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शनिवार, 23 मार्च 2013 13:55

Gujrat Electricity Companies Performance and Jyotiraditya Scindia



गुजरात की तरक्की और नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता से इतनी जलन और घबराहट??  


भारत सरकार के ऊर्जा मंत्रालय ने, गुजरात की बिजली कंपनियों की उत्तम कार्यकुशलता तथा शानदार वितरण प्रणाली को मिलने वाले पुरस्कार के भव्य समारोह को ऐन मौके पर रद्द कर दिया, कि कहीं इस पुरस्कार के राष्ट्रीय प्रसारण और प्रचार की वजह से नरेंद्र मोदी को राजनैतिक लाभ न मिल जाए.

असल में मामला यह है कि, समूचे भारत में बिजली चोरी रोकने और उसके अधिकतम वितरण को सुनिश्चित और पुरस्कृत करने के लिए भारत सरकार के ऊर्जा मंत्रालय ने गत वर्ष दो सुविख्यात रेटिंग एजेंसियों ICRA और CARE को यह काम सौंपा था कि वे भारत की विभिन्न सरकारी विद्युत वितरण कंपनियों के कामकाज, विद्युत की हानि और चोरी के बारे में विस्तार से एक रिपोर्ट बनाकर पेश करें, और उसी के अनुसार उन बिजली बोर्डों या कंपनियों को रेटिंग प्रदान करें.

इस कवायद में भारत के बीस विभिन्न राज्यों की 39 बिजली कंपनियों को शामिल किया गया, तथा इनके कामकाज और नुक्सान के बारे में व्यापक सर्वे किया गया. इस के नतीजों के अनुसार “दक्षिण गुजरात वीज कम्पनी लिमिटेड (DGVCL)” को सर्वाधिक अंक 89% तथा “A+” की रेटिंग प्राप्त हुई. इसी प्रकार “पश्चिम बंगाल स्टेट इलेक्ट्रिसिट कम्पनी” तथा “महाराष्ट्र स्टेट इलेक्ट्रिसिटी डिस्ट्रीब्यूशन कम्पनी” को 70% अंक और “A” ग्रेड मिला. घटिया प्रदर्शन तथा बिजली चोरी के मामलों में कमी न ला सकने के लिए 11 अन्य कंपनियों को “B+” की रेटिंग मिली, जबकि 8 राज्यों की बिजली कंपनियों को और भी नीचे “C” और “C+” तक की ग्रेड मिली. सूची में सबसे निचले स्थान पर रहने वाली बिजली कंपनियों में उत्तरप्रदेश और बिहार की कम्पनियाँ रहीं.


इस प्रदर्शन सूची और रेटिंग में अव्वल स्थान पर रहने वाली कंपनियों के प्रबंध निदेशकों को ऊर्जा मंत्रालय की तरफ से मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया सम्मानित करने वाले थे, परन्तु जैसे ही उन्हें पता चला कि इस सूची में “टॉप टेन” कंपनियों में से नौ गुजरात से और एकमात्र महाराष्ट्र की हैं, तो सम्मान देने का यह कार्यक्रम ताबड़तोड़ रद्द कर दिया गया. सूची में निचले चार स्थानों पर उत्तरप्रदेश और बिहार की बिजली कम्पनियाँ हैं.

मंत्रालय के इस कार्यक्रम में गुजरात की तीन कंपनियों द्वारा “पावर पाइंट प्रेजेंटेशन” द्वारा यह समझाया जाना था कि उन्होंने बिजली चोरी पर अंकुश कैसे लगाया, बिजली वितरण में होने वाले नुक्सान को कैसे रोका... इत्यादि. उल्लेखनीय है कि बिजली कंपनियों का जो घाटा २००९-१० में 63,500 करोड़ था, वह २०११-१२ में बढ़कर 80,000 करोड़ रूपए तक पहुँच गया है. इसीलिए ऊर्जा मंत्रालय ने ICRA को २० कंपनियों तथा CARE संस्था को १९ कंपनियों का पूर्ण लेखा-जोखा, जमीनी हकीकत, आर्थिक स्थिति इत्यादि के बारे में रिपोर्ट देने को कहा था.

गुजरात और मोदी की सफलता से केन्द्र सरकार इतनी आतंकित है कि इस रिपोर्ट के बारे में की गई प्रेस कांफ्रेंस में सिंधिया ने दस सर्वाधिक मजबूत और सफल कंपनियों का नाम तक लेना जरूरी नहीं समझा, क्योंकि शुरुआती दस में से नौ बिजली कम्पनियाँ तो गुजरात या भाजपा शासित राज्यों की ही हैं, जबकि सिर्फ एक महाराष्ट्र की है. नरेंद्र मोदी लगातार केन्द्र पर तथ्यों और आंकड़ों के साथ यह आरोप लगाते रहे हैं कि कोयला और प्राकृतिक गैस के आवंटन के मामले में केन्द्र हमेशा गुजरात के साथ सौतेला व्यवहार करता आ रहा है. इसके बावजूद बिजली चोरी रोकने, बकाया बिलों की वसूली एवं उत्तम वितरण में गुजरात की बिजली कम्पनियाँ अव्वल आ रही हैं तो जलन इतनी बढ़ गई कि सम्मान समारोह ही रद्द कर दिया.

