राजा बाबू और नीरा राडिया की जुगलबन्दी, 2G स्पेक्ट्रम महाघोटाला और सीबीआई के कुछ गोपनीय दस्तावेज… (भाग-2)...... 2G Spectrum Scam, A Raja, Neera Radia, CBI, PMO (Part-2)

Written by बुधवार, 12 मई 2010 12:36
भाग-1 में हमने देखा था कि 2G स्पेक्ट्रम घोटाले की पृष्ठभूमि क्या है और असल में यह खेल है क्या… इस भाग में, यह घोटाला कैसे किया गया, इसे देखते हैं…

इस महाघोटाले को ठीक से और जल्दी समझने के लिये मैं इसे दिनांक के क्रम में जमा देता हूं –

- 16 मई 2007 को राजा बाबू को प्रधानमंत्री ने कैबिनेट में दूरसंचार मंत्रालय दिया।
(2009 में फ़िर से यह मंत्रालय हथियाने के लिये नीरा राडिया, राजा बाबू और करुणानिधि की पुत्री कनिमोझि के बीच जो बातचीत हुई उसकी फ़ोन टैप की गई थी, उस बातचीत का कुछ हिस्सा आगे पेश करूंगा…)

- 28 अगस्त 2007 को TRAI (दूरसंचार नियामक प्राधिकरण) ने बाजार भाव पर विभिन्न स्पेक्ट्रमों के लाइसेंस जारी करने हेतु दिशानिर्देश जारी किये, ताकि निविदा ठेका लेने वाली कम्पनियाँ बढ़चढ़कर भाव लगायें और सरकार को अच्छा खासा राजस्व मिल सके।

- 28 अगस्त 2007 को ही राजा बाबू ने TRAI की सिफ़ारिशों को खारिज कर दिया, और कह दिया कि लाइसेंस की प्रक्रिया जून 2001 की नीति (पहले आओ, पहले पाओ) के अनुसार तय की जायेंगी (ध्यान देने योग्य बात यह है कि 2001 में भारत में मोबाइलधारक सिर्फ़ 40 लाख थे, जबकि 2007 में थे पैंतीस करोड़। (यानी राजा बाबू केन्द्र सरकार को चूना लगाने के लिये, कम मोबाइल संख्या वाली शर्तों पर काम करवाना चाहते थे।)

- 20-25 सितम्बर 2007 को राजा ने यूनिटेक, लूप, डाटाकॉम तथा स्वान नामक कम्पनियों को लाइसेंस आवेदन देने को कह दिया (इन चारों कम्पनियों में नीरा राडिया तथा राजा बाबू की फ़र्जी कम्पनियाँ भी जुड़ी हैं), जबकि यूनिटेक तथा स्वान कम्पनियों को मोबाइल सेवा सम्बन्धी कोई भी अनुभव नहीं था, फ़िर भी इन्हें इतना बड़ा ठेका देने की योजना बना ली गई

- दिसम्बर 2007 में दूरसंचार मंत्रालय के दो वरिष्ठ अधिकारी (जो इस DOT की नीति को बदलने का विरोध कर रहे थे, उसमें से एक ने इस्तीफ़ा दे दिया व दूसरा रिटायर हो गया), इसी प्रकार राजा द्वारा “स्वान” कम्पनी का पक्ष लेने वाले दो अधिकारियों का ट्रांसफ़र कर दिया गया। इसके बाद राजा बाबू और नीरा राडिया का रास्ता साफ़ हो गया।

- 1-10 जनवरी 2008 : राजा बाबू पहले पर्यावरण मंत्रालय में थे, वहाँ से वे अपने विश्वासपात्र(?) सचिव सिद्धार्थ बेहुरा को दूरसंचार मंत्रालय में ले आये, फ़िर कानून मंत्रालय को ठेंगा दिखाते हुए DOT ने ऊपर बताई गई चारों कम्पनियों को दस दिन के भीतर नौ लाइसेंस बाँट दिये

