मिग-21 के एक जाँबाज और जीवट वाले “लेखक पायलट” के बारे में जानिये…... Paralyzed Fighter Pilot Writer
Written by Super User गुरुवार, 31 दिसम्बर 2009 12:48
वर्ष का अन्त और नववर्ष की शुरुआत हिम्मत और जीवट से करने के लिये मैंने इस लेख को चुनना तय किया। जैसी हिम्मत और जीवट मिग-21 के पायलट एमपी अनिल कुमार ने दिखाई और दिखा रहे हैं, वैसा जज़्बा और जोश सभी लोग दिखायें… ऐसी आशा करता हूं…
ज़रा कल्पना कीजिये कि आयु के 24वें वर्ष में एक युवक का एक्सीडेण्ट हो जाये और गर्दन के नीचे का पूरा शरीर पक्षाघात से पीड़ित हो जाये तब उसे हिम्मत हारते देर नहीं लगेगी? लेकिन भारत के जाँबाज सैनिक केरल के एमपी अनिल कुमार किसी और ही मिट्टी के बने हैं। जी हाँ, 24 वर्ष की आयु में एक सड़क हादसे में उन्हें गहरी दिमागी चोट लगी और गर्दन के नीचे का शरीर किसी काम का न रहा, लेकिन पिछले 19 वर्ष से वे न सिर्फ़ ज़िन्दगी को ठेंगा दिखाये हुए हैं, बल्कि कम्प्यूटर को अपना साथी बनाकर एक उम्दा लेखक के रूप में भी सफ़ल हुए हैं। विकलांगता पर लिखा हुआ उनका एक लेख महाराष्ट्र के स्कूलों में पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है, जिसमें उन्होंने सभी विकलांगो में जोश भरते हुए अपने बारे में भी लिखा है।
पुणे के खड़की में सैनिक रीहैबिलिटेशन केन्द्र के सबसे पहले कमरे में आप व्हील चेयर पर फ़्लाइंग ऑफ़िसर एमपी अनिल कुमार को देख सकते हैं। उनका कमरा, उनकी व्हीलचेयर, और उनका कम्प्यूटर… यही उनकी दुनिया है, लेकिन इस छोटी सी दुनिया में बैठकर दाँतों में एक लकड़ी की स्टिक पकड़कर वे सामने टंगे की-बोर्ड पर एक-एक करके अक्षर टाइप करते जाते हैं, और उम्दा लेख, बेहतरीन सपने और जीवटता की नई मिसाल रचते जाते हैं। 28 जून 1988 को रात में लौटते समय उनका एक्सीडेण्ट हुआ था, उस दिन के बाद से वे व्हील चेयर पर ही हैं।
1980 में उन्होंने पुणे की नेशनल डिफ़ेंस एकेडमी में दाखिला लिया था। त्रिवेन्द्रम से 35 किमी दूर एक गाँव से वे भारतीय वायु सेना में फ़ाइटर पायलट बनने का सपना लिये आये हुए युवक थे। NDA की तीन वर्ष की कठिन ट्रेनिंग के बाद उनका चयन वायुसेना में एक और बेहद कठिन ट्रेनिंग के लिये हुआ, लेकिन उसे उन्होंने आसानी से हँसते-हँसते पास कर लिया।
अनिल कुमार के सहपाठी याद करते हुए कहते हैं कि “अनिल एक आलराउंडर टाइप के व्यक्ति हैं, लम्बी दौड़ के साथ ही वे एक बेहतरीन जिमनास्ट भी हैं। उन्हें NDA की ट्रेनिंग के दौरान “सिल्वर टॉर्च” का पुरस्कार मिला था, जो कि प्रत्येक नये सैनिक का सपना होता है। हैदराबाद के वायुसेना अड्डे पर उनकी पोस्टिंग हुई, और देखते ही देखते उन्होंने हवाई जहाज उड़ाना, कलाबाजियाँ दिखाना और सटीक बमबारी करना सीख लिया। जवानी के दिनों में उनकी पोस्टिंग एक बार पठानकोट के वायुसेना बेस पर भी हुई, जहाँ उनके सीनियर भी उनसे सलाह लेने में नहीं हिचकते थे। यदि 19 साल पहले वह दुर्घटना न हुई होती तो पता नहीं अनिल कुमार आज कहाँ होते, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और एक सच्चे फ़ायटर की तरह जीवन से युद्ध किया और अब तक तो जीत ही रहे हैं।
उन्होंने अपनी विकलांगता को कैसे स्वीकार किया, कैसे उससे लड़ाई की, कैसे हिम्मत बनाये रखी आदि संस्मरणों को उन्होने एक लेख “एयरबोर्न टू चेयरबोर्न” में लिखा और उसकी लोकप्रियता ने उनके “लेखकीय कैरियर” की शुरुआत कर दी। अपने घर केरल से मीलों दूर पुणे के सैनिक अस्पताल में पहले-पहल उन्होंने दाँतों में पेन पकड़कर लिखना शुरु किया, लेकिन कम्प्यूटर के आने के बाद उन्होंने सामने की-बोर्ड लटकाकर लकड़ी की पतली डंडी से टाइप करना सीख लिया। महाराष्ट्र तथा केरल के अंग्रेजी माध्यम बोर्ड में उनका लिखा हुआ लेख पाठ्यक्रम में शामिल कर लिया गया, और इस लेख ने उनके कई-कई युवा मित्र बनवा दिये।
