“बैप्टिज़्म सर्टिफ़िकेट” की वैधता और पोलैण्ड के राष्ट्रपति की मौत पर विज्ञापन : कुछ विशिष्ट संकेत…… Baptism Certificate Date of Birth Proof and Church

Written by सोमवार, 19 अप्रैल 2010 13:29
हाल ही में दो घटनाओं पर मेरी नज़र पड़ी और उन्हें पढ़कर मैं थोड़ा आश्चर्यचकित हूं, थोड़ा भ्रमित हूं और थोड़ा संशय की स्थिति में हूं। कृपया इन दोनों घटनाओं पर नज़र डालें और जो सवाल उठ रहे हैं, उनके जवाब देकर मेरा सामान्य ज्ञान बढ़ायें।

जैसा कि सभी जानते हैं भारत घोषित रूप से एक “सेकुलर” देश है। अमूमन हमारे यहाँ किसी “धर्म विशेष” को शासकीय तौर पर वरीयता देने की परम्परा और नियम नहीं हैं (हालांकि ऐसा सिर्फ़ कागज़ों में ही है, क्योंकि धर्म आधारित आरक्षण और पर्सनल लॉ, अब एक वास्तविकता बन चुकी है)। प्रस्तुत चित्र मुम्बई के मझगाँव डॉकयार्ड (बन्दरगाह) के मैनेजर द्वारा एक अभ्यर्थी को इंटरव्यू के बुलावे के लिये भेजे गये पत्र का है। यूँ तो यह एक सामान्य सा कॉल-लेटर है, लेकिन इसमें आवेदक को जन्म प्रमाण-पत्र पेश करने के लिये जो कालम लिखा है उसमें अन्य सभी “जन्म प्रमाण के सर्वमान्य प्रशासनिक दस्तावेजों” के अलावा “बैप्टिज़्म सर्टिफ़िकेट” का विकल्प भी रखा है।




हालांकि देश के कुछ (ईसाई बहुल) राज्यों में “बैप्टिज़्म सर्टिफ़िकेट” को जन्मप्रमाण पत्र के तौर पर आधिकारिक मान्यता प्राप्त है जैसे गोआ, मिजोरम और केरल आदि (शायद वहाँ इसी को सेकुलरिज़्म कहते होंगे), लेकिन चूंकि यह कॉल-लेटर मुम्बई के मझगाँव डॉक का है अतः मैं यह भी जानना चाहता हूं (कृपया मेरा ज्ञानवर्धन करें) कि –

1) क्या बैप्टिज़्म सर्टिफ़िकेट अब महाराष्ट्र में भी वैध है?

2) कहीं केन्द्र सरकार ने इसे अपनी आधिकारिक जन्म प्रमाण पत्र सूची में तो शामिल नहीं कर लिया है? (मझगाँव डॉकयार्ड केन्द्र सरकार के अधीन आता है)

3) यदि किया है तो कब से?

4) यदि नहीं, तो केन्द्र सरकार का एक विभाग ऐसा कॉल लेटर कैसे जारी कर सकता है?

5) यह “विशेष सुविधा” अन्य धर्मों के लोगों भी प्राप्त है या नहीं? (जैसे किसी मौलवी या किसी ग्रन्थी के हस्ताक्षरों द्वारा जारी जन्म प्रमाण पत्र)

इस कॉल लेटर से कुछ सवाल उठना स्वाभाविक है –

1) क्या यह एक धर्मनिरपेक्ष देश की “राज्य व्यवस्था” में ईसाईयों के पक्ष में पक्षपात है?

2) क्या इस प्रकार की धार्मिक जन्म प्रमाण पत्र विधि को मान्य करना ईसाईयों को अतिरिक्त फ़ायदा नहीं देगी?

3) उस स्थिति में क्या होगा यदि नगरनिगम के जन्म प्रमाणपत्र अथवा हाईस्कूल मार्कशीट पर छपी जन्मतिथि एवं बैप्टिज़्म सर्टिफ़िकेट की तिथि अलग-अलग हो? (ऐसी स्थिति में किसे वरीयता दी जायेगी?) (इस सवाल की गम्भीरता समझने के लिये आगे यू-ट्यूब की वीडियो क्लिप भी देखें)

कुछ “खसके” हुए साम्प्रदायिक सवाल भी साथ-साथ खड़े होते हैं –

1) क्या इस प्रक्रिया से धर्मान्तरण में मदद नहीं मिलेगी? (एक अनाथ बच्चा पकड़ो, उसका बप्तिस्मा करो, एक ईसाई तैयार)