पावर फाइनेंस कार्पोरेशन द्वारा आयोजित किए जाने वाले इस कार्यक्रम को रद्द किए जाने की सूचना भी एकदम अंतिम समय पर दी गई, जब गुजरात की तीन बिजली कंपनियों के प्रबंध निदेशक, सर्वश्री एन श्रीवास्तव, एचएस पटेल और एसबी ख्यालिया इस सम्मान को लेने दिल्ली भी पहुँच चुके थे. ऊर्जा मंत्रालय ने उन्हें सूचित किया था कि उनका सम्मान किया जाएगा, परन्तु उलटे पाँव लौटाकर उनका अपमान ही कर दिया, क्योंकि मंत्री जी नहीं चाहते थे कि मीडिया में यह बात जोर-शोर से प्रसारित और प्रचारित हो कि नरेंद्र मोदी के गुजरात में बिजली कम्पनियाँ उत्तम कार्यकुशलता दिखा रही हैं, जबकि खोखले विकास के दावे करने और दिल्ली में विशेष राज्य के नाम पर “भीख का कटोरा” लिए खड़े नीतीश और अखिलेश यादव के राज्य बेहद घटिया बिजली कुप्रबंधन और चोरी के शिकार हैं.

अब जबकि नरेंद्र मोदी ने मीडिया में खुलेआम केन्द्र सरकार की धज्जियाँ उडानी शुरू कर दी हैं, श्रीराम कॉलेज तथा इंडिया टुडे कान्क्लेव में दिए गए भाषणों से देश के निम्न-मध्यम वर्ग के बीच उनकी छवि और कार्यकुशलता के चर्चे जोर पकड़ने लगे हैं, तो अगले एक साल में मोदी की छवि बिगाड़ने के लिए (अथवा नहीं बनने देने हेतु) ऐसे कई कुत्सित प्रयास किए जाएंगे. गुजरात की जनता तो जानती है कि वहाँ बिजली-पानी और सड़क की स्थिति कितनी शानदार है, परन्तु यह बात भारत के अन्य राज्यों तक न पहुंचे इस हेतु न सिर्फ जोरदार प्रयास किए जाएंगे, बल्कि मोदी द्वारा विकास को चुनावी मुद्दा बनाने की बजाय, काँग्रेस और सेकुलरों की सुई २००२ के दंगों पर ही अटकी रहेगी.

विशेष नोट :- जो भी काँग्रेस के साथ जब तक रहता है, तब तक उसके सारे गुनाह माफ होते हैं वह महान भी कहलाता है. लेकिन जैसे ही कोई काँग्रेस से मतभिन्नता रखता है या काँग्रेस को कोई गंभीर चुनौती पेश करता है तो काँग्रेस तत्काल उसके साथ “खुन्नस” का व्यवहार पाल लेती है. DMK समर्थन वापसी का मामला तो एकदम ताज़ा है, मैं यहाँ एक पुराना उदाहरण देना चाहूँगा :- एक समय पर अमिताभ बच्चन, गाँधी परिवार के खासुलखास हुआ करते थे, राजीव गाँधी के बाल-सखा और काँग्रेस के सक्रिय सदस्य. इलाहाबाद से चुनाव लड़ा, जीता भी... बोफोर्स कांड में राजीव गाँधी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर मीडिया से लड़े... लेकिन राजीव की मौत के बाद जैसे ही अमिताभ बच्चन और गाँधी परिवार के रिश्ते तल्ख़ हुए, तत्काल सोनिया गाँधी की खुन्नस खुलकर सामने आ गई... अमिताभ बच्चन की माँ अर्थात तेजी बच्चन के अन्तिम संस्कार में गाँधी परिवार का एक भी सदस्य मौजूद नहीं था, जबकि भैरोंसिंह शेखावत अपने खराब स्वास्थ्य के बावजूद इसमें शामिल हुए। तेजी बच्चन के स्व.इन्दिरा गाँधी से व्यक्तिगत सम्बन्ध रहे और उन्होंने हमेशा राजीव गाँधी को अपने पुत्र के समान माना और स्नेह दिया। अब तक तो यही देखने में आया है कि अमिताभ के खिलाफ़ आयकर विभाग को सतत काम पर लगाया गया, जया बच्चन की राज्यसभा सदस्यता “दोहरे लाभ पद” वाले मामले में कुर्बान करनी पड़ी, जबकि सोनिया गाँधी को इससे छूट देने के लिए जमीन-आसमान एक किए गए थे. 

संक्षेप में तात्पर्य यह है कि नरेंद्र मोदी से काँग्रेस की खुन्नस इतनी अधिक है कि अब गुजरात में अच्छा काम करने वाली कंपनियों को सम्मानित करने में भी इन्हें झिझक महसूस होने लगी है.

सन्दर्भ :-

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मंगलवार, 19 मार्च 2013 11:23

Drought in Maharashtra - Government and Beer Companies

रोटी नहीं मिलती तो केक खाओ... जलसंकट है तो बियर पियो...