आज की तारीख में खड़की का यह सैनिक पुनर्वास केन्द्र ही उनका स्थायी पता बन चुका है, रोज़ाना सुबह और शाम कुछ घण्टे वे लेखन में बिताते हैं। उनके लेख मुख्यतया सेना, रक्षा मामले और वायुसेना के लड़ाकू विमानों की नई तकनीक पर आधारित होते हैं और उनके अनुभव को देखते हुए ये लेख नये सैनिकों के लिये काफ़ी लाभकारी सिद्ध होते हैं। भले ही वे किसी की मदद के बिना हिलडुल नहीं सकते, लेकिन उनका दिमाग एकदम सजग और चौकन्ना है तथा उनका लेखन भी चाक-चौबन्द। उनका मानना है कि “संकट के बादलों में भी अवसरों की चमक छिपी होती है”, इसलिये कभी भी हिम्मत न हारो, संघर्ष करो, जूझते रहो, सफ़लता अवश्य मिलेगी… “संघर्ष जितना अधिक तीखा और कठिन होगा, उसका फ़ल उतना ही मीठा मिलेगा…”।
जल्द ही उनके लेखों को संकलित करती एक पुस्तक भी प्रकाशित होने वाली है…। नववर्ष की पूर्व संध्या पर तथा आने वाले वर्ष की शुरुआत के लिये इस जाँबाज सैनिक को सेल्यूट करने से अच्छा काम भला और क्या हो सकता है…। आप उनसे सम्पर्क साध सकते हैं… पता है -
M P Anil Kumar
Paraplegic Rehabilitation Centre
Park Road
Khadki
Pune 411020
E-mail: anilmp@gmail.com
मैं मानता हूं कि देश के सामने अनगिनत समस्याएं हैं, महंगाई, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, धर्मान्तरण, साम्प्रदायिकता, जेहादी मानसिकता, गरीबी, अशिक्षा… लेकिन जैसा कि एमपी अनिल कुमार कहते हैं… संघर्ष जितना तीखा होगा, फ़ल उतना ही मीठा होगा… तो हमें भी इस फ़ाइटर पायलट की तरह संघर्ष करना है, हिम्मत नहीं हारना है और जुटे रहना है…
ज़रा कल्पना कीजिये कि आयु के 24वें वर्ष में एक युवक का एक्सीडेण्ट हो जाये और गर्दन के नीचे का पूरा शरीर पक्षाघात से पीड़ित हो जाये तब उसे हिम्मत हारते देर नहीं लगेगी? लेकिन भारत के जाँबाज सैनिक केरल के एमपी अनिल कुमार किसी और ही मिट्टी के बने हैं। जी हाँ, 24 वर्ष की आयु में एक सड़क हादसे में उन्हें गहरी दिमागी चोट लगी और गर्दन के नीचे का शरीर किसी काम का न रहा, लेकिन पिछले 19 वर्ष से वे न सिर्फ़ ज़िन्दगी को ठेंगा दिखाये हुए हैं, बल्कि कम्प्यूटर को अपना साथी बनाकर एक उम्दा लेखक के रूप में भी सफ़ल हुए हैं। विकलांगता पर लिखा हुआ उनका एक लेख महाराष्ट्र के स्कूलों में पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है, जिसमें उन्होंने सभी विकलांगो में जोश भरते हुए अपने बारे में भी लिखा है।
पुणे के खड़की में सैनिक रीहैबिलिटेशन केन्द्र के सबसे पहले कमरे में आप व्हील चेयर पर फ़्लाइंग ऑफ़िसर एमपी अनिल कुमार को देख सकते हैं। उनका कमरा, उनकी व्हीलचेयर, और उनका कम्प्यूटर… यही उनकी दुनिया है, लेकिन इस छोटी सी दुनिया में बैठकर दाँतों में एक लकड़ी की स्टिक पकड़कर वे सामने टंगे की-बोर्ड पर एक-एक करके अक्षर टाइप करते जाते हैं, और उम्दा लेख, बेहतरीन सपने और जीवटता की नई मिसाल रचते जाते हैं। 28 जून 1988 को रात में लौटते समय उनका एक्सीडेण्ट हुआ था, उस दिन के बाद से वे व्हील चेयर पर ही हैं।