2) आदिवासी क्षेत्रों में जहाँ अनपढ़ लोग जन्म प्रमाण पत्र के बारे में जानते ही नहीं, वहाँ का स्थानीय पादरी उन्हें ताबड़तोड़ बैप्टिस्ट सर्टिफ़िकेट जारी करके ईसाई बना सकता है।

अब देखते हैं, कुछ समय पूर्व पत्रकार आशीष सारस्वत, नीरज सिंह और रोहित खन्ना द्वारा किया गया एक स्टिंग ऑपरेशन, जिसमें दिल्ली के पहाड़गंज स्थित ईदगाह बैप्टिस्ट चर्च के पादरी बेंजामिन दास एक फ़र्जी बैप्टिस्ट सर्टिफ़िकेट जारी करते हुए कैमरे पर पकड़े गये थे। इन पत्रकारों ने उन्हें कहा कि वे ईसाई हैं और उन्हें “बैक-डेट” में एक बैप्टिस्ट सर्टिफ़िकेट चाहिये। बेंजामिन दास ने उन्हें यह सर्टिफ़िकेट 15,000 रुपये में बेचा और चर्च के रजिस्टर में उन्हें उस चर्च का “सम्माननीय और पुराना सदस्य” भी दर्ज कर लिया।

इस वीडियो में पादरी साहब फ़रमाते हैं, “आजकल पैसे से हर काम करवाया जा सकता है, 2000 रुपये तो मैं एफ़िडेविट बनवाने के ले रहा हूं, और 13,000 मेरी फ़ीस होगी…”।

पत्रकारों की इस टीम ने फ़िर दिल्ली विश्वविद्यालय स्थित क्रिश्चियन कॉलोनी के होली गोस्पेल बैप्टिस्ट चर्च के फ़ादर हेनरिक जेम्स का स्टिंग ऑपरेशन किया, उसने भी बैप्टिस्म सर्टिफ़िकेट पैसा लेकर जारी कर दिया। यहाँ कारण बताया गया कि “हम मेरठ से आये हैं और वहाँ एक “प्रतिष्ठित मिशनरी स्कूल” में दाखिले के लिये बप्तिस्मा प्रमाण पत्र चाहिये”। यहाँ पर इस प्रकार का जन्म प्रमाण पत्र(?) उन्हें सस्ते में अर्थात सिर्फ़ 5000 में मिल गया। इसके बाद इस टीम ने क्रिश्चियन कॉलेज में एडमिशन के नाम पर असेम्बली ऑफ़ बिलीवर्स चर्च के पादरी सेसिल न्यूटन से भी एक ऐसा ही बैप्टिस्ट सर्टिफ़िकेट हासिल कर लिया। इस मामले में अधिक पैसा देना पड़ा क्योंकि फ़ादर सेसिल ने मजिस्ट्रेट का एक हस्ताक्षर युक्त सर्टिफ़िकेट भी साथ में दिया जिसमें यह घोषणा की गई थी कि यह तीनों पत्रकार स्वेच्छा से ईसाई धर्म अपना रहे हैं।

दूसरे वीडियो में रिपोर्टर कहते हैं – “मतलब आज से हम लोग क्रिश्चियन हो गये और आपने हमें बैप्टिस्ट सर्टिफ़िकेट दिया”। फ़ादर सेसिल कहते हैं – “हमें वकीलों को भी सेट करके रखना पड़ता है, वरना आप को इतनी आसानी से यह नहीं मिलता…”… फ़ादर सेसिल ने भी चर्च के रजिस्टर में इनकी सदस्यता पिछली तारीखों में दर्शाई।

इस मामले में सबसे बड़ा सवाल यही है कि “एक गैर-सरकारी और धार्मिक संस्था” द्वारा जारी किया गया जन्म प्रमाण पत्र आधिकारिक क्यों होना चाहिये? क्या ऐसे फ़र्जी प्रमाण-पत्रों को शासकीय दस्तावेज का दर्जा दिया जा सकता है? और वह भी एक “सेकुलर” राज्य में?

जिस किसी सज्जन को इस बारे में जो भी आधिकारिक जानकारी उपलब्ध हो वह टिप्पणी के माध्यम से प्रदर्शित करे, ताकि लोगों को सही स्थिति की जानकारी मिल सके। क्या जीवन बीमा करते समय “आयु-प्रमाण” के लिये भी “बैप्टिस्ट सर्टिफ़िकेट” को मान्य किया जाता है? यदि यह सही है, तो क्या यह बीमा कम्पनियों के लिये एक खतरे का संकेत नहीं है? साथ ही कृपया ऐसे सभी सरकारी (केन्द्रीय और राज्य) विभागों और संस्थाओं की सूची बनायें जो बैप्टिस्ट सर्टिफ़िकेट को मान्य करते हैं… ताकि उचित मंच से इस पर विरोध दर्ज किया जा सके।