महाराष्ट्र में विदर्भ सहित कई हिस्सों में अभी से भीषण सूखा पड़ रहा है. पीने के पानी की भारी किल्लत के बीच नगरपालिका द्वारा मनमाड जैसे शहर में "बीस दिन" छोड़कर एक टाइम पानी दिया जा रहा है. गाँव के गाँव खाली हो रहे हैं, क्योंकि लगभग सभी जलस्रोत मार्च में ही सूख चुके हैं...

अब हम आते हैं किसानों की परम-हितैषी(?) महाराष्ट्र सरकार और "तथाकथित" कृषि मंत्री शरद पवार के राज्य की नीतियों पर... इतने भयानक जल संकट के बावजूद राज्य में कार्यरत बियर कंपनियों को नियमित रूप से पानी की सप्लाय में वृद्धि की जा रही है.("तथाकथित" कृषि मंत्री, इसलिए लिखा, क्योंकि खेती और किसानों की दशा सुधारने का काम छोड़कर पवार साहब बाकी सारे काम करते हैं, चाहे वह बिल्डरों के हित साधना हो या क्रिकेट के छिछोरेपन और इसमें शामिल काले धन को बढ़ावा देने का काम हो...)



अब देखते हैं... महाराष्ट्र सरकार की अजब-गजब नीतियों की एक झलक -

१) मिलेनियम बियर इंडिया लिमिटेड :- जनवरी २०१२ में 12880 मिलियन लीटर पानी दिया जा रहा था, जिसे नवंबर २०१२ तक बढ़ाकर 22140 मिलियन लीटर कर दिया गया...

२) फ़ॉस्टर इंडिया लि. :- जनवरी २०१२ में 8887मिलियन लीटर पानी मिलता था, आज इसे 10,100 मिलियन लीटर पानी दिया जा रहा है.

३) इंडो-यूरोपियन ब्रोअरीज :- जनवरी २०१२ में कंपनी को 2521 मिलियन लीटर पानी दिया जा रहा था, जो अब बढ़कर 4701 मिलियन लीटर तक पहुँच गया है...

४) औरंगाबाद ब्रुअरीज :- हाल ही में इस कंपनी को जारी पानी के कोटे को 14,000 से 14621 मिलियन लीटर कर दिया गया है...


तात्पर्य  यह है कि किसानों को देने के लिए पानी नहीं है...भूजल स्तर चार सौ फुट से भी नीचे जा चुका है... शहरों-गाँवों को पीने के लिए पानी नहीं है, परन्तु बियर कम्पनियाँ बंद न हो जाएँ इसकी चिंता सरकार को अधिक है. 

उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र विधानसभा में सेना-भाजपा-रिपब्लिकन के संयुक्त मोर्चा ने सूखे से सम्बन्धित हर बात के घोटालों को प्रमुखता से उठाया है, परन्तु चूँकि केन्द्र में भी काँग्रेस सरकार है और पवार इसके प्रमुख घटक हैं, इसलिए न सिर्फ अजित पवार का सिंचाई घोटाला सफाई से दबा दिया गया है, बल्कि अब सूखे की वजह से चारा घोटाला तथा नया-नवेला "टैंकर घोटाला" भी सामने आ गया है. 


(टैंकर घोटाला = महाराष्ट्र में विदर्भ तथा अन्य सूखाग्रस्त क्षेत्रों में जहाँ टैंकरों से पानी सप्लाय किया जा रहा है, उनमें से अधिकाँश टैंकर NCP और काँग्रेस के बड़े और छुटभैये नेताओं के हैं, जो जनता से मनमाना पैसा वसूल रहे हैं)

हाल ही में केन्द्र सरकार ने राज्य में सूखे से निपटने के लिए सत्रह सौ करोड़ रूपए का पॅकेज जारी किया है, लेकिन किसी को भी विश्वास नहीं है कि इसमें से सत्रह करोड़ रूपए भी वास्तविक किसानों और पानी के लिए मारामारी और हाहाकार कर रहे लोगों तक पहुँचेगी.

अलबत्ता मूल मुद्दे और पानी में भ्रष्टाचार से ध्यान भटकाने के लिए आसाराम बापू द्वारा भक्तों के साथ सिर्फ चार टैंकरों से खेली गई होली को मुद्दा बनाकर NCP और कांग्रेसी नेता अपनी छाती कूट रहे हैं...

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कुल मिलाकर यह कि सरकार का सन्देश स्पष्ट है...

- रोटी नहीं मिल रही, तो केक खाओ... जलसंकट के कारण पानी नहीं मिल रहा, तो बियर पियो...

महाराष्ट्र के कफ़न-खसोट नेताओं पर जितनी भी लानत भेजी जाए वह कम ही होगी.. 
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क्या इस “विराट प्रोजेक्ट” में आप हमारा सहयोग करेंगे???



मित्रों...
शुरुआत मामूली प्रश्नों से करते हैं –

१) क्या आप मानते हैं कि युवाओं में इंटरनेट पर "हिन्दी" में लिखे लेख, पुस्तकें पढ़ने की ललक बढ़ रही है?

२) क्या आप चाहते हैं कि भारतीय संस्कृति, कला, इतिहास, वास्तु, राजनीति इत्यादि पर आधारित प्रमुख पुस्तकें व ख्यात लेखकों के लेख (जो अंगरेजी में हैं), आपको हिन्दी में पढ़ने को मिलें?

