरी अन्तिम आशा अब
आयुर्वेदिक इलाज ही है, पिछले एक वर्ष में अब मैं बिना छड़ी के सहारे कुछ दूर चलने लगा हूँ तथा स्पष्ट बोलने और उच्चारण में जो दिमागी समस्या
थी, वह भी धीरे-धीरे दूर हो रही है…।
इस बहादुर सैनिक के सिर में उस ग्रेनेड के तीन नुकीले लोहे के टुकड़े धँस गये थे, दो को तो सेना के अस्पताल में ऑपरेशन द्वारा निकाला जा चुका है, परन्तु डॉक्टरों ने तीसरा टुकड़ा निकालने से मना कर दिया, क्योंकि उसमें जान का खतरा था…। दिलेरी की मिसाल देते हुए, पीवी मनेश मुस्कुराकर कहते हैं कि उस लोहे के टुकड़े को मैं 26/11 की याद के तौर पर वहीं रहने देना चाहता हूँ, मुझे गर्व है कि मैं देश के उन चन्द भाग्यशाली लोगों में से हूँ जिन्हें शौर्य चक्र मिला है… और मेरी इच्छा है कि मैं अपने जीवनकाल में कम से कम एक बार ओबेरॉय होटल में पत्नी-बच्चों समेत लंच लूं और उसी कमरे में आराम फ़रमाऊँ, जिसमें मैने उस आतंकवादी को मार गिराया था…।
इस बहादुर सैनिक के सिर में उस ग्रेनेड के तीन नुकीले लोहे के टुकड़े धँस गये थे, दो को तो सेना के अस्पताल में ऑपरेशन द्वारा निकाला जा चुका है, परन्तु डॉक्टरों ने तीसरा टुकड़ा निकालने से मना कर दिया, क्योंकि उसमें जान का खतरा था…। दिलेरी की मिसाल देते हुए, पीवी मनेश मुस्कुराकर कहते हैं कि उस लोहे के टुकड़े को मैं 26/11 की याद के तौर पर वहीं रहने देना चाहता हूँ, मुझे गर्व है कि मैं देश के उन चन्द भाग्यशाली लोगों में से हूँ जिन्हें शौर्य चक्र मिला है… और मेरी इच्छा है कि मैं अपने जीवनकाल में कम से कम एक बार ओबेरॉय होटल में पत्नी-बच्चों समेत लंच लूं और उसी कमरे में आराम फ़रमाऊँ, जिसमें मैने उस आतंकवादी को मार गिराया था…।
अपनी
जान पर खेलकर देश के दुश्मनों से रक्षा करने वाले सैनिकों के प्रति सरकार और नौकरशाही का
संवेदनहीन रवैया जब-तब सामने आता रहता है… सभी को याद है कि संसद पर हमले को नाकाम करने वाले जवानों की विधवाओं को
चार-पाँच साल तक चक्कर खिलाने और
दर्जनों कागज़ात/सबूत मंगवाने के बाद बड़ी मुश्किल से पेट्रोल पम्प दिये गये… जबकि इससे
पहले भी लद्दाख में सीमा पर
ड्यूटी दे रहे जवानों हेतु जूते खरीदने की अनुशंसा की फ़ाइल महीनों तक रक्षा मंत्रालय में धूल खाती रही, जब जॉर्ज फ़र्नांडीस ने सरेआम अफ़सरों को फ़टकार लगाई, तब कहीं जाकर जवानों को अच्छी क्वालिटी के बर्फ़ के जूते मिले…
“दूसरी तरफ”(??) की मौज का ज़िक्र किए बिना लेख पूरा नहीं होगा... आपको याद होगा कि कैसे न्यायालय के आदेश पर कर्नाटक के एक रिसोर्ट में कोयम्बटूर बम धमाके के मुख्य आरोपी अब्दुल नासेर मदनी का “सरकारी खर्च पर पाँच सितारा आयुर्वेदिक इलाज” चल रहा है… जबकि 26/11 के मुम्बई हमले के समय बहादुरी दिखाने वाले जाँबाज़ कमाण्डो शौर्य चक्र विजेता पीवी मनेश को भारत की सरकारी मशीनरी और बड़े-बड़े बयानवीर नेता आयुर्वेदिक इलाज के लिये प्रतिमाह 4000 रुपये की “विशेष स्वीकृति” नहीं दे रहे हैं…। उधर अब्दुल नासेर मदनी पाँच सितारा आयुर्वेदिक मसाज केन्द्र में मजे कर रहा है, क्योंकि उसके पास वकीलों की फ़ौज तथा “सेकुलर गैंग” का समर्थन है।