22 अप्रैल 2008 को ही राजा बाबू के विश्वासपात्र सेक्रेटरी सिद्धार्थ बेहुरा ने लाइसेंस नियमों में संशोधन(?) करके Acquisition (अधिग्रहण) की जगह Merger (विलय) शब्द करवा दिया ताकि यूनिटेक अथवा अन्य सभी कम्पनियाँ “तीन साल तक कोई शेयर नहीं बेच सकेंगी” वाली शर्त अपने-आप, कानूनी रूप से हट गई।

- 13 सितम्बर 2008 को राजा बाबू ने BSNL मैनेजमेंट बोर्ड को लतियाते हुए उसे “स्वान” कम्पनी के साथ “इंट्रा-सर्कल रोमिंग एग्रीमेण्ट” करने को मजबूर कर दिया। (जब मंत्री जी कह रहे हों, तब BSNL बोर्ड की क्या औकात है?)

- सितम्बर अक्टूबर 2008 : “ऊपर” से हरी झण्डी मिलते ही, इन कम्पनियों ने कौड़ी के दामों में मिले हुए 2G स्पेक्ट्रम के लाइसेंस और अपने हिस्से के शेयर ताबड़तोड़ बेचना शुरु कर दिये- जैसे कि स्वान टेलीकॉम ने अपने 45% शेयर संयुक्त अरब अमीरात की कम्पनी Etisalat को 4200 करोड़ में बेच दिये (जबकि स्वान को ये मिले थे 1537 करोड़ में) अर्थात जनवरी से सितम्बर सिर्फ़ नौ माह में 2500 करोड़ का मुनाफ़ा, वह भी बगैर कोई काम-धाम किये हुए। अमीरात की कम्पनी Etisalat ने यह भारी-भरकम निवेश मॉरीशस के बैंकों के माध्यम से किया (गौर करें कि मॉरीशस एक “टैक्स-स्वर्ग” देश है और ललित मोदी ने भी अपने काले धंधे ऐसे ही देशों के अकाउंट में किये हैं और दुनिया में ऐसे कई देश हैं, जिनकी पूरी अर्थव्यवस्था ही भारत जैसे भ्रष्ट देशों से आये हुए काले पैसे पर चलती है)…

बहरहाल आगे बढ़ें…

- यूनिटेक वायरलेस ने अपने 60% शेयर नॉर्वे की कम्पनी टेलनॉर को 6200 करोड़ में बेचे, जबकि यूनिटेक को यह मिले थे सिर्फ़ 1661 करोड़ में।

- टाटा टेलीसर्विसेज़ ने अपने 26% शेयर जापान की डोकोमो कम्पनी को 13230 करोड़ में बेच डाले।

अर्थात राजा बाबू और नीरा राडिया की मिलीभगत से लाइसेंस हथियाने वाली लगभग सभी कम्पनियों ने अपने शेयरों के हिस्से 70,022 करोड़ में बेच दिये जबकि इन्होंने सरकार के पास 10,772 करोड़ ही जमा करवाये थे। यानी कि राजा बाबू ने केन्द्र सरकार को लगभग 60,000 करोड़ का नुकसान करवा दिया (अब इसमें से राजा बाबू और नीरा को कितना हिस्सा मिला होगा, यह कोई बेवकूफ़ भी बता सकता है, तथा सरकार को जो 60,000 करोड़ का नुकसान हुआ, उससे कितने स्कूल-अस्पताल खोले जा सकते थे, यह भी बता सकता है)।

- 15 नवम्बर 2008 को केन्द्रीय सतर्कता आयोग ने राजा बाबू को नोटिस थमाया, सतर्कता आयोग ने इस महाघोटाले की पूरी रिपोर्ट प्रधानमंत्री को सौंप दी और लोकतन्त्र की परम्परानुसार(?) राजा पर मुकदमा चलाने की अनुमति माँगी।

- 21 अक्टूबर 2009 को (यानी लगभग एक साल बाद) सीबीआई ने इस घोटाले की पहली FIR लिखी।