३) क्या आप पसंद करेंगे कि हिन्दी में प्रकाशित प्रसिद्ध पुस्तकें, जो इंटरनेट पर उपलब्ध नहीं हैं, ऐसी पुस्तकें स्कैन करके आपको अपने कंप्यूटर, मोबाईल, किंडल पर पढ़ने को मिलें?

मैं जानता हूँ कि तीनों प्रश्नों का जवाब "हाँ" में ही होगा. अतः इस सम्बन्ध में एक विशाल प्रोजेक्ट में आप सभी मित्रों से "सभी प्रकार के सहयोग" की आकांक्षा है...

जैसा कि आप जानते ही हैं भारत की कला, संस्कृति, इतिहास, वास्तुकला सहित अनेक विषयों को जितना मुगलों और अंग्रेजों ने विकृत नहीं किया था, उससे कहीं अधिक दूषित और विकृत “काले अंग्रेजों” अर्थात नेहरूवादी सेकुलरों और वामपंथियों ने कर दिया है. कई महत्वपूर्ण पुस्तकें, लेख और ऐतिहासिक दस्तावेज़ आम जनता से जानबूझकर षड्यंत्रपूर्वक छिपाकर रखे गए हैं. एक समस्या यह भी है कि इनमें से अधिकाँश लेख और पुस्तकें अंग्रेजी में हैं, हिन्दी में नहीं हैं. इसके अलावा यदि कई पुस्तकें हिन्दी में उपलब्ध भी हैं तो वह प्रकाशित स्वरूप में हैं, इंटरनेट पर डाउनलोड हेतु उपलब्ध नहीं हैं. साथ ही कुछ पुस्तकें व लेख ऐसे भी हैं, जो क्षेत्रीय भाषा में हैं जैसे वीर सावरकर लिखित कुछ साहित्य, गोवा, मैसूर, विजयनगरम इत्यादि के “वास्तविक इतिहास” संबंधी कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज इत्यादि. इन क्षेत्रीय भाषाओं के साहित्य को भी धीरे-धीरे हिन्दी में अनुवाद करके इंटरनेट पर अपलोड किया जाएगा. जो पुस्तकें हिन्दी में तो हैं, परन्तु सिर्फ प्रकाशित हैं इंटरनेट पर नहीं हैं, उन्हें “स्कैन” करके PDF स्वरूप में ई-बुक बनाकर अपलोड कर दिया जाएगा.

मित्रों... संक्षेप में योजना का मूल खाका इस प्रकार है –

कुछ मित्र मिलकर “गैर-लाभकारी संस्था” के रूप में एक फाउन्डेशन का गठन करने जा रहे हैं. यह फाउन्डेशन “दान व आर्थिक सहयोग” की अवधारणा पर काम करेगा. डोनेशन से प्राप्त पूरा पैसा किसी भी लाभकारी कार्य में उपयोग नहीं किया जाएगा. फाउन्डेशन का मुख्य कार्य और उद्देश्य उपरोक्त पुस्तकों, लेखों अथवा दस्तावेजों को अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद करके उसे इंटरनेट पर “मुक्त स्रोत” के रूप में उपलब्ध करवाना है, ताकि युवाओं में इंटरनेट पर हिन्दी पढ़ने की जो ललक बढ़ रही है, उसे देखते हुए उन्हें ऐसी महत्वपूर्ण सामग्री हिन्दी में भी उपलब्ध हो.


मुझे इस फाउन्डेशन के “अवैतनिक मानद निदेशक” का कार्यभार सौंपा जाने वाला है. अतः इस विराट कार्य में आप सभी मित्रों के अधिकाधिक सहयोग की आवश्यकता होगी. फाउन्डेशन के इस सामाजिक कार्य में सबसे बड़ी चुनौती होगी “धन जुटाना”, जबकि दूसरी बड़ी चुनौती है अंग्रेजी से हिन्दी, मराठी से हिन्दी, तमिल से हिन्दी इत्यादि अच्छे अनुवादकों (अथवा टाइपिस्टों) की टीम जुटाना.

फाउन्डेशन के निदेशक के रूप में मेरा काम मुख्यतः यह होगा :- धन जुटाने के लिए समय-समय पर लोगों से मिलना और इस कार्य के उद्देश्यों को उन्हें समझाकर उनसे आर्थिक सहयोग प्राप्त करना, अनुवादकों की टीम के बीच समन्वय और तालमेल बैठाना, अनुवाद की गुणवत्ता जाँचना, देश के विभिन्न क्षेत्रों के पुस्तकालयों का कम से कम एक दौरा करके अनुवाद की जाने वाले साहित्य की प्राथमिकताएं तय करना.

