आडवाणी जी… कांग्रेस और राजदीप सरदेसाई दोनों का गुनाह बराबरी का है…
कल संसद में जिस तरह से आडवाणी जी गरजे और बरसे उन्हें देखकर 1991 से 1999 के आडवाणी की याद हो आई। नोट फ़ॉर वोट के मुद्दे पर उन्होंने जिस तरह प्रणब मुखर्जी और चिदम्बरम को घेरा तथा कैश फ़ॉर वोट काण्ड में उन्हें भी गिरफ़्तार करने की चुनौती दी, उस समय उन दोनों की बेबसी देखते ही बनती थी। हालांकि बाकी के कांग्रेसी सांसद "अपनी वाली" पर आ गये थे और उन्होंने आडवाणी जैसे सदन के एक वरिष्ठतम सदस्य को बोलने नहीं दिया। ज़ाहिर है कि मामला आईने की तरह साफ़ है, जिन सांसदों ने वोट देने के लिए पाई गई रिश्वत को उजागर किया, वही जेल में हैं और उस रिश्वत का फ़ायदा जिन्हें मिला, और जिसने रिश्वत दी (यानी UPA सरकार बची) वे तो खुलेआम घूम रहे हैं। माना कि एक "दल्ला" अमरसिंह, लाख बहानों के बावजूद जेल में है, लेकिन अभी भी यह बात छुपी हुई है कि आखिर इतना पैसा दिया किसने? सरकार बचाई किसने? रिश्वत पहुँचाने वाला अभी तक दृश्य से बाहर है, जबकि रिश्वत को नकारकर उसे सरेआम लोकसभा में लहराने वाले जेल में हैं।
इस समूचे मामले में एक सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है IBN-7 का राजदीप सरदेसाई। नोट फ़ॉर वोट के पूरे स्टिंग ऑपरेशन की उसे न सिर्फ़ पल-पल की खबर थी, बल्कि उसी चैनल ने यह पूरा स्टिंग किया था। राजदीप सरदेसाई के पास पूरे सबूत मौजूद हैं कि पैसा कहाँ से आया, किसने दलाली की, पैसा किसे दिया, कब दिया और क्यों दिया? परन्तु न तो उस दिन राजदीप के चैनल ने यह स्टिंग ऑपरेशन अपने चैनल पर दिखाया और न ही इतना समय बीत जाने के बाद आज तक कभी किया। ये कैसी पत्रकारिता है?
गलती तो भाजपा की भी है कि उसने राजदीप सरदेसाई जैसे "सुपर कांग्रेसी दलाल" पर भरोसा कर लिया, IBN-7 को इस स्टिंग की जिम्मेदारी सौंपने और सरदेसाई के साथ मिलकर जाल बिछाने की क्या जरुरत थी? क्या बाकी के सारे चैनल वाले मर गये थे जो इस चर्च के मोहरे पर भरोसा किया? योजना तो यही थी, कि भाजपा के सांसद सदन में नोट लहराएंगे और सदन के बाहर IBN-7 पर इन वीडियो टेपों को प्रसारित किया जाएगा। परन्तु आडवाणी जी… आपने जिस पर भरोसा किया उसी ने आपके पीठ में छुरा भोंक दिया और उस दिन से आज तक वह सारे टेप्स और वीडियो दबाकर बैठा है, वरना उसी दिन UPA सरकार रफ़ा-दफ़ा हो गई होती।
ज़ाहिर है कि ऐसा "कृत्य" राजदीप ने मुफ़्त में तो नहीं किया होगा? जब उसे लगा होगा कि इस स्टिंग के जारी होने पर, इस पूरे मामले में कांग्रेस के "ठेठ ऊपर तक" के नेता फ़ँसेंगे तो उसने परदे के पीछे "समुचित डीलिंग" कर ली। भले ही जाँच का मूल विषय तो यही है कि आखिर वे चार करोड़ रुपये किसने दिये, लेकिन आडवाणी जी… इस बात की भी जाँच करवाईये कि राजदीप सरदेसाई कितने में बिका, किसके हाथों बिका? वह वीडियो प्रसारित न करने के बदले वह पद्मभूषण लेगा, कुछ करोड़ रुपये लेगा या कुछ और? तथा वह वीडियो टेप्स अभी भी सही-सलामत हैं या गायब कर दिये गए हैं? कांग्रेस ने तो जो किया उसे शायद जनता सजा देगी, परन्तु आपसे अनुरोध है कि आप इस "पत्रकारनुमा दलाल" को छोड़ना मत…।
हम तो सिर्फ़ अनुरोध ही कर सकते हैं, क्योंकि इतना बड़ा धोखा खाने के बावजूद आज भी देखा जाता है कि भाजपा के नेता और प्रवक्ता आये दिन राजदीप के IBN या करण थापर के टॉक-शो में अथवा धुर-भाजपा विरोधी NDTV पर अपना मुखड़ा दिखाने के लिए मरे जाते हैं…। आडवाणी जी, आप तो इतने अनुभवी हैं… सो यह बात तो जानते ही होंगे, कि यदि आप इन "मीडिया दलालों" को अपनी गोद में बैठाकर अपने हाथों से भोजन भी करवाएं तब भी ये कांग्रेस के ही गुण गाएंगे, तो फ़िर इनका बहिष्कार करके इन्हें "किसी और तरीके" से सबक क्यों नहीं सिखाते?