- 29 नवम्बर 2008, 31 अक्टूबर 2009, 8 मार्च 2010 तथा 13 मार्च 2010 को डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी ने प्रधानमंत्री को कैबिनेट से राजा को हटाने के लिये पत्र लिखे, लेकिन “भलेमानुष”(?) के कान पर जूं तक नहीं रेंगी।

- 19 मार्च 2010 को केन्द्र सरकार ने अपने पत्र में डॉ स्वामी को जवाब दिया कि “राजा पर मुकदमा चलाने अथवा कैबिनेट से हटाने के सम्बन्ध में जल्दबाजी में कोई फ़ैसला नहीं लिया जायेगा, क्योंकि अभी जाँच चल रही है तथा सबूत एकत्रित किये जा रहे हैं…”

- 12 अप्रैल 2010 को डॉ स्वामी ने दिल्ली हाइकोर्ट में याचिका प्रस्तुत की।

- 28 अप्रैल 2010 को राजा बाबू तथा नीरा राडिया के काले कारनामों से सनी फ़ोन टेप का पूरा चिठ्ठा (बड़े अफ़सरों और उद्योगपतियों के नाम वाला कुछ हिस्सा बचाकर) अखबार द पायनियर ने छाप दिया। अब विपक्ष माँग कर रहा है कि राजा को हटाओ, लेकिन कब्र में पैर लटकाये बैठे करुणानिधि, इस हालत में भी दिल्ली आये और सोनिया-मनमोहन को “धमका” कर गये हैं कि राजा को हटाया तो ठीक नहीं होगा…।


जैसा कि मैंने पहले बताया, राजा-करुणानिधि-कणिमोझी-नीरा राडिया जैसों को भारी-भरकम “कमीशन” और “सेवा-शुल्क” दिया गया, यह कमीशन स्विस बैंकों, मलेशिया, मॉरीशस, मकाऊ, आइसलैण्ड आदि टैक्स हेवन देशों की बैंकों के अलावा दूसरे तरीके से भी दिया जाता है… आईये देखें कि नेताओं-अफ़सरों की ब्लैक मनी को व्हाइट कैसे बनाया जाता है –

17 सितम्बर 2008 को चेन्नई में एक कम्पनी खड़ी की जाती है, जिसका नाम है “जेनेक्स एक्ज़िम”, जिसके डायरेक्टर होते हैं मोहम्मद हसन और अहमद शाकिर। इस नई-नवेली कम्पनी को “स्वान” की तरफ़ से दिसम्बर 2008 में अचानक 9.9% (380 करोड़) के शेयर दे दिये जाते हैं, यानी दो कौड़ी की कम्पनी अचानक करोड़ों की मालिक बन जाती है, ऐसा क्यों हुआ? क्योंकि स्वान कम्पनी के एक डायरेक्टर अहमद सैयद सलाहुद्दीन भी जेनेक्स के बोर्ड मेम्बर हैं, और सभी के सभी तमिलनाडु के लोग हैं। सलाहुद्दीन साहब भी दुबई के एक NRI बिजनेसमैन हैं जो “स्टार समूह (स्टार हेल्थ इंश्योरेंस आदि)” की कम्पनियाँ चलाते हैं। यह समूह कंस्ट्रक्शन बिजनेस में भी है, और जब राजा बाबू पर्यावरण मंत्री थे तब इस कम्पनी को तमिलनाडु में जमकर ठेके मिले थे। करुणानिधि और सलाहुद्दीन के चार दशक पुराने रिश्ते हैं और इसी की बदौलत स्टार हेल्थ इंश्योरेंस कम्पनी को तमिलनाडु के सरकारी कर्मचारियों के समूह बीमे का काम भी मिला हुआ है, और स्वान कम्पनी को जेनेक्स नामक गुमनाम कम्पनी से अचानक इतनी मोहब्बत हो गई कि उसने 380 करोड़ के शेयर उसके नाम कर दिये। अब ये तो कोई अंधा भी बता सकता है कि जेनेक्स कम्पनी असल में किसकी है।