जो भी मित्र इस समाज-कार्य में अपना सहयोग देना चाहते हों, वे मुझसे संपर्क करें. एक सूची तैयार की जा रही है ताकि समुचित कार्य-विभाजन किया जा सके. जो मित्र “स्वयं” आर्थिक सहयोग कर सकते हों उनकी एक सूची, जो मित्र किसी धनपति अथवा दानवीर संस्था के जरिए आर्थिक सहयोग करवा सकते हों उनकी एक सूची, जो मित्र अनुवाद के कार्य में अपना समय “निःशुल्क” दे सकते हों, उनकी अलग सूची, तथा जो मित्र सशुल्क अनुवाद करना चाहते हों उनकी अलग सूची... ऐसा करने से मुझे विभिन्न प्रकार के कार्य विभाजन में मदद मिलेगी. जो मित्रगण सशुल्क कार्य करना चाहते हैं, वे अपनी दरें निःसंकोच होकर बताएं, इसी प्रकार जो मित्र इस प्रोजेक्ट में निःशुल्क सेवा देना चाहते हैं वे भी बिना किसी झिझक या मुलाहिजे के साफ़-साफ़ बताएं कि वे सप्ताह में कितने घंटे इस कार्य के लिए दे सकते हैं, ताकि मुझे समुचित योजना बनाने में आसानी हो.

फिलहाल यह फाउन्डेशन आरंभिक अवस्था अर्थात प्रथम चरण में है, फाउन्डेशन के रजिस्ट्रेशन और नामकरण हेतु आवेदन दिया जा चुका है. इस प्रक्रिया की समस्त कागजी कार्रवाई पूर्ण होने के बाद, इस फाउन्डेशन के बारे में संक्षेप में एक फोल्डर या पैम्फलेट तैयार किया जाएगा, फाउन्डेशन को जो भी नाम मिलेगा उसके प्रतीक चिन्ह का डिजाइन, लेटर-हेड इत्यादि का प्रकाशन होगा. हालांकि इस बीच अनुवाद का कार्य शुरू कर दिया जाएगा, ताकि जैसे ही वेबसाईट का निर्माण हो उस पर सामग्री डालने की शुरुआत की जा सके.

इस दिशा में आरंभिक रुझान बहुत ही उत्साहवर्धक हैं. अर्थात लोगों की दिली इच्छा है कि ऐसा साहित्य, पुस्तकें, लेख व ऐतिहासिक दस्तावेज उन्हें हिन्दी में पढ़ने को मिलें. चूँकि मेरे पास तो सदा की तरह आर्थिक संसाधनों का टोटा है इसलिए इस फाउन्डेशन के गठन और सरकारी प्रक्रिया में जो पैसा लग रहा है, वह एक मित्र दे रहे हैं... इसी प्रकार एक अन्य मित्र उस वेबसाईट को बनाने और सुचारू रूप से चलाने का जिम्मा उठा चुके हैं... एक अन्य मित्र ने कह दिया है कि वे इस फाउन्डेशन के प्रतीक चिन्ह, लेटर-पैड, विजिटिंग कार्ड इत्यादि का डिजाईन कर देंगे...| तात्पर्य यह है कि मेरे जैसे फक्कड़ और मामूली इंसान द्वारा की गई, सिर्फ एक अनुनय-विनय पर ही आरंभिक कार्य के लिए लोगों ने अपनी जेब और अपने संसाधनों से कार्य शुरू कर दिया है. इसी प्रकार मुझे उम्मीद है कि मैं अनुवादकों की टीम जुटाने में भी सफल हो जाऊँगा. साथ ही यदि इस प्रोजेक्ट हेतु धन जुटाने, चंदा मांगने के लिए मुझे किसी के चरणों में माथा भी रखना पड़े तो मैं रखूंगा, क्योंकि यह कार्य मैं अपने लाभ के लिए नहीं कर रहा हूँ, राष्ट्रवाद की भावना को मजबूत करने तथा आने वाली युवा पीढ़ी तक भारत के इतिहास, कला-संस्कृति का सटीक ज्ञान “हिन्दी में’ पहुँचाने हेतु कर रहा हूँ.

मित्रों... मैं आप सभी से आग्रह करता हूँ कि आप इस प्रोजेक्ट से जुड़ें और “यथायोग्य” सहयोग करने का प्रयास करें... ईश्वर की इच्छा होगी तो निश्चित रूप से हम भारत के इस समृद्ध ज्ञान को हिन्दी में संजोकर रख सकेंगे, ताकि आने वाले समय में यह एक “सन्दर्भ बिंदु” अथवा विशाल डाटा बैंक के रूप में तैयार हो सके.  
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शनिवार, 02 मार्च 2013 13:24