सीएनएन-आईबीएन की वेबसाईट पर नकली प्रमाणपत्र बेचने के इस गोरखधंधे का भण्डाफ़ोड़ किया जा चुका है…
इसे देखें… http://18b882d9.linkbucks.com

यह है यू-ट्यूब की लिंक जिसमें बप्तिस्मा प्रमाणपत्र पैसा लेकर दिया जा रहा है-

http://www.youtube.com/watch?v=nkomR3ndjfg

बप्तिस्मा सर्टिफ़िकेट बेचने का एक और वीडियो…

http://www.youtube.com/watch?v=5S0sx1cmSck&feature=related

अब एक अन्य घटना देखिये :- पोलैण्ड के राष्ट्रपति की हाल ही में एक हवाई दुर्घटना में मौत हुई, इधर दिल्ली में “सेक्रेड हार्ट कैथेड्रल” द्वारा टाइम्स ऑफ़ इंडिया अखबार में एक विज्ञापन प्रकाशित करवा कर दिवंगतों को श्रद्धांजलि देने का कार्यक्रम (15 अप्रैल 2010) आयोजित किया गया। विज्ञापन में कहा गया है कि पोलैण्ड के राष्ट्रपति और उनकी पत्नी के हवाई दुर्घटना में हुए दुखद निधन पर गहरा शोक हुआ है अतः आर्चबिशप विन्सेण्ट माइकल एक शोकसभा लेंगे। ठीक इसी प्रकार “सेमुअल” राजशेखर रेड्डी के हवाई दुर्घटना में मारे जाने पर मुम्बई सहित अनेक शहरों के चर्चों ने शोकसभा आयोजित की थी (तो क्या सिंधिया, जीएमसी बालयोगी आदि कांग्रेसी नेता सड़क दुर्घटना में मारे गये थे? और हाल ही में माओवादियों द्वारा 76 सैनिकों की हत्या पर तो इस चर्च ने कोई शोकसभा आयोजित नही की…)। शायद “Deepest sense of grief” तथा “Most Terrible Tragedies” जैसे वाक्य कुछ “खास” लोगों के लिये ही आरक्षित हैं।



अब बताईये…… राष्ट्रपति हैं पोलैण्ड के, निधन हुआ रूस में और उनकी शोकसभा दिल्ली में? क्यों? कोई औचित्य दिखता है? नहीं ना… अब आपके दिमाग की कोई घण्टी बजी? बजेगी, बजेगी जरूर बजेगी… थोड़ा दिमाग पर जोर लगाईये, तथा “भारत के सेकुलर मीडिया” की भाण्डनुमा (सानिया मिर्ज़ा-थरूर) खबरों से अपना ध्यान हटाईये… सब साफ़-साफ़ दिखने लगेगा।

वीडियोकॉन मोबाइल के विज्ञापन में कहा जाता है, “सिग्नल पकड़ो और समझो…” मैं भी यही कह रहा हूं… बिना किसी वजह के हुए हैदराबाद के दंगे, बरेली में मोहम्मद साहब का जन्मदिन बीत जाने के बावजूद होली के अवसर पर जुलूस एक खास मोहल्ले से निकालने की जिद करना, पोलैण्ड के राष्ट्रपति के निधन पर भारत के अखबारों में शोक विज्ञापन, नित्यानन्द स्वामी जैसे मामलों को जमकर उछालना और चर्च के बाल यौन शोषण को चुपके से दबा देना, तमिलनाडु और उड़ीसा में काम कर रहे NGO को मिलने वाले विदेशी अनुदान में अचानक दोगुनी बढ़ोतरी… जैसे सैकड़ों “सिग्नल” लगातार मिल रहे हैं, यदि अपनी अगली पीढ़ी को सुरक्षित देखना चाहते हों, तो सिर्फ़ “एंटीना” सही रखकर इन सिग्नलों को पकड़ने की क्षमता विकसित कीजिये…। मैं तो बहुत मामूली आदमी हूँ, सिर्फ़ इधर-उधर फ़ैले “सिग्नल” पकड़कर, आप तक पहुँचाने की कोशिश कर रहा हूं, अब यह आप पर निर्भर है कि आप कब तक “तथाकथित सेकुलर” बने रहते हैं। और हाँ… बातों-बातों में वो जन्म प्रमाणपत्र वाले कुछ सवाल भूल न जाईयेगा…


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I am a Blogger, Freelancer and Content writer since 2006. I have been working as journalist from 1992 to 2004 with various Hindi Newspapers. After 2006, I became blogger and freelancer. I have published over 700 articles on this blog and about 300 articles in various magazines, published at Delhi and Mumbai. 


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