1980 में उन्होंने पुणे की नेशनल डिफ़ेंस एकेडमी में दाखिला लिया था। त्रिवेन्द्रम से 35 किमी दूर एक गाँव से वे भारतीय वायु सेना में फ़ाइटर पायलट बनने का सपना लिये आये हुए युवक थे। NDA की तीन वर्ष की कठिन ट्रेनिंग के बाद उनका चयन वायुसेना में एक और बेहद कठिन ट्रेनिंग के लिये हुआ, लेकिन उसे उन्होंने आसानी से हँसते-हँसते पास कर लिया।
अनिल कुमार के सहपाठी याद करते हुए कहते हैं कि “अनिल एक आलराउंडर टाइप के व्यक्ति हैं, लम्बी दौड़ के साथ ही वे एक बेहतरीन जिमनास्ट भी हैं। उन्हें NDA की ट्रेनिंग के दौरान “सिल्वर टॉर्च” का पुरस्कार मिला था, जो कि प्रत्येक नये सैनिक का सपना होता है। हैदराबाद के वायुसेना अड्डे पर उनकी पोस्टिंग हुई, और देखते ही देखते उन्होंने हवाई जहाज उड़ाना, कलाबाजियाँ दिखाना और सटीक बमबारी करना सीख लिया। जवानी के दिनों में उनकी पोस्टिंग एक बार पठानकोट के वायुसेना बेस पर भी हुई, जहाँ उनके सीनियर भी उनसे सलाह लेने में नहीं हिचकते थे। यदि 19 साल पहले वह दुर्घटना न हुई होती तो पता नहीं अनिल कुमार आज कहाँ होते, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और एक सच्चे फ़ायटर की तरह जीवन से युद्ध किया और अब तक तो जीत ही रहे हैं।
उन्होंने अपनी विकलांगता को कैसे स्वीकार किया, कैसे उससे लड़ाई की, कैसे हिम्मत बनाये रखी आदि संस्मरणों को उन्होने एक लेख “एयरबोर्न टू चेयरबोर्न” में लिखा और उसकी लोकप्रियता ने उनके “लेखकीय कैरियर” की शुरुआत कर दी। अपने घर केरल से मीलों दूर पुणे के सैनिक अस्पताल में पहले-पहल उन्होंने दाँतों में पेन पकड़कर लिखना शुरु किया, लेकिन कम्प्यूटर के आने के बाद उन्होंने सामने की-बोर्ड लटकाकर लकड़ी की पतली डंडी से टाइप करना सीख लिया। महाराष्ट्र तथा केरल के अंग्रेजी माध्यम बोर्ड में उनका लिखा हुआ लेख पाठ्यक्रम में शामिल कर लिया गया, और इस लेख ने उनके कई-कई युवा मित्र बनवा दिये।
आज की तारीख में खड़की का यह सैनिक पुनर्वास केन्द्र ही उनका स्थायी पता बन चुका है, रोज़ाना सुबह और शाम कुछ घण्टे वे लेखन में बिताते हैं। उनके लेख मुख्यतया सेना, रक्षा मामले और वायुसेना के लड़ाकू विमानों की नई तकनीक पर आधारित होते हैं और उनके अनुभव को देखते हुए ये लेख नये सैनिकों के लिये काफ़ी लाभकारी सिद्ध होते हैं। भले ही वे किसी की मदद के बिना हिलडुल नहीं सकते, लेकिन उनका दिमाग एकदम सजग और चौकन्ना है तथा उनका लेखन भी चाक-चौबन्द। उनका मानना है कि “संकट के बादलों में भी अवसरों की चमक छिपी होती है”, इसलिये कभी भी हिम्मत न हारो, संघर्ष करो, जूझते रहो, सफ़लता अवश्य मिलेगी… “संघर्ष जितना अधिक तीखा और कठिन होगा, उसका फ़ल उतना ही मीठा मिलेगा…”।
जल्द ही उनके लेखों को संकलित करती एक पुस्तक भी प्रकाशित होने वाली है…। नववर्ष की पूर्व संध्या पर तथा आने वाले वर्ष की शुरुआत के लिये इस जाँबाज सैनिक को सेल्यूट करने से अच्छा काम भला और क्या हो सकता है…। आप उनसे सम्पर्क साध सकते हैं… पता है -
M P Anil Kumar
Paraplegic Rehabilitation Centre
Park Road
Khadki
Pune 411020
E-mail: anilmp@gmail.com
मैं मानता हूं कि देश के सामने अनगिनत समस्याएं हैं, महंगाई, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, धर्मान्तरण, साम्प्रदायिकता, जेहादी मानसिकता, गरीबी, अशिक्षा… लेकिन जैसा कि एमपी अनिल कुमार कहते हैं… संघर्ष जितना तीखा होगा, फ़ल उतना ही मीठा होगा… तो हमें भी इस फ़ाइटर पायलट की तरह संघर्ष करना है, हिम्मत नहीं हारना है और जुटे रहना है…
जय हिन्द, जय जवान… आप सभी को अंग्रेजी नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं…
Published in
ब्लॉग
Tagged under
Super User