Hindutva and Development Cocktail - Narendra Modi



हिंदुत्व और विकास का कॉकटेल – नरेंद्र मोदी

२०१२ के गुजरात विधानसभा चुनावों की तैयारी के दौरान जिस समय नरेंद्र मोदी सदभावना यात्रा और उपवास के मिशन पर गुजरात भर में घूमने निकले थे, उस समय एक अप्रत्याशित घटना घटी थी. एक कार्यक्रम में नरेंद्र मोदी का स्वागत करते हुए एक मौलवी ने उन्हें मुसलमानों की सफ़ेद जाली वाली टोपी पहनाने का उपक्रम किया था, जिसे नरेंद्र मोदी ने विनम्रतापूर्वक ठुकरा दिया था. इस बात को भारत के पक्षपाती (यानी तथाकथित सेकुलर) मीडिया ने लपक लिया और मोदी के इस व्यवहार(?) को लेकर हमेशा की तरह मोदी पर हमले आरम्भ कर दिए थे. उसी दिन शाम को एक कम पढ़ी-लिखी महिला से मेरी बातचीत हुई और मैंने उससे पूछ लिया कि नरेंद्र मोदी ने उस मौलवी की “टोपी” नहीं पहनकर कोई गलती की है क्या? उस महिला का जवाब था नहीं, बल्कि नरेंद्र मोदी ने गुजरात विधानसभा का आधा चुनाव तो सिर्फ इसी बात से जीत लिया है. साफ़ बात है कि जो बात एयरकंडीशन कमरों में बैठे बुद्धिजीवी नहीं समझ पाते, वह बात एक सामान्य महिला की समझ में आ रही थी कि यदि नरेंद्र मोदी भी दिल्ली-मुंबई-पटना में बैठे हुए सेकुलर नेताओं की तरह “मुल्ला टोपी” पहनकर इतराने का भौंडा प्रयास करते तो उनके वोट और भी कम हो जाते, वैसा न करके उन्होंने अपने वोटों को बढ़ाया ही था. परन्तु जो “बुद्धिजीवी”(?) वर्ग होता है वह अक्सर नरेन्द्र मोदी को बिन मांगे सेकुलर सलाह देता है, क्योंकि उसे पता ही नहीं होता कि जमीनी हकीकत क्या है.


इस प्रस्तावना का मोटा अर्थ यह है कि यदि विकास सही तरीके से किया जाए, जनता के कामों को पूरा किया जाए, लोगों की तकलीफें कम होती हों, उन्हें अपने आर्थिक बढ़त के रास्ते दिखाई देते हों और राज्य की बेहतरी के लिए सही तरीके से आगे बढ़ा जाए, तो जनता को इस बात से कोई मतलब नहीं होता कि आप “हिन्दुत्ववादी” हैं या “मुल्लावादी”. नरेन्द्र मोदी और देश के बाकी मुख्यमंत्रियों में यही एक प्रमुख अंतर है कि नरेन्द्र मोदी अपनी “छवि” (जो कि उन पर थोपी गई है) की परवाह किए बिना, चुपचाप अपना काम करते जाते हैं, मीडिया के “वाचाल टट्टुओं” को बिना मुँह लगाए, क्योंकि उन्हें यह स्पष्ट रूप से पता है कि मीडिया नरेन्द्र मोदी के विपक्ष में जितना अधिक चीखेगा उसका उतना ही फायदा उन्हें होगा. मीडिया जब-जब मोदी के खिलाफ जहर उगलता है, मोदी को लाभ ही होता है. नरेन्द्र मोदी का इंटरव्यू लेने पर सपा के शाहिद सिद्दीकी की पार्टी से बर्खास्तगी हो, या मोदी की तारीफ़ करने पर मुस्लिम बुद्धिजीवी मौलाना वस्तानावी के साथ जैसा “सलूक” सेकुलरों ने किया, उसका अच्छा सन्देश ही हिंदुओं में गया. लोगों को यह महसूस हुआ कि जिस तरह से नरेन्द्र मोदी के साथ “अछूतों” की तरह व्यवहार किया जाता है, वह मीडिया और विपक्षियों की घटिया चालबाजी है.

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने द्वारा किए गए विकास को कई बार साबित किया है। आश्चर्य तो यह है कि उनके इस विकासवादी एजेंडा पर महबूबा मुफ्ती, अमरिंदर सिंह, गुजरात कांग्रेस और शीला दीक्षित भी मुहर लगा रही हैं। यहाँ पर यह याद रखना जरूरी है कि उन पर लगाए गए दंगों के आरोप अभी तक किसी अदालत में साबित होना तो दूर, उन पर अभी तक कोई FIR भी नहीं है, जबकि नरेन्द्र मोदी को घेरने की पूरी कोशिशें की जा चुकी हैं. NGOवादी “परजीवी गैंग” ने भी मोर्चा खोला हुआ है, केंद्र की तरफ से तमाम एसआईटी और सीबीआई तथा गुजरात के सभी मामलों की सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वयं निगरानी... इन सबके बावजूद नरेन्द्र मोदी यदि डटे हुए हैं, तो यह उनके विकास कार्यों और हिन्दुत्ववादी छवि के कारण.