29 मई 2009 को जब राजा बाबू को दोबारा मंत्री पद की शपथ लिये 2 दिन भी नहीं हुए थे, दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस मुकुल मुदगल और वाल्मीकि मेहता ने एक जनहित याचिका की सुनवाई में कहा कि, 2G स्पेक्ट्रम लाइसेंस का आवंटन की “पहले आओ पहले पाओ” की नीति अजीब है, मानो ये कोई सिनेमा टिकिट बिक्री हो रही है? जनता के पैसे के दुरुपयोग और अमूल्य सार्वजनिक सम्पत्ति के दुरुपयोग का यह अनूठा मामला है, हम बेहद व्यथित हैं…”, लेकिन हाईकोर्ट की इस टिप्पणी के बावजूद “भलेमानुष” ने राजा को मंत्रिमण्डल से नहीं हटाया। इसी तरह 1 जुलाई 2009 को जस्टिस जीएस सिस्तानी ने DOT द्वारा लाइसेंस लेने की तिथि को खामख्वाह “जल्दी” बन्द कर दिये जाने की भी आलोचना की।

यह जनहित याचिका दायर की थी, स्वान की प्रतिद्वंद्वी कम्पनी STel ने, अब इस STel को चुप करने और इसकी बाँह मरोड़ने के लिये 5 मार्च 2010 को दूरसंचार विभाग ने गृह मंत्रालय का हवाला देते हुए कहा कि STel कम्पनी के कामकाज के तरीके से सुरक्षा चिताएं हैं इसलिये STel तीन राज्यों में अपनी मोबाइल सेवा बन्द कर दे, न तो कोई नोटिस, न ही कारण बताओ सूचना पत्र। इस कदम से हतप्रभ STel कम्पनी ने कोर्ट में कह दिया कि उसे दूरसंचार विभाग की “पहले आओ पहले पाओ” नीति पर कोई ऐतराज नहीं है, बाद में पता चला कि गृह मंत्रालय ने STel के विरुद्ध सुरक्षा सम्बन्धी ऐसे कोई गाइडलाइन जारी किये ही नहीं थे, लेकिन STel कम्पनी को भी तो धंधा करना है, पानी (मोबाइल सेवा) में रहकर मगरमच्छ (ए राजा) से बैर कौन मोल ले?

क्रमशः जारी आहे… (भाग-3 में हम सीबीआई के कुछ दस्तावेजों में उल्लेखित तथ्यों और जाँच एजेंसी के पत्राचार में आये हुए "कथित रुप से बड़े नामों" का जिक्र करेंगे…)
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विशेष नोट (खेद प्रकाशन) : भाग-1 पढ़ने के बाद, नाम प्रकाशित नहीं करने और पहचान गुप्त रखने की शर्त पर सीबीआई के एक अधिकारी का मेरे ईमेल पर स्पष्टीकरण आया है कि "विनीत अग्रवाल का ट्रांसफ़र किसी दबाव के तहत नहीं किया गया है, यह एक विभागीय प्रक्रिया है कि सीबीआई में सात वर्ष की पुनर्नियुक्ति के बाद सम्बन्धित अधिकारी अपने मूल कैडर में वापस लौट जाता है" अतः विनीत अग्रवाल के तबादले सम्बन्धी मेरे कथन हेतु मैं खेद व्यक्त करता हूं…। सीमित संसाधनों, सूचनाओं के लिये इंटरनेट पर अत्यधिक निर्भरता  और कम सम्पर्कों के कारण, मुझ जैसे छोटे-मोटे ब्लॉगर से कभीकभार इस प्रकार की तथ्यात्मक गलतियाँ हो जाती हैं, जिन्हें तत्काल ध्यान में लाये जाने पर खेद व्यक्त करने का प्रावधान है। हालांकि इस मामले में लगभग सभी बड़े पत्रकारों ने यही लिखा है कि "केस से हटाने और राजा को बचाने के लिये विनीत अग्रवाल का तबादला कर दिया गया है…", लेकिन बड़े पत्रकार अपनी गलती पर माफ़ी कहाँ माँगते हैं भाई… :)


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