जिस तरह से अब्दुल नासेर मदनी, अजमल कसाब और अफ़ज़ल गुरु की “खातिरदारी” हमारे सेकुलर और मानवाधिकारवादी कर रहे हैं… तथा कश्मीर, असम, मणिपुर और नक्सल प्रभावित इलाकों में कभी जवानों को प्रताड़ित करके, तो कभी आतंकवादियों और अलगाववादियों के “साथियों-समर्थकों” से हाथ मिलाकर, उन्हें सम्मानित करके… वीर जवानों के मनोबल को तोड़ने में लगे हैं, ऐसे में तो लगता है कि पीवी मनेश धीरे-धीरे अपनी जमापूँजी भी अपने इलाज पर खो देंगे… क्योंकि नौकरशाही और सरकार द्वारा उन्हीं की सुनी जाती है, जिनके पास “लॉबिंग” हेतु पैसा, ताकत, भीड़ और “दलाल” होते हैं…। मुझे चिंता इस बात की है कि देश के लिए जान की बाजी लगाने वाले जांबाजो के साथ नौकरशाही और नेताओं का यही रवैया जारी रहा, तो कहीं ऐसा न हो कि किसी दिन किसी जवान का दिमाग “सटक” जाये और वह अपनी ड्यूटी गन लेकर दिल्ली के सत्ता केन्द्र नॉर्थ-साउथ ब्लॉक पहुँच जाए… देखना है कि इस बहादुर की तकलीफों का अंत कब होता है, और हमारी नौकरशाही में शामिल हरामखोरों को कब अक्ल आती है, और कब उन्हें कोई सजा मिलती है.
“दूसरी तरफ”(??) की मौज का ज़िक्र किए बिना लेख पूरा नहीं होगा... आपको याद होगा कि कैसे न्यायालय के आदेश पर कर्नाटक के एक रिसोर्ट में कोयम्बटूर बम धमाके के मुख्य आरोपी अब्दुल नासेर मदनी का “सरकारी खर्च पर पाँच सितारा आयुर्वेदिक इलाज” चल रहा है… जबकि 26/11 के मुम्बई हमले के समय बहादुरी दिखाने वाले जाँबाज़ कमाण्डो शौर्य चक्र विजेता पीवी मनेश को भारत की सरकारी मशीनरी और बड़े-बड़े बयानवीर नेता आयुर्वेदिक इलाज के लिये प्रतिमाह 4000 रुपये की “विशेष स्वीकृति” नहीं दे रहे हैं…। उधर अब्दुल नासेर मदनी पाँच सितारा आयुर्वेदिक मसाज केन्द्र में मजे कर रहा है, क्योंकि उसके पास वकीलों की फ़ौज तथा “सेकुलर गैंग” का समर्थन है।
जिस तरह से अब्दुल नासेर मदनी, अजमल कसाब और अफ़ज़ल गुरु की “खातिरदारी” हमारे सेकुलर और मानवाधिकारवादी कर रहे हैं… तथा कश्मीर, असम, मणिपुर और नक्सल प्रभावित इलाकों में कभी जवानों को प्रताड़ित करके, तो कभी आतंकवादियों और अलगाववादियों के “साथियों-समर्थकों” से हाथ मिलाकर, उन्हें सम्मानित करके… वीर जवानों के मनोबल को तोड़ने में लगे हैं, ऐसे में तो लगता है कि पीवी मनेश धीरे-धीरे अपनी जमापूँजी भी अपने इलाज पर खो देंगे… क्योंकि नौकरशाही और सरकार द्वारा उन्हीं की सुनी जाती है, जिनके पास “लॉबिंग” हेतु पैसा, ताकत, भीड़ और “दलाल” होते हैं…। मुझे चिंता इस बात की है कि देश के लिए जान की बाजी लगाने वाले जांबाजो के साथ नौकरशाही और नेताओं का यही रवैया जारी रहा, तो कहीं ऐसा न हो कि किसी दिन किसी जवान का दिमाग “सटक” जाये और वह अपनी ड्यूटी गन लेकर दिल्ली के सत्ता केन्द्र नॉर्थ-साउथ ब्लॉक पहुँच जाए… देखना है कि इस बहादुर की तकलीफों का अंत कब होता है, और हमारी नौकरशाही में शामिल हरामखोरों को कब अक्ल आती है, और कब उन्हें कोई सजा मिलती है.
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