पार्टी हो या पार्टी से बाहर... किसी भी व्यक्ति या संस्था को मोदी से निपटने का कोई कारगर रास्ता नहीं सूझ रहा है, उन्होंने अपनी पार्टी और पार्टी से बाहर विरोधियों से निपटने के लिए गुजरात-मोदी-विकास-हिंदुत्व का एक चौखट बना लिया है, जिसे तोड़ना लगभग असंभव होता जा रहा है, तभी तो महबूबा मुफ्ती जैसी नेता को भी मोदी की तारीफ करनी पड़ती है। चेन्नै के एक मुस्लिम व्यापारी की फाइल को सबसे तेजी से कुछ घंटों में सरकारी महकमों से निपटाकर वापस करने के लिए। क्या देश के तथाकथित सेक्युलर मुख्यमंत्रियों को ऐसा काम करने से कोई रोकता है? भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार 2007 में गुजरात के मुसलमानों की प्रति व्यक्ति आय (पीसीआई) देश में सबसे ज्यादा थी। देश के अन्य “सेकुलर”(?) राज्यों में भी ऐसा किया जा सकता था लेकिन नहीं किया गया, क्योंकि अव्वल तो उन राज्यों के मुख्यमंत्रियों को “हिंदुत्व” शब्द से ही घृणा है और दूसरा यह कि उन्हें सेकुलरिज्म का एक ही अर्थ मालूम है कि “जैसे भी हो मुसलमानों को खुश करो”. जबकि नरेन्द्र मोदी का हिंदुत्व एकदम उलट है, कि विकास सभी का करो लेकिन तुष्टिकरण किसी का भी न करो. इसीलिये जब अहमदाबाद की विश्व प्रसिद्द बीआरटीएस (रोड ट्रांसपोर्ट योजना) के निर्माण की राह में जो भी मंदिर-मस्जिद या दरगाह आईं, नरेन्द्र मोदी ने बगैर पक्षपात के उन्हें तुडवा दिया और अहमदाबाद को विश्व के नक़्शे पर एक नई पहचान दी. आज अहमदाबाद के BRTS की तर्ज पर कई शहरों में “विशेष ट्रांसपोर्ट गलियारों” का निर्माण हो रहा है. मजे की बात यह है कि इस दौरान मंदिरों को गिराने या विस्थापित करने का किसी भी हिन्दू संगठन ने कोई विरोध नहीं किया, स्वाभाविक है कि मस्जिद या दरगाह को तोड़ने का विरोध भी होने की संभावना खत्म हो गई... यही है हिंदुत्व और विकास, जिसे “सेकुलर” लोग कभी नहीं समझ सकेंगे क्योंकि उनकी आँखों पर “मुस्लिम तुष्टिकरण” की पट्टी चढ़ी होती है.


दरअसल, संघ ने २०१४ के महाभारत के लिए एक दोधारी तलवार चुनी है। एक धार विकास की, दूसरी धार हिंदू राष्ट्र की। मोदीत्व और हिंदुत्व को मिलाकर जो आयुर्वेदिक दवाई बनी है, वह फिलहाल अब तक लाजवाब साबित हो रही है. इस मोदीत्व में कई बातें शामिल हैं। 'विकास' और 'सुशासन' का एक मोदी फॉर्मूला तो है ही, और भी बहुत कुछ है। जैसे कि धुन का पक्का एक कद्दावर नेता, जो अपने समर्थकों के बीच “दबंग” छवि वाला है, राजधर्म की दुहाई देनेवाले अटल बिहारी वाजपेयी हों या बात-बात पर देश की अदालतों की फटकार हो, यह व्यक्ति चुटकियों में दो-टूक फैसले लेता है और आनन-फानन में उन्हें लागू भी कर देता है, यह इंसान हाज़िर-जवाब है जो मीडिया के महारथियों(?) को उन्हीं की भाषा में जवाब देता है, जिसने “गुजराती अस्मिता', “मेरा गुजरात”, “छः करोड़ गुजराती” इत्यादि शब्दों को सातवें आसमान पर पहुंचा दिया है, समर्थकों को भरोसा है कि यह हमेशा हिंदुत्व की रक्षा करेगा। इन तमाम तत्वों से मिलकर बनता है मोदीत्व. यानी हिंदुत्व और विकास का कॉकटेल| कुम्भ मेले के दौरान साधू-संतों और अखाड़ों द्वारा लगातार मोदी-मोदी-मोदी की मांग करना और ऐन उसी वक्त मोदी द्वारा दिल्ली के श्रीराम कालेज में युवाओं को संबोधित करना महज संयोग नहीं है, यह एक सोची-समझी रणनीति के तहत हुआ है, अर्थात परम्परागत वोटरों को “हिंदुत्व” से और युवा शक्ति को “विकास और आर्थिक समृद्धि” के उदाहरणों के सहारे वोट बैंक में तब्दील किया जा सके. सीधी सी बात है कि “हिंदुत्व और विकास” की इस जोड़-धुरी के प्रमुख नायक हैं नरेन्द्र मोदी.