आडवाणी जी, विगत कुछ वर्षों में देखने में आया कि अत्यधिक भलमनसाहत दिखाने के चक्कर में आप इन सेकुलरों और कांग्रेसियों से "मधुर सम्बन्ध" बना रहे थे, लेकिन अब आपने इसका नतीजा देख लिया है कि ये "सेकुलर्स" किसी के सगे नहीं होते। आप इनके साथ चाय पार्टियाँ मनाएंगे, ये लोग कर्नाटक में सरकार गिरा देंगे… आप इनके साथ इफ़्तार पार्टियों में शामिल होंगे, ये लोग गुजरात में मनमाना लोकायुक्त थोप देंगे… आप मध्यस्थता करके अण्णा आंदोलन की "आँच" से इन्हें बचाने में मदद करेंगे, ये संसद में आपको बोलने नहीं देंगे…।
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नोट :- माननीय आडवाणी जी, माना कि मैं आपके कई निर्णयों से नाखुश हूँ (जैसे कंधार मामले में आत्मसमर्पण या जिन्ना की मज़ार पर सजदा करके उसे धर्मनिरपेक्ष बताना एवं स्विस बैंक अकाउंट मुद्दे पर सोनिया से खेद व्यक्त करना इत्यादि), मैंने अपने लेखों में कई बार इन निर्णयों की आलोचना भी की है। परन्तु आपका कट्टर विरोधी भी इस बात को मानेगा, कि कई-कई मनमोहनों, चिदम्बरों, सिब्बलों और दिग्गियों के मुकाबले आप कई गुना बेहतर हैं…। 83 वर्ष की आयु में भी कल जिस तरह से आप संसद में गरज रहे थे, बहुत दिनों बाद दिल खुश किया आपने…। सेकुलरों से दूरी बनाकर रखेंगे, कांग्रेसियों और दलालनुमा पत्रकारों को रगड़ेंगे, तो हम और भी अधिक खुश होंगे…
कल संसद में जिस तरह से आडवाणी जी गरजे और बरसे उन्हें देखकर 1991 से 1999 के आडवाणी की याद हो आई। नोट फ़ॉर वोट के मुद्दे पर उन्होंने जिस तरह प्रणब मुखर्जी और चिदम्बरम को घेरा तथा कैश फ़ॉर वोट काण्ड में उन्हें भी गिरफ़्तार करने की चुनौती दी, उस समय उन दोनों की बेबसी देखते ही बनती थी। हालांकि बाकी के कांग्रेसी सांसद "अपनी वाली" पर आ गये थे और उन्होंने आडवाणी जैसे सदन के एक वरिष्ठतम सदस्य को बोलने नहीं दिया। ज़ाहिर है कि मामला आईने की तरह साफ़ है, जिन सांसदों ने वोट देने के लिए पाई गई रिश्वत को उजागर किया, वही जेल में हैं और उस रिश्वत का फ़ायदा जिन्हें मिला, और जिसने रिश्वत दी (यानी UPA सरकार बची) वे तो खुलेआम घूम रहे हैं। माना कि एक "दल्ला" अमरसिंह, लाख बहानों के बावजूद जेल में है, लेकिन अभी भी यह बात छुपी हुई है कि आखिर इतना पैसा दिया किसने? सरकार बचाई किसने? रिश्वत पहुँचाने वाला अभी तक दृश्य से बाहर है, जबकि रिश्वत को नकारकर उसे सरेआम लोकसभा में लहराने वाले जेल में हैं।
इस समूचे मामले में एक सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है IBN-7 का राजदीप सरदेसाई। नोट फ़ॉर वोट के पूरे स्टिंग ऑपरेशन की उसे न सिर्फ़ पल-पल की खबर थी, बल्कि उसी चैनल ने यह पूरा स्टिंग किया था। राजदीप सरदेसाई के पास पूरे सबूत मौजूद हैं कि पैसा कहाँ से आया, किसने दलाली की, पैसा किसे दिया, कब दिया और क्यों दिया? परन्तु न तो उस दिन राजदीप के चैनल ने यह स्टिंग ऑपरेशन अपने चैनल पर दिखाया और न ही इतना समय बीत जाने के बाद आज तक कभी किया। ये कैसी पत्रकारिता है?