भाजपा की इस कॉकटेल के सबसे बड़े प्रतीक मोदी हैं। गुजरात दंगों की वजह से मोदी की छवि आज वैसी ही है जैसी कि राम मंदिर आंदोलन के दौरान आडवाणी की थी। राम मंदिर आंदोलन ने आडवाणी को हिंदू ह्रदय सम्राट बना दिया था। लेकिन “विकास” कभी भी आडवाणी के साथ नहीं चिपक पाया। गृह मंत्री के तौर पर भी उनका कार्यकाल प्रेरणादायी नहीं था, बल्कि कंधार प्रकरण की वजह से उनकी किरकिरी ही हुई थी. आडवाणी को अटल बिहारी वाजपेयी की परछाई के नीचे काम करना पड़ा ऐसे में अच्छे शासन का श्रेय तो वाजपेयी को मिला प्रधानमंत्री के रूप में, लेकिन आड़वाणी को नहीं। नरेन्द्र मोदी के साथ ये दिक्कत नहीं है। मोदी ने भाजपा के लिये लगातार तीन चुनाव जीते हैं। पहला चुनाव निश्चित रूप से उन्होंने सांप्रदायिकता के मुद्दे पर लड़ा और जीत हासिल की, हालांकि यह मुद्दा भी मीडिया और कांग्रेस द्वारा बारम्बार “हिटलर” और “मौत का सौदागर” जैसे शब्दों की वजह से प्रमुख बना। लेकिन गुजरात विधानसभा के दूसरे चुनावों में “विकास” उनके एजेंडे पर प्रमुख हो गया। गुजरात दंगों की छवि उनके साथ खामख्वाह चिपकी जरूर रही लेकिन उन्होंने उस पर बात करना ही बंद कर दिया, और अब तीसरा चुनाव जीतते ही नरेन्द्र मोदी भाजपा में निर्विवाद नेता हो गये हैं। सबसे बड़े जनाधार वाले नेता और एक ऐसा नेता जो फैसले लेने से डिगता नहीं है। नरेन्द्र मोदी अब धीरे-धीरे भाजपा की अपरिहार्य आवश्यकता बनते जा रहे हैं। ये लगभग तय है कि बीजेपी अगला चुनाव उनकी ही अगुआई में लड़ेगी। पार्टी की कमान राजनाथ सिंह संभालेंगे और देश भर में लहर पैदा करने की जिम्मेदारी मोदी की होगी।

राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद मुंबई की रैली से जिस तरह लालकृष्ण आडवाणी और सुषमा स्वराज जैसे राष्ट्रीय नेता छोटे-छोटे और नाकाफी कारणों से गैरहाजिर रहे और मंच पर नरेंद्र मोदी का एकछत्र दबदबा दिखा, उससे साफ है कि भाजपा में मोदी युग की शुरुआत हो चुकी है। मोदी भी कल्याण सिंह, उमा भारती और येदियुरप्पा की तरह “स्वतंत्र स्वभाव के पिछडे वर्ग के” नेता हैं। यह बात जाहिर है कि अटल बिहारी वाजपेयी 2002 के दंगों के बाद उन्हें  हटाना चाहते थे लेकिन कार्यकर्ताओं और जनता के दबाव की वजह से नहीं हटा पाए। २०१२ की तीसरी विधानसभा जीत में जिस तरह से गुजरात के मुसलमानों ने मोदी के नाम पर वोट दिया है, वह सेकुलर पार्टियों, खासकर मुस्लिमों को वोट बैंक समझने वाली कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी है. हाल ही में एक नगरपालिका चुनाव में सभी की सभी सीटें भाजपा ने जीतीं, जबकि वहाँ कि जनसंख्या में ७२% मुसलमान हैं, नरेन्द्र मोदी की यही बात विपक्षियों की नींद उडाए हुए है.

नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह कुशलता से “हिंदुत्व और विकास” का ताना-बाना बुना और लागू किया है, वह भाजपा के अन्य मुख्यमंत्रियों के लिए भी सबक है. यदि उन्हें सत्ता में टिके रहना है तो यह फार्मूला कारगर है, दुर्भाग्य से मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने धार की भोजशाला मामले में “सेकुलर” रुख अपनाकर अपनी ही पार्टी के कार्यकर्ताओं की नाराजगी मोल ले ली है. जबकि इसके उलट नरेन्द्र मोदी ने केंद्र की और से अल्पसंख्यकों के लिए भेजी जाने वाली छात्रवृत्ति का वितरण करने से इस आधार पर मना कर दिया कि छात्रों के साथ धार्मिक भेदभाव करना उचित नहीं है. फिलहाल यह मामला केन्द्र-राज्य के बीच झूल रहा है, लेकिन नरेन्द्र मोदी को अपने समर्थकों और वोटरों को जो सन्देश देना था, वह पहुँच गया. इसके बावजूद, गुजरात के मुसलमानों की आर्थिक स्थिति में भरपूर सुधार हुआ है तथा अन्य राज्यों (विशेषकर पश्चिम बंगाल और उत्तरप्रदेश) के मुकाबले गुजरात में मुसलमानों की सामाजिक स्थिति काफी सुधरी हुई है.

तात्पर्य यह है कि “विकास और हिंदुत्व का काकटेल” धीरे-धीरे सिर चढ़कर बोलने लगा है, दिल्ली विश्वविद्यालय के श्री राम कालेज में युवाओं को सम्मोहित करने वाले संबोधन और सेकुलर मीडिया द्वारा उस अदभुत भाषण की बखिया उधेड़ने की कोशिश भी उनके लिए फायदेमंद ही रही, क्योंकि आज के मध्यमवर्गीय युवा को किसी भी कीमत पर विकास और रोजगार चाहिए, इस युवा के रास्ते में यदि 4-M (अर्थात मार्क्स-मुल्ला-मिशनरी-मैकाले) भले ही कितने भी रोड़े अटकाएं, युवा किसी की सुनने वाला नहीं है. इसकी बजाय आज का युवा पांचवां M (अर्थात मोदी) चुनना अधिक पसंद करेगा, जो दबंगई से अपने निर्णय लागू करे और युवाओं के साथ संवाद स्थापित करे, ऐसे में यदि इन सब के बीच “हिंदुत्व का तडका-मसाला” भी लग जाए तो क्या बुरा है? 

Suresh Chiplunkar
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