गलती तो भाजपा की भी है कि उसने राजदीप सरदेसाई जैसे "सुपर कांग्रेसी दलाल" पर भरोसा कर लिया, IBN-7 को इस स्टिंग की जिम्मेदारी सौंपने और सरदेसाई के साथ मिलकर जाल बिछाने की क्या जरुरत थी? क्या बाकी के सारे चैनल वाले मर गये थे जो इस चर्च के मोहरे पर भरोसा किया? योजना तो यही थी, कि भाजपा के सांसद सदन में नोट लहराएंगे और सदन के बाहर IBN-7 पर इन वीडियो टेपों को प्रसारित किया जाएगा। परन्तु आडवाणी जी… आपने जिस पर भरोसा किया उसी ने आपके पीठ में छुरा भोंक दिया और उस दिन से आज तक वह सारे टेप्स और वीडियो दबाकर बैठा है, वरना उसी दिन UPA सरकार रफ़ा-दफ़ा हो गई होती।
ज़ाहिर है कि ऐसा "कृत्य" राजदीप ने मुफ़्त में तो नहीं किया होगा? जब उसे लगा होगा कि इस स्टिंग के जारी होने पर, इस पूरे मामले में कांग्रेस के "ठेठ ऊपर तक" के नेता फ़ँसेंगे तो उसने परदे के पीछे "समुचित डीलिंग" कर ली। भले ही जाँच का मूल विषय तो यही है कि आखिर वे चार करोड़ रुपये किसने दिये, लेकिन आडवाणी जी… इस बात की भी जाँच करवाईये कि राजदीप सरदेसाई कितने में बिका, किसके हाथों बिका? वह वीडियो प्रसारित न करने के बदले वह पद्मभूषण लेगा, कुछ करोड़ रुपये लेगा या कुछ और? तथा वह वीडियो टेप्स अभी भी सही-सलामत हैं या गायब कर दिये गए हैं? कांग्रेस ने तो जो किया उसे शायद जनता सजा देगी, परन्तु आपसे अनुरोध है कि आप इस "पत्रकारनुमा दलाल" को छोड़ना मत…।
हम तो सिर्फ़ अनुरोध ही कर सकते हैं, क्योंकि इतना बड़ा धोखा खाने के बावजूद आज भी देखा जाता है कि भाजपा के नेता और प्रवक्ता आये दिन राजदीप के IBN या करण थापर के टॉक-शो में अथवा धुर-भाजपा विरोधी NDTV पर अपना मुखड़ा दिखाने के लिए मरे जाते हैं…। आडवाणी जी, आप तो इतने अनुभवी हैं… सो यह बात तो जानते ही होंगे, कि यदि आप इन "मीडिया दलालों" को अपनी गोद में बैठाकर अपने हाथों से भोजन भी करवाएं तब भी ये कांग्रेस के ही गुण गाएंगे, तो फ़िर इनका बहिष्कार करके इन्हें "किसी और तरीके" से सबक क्यों नहीं सिखाते?
आडवाणी जी, विगत कुछ वर्षों में देखने में आया कि अत्यधिक भलमनसाहत दिखाने के चक्कर में आप इन सेकुलरों और कांग्रेसियों से "मधुर सम्बन्ध" बना रहे थे, लेकिन अब आपने इसका नतीजा देख लिया है कि ये "सेकुलर्स" किसी के सगे नहीं होते। आप इनके साथ चाय पार्टियाँ मनाएंगे, ये लोग कर्नाटक में सरकार गिरा देंगे… आप इनके साथ इफ़्तार पार्टियों में शामिल होंगे, ये लोग गुजरात में मनमाना लोकायुक्त थोप देंगे… आप मध्यस्थता करके अण्णा आंदोलन की "आँच" से इन्हें बचाने में मदद करेंगे, ये संसद में आपको बोलने नहीं देंगे…।
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नोट :- माननीय आडवाणी जी, माना कि मैं आपके कई निर्णयों से नाखुश हूँ (जैसे कंधार मामले में आत्मसमर्पण या जिन्ना की मज़ार पर सजदा करके उसे धर्मनिरपेक्ष बताना एवं स्विस बैंक अकाउंट मुद्दे पर सोनिया से खेद व्यक्त करना इत्यादि), मैंने अपने लेखों में कई बार इन निर्णयों की आलोचना भी की है। परन्तु आपका कट्टर विरोधी भी इस बात को मानेगा, कि कई-कई मनमोहनों, चिदम्बरों, सिब्बलों और दिग्गियों के मुकाबले आप कई गुना बेहतर हैं…। 83 वर्ष की आयु में भी कल जिस तरह से आप संसद में गरज रहे थे, बहुत दिनों बाद दिल खुश किया आपने…। सेकुलरों से दूरी बनाकर रखेंगे, कांग्रेसियों और दलालनुमा पत्रकारों को रगड़ेंगे, तो हम और भी अधिक खुश होंगे…
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